shabd-logo

कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर " _________________________________________

29 दिसम्बर 2018

1485 बार देखा गया 1485
कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर " _________________________________________ प्रस्तुति-करण :-  यादव योगेश कुमार 'रोहि' प्रेम सृष्टि का  एक वह अनुभव है । --जो उसके निर्माण की आधार -शिला है । प्रेम अनेक उन  भावनाओं का समुच्चय है । जो पारस्परिक स्नेह से प्रस्फुटित होकर लेकर भौतिक तुष्टिकरणऔर अभौतिक शान्ति के रूप में विस्तारित  होता है। वस्तुत  यह एक दृढ़ आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना है। ये किसी की दया, भावना और स्नेह प्रस्तुत करने का तरीका भी माना जा सकता है। प्राचीन यूनानीयों  ने चार प्रकार के प्रेम का विश्लेषण किया है। 1-पारिवारिक प्रेम 2- मैत्री-प्रेम  3- पति-पत्नी प्रेम 4-ईश्वरीय प्रेम (भक्ति) । प्यार को अक्सर वासना के साथ तुलना की जाती है, और पारस्परिक सम्बन्ध के तौर पर जिस्मानी रूप में  तोला जाता है। प्रेम एक रसायन है क्योंकि यह यन्त्र नहीं विलयन है,द्रष्टा और दृष्टि का। _________________________________________ सौन्दर्य प्रेम की आत्मा है और  सौन्दर्य वस्तुगत न होकर दृष्टिगत है ! भाव गत है --जो वस्तु हमारे लिए उपयोगी है अथवा कहें की हम्हें जिसकी जरूरत है । सच्चे अर्थों में वही ख़ूबसूरत है । सौन्दर्य के दृश्य तभी द्रष्टा की दृष्टि में विलयित हो पाते हैं,और यही अवस्था प्रेम की अवस्था होती है। प्रेम और सौन्दर्य दोनो की उत्पत्ति और उद्दीपन की प्रक्रिया अन्तर से प्रारम्भ होती है। सौन्दर्य मनुष्य के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है, और प्रेम उस सौन्दर्य में व्याप्त रहता है। प्रेम में आसक्ति होती है। यदि कायिक आसक्ति न हो तो प्रेम प्रेम न रहकर केवल भक्ति हो जाती है। और तब प्रेम त्याग का वाचक है। आत्म समर्पण की भावना भक्ति है। वस्तुत  प्रेम मोह और भक्ति के मध्य की अवस्था है। जैविक आधार----- यौन के जैविक मॉडल में प्यार को भूख और प्यास की तरह दिखाया गया हैं।  यूरोपीय विदुषी हेलेन फिशर, प्यार की प्रमुख विशेषज्ञ हैं:- उन्होनें प्यार के तजुर्बे को तीन हिस्सों में विभाजन किया हैं:1- वासना 2-आकर्षण, 3-आसक्ति। वासना यौनिक इच्छा होती है यह क्रियात्मक रूप है ।। रोमानी-आकर्षण निर्धारित करती है यह सौन्दर्य मूलक रूप है । वासना प्रारम्भिक आवेशात्मक यौनिक इच्छा है।     --जो विपरीत आवेशों के परिमाण स्वरूप प्रादुर्भूत (उत्पन्न) होती है । जैसे कोमला को कठोरता अतिक्रन्त करती है । अथवा कोमलता कठोरता की आकाँक्षी बनती है । स्त्रीयों और पुरुषों का पारम्परिक मिलन कोमलता और कठोरता की ही मिलन है । जो पुरुषों सम्भोग को बढ़ावा देता है। ये समागम और रसायन की रिहाई को बढ़ावा देता है। इसका प्रभाव कुछ हफ्ते या महिनों तक ही होता है। आकर्षण एक व्यक्तिगत और रोमानी इच्छा है जो एक ही मनुष्य के प्रति है जो हवस से उत्पन्न होती है। इससे एक व्यक्ति से प्रतिबद्धता बढ़ती है। जैसे जैसे मनुष्य प्यार करने लगते हैं, उनके मस्तिष्क में एक प्रकार के रसायन की रिहाई होती हैं। मनुष्य के मस्तिष्क में सुखों के केन्द्र को उत्तेजित करता है। इस वजह से दिल कि धड़कनें बढ़ जाती हैं, भूख नहीं लगती, नींद नहीं आती और उत्साह की तीव्र भावना जाग्रृत होती है। _________________________________________ प्रेम के लिए अंग्रेजी भाषा में प्रचलित शब्द (love) का प्रयोग हमारी संस्कृति में असंगत व यथार्थ भाव का बोधक नहीं है। यद्यपि साहित्य मनीषीयों ने ईश्वर विषयक रति को भक्ति और सन्तान विषयक रति को वात्सल्य तथा प्रेमी विषयक रति को ही श्रृँगार  या स्थायी भाव काम कहा है यूरोपीय भाषाओं में (love)लव तो केवल लोभः और वासना का विशेषण है उसमें प्रेम के जैसी आध्यात्मिक आत्मीय भावना कहाँ ! इसी विषय पर हमारा एक अल्प प्रयास । .... लव केवल यह पाश्चात्य संस्कृति का वासनामयी प्रदूषण ही है, जिसके आवेश में धूमिल-विचारक किशोर- वय विद्या की अरथी को वहन करने वाला विद्यार्थी होकर भी दिग्भ्रमित है।     यूरोपीय लव में त्याग और समर्पण का भाव ही नहीं हैं । परन्तु आधुनिक परिप्रेक्ष्य में पाश्चात्य संस्कृति में "प्रेम - लोभ व वासना का अभिव्यञ्जक हो गया है । तैरहवीं शताब्दी में कबीर सदृश महान आध्यात्मिक सन्त भी " कहते हैं कि " पोथी पढ़ पढ़ जग मरा भया न पण्डित कोय । ढ़ाई आखर प्रेम के पढ़े सो पण्डित होय" कबीर का प्रेम वासना का वाचक नहीं है। वह तो भक्ति का अभिभासक है । वास्तव में भारोपीय भाषा परिवार का लव ( Love) शब्द संस्कृत भाषा में लुभःअथवा लोभः के रूप में प्रस्तावित है। क्योंकि संस्कृत भाषा भारोपीय भाषा परिवार की शतम् वर्ग की भाषा होने से ग्रीक और लैटिन भाषा की बड़ी बहिन है । संस्कृत भाषा में लगभग 80℅ अस्सी प्रतिशत मूल तथा सांस्कृतिक शब्द यूरोपीय भाषाओं के सदृश हैं । लव शब्द जो कि लैटिन में लिबेट( Libet )तथा लुबेट (Lubet) के रूप में विद्यमान है । ..जिसका संस्कृत में रूप है :-- लुब्ध ( लुभ् क्त ) भूतकालिक कर्मणि कृदन्त रूप व्युत्पन्न होता है। संस्कृत भाषा में लुभः / लोभः का अभिधा मूलक अर्थ है :- (काम की तीव्रता अथवा वासना की उत्तेजना) .. वस्तुतः लोभः में प्रत्यक्ष तो लाभ दिखाई देता है ,परन्तु परोक्षतः व्याज सहित हानि ही है । अंग्रेजी भाषा में यह शब्द (Love )लव शब्द के रूप में है । तथा जर्मन में लीव (Lieve) है , तो ऐंग्लो -सैक्शन अथवा पुरानी अंग्रेजी में (Lufu )लूफु के रूप में है । यह तो सर्व विदित है कि यूरोपीय संस्कृति में प्रेम के नाम पर वासना का उन्मुक्त ताण्डव है । वहाँ प्रेम के नाम पर इन्द्रिय-सुख मात्र है । जबकि प्रेम निःस्वार्थ रूप से आत्म समर्पण का भाव है, प्रेम तो भक्ति है । जबकि भारतीय संस्कृति एक समय खण्ड में संयम मूलक व चित्त की प्राकृतिक वृत्तियों का विरोध करने वाली रही है , यही उपनिषद काल था । इन्हीं सन्दर्भों में राधा और कृष्ण का जीवन चरित हमारी विवेचना का विषय है । सर्व-प्रथम राधा जी के विषय में - ________________________________ राधा वस्तुतः प्रेम अर्थात् भक्ति की अधिष्ठात्री देवी थी । यह शब्द वेदों में भी आया है ।👇 व्युत्पत्ति-मूलक दृष्टि से राधा:- स्त्रीलिंग(राध्नोति साधयति सर्वाणि कार्य्याणि साधकानिति राधा कथ्यते" (राध् अच् । टाप् ):- अर्थात् जो साथकों के समस्त कार्य सफल करती है वह राधा है ।   वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति रूप में है ।👇 _____________________________________ इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते | पिबा त्वस्य गिर्वण : ।। (ऋग्वेद ३. ५ १. १ ० ) अर्थात् :- हे ! राधापति श्रीकृष्ण ! यह सोम ओज के द्वारा निष्ठ्यूत किया ( निचोड़ा )गया है । वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं, उनके द्वारा सोमरस पान करो। ___________________________________ विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधस : सवितारं नृचक्षसं (ऋग्वेद १ /२ २/७) _______________________________________ सब के हृदय में विराजमान सर्वज्ञाता दृष्टा स्वरूप ! जो राधा को गोपियों में से ले गए वह सवितारं (सबको जन्म देने वाले) प्रभु हमारी रक्षा करें हम उनका आह्वान करते है। __________________________________ त्वं नो अस्या उषसो व्युष्टौ त्वं सूरं उदिते बोधि गोपा: जन्मेव नित्यं तनयं जुषस्व स्तोमं मे अग्ने तन्वा सुजात।। (ऋग्वेद -१५/३/२) _____________________________________ अर्थात् :- गोपों में रहने वाले तुम इस उषा काल के पश्चात् सूर्य उदय काल में हमको जाग्रत करें। जन्म के समान नित्य तुम विस्तारित होकर प्रेम पूर्वक स्तुतियों का सेवन करते हो ,तुम अग्नि के समान सर्वत्र उत्पन्न हो । त्वं नृ चक्षा वृषभानु पूर्वी : कृष्णाषु अग्ने अरुषो विभाहि । वसो नेषि च पर्षि चात्यंह: कृधी नो राय उशिजो यविष्ठ ।। (ऋग्वेद - ३/१५/३ ) _____________________________________ अर्थात् तुम मनुष्यों को देखो वृषभानु ! पूर्व काल में कृष्ण "अग्नि" के सदृश् गमन करने वाले हैं। ये सर्वत्र दिखाई देते हैं , ये अग्नि भी हमारे लिए धन उत्पन्न करे ! उपर्युक्त इ न दोनों मन्त्रों में श्री राधा के पिता वृषभानु गोप का उल्लेख किया गया है । जो अन्य सभी प्रकार के सन्देह को भी निर्मूल कर देता है ,क्योंकि वृषभानु गोप ही राधा के पिता हैं। 🌹 यस्या रेणुं पादयोर्विश्वभर्ता धरते मूर्धिन प्रेमयुक्त : -(अथर्व वेदीय राधिकोपनिषद ) राधा वह व्यक्तित्व है , जिसके कमल वत् चरणों की रज श्रीकृष्ण अपने माथे पे लगाते हैं। _______________________________________ पुराणों में श्री राधा जी का वर्णन कर पुराण कारों ने उसे अश्लीलताओं से पूर्ण कर अपनी काम प्रवृत्तियों का ही प्रकाशन किया है । श्रीमद्भागवत पुराण के रचयिता के अलावा 17 और अन्य पुराण रचने वालों ने राधा का वर्णन नहीं किया है  इनमें स केवल छ :में श्री राधा का उल्लेख है। यथा " राधा प्रिया विष्णो : (पद्म पुराण ) राधा वामांश सम्भूता महालक्ष्मीर्प्रकीर्तिता (नारद पुराण ) तत्रापि राधिका शश्वत (आदि पुराण रुक्मणी द्वारवत्याम तु राधा वृन्दावन वने (मत्स्य पुराण १३३/ ३७ (साध्नोति साधयति सकलान् कामान् यया राधा प्रकीर्तिता: ) (देवी भागवत पुराण ) राधोपनिषद में श्री राधा जी के २८ नामों का उल्लेख है। गोपी ,रमा तथा "श्री "राधा के लिए ही प्रयुक्त हुए हैं। कुंचकुंकु मगंधाढयं मूर्ध्ना वोढुम गदाभृत : (श्रीमदभागवत ) है में राधा के चरण कमलों की रज चाहिए जिसकी रोली श्रीकृष्ण के पैरों से संपृक्त है (क्योंकि राधा उनके चरण अपने ऊपर रखतीं हैं ). यहाँ "श्री "राधा के लिए ही प्रयुक्त हुआ है । महालक्ष्मी के लिए नहीं। क्योंकि द्वारिका की रानियाँ तो महालक्ष्मी की ही वंशवेल हैं। वह महालक्ष्मी के चरण रज के लिए उतावली क्यों रहेंगी ? रेमे रमेशो व्रजसुन्दरीभिर्यथार्भक : स्वप्रतिबिम्ब विभाति " -(श्रीमदभागवतम १ ०. ३३.१ ६ कृष्ण रमा के संग रास करते हैं। यहाँ रमा राधा के लिए ही आया है। रमा का मतलब लक्ष्मी भी होता है लेकिन यहाँ इसका रास प्रयोजन नहीं है.लक्ष्मीपति रास नहीं करते हैं। रास तो लीलापुरुष घनश्याम ही करते हैं। आक्षिप्तचित्ता : प्रमदा रमापतेस्तास्ता विचेष्टा सहृदय तादात्म्य -(श्रीमदभागवतम १०. ३०.२ ) जब श्री कृष्ण महारास के मध्यअप्रकट(दृष्टि ओझल ,अगोचर ) हो गए गोपियाँ प्रलाप करते हुए मोहभाव को प्राप्त हुईं। वे रमापति (रमा के पति ) के रास का अनुकरण करने लगीं। स्वांग भरने लगीं। यहाँ भी रमा का अर्थ राधा ही है । लक्ष्मी नहीं हो सकता क्योंकि विष्णु रास रचाने वाले नहीं रहे हैं। वस्तुत यह अति श्रृंगारिकता कृष्ण के पावन चरित्र को लाँछित भी करती है । परन्तु ये सब काल्पनिक उड़ाने मात्र ही हैं । यां गोपीमनयत कृष्णो (श्रीमद् भागवत १०/३०/३५ ) श्री कृष्ण एक गोपी को साथ लेकर अगोचर (अप्रकट )हो गए। महारास से विलग हो गए। गोपी राधा का भी एक नाम है। अन्याअ अराधितो (अन्याययराधितो )नूनं भगवान् हरिरीश्वर : इस गोपी ने कृष्ण की अनन्य भक्ति की है। कृष्ण उन्हें अपने संग ले गए. अलावा इसके राधा का उल्लेख अनेक पौराणिक ग्रन्थों में हुआ है। और कृष्णः ज्ञान योग के द्वारा कर्षण करने वाले । राधा भक्ति रूप हैं , तो कृष्ण स्वयं ज्ञान का स्वरूप, कृष्ण आभीर (गोप) शिरोमणि तत्कालीन यादव समाज के महानायक थे | यद्यपि महाभारत भी विकृतिपूर्ण अभिव्यञ्जनाओं से बचा नहीं है तो भी कृष्ण का कुछ उज्ज्वल चरित्र महाभारत में प्राप्त होता है । परन्तु राधा का वर्णन नहीं प्राप्त हो का है । कृष्ण का वर्णन ऋग्वेद के अष्टम् मण्डल के ९६ वें--सूक्त में  ऋग्वेद के अष्टम् मण्डल के ९६ में सूक्त की ऋचा संख्या (१३,१४,१५,) पर कृष्ण को असुर कहा है । और इन्द्र के साथ कृष्ण का युद्ध वर्णन है ! जो यमुना नदी (अंशुमती) के तलहटी मे कृष्ण गायें चराते हैं । निम्न श्लोक मे __________________________________________ आवत् तमिन्द्र शच्या धमन्तमप स्नेहितीर्नृमणा अधत्त । द्रप्सम पश्यं विषुणे चरन्तम् उपह्वरे नद्यो अंशुमत्या न भो न कृष्णं अवतस्थि वांसम् इष्यामि ।। वो वृषणो युध्य ताजौ ।।१४।। __________________________________________ कृष्ण का जन्म वैदिक तथा हिब्रू बाइबिल में वर्णित यदु के वंश में हुआ था । वेदों में यदु को दास अथवा असुर कहा गया है ,तो यह तथ्य रहस्य पूर्ण ही है । यद्यपि ऋग्वेद में असुर शब्द पूज्य व प्राण-तत्व से युक्त वरुण , अग्नि आदि का वाचक है। _________________________________ 'असुर' शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में लगभग १०५ बार हुआ है। उसमें ९० स्थानों पर इसका प्रयोग 'शोभन' अर्थ में किया गया है और केवल १५ स्थलों पर यह 'देवताओं के शत्रु' का वाचक है। 'असुर' का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है- प्राणवन्त, प्राणशक्ति संपन्न ('असुरिति प्राणनामास्त: शरीरे भवति, निरुक्ति ३.८) और इस प्रकार यह वैदिक देवों के एक सामान्य विशेषण के रूप में व्यवहृत किया गया है। विशेषत: यह शब्द इंद्र, मित्र तथा वरुण के साथ प्रयुक्त होकर उनकी एक विशिष्ट शक्ति का द्योतक है। इंद्र के तो यह वैयक्तिक बल का सूचक है, परंतु वरुण के साथ प्रयुक्त होकर यह उनके नैतिक बल अथवा शासनबल का स्पष्टत: संकेत करता है। ये असुर शब्द इसी उदात्त अर्थ में पारसियों के प्रधान देवता 'अहुरमज़्द' ('असुर: मेधावी') के नाम से विद्यमान है। यह शब्द उस युग की स्मृति दिलाता है जब वैदिक आर्यों तथा ईरानियों (पारसीकों) के पूर्वज एक ही स्थान पर निवास कर एक ही देवता की उपासना में निरत थे। अनंतर आर्यों की इन दोनों शाखाओं में किसी अज्ञात विरोध के कारण फूट पड़ी गई। फलत: वैदिक आर्यों ने 'न सुर: असुर:' यह नवीन व्युत्पत्ति मानकर असुर का प्रयोग दैत्यों के लिए करना आरंभ किया और उधर ईरानियों ने भी देव शब्द का ('द एव' के रूप में) अपने धर्म के दानवों के लिए प्रयोग करना शुरू किया। फलत: वैदिक 'वृत्रघ्न' (इंद्र) अवस्ता में 'वेर्थ्रोघ्न' के रूप में एक विशिष्ट दैत्य का वाचक बन गया तथा ईरानियों का 'असुर' शब्द पिप्रु आदि देवविरोधी दानवों के लिए ऋग्वेद में प्रयुक्त हुआ जिन्हें इंद्र ने अपने वज्र से मार डाला था। (ऋक्. १०।१३८।३-४) ______________________________________ शतपथ ब्राह्मण की मान्यता है कि असुर देवदृष्टि से अपभ्रष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं (तेऽसुरा हेलयो हेलय इति कुर्वन्त: पराबभूवु:) ये लोग पश्चिमीय एशिया के प्राचीनत्तम इतिहास में असीरियन कहलाए । पतञ्जलि ने अपने 'महाभाष्य' के पस्पशाह्निक में शतपथ के इस वाक्य को उधृत किया है। शबर स्वामी ने 'पिक', 'नेम', 'तामरस' आदि शब्दों को असूरी भाषा का शब्द माना है। आर्यों के आठ विवाहों में 'आसुर विवाह' का संबंध असुरों से माना जाता है। पुराणों तथा अवांतर साहित्य में 'असुर' एक स्वर से दैत्यों का ही वाचक माना गया है। यहूदी जन-जाति और असीरियन जन-जाति समान कुल गोत्र के अर्थात् सॉम या साम की सन्तानें थे । इसी लिए इन्हें सेमेटिक सोम वंश का कहा जाती है । पुराणों में सोम का अर्थ चन्द्रमा कर दिया। इसी कारण ही कृष्ण को असुर कहा जाना आश्चर्य की बात नहीं है । यदु से सम्बद्ध वही ऋचा भी देखें--- " उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा। यदुस्तुर्वश्च च मामहे ।।(१०/६२/१०ऋग्वेद ) इन्द्र और कृष्ण का युद्ध वर्णन पुराणों में वर्णित ही है । यद्यपि पुराण बुद्ध के परवर्ती काल खण्ड में रचित ग्रन्थ हैं । जबकि ऋग्वेद ई०पू० १५०० के समकक्ष की घटनाओं का संग्रहीत ग्रन्थ है । पुराणों में कृष्ण को प्राय: एक कामी व रसिक के रूप में ही अधिक वर्णित किया है। "क्योंकि पुराण भी एैसे काल में रचे गये जब भारतीय समाज में राजाओं द्वारा भोग -विलास को ही जीवन का परम ध्येय माना जा रहा था । बुद्ध की विचार -धाराओं के वेग को मन्द करने के लिए द्रविड संस्कृति के नायक कृष्ण को विलास पुरुष बना दिया । " तब तक यूनानीयों का पदार्पण भारतीय सीमाओं में हो गया था । महाभारत में ला़क्षा ग्रहण में सुरंगम् शब्द यूनानी शब्द ही है । सिरिञ्ज(sȳringēs ) (1375–1425; new singular formed from Late Latin sȳringēs, plural of sȳrinx syrinx; replacing late Middle English syring < Medieval Latin syringa. syringe. early 15c., from Late Latin syringa, from Greek syringa, accusative of syrinx "tube, hole, channel, shepherd's pipe," related to syrizein "to pipe, whistle, hiss," from PIE root *swer- (see susurration). Originally a catheter for irrigating wounds, the application to hypodermic needles is from 1884. संस्कृत भाषा में सुरंगम् :--(सुष्ठु रङ्गो यस्मात् । ) नागरङ्गः । इति राजनिर्घण्टः ॥ गर्त्तविशेषः । इति सुरङ्गयुक्शब्ददर्शनात् ॥ स्वर्ग गंगा से व्युत्पन्न कर दिया है । _____________________________________ क्योंकि रास, रति तथा काम जैसे श्रृंगारिक शब्द ग्रीक भाषा के हैं। अर्थात् एरॉस( Eros) एरेटॉ erotes god of love, from Greek eros (plural erotes), "god or personification of love," literally "love," प्रेम की शाब्दिक परिभाषा ज्ञात करने से पूर्व यह अनुभव करना आवश्यक होगा, की प्रेम अधिकतर आभासीत होकर ही अभिव्यक्ति होता है, और अपनी चरम् अनुभूति में स्पर्शमय भी हो सकता है। परन्तु वह स्पर्श वासनाओं से परे होगा " शुद्ध प्रेम त्याग पूर्ण होता है,उसमे स्वार्थ का निम्नतम अंश ही पाया जाता है। स्वार्थ और वासना की बढ़ती मात्रा प्रेम के स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो जाती है। मनोवैज्ञानिक (जीक रुबिन )के अनुसार शुद्ध प्रेम में तीन तत्वों का होना, अति आवश्यक है, वो है, 1• लगाव (attachment) 2• ख्याल (caring) 3• अंतरंगता (intimacy) उनका मानना है, इन तीनो के कारण ही, एक व्यक्ति दूसरे से प्रेम चाहता है। ____________________________________ प्रेम की उत्तम परिभाषा यही है, इसमे कहीं “मैं” का समावेश नहीं रहता, इसके लिए “हम” ही उत्तम माना गया है। दूसरी बात प्रेम में पवित्रता का आभास होता है, परन्तु वासना के बारे में ऐसा कहने से संकोच का अनुभव होता है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है, कि प्रेम सत्यता के आसपास रहना चाहता है । अतृप्ति का ही नाम वासना है । तथा पूर्ण तृप्ति है प्रेम। प्रेम जितना भावनात्मक है । वासना उतनी ही शारीरिक बुभुक्षा (भोगने की इच्छा) जिसे हम भूख कहते हैं। प्रेम में कोई आकाँक्षी नहीं होता है, क्योंकि आकाँक्षाएं तो अतृप्ति के जल में उत्पन्न लहरें ही हैं। और अतृप्त व्यक्ति किसी भी तरह स्वयं तृप्त हो जाना चाहता है, वह यह इसकी चिन्ता नहीं करता है , कि किसी को कष्ट भी हो रहा है। वासना में व्यक्ति पशु के भाँति व्यवहार करता है। जबकि प्रेम में परम विश्रांति को प्राप्त होता है । वासना और प्रेम में मुख्य भेद यह है कि वासना में मनुष्य कि उर्जा नीचे की ओर प्रवाहित तथा प्रेम में ऊपर की ओर प्रवाहित होती है। वासना में मनुष्य का केंद्र खो जाता है तथा प्रेम में केंद्र पर होता है। बहुत लोग प्रेम के भ्रम में वासना को ही पोषित करते रहते हैं । जहाँ पर थोड़ा भी अपने सुख का ख्याल आया वहां प्रेम नहीं हो सकता है भले ही हम उसे देख न पायें। प्रेम में दो नहीं होते जहाँ पर दो की अनुभूति होती है वहां पर वासना ही होती है। प्रेम अखण्ड होता है तथा वासना में व्यक्ति बनता होता है। _______________________________________ आज का नव युवक केवल शारीरिक सम्बन्धों और विवाह को ही प्रेम की अन्तिम सीढ़ी समझते हैं। वासना एक ऐसी यथार्थ प्रवृत्ति गत भूख है। जो कि हर एक स्त्री पुरूष में एक दूसरे के प्रति ऋण -धन के विद्युतीय आवेशात्मकता रूप में आकर्षण उत्पन्न करती है । यह दौनों की एक दूसरे को प्राकृतिक आवश्यकता है। और सौन्दर्य आवश्यकता मूलक दृष्टि-कोण ही है। इस आवश्यकता की आपूर्ति होना आवश्यक है । अन्यथा मनुष्य में विक्षिप्तताऐं आ जाती है। यही प्रक्रृति का नियम भी है। वासना का अर्थ होता है :- कामलिप्सा या मैथुन की तीव्र इच्छा , वासना कभी-कभी हिंसक रूप में भी प्रकट होती है। अधिकांश धर्मों में इसे पाप माना गया है। वासनाओं के जल में ही पाप की लहरें और अपराध के बुलबुलें उठते रहते हैं वासना आपूर्ति क्षणिक सुख का आभास तो कर सकती है परन्तु प्रेम आनन्द की उस अनुभूति का कारण है । जो प्राकृतिक सीमाओं से परे है । विषयों में अनुराग रखने वाला पुरुष ही बन्धन में होता है। वासना विषय गत है । विषय हैं - शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध। ये इन पाँच महाभूतों की तन्मात्रायें है आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी आदि शब्दादि इसकी तन्मात्रायें ही हमारी इन्द्रियों के लिए विषय हैं। स्वभावतः ये विषय सुखदायी लगते हैं और इनमें हमारा राग-द्वेष होता है। अनुकूल होने पर विषय सुखदायी और प्रतिकूल होने पर दु:ख दायी क्योंकि ::-- (सु = अनुकूल ख = इन्द्रिय- इसी प्रकार दु: = प्रतिकूल ख इन्द्रिय- )लगते हैं और उनमें आसक्ति हो जाती है। आसक्ति के कारण हम विषयों के अधीन हो जाते हैं, उनके बिना हम अपना जीवन निरर्थक समझने लगते हैं , और विषय हमें अपने बन्धन में बाँध लेते हैं। बार-बार विषयों का सुख लेते रहने पर चित्त में उनका संस्कार निर्मित होता है। संस्कार दृढ़ होकर वासना का रूप धारण कर लेता है। वासना के कारण मनुष्य की विषय-सुख की इच्छा बार-बार होती है। वह उन्हें प्राप्त करने और भोगने का प्रयास करता है। यही कामनाऐं जीवन का कारण हैं आसक्ति युक्त भोग से वासना बार-बार दृढ़ होती रहती है। जीवन के अन्त तक वह बहुत बढ जाती है। वासनाओं की तृप्ति के लिए जीव को बार-बार शरीर धारण करना पडता है। यह जीव के लिए विवशता है। इसे बंधन कहते हैं। इस प्रकार जीव विषयासक्ति के बंधन में पड़कर पुनर्जन्म के दुःख भोगता है। किसी पुण्यकर्म के कारण सत्संग प्राप्त होता है तो जीव को अपनी समस्या का बोध होता है। वह अपने बंधन से छूटना चाहता है। उसके लिए वह परमात्मा का सहारा लेता है। निरन्तर प्रयासरत रहने पर जीव मुक्त हो सकता है। यदि विषयों में अनुराग नहीं रह जाता, मनुष्य विरक्त हो जाता है तो वह मुक्त ही है। विषयों में राग न रहना ही वैराग्य या विरक्ति है । विषयों का राग या आसक्ति स्वतः समाप्त नहीं हो जाती। वृद्धावस्था में इन्द्रियाँ शिथिल और दुर्बल हो जाने पर अनासक्त हो जाने का भ्रम होता है। वस्तुतः वासनायें बडी सूक्ष्म और गहन होती हैं। वे वृद्धावस्था में सूक्ष्म से से बीज के समान चित्तभूमि में पडी रहती हैं। मरने के बाद जब अगला शरीर मिलता है, तो इन्द्रियाँ फिर सशक्त होने लगती हैं । और पूर्व जन्म की वासनाएं अंकुरित होकर जीव को पुनः भोगों में प्रवृत्त कर देती है। इस प्रकार जीव का बंधन जन्म-जन्मान्तर चलता है ।वह स्वतः कभी मुक्त नहीं होता। मुक्त होने के लिए जीव को प्रयास करना होता है। उसके लिए एक सुनिश्चित क्रमबद्ध मार्ग है। उस पर धैर्य के साथ आगे बढते रहने से अन्त में आत्मा और परमात्मा का ज्ञान होता है। उसे अनुभव हो जाता है। फिर वह विषयों का सुख झूठा समझकर त्याग देता है। विषयों का यह वैराग्य ही मुक्ति का लक्षण है। 🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦 संस्कृत भाषा में रति और श्रृंगार शब्द विवेचनीय है । जिसको मूलत: विश्लेषण करेंगे । ______________________ god of love, late 14c., from Greek eros (plural erotes), "god or personification of love," literally "love," from eran "to love," erasthai "to love, desire," which is of uncertain origin. अर्थात् ग्रीक देश के निवासी आर्य काम के देवता को एरॉस कहते थे ! वास्तविकता में यह काम भावना का मानवीय करण नहीं जैवीय करण है। संस्कृत भाषा में अर् हर् तथा ऋ धातु ग्रीक के एरन से सम्बद्ध है। ________________________________________ According to Greek literature---- Freudian sense of "urge to self-preservation and sexual pleasure" is from Ancient Greek distinguished four ways of love: erao "to be in love with, to desire passionately or sexually;" phileo "have affection for;" agapao "have regard for, be contented with;" and stergo, used especially of the love of parents and children or a ruler and his subjects. संस्कृत भाषा में हृष्टि तथा हर्षित जैसे शब्द ग्रीक भाषा में (erasthai ) अर्थात् हर्षित करना । स्पर्श करना आदि से तादात्म्य स्थापित करते हैं ।.. ____________________________________ Eros is the god of love, from Greek eros (plural erotes), "god or personification of love," literally "love," from eran identify with Sanskrit (अरण ) अथवा हरण (हर्षण) "to love," erasthai "to love, desire," which is of Indo European origin. Freudian sense of "urge to self-preservation and sexual pleasure" is from .Ancient Greek distinguished four ways of love: erao "to be in love with, to desire passionately or sexually;" phileo "have affection for;" agapao "have regard for, be contented with;" and stergo, used especially of the love of parents and children or a ruler and his subjet ..हर्षः, पुं, (हृष तुष्टौ घञ् ।) इष्टश्रवणजन्य- सुखम् । इति महाभारते मोक्षधर्म्मः ॥ आह्लादः । तत्पर्य्यायः । मुत् २ प्रीतिः ३ प्रमदः ४ प्रमोदः ५ आमोदः ६ सम्मदः ७ आनन्दथुः ८ आनन्दः ९ शर्म्म १० शातम् ११ सुखम् १२ इत्यमरः । १ । ४ । २४ ॥ मुदा १३ मुदिता १४ आनन्दिः १५ नन्दिः १६ सातम् १७ सौख्यम् १८ । केचिंत्तु मुदादिसप्तकं प्रीतौ आनन्दथ्वादिपञ्चकं सुखे । प्रीतिश्च सुखजो विकारः इत्याहुः । इति तट्टीकायां भरतः ॥ तथा च । “मुत् प्रीतिः प्रमदामोदसम्मोदमोदसम्मदाः । प्रमोदो हर्ष इत्येव हर्षपर्य्याय ईरितः ॥ आनन्दो नन्दथुर्नन्दः सुखमानन्दथुर्म्मुदा । सौख्यं शर्म्मोपजोषः स्यादानन्दं जोषमित्यपि ॥ मुदादिजोषपर्य्यन्तमेकपर्य्यायः इत्यपि ॥” इति शब्दरत्नावली ॥ * ॥ हर्षस्य पुत्त्रः कन्दर्पः । यथा, -- पुलस्त्य उवाच । “कन्दर्पो हर्षतनयो योऽसौ कामो निगद्यते । स शङ्करेण संदग्धो ह्यनङ्गत्वमुपागतः ॥” इति वामने ५ अध्यायः ॥ (रोमाञ्चः । यथा । “हृष्येते हर्षयुक्तौ भवतः हर्षश्च रोमाञ्चप्रायः ।” इति रुग्विनिश्चयस्य वातव्याधिव्याख्याने विजयरक्षितः ॥) __________________________________________ रति देवी का उल्लेख प्राचीन काल से ही वेद, शतपथ ब्राह्मण, एवं उपनिषदों में होता चला आ रहा है। इन परम्परओं में इसे सौंदर्य की अधिष्ठात्री देवी एवं उषा के समकक्ष कहा गया है। पौराणिक परम्परा में दक्ष की पुत्री एवं शतपथ ब्राह्मण के अनुसार गन्धर्व कन्या के रूप में इनका उल्लेख मिलता है। दक्ष एवं गन्धर्व वस्तुतः विलासी जातियां रही है। इन्हें कामदेव की अर्धांगिनी भी कहा जाता है। संस्कृत भाषा में इसकी व्युत्पत्ति-कोश कारों ने आनुमानिक रूप से ही की है । विशेष रूप से यूनानी काल में रचित ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार :-- (रम्यतेऽनया इति । रम् क्तिन् । ) कामदेवपत्नी ॥ (अस्याः नामनिरुक्तिर्यथा ब्रह्मवैवर्त्ते प्रकृतिखण्डे । ४ । ९ । “ मनो मथ्नाति सर्व्वेषां पञ्चबाणेन कामिनीम् । तन्नाम मन्मथस्तेन प्रवदन्ति मनीषिणः ॥ तस्य पुंसो वामपार्श्वात् कामस्य कामिनी वरा । बभूवातीव ललिता सर्व्वेषां मोहकारिणी ॥ रतिर्बभूव सर्व्वेषां तां दृष्ट्वा सस्मितां सतीम् । रतीति तेन तन्नाम प्रवदन्ति मनीषिणः ॥ “ ) तस्य उत्पत्तिः नामकारणं कामपत्नीत्वञ्च यथा दक्ष उवाच । “ मद्देहजेयं कन्दर्प मद्रूपगुणशालिनी । एनां गृह्णीष्व भार्य्यार्थे भवतः सदृशी गुणैः ॥ एषा तव महातेजाः सर्व्वदा सहचारिणी । भविष्यति यथाकामं धर्म्मतो वशवर्त्तिनी ॥ अपिच ---- मार्कण्डेय उवाच :--- इत्युक्त्वा प्रददौ दक्षो देहस्वेदजलोद्भवाम् । कन्दर्पायाग्रतः कृत्वा नाम कृत्वा रतीति ताम् ॥ तां वीक्ष्य मदनो रामां रत्याख्यां सुमनोहराम् । आत्माशुगेन विद्धोऽसौ मुमोह रतिरञ्जितः ॥ “ इति कालिकापुराणे ३ अध्यायः ॥ अनुरागः । (यथा भागवते । १ । २ । ८ । “ नोत्पादयेद् यदि रतिं श्रम एव हि केवलम् ॥ “ ) रतम् । (यथा बृहत्संहितायाम् । ७४ । १८ । “ कामिनीं प्रथमयौवनान्वितां मन्दवल्गुमृदुपीडितस्वनाम् । उत्स्तनीं समवलम्ब्य या रतिः सा न धातृभवनेऽस्ति मे मतिः ॥ “ ) गुह्यम् । इति मेदिनी कोश। । ४९ ॥ (अप्सरोविशेषः । यथा महाभारते । १३ । १९ । ४५ । “ विद्युता प्रशमी दान्ता विद्योता रतिरेव च । एताश्चान्याश्च वै बह्व्यः प्रनृत्ताप्सरसः शुभाः ॥ “ प्रीतिः । यथा रामायणे । १ । १८ । २४ । “ तेषां केतुरिव ज्येष्ठो रामो रतिकरः पितुः ॥ “ ‘ रतिः प्रीतिः । ‘ इति तट्टीकायां रामानुजः ॥ ) रतिबन्धा यथा -“ न भवन्ति यदा नार्य्यस्तुष्टा वाद्यरते मताः । नानाविधैस्तथाबन्धै रन्तव्याः कामिभिः स्त्रियः ॥ पद्मासनो नागपाशो लतावेष्टोऽर्द्धसंपुटम् । कुलिशं सुन्दरश्चैव तथा केशर एव च ॥ हिल्लोलो नरसिं होऽपि विपरीतस्तथापरः । क्षुब्धो वै धेनुकश्चैवमुत्कण्ठस्तु ततः परम् । सिंहासनो रतिनागो विद्याधरस्तु षोडशः ॥ “ इति रतिमञ्जरी ॥ एतेषां लक्षणानि तत्तच्छब्दे द्रष्टव्यानि ॥ अमरकोशः में वर्णित है :-- रतम्, क्ली, (रमणमिलि । रम् भावे क्तः ।) मैथुनम् । इत्यमरः । २ । ७ । ५७ ॥ (यथा, आर्य्यासप्तशत्याम् । ५४९ । “विपरीतमपि रतं ते स्रोतो नद्या इवानुकूल- मिदम् । तटतरुमिव मम हृदयं समूलमपि वेगतो हरति ॥” तत्तु द्बिविधम् । यथा, कामशास्त्रम् । “बाह्यमाभ्यन्तरञ्चेति द्बिविधं रतमुच्यते । तत्राद्यं चुम्बनाश्लेषनखदन्त क्षतादिकम् ॥ द्बितीयं सुरतं साक्षान्नानाकारेण कल्पितम् ॥”) गुह्यम् । इति मेदिनी । ते, ४९ ॥ अनुरक्ते, त्रि ॥ (यथा, राजतरङ्गिण्याम् । ३ । ५०५ । “तत्तुल्यगुणनिर्व्विण्णा तद्बिपक्षस्तुतौ रता ॥” नियुक्तः । यथा, मनुः । २ । २३५ । “यावत्त्रयस्ते जीवेयुस्तावन्नान्यं समाचरेत् । तेष्वेव नित्यं शुश्रूषां कुर्य्यात् प्रियहिते रतः ॥”) अमरकोशः रत नपुं। मैथुनम् समानार्थक:व्यवाय,ग्राम्यधर्म,मैथुन,निधुवन,रत (2।7।57।1।5 ) व्यवायो ग्राम्यधर्मो मैथुनं निधुवनं रतम्. त्रिवर्गो धर्मकामार्थैश्चतुर्वर्गः समोक्षकैः॥ पदार्थ-विभागः : , क्रिया वाचस्पत्यम् '''रत'''¦ न॰ रम--भावे क्त। १ रमणे स्त्रीपुंसयोः सङ्गमे मैथुनेअमरः कोश । २ गुह्ये च मेदि॰। कर्त्तरि क्त। ३ अनुरक्ते त्रि॰। शब्दसागरः रत¦ mfn. (-तः-ता-तं) Occupied or engaged by, actively intent on. n. (-तं) 1. Copulation, sexual union. 2. Pleasure. 3. A privity, a private part. E. रम् to sport, क्त aff. Apte रत [rata], p. p. [रम्-कर्तरि क्त] Pleased, delighted, gratified. Pleased or delighted with, fond of, enamoured of, fondly attached to. Inclined to, disposed. Loved, beloved. Intent on, engaged in, devoted to; गोब्राह्मणहिते रतः Ms.11.78. Having sexual intercourse with (see रम्). तम् Pleasure. Sexual union, coition; अन्वभूत् परिजनाङ्गनारतम् R.19.23,25; Me.91. The private parts. -Comp. -अन्ध्री (अङ्घ्री ?) f. mist, fog,-अन्दुकः, -आमर्दः a dog. -अयनी a prostitute, harlot.-अर्थिन् a. lustful, lascivious. -उद्वहः the (Indian) cuckoo. ऋद्धिक a day. the eight auspicious objects. bathing for pleasure. कीलः a dog. a penis. -कूजितम ् lustful or lascivious murmur. -गुरुः a husband. -गृहम् pudendum muliebre. -ज्वरः a crow.-तालिन् m. a libertine, sensualist. -ताली a procuress, bawd. नाराचः, नीरीचः a voluptuary. (the god of love, Cupid.) a dog. lascivious murmur. -निधिः the wagtail. -बन्धः sexual union. -मानस a. having a delighted mind. -विशेषाः various kinds of sexual union.-व्रणः, -शायिन् m. a dog. हिण्डक a ravisher or seducer of women. a voluptuary. Monier-Williams Dictionary रत रतिetc. See. under रम्, p.867 , cols. 2 , 3. रत mfn. pleased , amused , gratified BhP. रत mfn. delighting in , intent upon , fond or enamoured of , devoted or attached or addicted or disposed to( loc. instr. or comp. ) S3Br. etc. रत mfn. ( ifc. )having sexual intercourse with BhP. रत mfn. loved , beloved MW. रत n. pleasure , enjoyment , ( esp. ) enjoyment of love , sexual union , copulation Ka1v. Var. etc. रत n. the private parts L. _______________________________ संस्कृत भाषा में रास शब्द के सूत्र यूनानी शब्द एरॉस (Eros) प्रस्तावित हैं । संस्कृत भाषा में भी रास शब्द की व्युत्पत्ति करने की आनुमानिक रूप से चेष्टा की गयी है । देखें :- (रासनमिति रासतेऽत्रेति वा । रास शब्दे भावे अधिकरणे वा घञ् । ) कोलाहलः । ध्वानः । भाषाशृङ्खलकः । गोपानां क्रीडाभेदः । इति मेदिनी । से ११ ॥ तस्य विधिर्यथा -“ कार्त्तिकीपूर्णिमायाञ्च कृत्वा तु रासमण्डलम् । गोपानां शतकं कृत्त्वा गोपीनां शतकन्तथा ॥ शिलायां प्रतिमायां वा श्रीकृष्णं राघया सह । भारते पूजयेत् ह सारूप्यं संप्राप्य पार्श्वदो भवेत् । पुनस्तत्पतनं नास्ति जरामृत्युहरो महान् ॥ “ इति ब्रह्मवैवर्त्ते प्रकृतिखण्डे २५ अध्यायः ॥ विस्तारस्तु श्रीकृष्णजन्मखण्डे २८ अध्याये _____________________ तथा बारहवीं सदी में रचित ग्रन्थ श्री-मद् भागवत पुराण के अनुसार:- तैर्वञ्चितो हंसकुलं समाविशत् नरोचयन् शीलमुपैति वानरान् । तज्जातिरासेन सुनिर्वृतेन्द्रियः परस्परोद्बीक्षणविस्मृतावधिः ॥ “ “ तैर्वञ्चितस्तत्र फलाभावं ज्ञात्वा हंसानां ब्राह्मणानां कुलं पुनः प्रविशन् तेषां शीलं प्रायश्चित्तपूर्ब्बकं पुनरुपनयनाद्याचारमरोचयन् अप्रियं पश्यन् वानरतुल्यान् भ्रष्टाचारान् शूद्रप्रायानुपैति । तज्जातिरासेन वानरजातिक्रियया स्त्रियां मिथुनीभूय परस्परमुखोद्वीक्षणेन विस्मृतो जीवितावधिर्मरणकालो येन । “ इति तट्टीकायां श्रीधरस्वामी ॥ ) _______________ असली हीरे की खोज में कितनो ने ही कांच को गले लगाने की भूल की है। इसमें असली हीरे का क्या कसूर जो कोई कांच से घायल होकर हीरे को बदनाम करे। कुछ ऐसी ही दुविधा प्रेम-के क्षेत्र में भी देखने को मिलती है। कृष्ण का वर्णन ऋग्वेद के बाद छान्दोग्य उपनिषद में हुआ । तथा फिर महाभारत में भगवान् कृष्ण का सर्वप्रथम उल्लेख हुआ है । आदिपर्व में द्रौपदी – स्वयंवर के प्रसंग में इनका वर्णन मिलता है, जहां अन्य राजाओं की भांति वे भी स्वयंवर के देखने को पधारे थे । यहां भगवान के पूर्व चरित का कोई वर्णन न करके उनके विषय में यह कहा गया है । कि वे एक प्रसिद्ध राजा थे । इसी प्रसंग में पहले – पहल भगवान श्रीकृष्ण का उल्लेख मिलने की बात इसलिए कही है, कि इसके पूर्व दो एक जगह जो भगवान उल्लेख है, उसका महाभारत मुख्य कथानक अर्थात् कौरव पाण्डवों के आख्यान से कोई संबंध नहीं है । राधा और कृष्ण का पौराणिक कथाओं में केवल श्रृंगारिक वर्णन ही अधिक अश्लील है । . संस्कृत भाषा में राधा का अर्थ ही प्रेम , भक्ति और सिद्धि है | ..और आज के नवयुवक और नव युवतियाँ पूर्णतः प्रेम के नाम पर दिग्भ्रमित है । अतः ये नव युवक व युवतीयाँ लोभ और वासना के पुजारी हैं । प्रेम के तत्व को ये क्या समझ सकते है ? श्री कृष्ण एक ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं । जिनका सम्बन्ध असीरियन तथा द्रविड सभ्यता से ही सम्बद्ध है । इसका स्पष्ट प्रमाण हमें छान्दोग्य उपनिषद के एक उल्लेख में मिलता है। वहां (3.17.6) कहा गया है कि देवकी पुत्र श्रीकृष्ण को महर्षिदेव:घोर आंगिरस् ने निष्काम कर्म रूप यज्ञ उपासना की शिक्षा दी थी, जिसे ग्रहण कर श्रीकृष्ण 'तृप्त' अर्थात पूर्ण पुरुष हो गए थे। श्रीकृष्ण का जीवन, जैसा कि महाभारत में वर्णित है, इसी शिक्षा से अनुप्राणित था । और श्रीमद्भगवद् गीता में उसी शिक्षा का प्रतिपादन उनके ही माध्यम से किया गया है। यद्यपि गीता का अर्थ गुरु शिष्य का संवाद " परन्तु इसमें भी मिलाबट है परन्तु कृष्ण का सम्पूर्ण आध्यात्मिक दृष्टि कोण प्राचीनत्तम द्रविड संस्कृति से अनुप्राणित है । किन्तु इनके जन्म और बाल-जीवन का जो वर्णन हमें प्राप्त है वह मूलतः श्रीमद् भागवत का है और वह ऐतिहासिक कम, आध्यात्मिक अधिक है और यह बात ग्रंथ के आध्यात्मिक स्वरूप के अनुसार ही है। भागवत पुराण बारहवीं सदी की रचना है । ग्रन्थ में चमत्कारी भौतिक वर्णनों के पर्दे के पीछे गहन आध्यात्मिक संकेत संजोए गए हैं। वस्तुतः भागवत में सृष्टि की संपूर्ण विकास प्रक्रिया का और उस प्रक्रिया को गति देने वाली परमात्म शक्ति का दर्शन कराया गया है। ग्रंथ के पूर्वार्ध (स्कंध 1 से 9) में सृष्टि के क्रमिक विकास (जड़-जीव-मानव निर्माण) का और उत्तरार्ध (दशम स्कंध) में श्रीकृष्ण की लीलाओं के द्वारा व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास का वर्णन प्रतीक शैली में किया गया है। भागवत में वर्णित श्रीकृष्ण लीला के कुछ मुख्य प्रसंगों का आध्यात्मिक संदेश पहचानने का यहाँ प्रयास किया गया है। __________________________________________ हिन्दू कालगणना के अनुसार कृष्ण का जन्म आज से लगभग 5,235 ई० पूर्व हुआ था,परन्तु कई वैज्ञानिक कारणों से प्रेरित कृष्ण का जन्म 950 ई०पूर्व मानना अधिक युक्ति युक्त है। जो महाभारत युद्ध की कालगणना से मेल खाता है । यद्यपि महाभारत का रचना काल महात्मा बुद्ध के परवर्ती काल खण्ड में किया गया है । क्योंकि आदि पर्व में बुद्ध का ही वर्णन हुआ है। बुद्ध का समय ई०पू०563 के समकक्ष है । छान्दोग्य उपनिषद का अनुमान है, जो 8 वीं और 6 वीं शताब्दी ई.पू. के बीच कुछ समय में रचित हुआ था, प्राचीन भारत में कृष्ण के बारे में अटकलों का एक और स्रोत रहा है। भागवत महापुराण के द्वादश स्कंध के द्वितीय अध्याय के अनुसार कलियुग के आरंभ के सन्दर्भ में भारतीय गणना के अनुसार कलयुग का शुभारंभ ईसा से 3102 वर्ष पूर्व 20 फ़रवरी को 2 बजकर 27 मिनट तथा 30 सेकण्ड पर हुआ था। परन्तु यह तथ्य प्रमाण रूप नहीं हैं । पुराणों में बताया गया है ,कि जब श्री कृष्ण का स्वर्गवास हुआ तब कलयुग का आगमन हुआ, इसके अनुसार कृष्ण जन्म 4,500 से 3,102 ई०पूर्व के बीच मानना ठीक रहेगा। इस गणना को सत्यापित करने वाली खोज मोहनजोदाड़ो सभ्यता के विषय में 1929 में हुई। पुरातत्व वेत्ता मैके द्वारा मोहनजोदाड़ो में हुए उत्खनन में एक पुरातन टैबलेट (भित्तिचित्र) मिला जिसमें दो वृक्षों के बीच खड़े एक बच्चे का चित्र बना हुआ था। जो हमें भागवत आदि पुराणों में लिखे कृष्ण द्वारा यमलार्जुन के उद्धार की कथा के ओर ले जाता है। इसके अनुसार महाभारत का युद्ध 950 ई०पूर्व हुआ होगा जो पुरातात्विक सबूत की गणना में सटीक बैठता है। इससे कृष्ण जन्म का सटीक अनुमान मिलता है। ऋग्वेद -- में कृष्ण नाम का उल्लेख दो रूपों में मिलता है—एक कृष्ण आंगिरस, जो सोमपान के लिए अश्विनी कुमारों का आवाहन करते हैं (ऋग्वेद 8।85।1-9) और दूसरे कृष्ण नाम का एक असुर, जो अपनी दस सहस्र सेनाओं के साथ अंशुमतीअर्थात् यमुना नदी के तटवर्ती प्रदेश में रहता था । और इन्द्र द्वारा पराभूत हुआ वर्णित किया गया था। विदित हो कि अंशुमान् सूर्य का वाचक है पुराणों में यमुना ओर यम को अंशुमान् के सन्तति रूप में वर्णित किया है । ऋग्वेद के अष्टम् मण्डल के सूक्त संख्या 96के श्लोक- (13,14,15,)पर असुर अथवा दास कृष्ण का युद्ध इन्द्र से हुआ ऐसा वर्णित है । ________________________________________ " आवत् तमिन्द्र: शच्या धमन्तमप स्नेहितीर्नृमणा अधत्त । द्रप्सम पश्यं विषुणे चरन्तम् उपह्वरे नद्यो अंशुमत्या: न भो न कृष्णं अवतस्थि वांसम् इष्यामि । वो वृषणो युध्य ताजौ ।14। अध द्रप्सम अंशुमत्या उपस्थे$धारयत् तन्वं तित्विषाण: विशो अदेवीरभ्या चरन्तीर्बृहस्पतिना युज इन्द्र: ससाहे ।।15।। ______________________________________ ऋग्वेद कहता है :----- " कि कृष्ण नामक असुर अंशुमती अर्थात् यमुना नदी के तटों पर दश हजार सैनिको के साथ रहता था । उसे अपने बुद्धि -बल से इन्द्र ने खोज लिया , और उसकी सम्पूर्ण सेना तथा गोओं का हरण कर लिया । इन्द्र कहता है कि कृष्ण नामक असुर को मैंने देख लिया है । जो यमुना के एकान्त स्थानों पर घूमता रहता है । _________________________________________ एक स्थान पर ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त का १०वाँ श्लोक प्रमाण रूप में है " कि यदु जो कृष्ण के आदि पूर्वज हैं । उनको तुर्वशु के साथ दास अथवा असुर के रूप में वर्णित किया गया है । ___________ " उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे ।। ऋग्वेद-१०/ ६२ /१० ______________________________________ असुर शब्द दास का पर्याय वाची है । क्योंकि ऋग्वेद के द्वित्तीय मण्डल के २/३/६ में शम्बर नामक असुर को दास कह कर वर्णित किया गया है । कृष्ण की कथाओं का सम्बन्ध अहीरों से है । अहीरों से ही नहीं अपितु सम्पूर्ण यदु वंश से पुष्यमित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मण समाज का द्रोह चलता रहा । सत्य पूछा जाय तो ये सम्पूर्ण विकृतिपूर्ण अभिव्यञ्जनाऐं पुष्यमित्र सुंग ई०पू०१८४ के काल से प्रारम्भ होकर अठारहवीं सदी के पूर्वार्ध तक अनवरत यादव अर्थात् आभीर जन जाति को हीन दीन दर्शाने के लिए योजना बद्ध तरीके से लिपिबद्ध ग्रन्थ रूप में हुई- जो हम्हें विरासत में प्राप्त हुईं हैं । अहीरों के अतिरिक्त यादवों की अनेक शाखाऐं हैं परन्तु अाभीरों प्राचीनत्तम शाखा है । ---------------------------------------------------------------- ------------------------------------------------------------------ विष्णु पुराण अंक ५ अध्याय १३ श्लोक ५९,६० में लिखा हैं :- "गोपियाँ अपने पति, पिता और भाइयों के रोकने पर भी नहीं रूकती थी । प्रत्येक रात्रि को वे रति “(विषय -भोग)” की इच्छा रखने वाली कृष्ण के साथ रमण “भोग” किया करती थी । कृष्ण भी अपनी किशोर अवस्था का मान करते हुए रात्रि के समय उनके साथ रमण किया करते थे कृष्ण उनके साथ किस प्रकार रमण करते थे पुराणों के लेखकों ने श्री कृष्ण को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी हैं । भागवत पुराण स्कन्द १० अध्याय ३३ श्लोक १७ में लिखा हैं :– कृष्ण कभी उनका शरीर अपने हाथों से स्पर्श करते थे, कभी प्रेम भरी तिरछी चितवन से उनकी और देखते थे, कभी उन्मत्त हो उनसे खुलकर हास विलास करते थे । जिस प्रकार बालक तन्मय होकर अपने प्रतिबिम्ब से क्रीडा करता है । वैसे ही मस्त होकर कृष्ण ने उन ब्रज सुंदरियों के साथ रमण, (काम क्रीडा ) अथवा‘विषय भोग’ करते, भागवत पुराण स्कन्द १० अध्याय २९ श्लोक ४५,४६ में लिखा हैं :- कृष्णा ने जमुना के कपूर के सामान चमकीले बालू के तट पर गोपिओं के साथ प्रवेश किया । वह स्थान जलतरंगों से शीतल व कुमुदिनी की सुगंध से सुवासित था । वहां कृष्ण ने गोपियों के साथ रमण बाहें फैलाना, आलिंगन करना, गोपियों के हाथ दबाना , उनकी छोटी पकरना, जांघो पर हाथ फेरना, लहंगे का नारा खींचना, स्तन (पकड़ना) मजाक करना नाखूनों से उनके अंगों को नोच नोच कर जख्मी करना, विनोदपूर्ण चितवन से देखना और मुस्कराना तथा इन क्रियाओं के द्वारा नवयोवना गोपिओं को खूब जागृत करके उनके साथ कृष्णा ने रात में रमण (विषय भोग) किया । बस अश्लीलता की सामाजिक भंग हो गयी । ऐसे अभद्र विचार कृष्णा को कलंकित करने के लिए भागवत के रचियता नें स्कन्द १० के अध्याय २९,३३ में वर्णित किये हैं । जिसका सामाजिक मर्यादा का पालन करते हुए हम वर्णन नहीं कर सकते । आर्य समाज के कुछ विचारकों ने इन वर्ण में का हवाला देकर पुराण पन्थीयों की धज्जियाँ उड़ा दी हैं । राधा और कृष्ण का पुराणों में वर्णन राधा का नाम कृष्ण के साथ में लिया जाता हैं । यद्यपि अन्य पुराणों में राधा बृषभानु आभीर अथवा गौश्चर (गुर्जर) की कन्या है , परन्तु महाभारत में राधा का वर्णन तक नहीं मिलता और कदाचित भागवत पुराण में भी नहीं है । राधा का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में अत्यन्त अशोभनिय वृतान्त का वर्णन करते हुए मिलता हैं । ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय ३ श्लोक ५९,६०,६१,६२ में लिखा हैं । की गोलोक में कृष्ण की पत्नी राधा ने कृष्ण को पराई औरत के साथ पकर लिया तो शाप देकर कहा :– हे कृष्ण ब्रज के प्रिय , तू मेरे सामने से चला जा तू मुझे क्यों दुःख देता हैं – हे चञ्चल , हे अति लम्पट कामुक मैंने तुझे जान लिया हैं । तू मेरे पास से चला जा । तू मनुष्यों की भांति मैथुन करने में लम्पट हैं,। तुझे मनुष्यों की योनि मिले, तू गौलोक से भारत में चला जा । हे सुशीले, हे शाशिकले, हे पद्मावते, ! यह कृष्ण धूर्त हैं इसे निकल कर बहार करो, इसका यहाँ कोई कार्य नहीं. ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय १५ में राधा का कृष्ण से रमण का अत्यंत अश्लील वर्णन लिखा हैं । जिसका सामाजिक मर्यादा का पालन करते हुए हम यहाँ विस्तार से वर्णन नहीं कर सकते हैं । निश्चित रूप से ये कथाऐं काल्पनिक उड़ाने मात्र हैं । अस्वाभाविक व कृत्रिमता पूर्ण हैं । ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण-जन्म खंड अध्याय ७२ में कुब्जा का कृष्ण के साथ सम्भोग भी अत्यंत अश्लील रूप में वर्णित हैं । राधा का कृष्ण के साथ सम्बन्ध भी भ्रामक हैं । राधा कृष्ण के वामांग से पैदा होने के कारण कृष्ण की पुत्री थी । अथवा रायण से विवाह होने से कृष्ण की पुत्रवधु थी । चूँकि गोलोक में रायण कृष्ण के अंश से पैदा हुआ था । इसलिए कृष्ण का पुत्र हुआ, जबकि पृथ्वी पर रायण कृष्ण की माता यशोदा का भाई था । इसलिए कृष्ण का मामा हुआ जिससे राधा कृष्ण की मामी हुई| परन्तु ये सारी बकवास बातें हैं। कृष्ण की गोपिओं कौन थी? पदम् पुराण उत्तर खंड अध्याय २४५ में वर्णन है कि रामचंद्र जी दण्डकारण्य वन में जब पहुचें तो उनके सुन्दर स्वरुप को देखकर वहां के निवासी सम्पूर्ण ऋषि मुनि गण उनसे भोग करने की इच्छा करने लगे । उन सारे ऋषिओं ने द्वापर के अन्त में गोपियों के रूप में जन्म लिया और रामचंद्र जी कृष्ण बने तब उन गोपियों के साथ कृष्ण ने भोग किया । इससे उन गोपियों की मोक्ष हो गई । अन्यथा अन्य प्रकार से उनकी संसार रुपी भवसागर से मुक्ति कभी न होती । क्या गोपियों की उत्पत्ति का दृष्टान्त बुद्धि से स्वीकार किया जा सकता हैं? सायद कदापि नहीं, क्या है राधा का सच| राधा का अर्थ है सफ़लता | यजुर्वेद के प्रथम अध्याय का पांचवा मंत्र, ईश्वर से सत्य को स्वीकारने तथा असत्य को त्यागने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ रहने में सफ़लता की कामना करता है | कृष्ण अपनी जिंदगी में इन दृढ़ संकल्पों और संयम का मूर्तिमान आदर्श थे | गीतोपदेश में वर्णित वाणी से यही भासित होता है । यद्यपि अवान्तर काल में महाभारत में भी वाल्मीकि-रामायण के उत्तर काण्ड के सादृश्य पर मूसल पर्व का काल्पनिक रूप से निर्माण कर आभीरों अथवा यादवों को ही स्वयं अपने ही गोपिकाओं को लूटने का विरोधाभासी वर्णन महाभारत की प्रमाणिकता को सन्दिग्ध कर देता है। _____________________________________ _ महाभारत के आदि पर्व में महात्मा बुद्ध को भी वर्णित किया गया है। पुराणों के समान अत: यह सर्व ब्राह्मण वर्चस्व को स्थापित कर ने का उपक्रम मात्र था । भीष्म पर्व में वर्णित श्रीमद्भगवद् गीता में आध्यात्मिक विचारों का प्रकाशन अवश्य कृष्ण से सम्बद्ध है । परन्तु इसमें भी "वर्णानां ब्राह्मणोsहम् " तथा "चातुर्यवर्णं मया सृष्टं गुण कर्म विभागश:" ब्राह्मण वाद का आदर्श प्रस्तुत करना ही है । परन्तु ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त के दशम् ऋचा में गोप जन-जाति के पूर्व प्रवर्तक एवम् पूर्वज यदु को दास अथवा असुर के रूप में वर्णित किया गया है। जो हम पूर्व वर्णित कर चुके हैं और फिर देखें--- __________________________________________ " उत् दास ा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे । (10/62/10 ऋग्वेद ) अर्थात् यदु और तुर्वसु नामक दौनो दास गायों से घिरे हुए हैं । अत: सम्मान के पात्र हैं |(10/62/10 ऋग्वेद) यद्यपि पौराणिक कथाओं में यदु नाम के दो राजा हुए । एक हर्यश्व का पुत्र यदु ,तथा एक ययाति का पुत्र और तुर्वसु का सहवर्ती यदु । आभीर जन जाति का सम्बन्ध तुर्वसु के सहवर्ती यदु से है । जिसका वर्णन हिब्रू बाइबिल में भी अबीर (Abeer) रूप में है । ""Chapter. 8: The meaning of names in the Bi ble ... Abir -derived from the Hebrew, which means “strong.” Abiri -derived ... In the Bible (l Kings 5:15), a leader of the tribe of Gaderiya sub clain of Yehudah "... यदुवंशीयों का गोप अथवा आभीर विशेषण ही वास्तविक है धेनुकर अथवा गौश्चर (गुर्जर) ये सभी विशेषण यदु कबीले के हैं । हरिवंश पुराण में आभीर और गोप शब्द परस्पर पर्याय वाची हैं । "इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेन अहमच्युत गवां कारणत्वज्ञ: सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति। हे अच्यत् ! वरुण ने कश्यप को पृथ्वी पर वसुदेव के रूप में गोप होकर जन्म लेने का शाप दे दिया । पद्म पुराण सृष्टि खण्ड मे नरेन्द्र सैन आभीर की कन्या गायत्री को सर्वांग सुन्दर और शुद्ध कन्या मान कर ब्रह्मा ने विवाह कर लिया है । परन्तु व्यास-स्मृति के अध्याय प्रथम के श्लोक ११-१२ में गोप शूद्र के रूप में हैं :- वर्द्धिकी नापितो गोप आशाप कुम्भकारको . ..इति शूद्रा: भिन्न स्वकर्मभि: कृष्ण असुर संस्कृति के होकर भी महान थे । निश्चित रूप से कृष्ण के पावन चरित्र का प्रकाशन कृष्ण की इसी वाणी में ध्वनित है । मन के निग्रह उपदेश करती है । अर्जुन उवाच योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन । एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम्‌ ॥ भावार्थ :--अर्जुन बोले- हे मधुसूदन! जो यह योग आपने समभाव से कहा है, मन के चंचल होने से मैं इसकी नित्य स्थिति को नहीं देखता हूँ॥33॥ (श्रीमद्भगवद् गीता) चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्‌ । तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्‌ ॥ भावार्थ :- क्योंकि हे श्रीकृष्ण! यह मन बड़ा चंचल, प्रमथन स्वभाव वाला, बड़ा दृढ़ और बलवान है। इसलिए उसको वश में करना मैं वायु को रोकने की भाँति अत्यन्त दुष्कर मानता हूँ॥34॥ श्री भगवानुवाच असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्‌ । अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥ भावार्थ :-श्री भगवान बोले- हे महाबाहो! निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है। परन्तु हे कुंतीपुत्र अर्जुन! यह अभ्यास (गीता अध्याय 12 श्लोक 9 की टिप्पणी में इसका विस्तार देखना चाहिए।) और वैराग्य से वश में होता है॥35॥ असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः । वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः ॥ भावार्थ : जिसका मन वश में किया हुआ नहीं है, ऐसे पुरुष द्वारा योग दुष्प्राप्य है और वश में किए हुए मन वाले प्रयत्नशील पुरुष द्वारा साधन से उसका प्राप्त होना सहज है- यह मेरा मत है॥36॥ योगभ्रष्ट पुरुष की गति का विषय और ध्यानयोगी की महिमा के सन्दर्भों में देखें--- अर्जुन उवाच अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः । अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति ॥ भावार्थ : अर्जुन बोले- हे श्रीकृष्ण! जो योग में श्रद्धा रखने वाला है, किन्तु संयमी नहीं है, इस कारण जिसका मन अन्तकाल में योग से विचलित हो गया है, ऐसा साधक योग की सिद्धि को अर्थात भगवत्साक्षात्कार को न प्राप्त होकर किस गति को प्राप्त होता है॥37॥ कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति । अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि ॥ भावार्थ : हे महाबाहो! क्या वह भगवत्प्राप्ति के मार्ग में मोहित और आश्रयरहित पुरुष छिन्न-भिन्न बादल की भाँति दोनों ओर से भ्रष्ट होकर नष्ट तो नहीं हो जाता?॥38॥ एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः । त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते ॥ भावार्थ : हे श्रीकृष्ण! मेरे इस संशय को सम्पूर्ण रूप से छेदन करने के लिए आप ही योग्य हैं क्योंकि आपके सिवा दूसरा इस संशय का छेदन करने वाला मिलना संभव नहीं है॥39॥ श्रीभगवानुवाच पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते । न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ॥ भावार्थ : श्री भगवान बोले- हे पार्थ! उस पुरुष का न तो इस लोक में नाश होता है और न परलोक में ही क्योंकि हे प्यारे! आत्मोद्धार के लिए अर्थात भगवत्प्राप्ति के लिए कर्म करने वाला कोई भी मनुष्य दुर्गति को प्राप्त नहीं होता॥40॥ यदि हम कृष्ण की इन तत्व ज्ञान प्रकाशित करने वाले वचन सुनते हैं । तब कृष्ण के कामी रूप में विरोधाभास ही ध्वनित होता है । रीति काल में रति क्रियाओं को आधार मानकर लिपिबद्ध ग्रन्थ ब्रह्म वैवर्त आदि पुराण ग्रन्थ हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण वेदमार्ग का दसवाँ पुराण है। परन्तु यह तो वेद शब्द को भी कलंकित करता है । इसमें भगवान श्रीकृष्ण की काल्पनिक कथा एवम् लीलाओं का विस्तृत वर्णन, श्रीराधा की गोलोक-लीला तथा अवतार-लीलाका सुन्दर विवेचन, विभिन्न देवताओं की महिमा एवं एकरूपता और उनकी साधना-उपासनाका सुन्दर निरूपण किया गया है। अनेक भक्तिपरक आख्यानों एवं स्तोत्रोंका भी इसमें अद्भुत संग्रह होते हुए भी अश्लीलता की सीमाओं को लाँघ देती है। इस पुराण में चार खण्ड हैं। १-ब्रह्मखण्ड, २-प्रकृतिखण्ड, ३-श्रीकृष्णजन्मखण्ड और४- गणेशखण्ड। इन चारों खण्डों से युक्त यह पुराण अठारह हजार श्लोकों का बताया गया है। यह वैष्णव पुराण है। इस पुराण में श्रीकृष्ण को ही प्रमुख इष्ट मानकर उन्हें सृष्टि का कारण बताया गया है। 'ब्रह्मवैवर्त' शब्द का अर्थ है- ब्रह्म का विवर्त अर्थात् ब्रह्म की रूपान्तर राशि। ब्रह्म की रूपान्तर राशि 'प्रकृति' है। प्रकृति के विविध परिणामों का प्रतिपादन ही इस 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में प्राप्त होता है। कहने का तात्पर्य है प्रकृति के भिन्न-भिन्न परिणामों का जहां प्रतिपादन हो वही पुराण ब्रह्मवैवर्त कहलाता है। विष्णु के अवतार कृष्ण का उल्लेख यद्यपि कई पुराणों में मिलता है, किन्तु इस पुराण में यह विषय भिन्नता लिए हुए है। 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में कृष्ण को ही 'परब्रह्म' माना गया है, जिनकी इच्छा से सृष्टि का जन्म होता है। 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में श्रीकृष्ण लीला का वर्णन 'भागवत पुराण' से काफी भिन्न है। 'भागवत पुराण' का वर्णन साहित्यिक और सात्विक है जबकि 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' का वर्णन श्रृंगार रस से परिपूर्ण है। १८,००० श्लोक व्यास जी के नाम पर सृजित कर ब्रह्मवैवर्त पुराण के चार भाग किये हैं ब्रह्म खण्ड, प्रकृति खण्ड, गणेश खण्ड और श्रीकृष्ण खण्ड। इन चारों में दो सौ अठारह अध्याय हैं। इन चारों खण्डों से युक्त यह पुराण अठारह हजार श्लोकों का बताया गया है। यह पुराण कहता है कि इस विश्व में असंख्य ब्रह्माण्ड विद्यमान हैं। प्रत्येक ब्रह्माण्ड के अपने-अपने विष्णु, ब्रह्मा और महेश हैं। इन सभी ब्रह्माण्डों से भी ऊपर स्थित गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण निवास करते हैं। ऐसा ही वर्णन योग-वाशिष्ठ महारामायण में है । -सृष्टि के विषय में । ब्रह्म वैवर्त पुराण में सृष्टि निर्माण के उपरान्त सर्वप्रथम उनके अर्द्ध वाम अंग से राधा प्रकट हुई। कृष्ण से ही ब्रह्मा, विष्णु, नारायण, धर्म, काल, महेश और प्रकृति की उत्पत्ति बतायी गयी है । फिर नारायण का जन्म कृष्ण के दाये अंग से और पञ्चमुखी शिव का जन्म कृष्ण के वाम पार्श्व से हुआ। नाभि से ब्रह्मा, वक्षस्थल से धर्म, वाम पार्श्व से पुन: लक्ष्मी, मुख से सरस्वती और विभिन्न अंगों से दुर्गा, सावित्री, कामदेव, रति, अग्नि, वरुण, वायु आदि देवी-देवताओं का आविर्भाव हुआ। इस पुराण के चार खण्ड हैं- ब्रह्म खण्ड, प्रकृति खण्ड, गणपति खण्ड और श्रीकृष्ण जन्म खण्ड निम्नलिखित है-(१) ब्रह्म खण्ड ब्रह्म खण्ड में भगवान श्रीकृष्ण के चरित्र की लीलाओं का वर्णन है। ब्रह्म कल्प के चरित्र का वर्णन है। साथ ही तत्त्व ज्ञान का वर्णन है। इसी खण्ड में श्रीकृष्ण के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप में राधा का आविर्भाव उनके वाम अंग से दिखाया गया है।(२) प्रकृति खण्ड प्रकृति खण्ड में देवियों के विभिन्न चरित्रों की चर्चा के साथ विशेष रूप में सरस्वती जी की पूजा का विधान आदि दिया है। अंत में देवी की उत्पत्ति और चरित्र का आख्यान है। इसमें विभिन्न देवियों के आविर्भाव और उनकी शक्तियों तथा चरित्रों का सुन्दर विवरण प्राप्त होता है। इस खण्ड का प्रारम्भ 'पंचदेवीरूपा प्रकृति' के वर्णन से होता है। ये पांच रूप यशदुर्गा, महालक्ष्मी, सरस्वती, गायत्री और सावित्री के हैं -(३) गणपति खण्ड गणेश खंड में गणेश जी के जन्म की विस्तार से चर्चा तथा पुण्यक व्रत की महिमा, गणेश जी की स्तवन, दशाक्षरी विद्या व दुर्गा कवच का वर्णन है। गणेश के एकदन्त होने की कथा है। परशुराम कथा है।(४) श्रीकृष्ण खण्ड श्रीकृष्ण जन्म खण्ड में भगवान के जन्म तथा उनकी लीलाओं का बड़ा श्रृंगारी चित्रण यहां किया गया है। कृष्ण के बचपन व कालिया नाग से सम्पर्क की भी कथा है। गोरी व्रत की कथा भी है और अन्त में रासकेन्द्र वृन्दावन का विस्तार से वर्णन है। 'श्रीमद्भागवत' में भी इसी प्रकार श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन उपलब्ध होता है। इसी खण्ड में सौ के लगभग उन वस्तुओं, द्रव्यों और अनुष्ठानों की सूची भी दी गई है जिनके मात्र से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसी खण्ड में तिथि विशेष में विभिन्न तीर्थों में स्नान करने और पुण्य लाभ पाने का उल्लेख किया गया है। जो कृष्ण का काल्पनिक अशोभनिय चित्रण करता है संभवत: कृष्ण का बचपन नंदगांव और गोकुल में गोपियों के बीच बीता ! गोपियों के साथ कृष्ण का यौन सम्बन्ध था। इस विषय में लगभग सारा रीति कालीन संस्कृत कृष्ण- साहित्य एकमत हैं । इन गोपियों में विवाहित और कुमारी दोनों प्रकार की थी वे अपने पतियों, पिताओ और भाइयो के कहने पर भी नहीं रूकती थी: ‘ ता: वार्यमाणा: पतिभि: पितृभिभ्रातृभि स्तथा, कृष्ण गोपांगना रात्रौं रमयंती रतिप्रिया :’ -विष्णुपुराण, 5, 13/59. अर्थात वे रतिप्रिय गोपियाँ अपने पतियों, पिताओं और भाइयो के रोकने पर भि रात में कृष्ण के साथ रमण करती थी. कृष्ण ने गोपियों के साथ साथ ठण्डी बालू वाले नदी पुलिन पर प्रवेश कर के रमण किया. वह स्थान कुमुद की चंचल और सुगन्धित वायु आनन्द दायक बन रहा था. बाहे फैलाना, आलिंगन करना, गोपियों के हाथ दबाना, बाल (चोटी) खींचना, जंघाओं पर हाथ फेरना, नीवी एवं स्तनों को चुन, गोपियों के नर्म अंगो नाखुनो से नोचना, तिरछी दृष्टि से देखना, हंसीमजाक करना आदि क्रियाओं से गोपियों में कामवासना बढ़ाते हुए कृष्ण ने रमण किया. श्रीमदभागवत महापुराण 10/29/45 कृष्ण ने रात रात भर जाग कर अपने साथियो सहित अपने से अधिक अवस्था वाली और माता जैसे दिखने वाली गोपियों को भोगा. – आनंद रामायण, राज्य सर्ग 3/47 – ब्रह्मावैवर्त पुराण, कृष्णजन्म खंड 4, अध्याय 28-6/18, 74, 75, 77, 85, 86, 105, 109,110, 134, 70. – ब्रह्मावैवर्त पुराण, कृष्णजन्म खंड 4, 115/86-88 कृष्ण का सम्बन्ध अनेक नारियों से रहा हैं कृष्ण की विवाहिता पत्नियों की संख्या सोलह हज़ार एक सो आठ बताई जाती हैं। धार्मिक क्षेत्र में कृष्ण के साथ राधा का नाम ही अधिक प्रचलित हैं। ब्रह्मावैवर्त पुराण राधा कृष्ण की मामी बताई गयी हैं. इसी पुराण में राधा की उत्पत्ति कृष्ण के बाए अंग से बताई गयी हैं ‘कृष्ण के बायें भाग से एक कन्या उत्पन्न हुई. गुडवानो ने उसका नाम राधा रखा. :– ब्रह्मावैवर्त पुराण, 5/25-26 ‘उस राधा का विवाह रायाण नामक वैश्य के साथ कर दिया गया कृष्ण की जो माता यशोदा थी रायाण उनका सगा भाई था. – ब्रह्मावैवर्त पुराण, 49/39,41,49 यदि राधा को कृष्ण के अंग से उत्पन्न माने तो वह उसकी पुत्री हुई । यदि यशोदा के नाते विचार करें तो वह कृष्ण की मामी हुई. दोनों ही दृष्टियो से राधा का कृष्ण के साथ प्रेम अनुचित था ।और कृष्ण ने अनेको बार राधा के साथ सम्भोग किया था ( ब्रह्मावैवर्त पुराण, कृष्णजन्म खंड 4, अध्याय 15) और यहाँ तक विवाह भी कर लिया था (ब्रह्मावैवर्त पुराण, कृष्णजन्म खंड 4, 115/86-88). अब आप ही विचार करें कि ये काल्पनिक उड़ाने उस समाज में थी । जिसका महात्मा बुद्ध ने विरोध किया । उन्हीं व्यक्तियों ने अपनी वासनाओं के प्रकाशन के लिए कृष्ण को आधार बना लिया । और सम्पूर्ण अश्लीलताओं का आरोपण कृष्ण के ऊपर कर दिया ! विचार-विश्लेषण:--- यादव योगेश कुमार 'रोहि' ग्राम आजा़दपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---के सौजन्य से---- -------------------------------------------------------------- ..मित्रों मेरे इस वक्तव्य पर प्रतिक्रिया दें !

Yadav Yogesh kumar -Rohi- की अन्य किताबें

1

अहीरों के इतिहास को मिटाने की साज़िश

10 फरवरी 2018
4
0
0

अहीरों के इतिहास को मिटाने की साज़िश ____________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थात्  उन पापकर्म करनेवाले तथा लोभ से पतित चित्त वाले ! अशुभ -दर्शी अहीरों ने एकत्रित होकर वृष्णि वंशी यादवों को लूटने की सलाह की ।४७। बौद्ध

2

सत्य का अवलोकन -- आभीर ,गोप , यादव कृष्ण की सनातन उपाधि परक विशेषण

10 फरवरी 2018
1
0
0

सत्य का अवलोकन -- आभीर ,गोप , यादव कृष्ण की सनातन उपाधि परक विशेषण । कृष्ण का वास्तविक वंश ---____________________________________कृष्ण वास्तविक रूप में आभीर (गोप) ही थे ।क्योंकि महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण में वसुदेव को गोप ही कहा गया है ।और कृष्ण का जन्म भी गोप (आभीर ) परिवार में हुआ यादव

3

कृष्ण का यथार्थ जीवन-दर्शन

10 फरवरी 2018
0
0
0

श्री कृष्ण एक ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं । जिनका सम्बन्ध असीरियन तथा द्रविड सभ्यता से भी है । द्रविड (तमिल) रूप अय्यर अहीर से विकसित रूप है।_________________________________________कृष्ण का स्पष्ट प्रमाण हमें छान्दोग्य उपनिषद के एक श्लोक में मिलता है। छान्दोग्य उपनिषद  :--(3.17.6 ) कल्पभेदादिप्रायेणैव “

4

यदुवंशी क्षत्रिय नहीं अपितु शूद्र होते हैं ; ब्राह्मणों की वर्ण-व्यवस्था के अनुसार और क्षत्रिय तो ब्राह्मणों की अवैध सन्तानें हैं ।

13 फरवरी 2018
2
0
0

यदुवंशी क्षत्रिय नहीं शूद्र हैं ; क्षत्रिय तो ब्राह्मणों की अवैध सन्तानें हैं_________________________________________जब यदु को ही वेदों में दास अथवा शूद्र कहा है । ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त की १० वीं ऋचा में यदु और तुर्वसु को स्पष्टत: दास के रूप में सम्बोधित किया गया है।  वह भी गोपों को र

5

शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय--

13 फरवरी 2018
0
1
1

शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________(यादव योगेश कुमार'रोहि)'शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐैतिहासिक सन्दर्भ....-यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषणनवीन गवेषणाओं पर आधारित  🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🌃🌃🌃🗼🗼🗼🗼🗼🗼🌃🗼🌅🌅🎠🎠🎠🎠      शूद्र कौन थे ? और इनक

6

प्राय:  कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने वाले महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह प्रक्षिप्त (नकली) श्लोक उद्धृत करते हैं ।

13 फरवरी 2018
2
0
0

प्राय:  कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने वाले महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह प्रक्षिप्त (नकली) श्लोक उद्धृत करते हैं ।____________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थ

7

आत्मा के साथ कर्म और प्रारब्ध करते हैं जीवन की व्याख्या--__________________________________________

16 फरवरी 2018
0
0
0

आत्मा के साथ कर्म और प्रारब्ध करते हैं जीवन की व्याख्या--__________________________________________सृष्टि -सञ्चालन का सिद्धान्त बडा़ अद्भुत है ।जिसे मानवीय बुद्धि अहंत्ता पूर्ण विधि से कदापि नहीं समझ सकती है ।विश्वात्मा ही सम्पूर्ण चराचर जगत् की प्रेरक सत्ता है । और आत्मा प्राणी जीवन की , इसी सन्दर्

8

अफगानिस्तान में जादौन पठानों का खिताब तक्वुर (ठक्कुर) और भारत में जादौन ठाकुर ..

13 अप्रैल 2018
1
0
0

---जो लोग ठाकुर अथवा क्षत्रिय उपाधि से विभूषित किये गये थे । जिसमे अधिकतर अफ़्ग़ानिस्तान के जादौन पठान भी थे, जो ईरानी मूल के यहूदीयों से सम्बद्ध थे। यद्यपि पाश्चात्य इतिहास विदों के अनुसार यहुदह् ही यदु:  शब्द का रूप है ।एेसा वर्णन ईरानी इतिहास में भी मिलता है । जादौन पठानों की भाषा प्राचीन अवेस्ता

9

गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ?

3 मई 2018
0
0
0

गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? सभी यादव बन्धु इस लेख को पूर्ण मनोयोग से पढ़कर कृपया प्रतिक्रिया दें आपका बन्धु यादव योगेश कुमार 'रोहि' ग्राम-आज़ादपुर पत्रालय-पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---उ०प्र० ______________________________________________गोपों ने प्रभा

10

गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? एक विचार विश्लेषण ---

6 मई 2018
1
0
0

अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ?यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है ।---मैं भी असली घोषी अहीर हूँ ।मैंने भी उन रुढ़ि वादी ब्राह्मणों और राजपूतोंलोगों के द्वारा जन-जाति गत अपमान कितनी वार सहा है ? वह मुझे सब याद है इन लोगों हम्हें समाज में कभी भी

11

स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य . ....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है।

8 मई 2018
1
0
0

स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य .....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है।भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी संस्कृत साहित्य में भरत का अर्थ जंगली या असभ्य किया है ।और भारत देश के नाम करण का कारण भी यही भरत जन जाति थी। भारतीय प्रमाणतः जर्मन आर्यों की ही शाखा थे ।जैसे यूरोप में पाँचवीं

12

आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।

10 मई 2018
1
1
0

आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।यादवों के इतिहास को बिगाड़ने के षड्यन्त्र तो खूब किया गया परन्तु  फिर भी सफल न हो पाए षड्यन्त्रकारी ! सत्य विकल्प रहित निर्भीक एक रूप होता है ।जबकि असत्य बहुरूप धारण करने वाला बहुरूपिया ।आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।जाट और

13

सुरों का निवास स्थान स्वर्ग आज का स्वीडन ! एक शोध श्रृंखला अन्वेषक:-- यादव योगेश कुमार 'रोहि'

12 मई 2018
1
0
0

स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य ।. ....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है। भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी ; संस्कृत साहित्य में देव संस्कृति के अनुयायी ब्राह्मणों ने भरत शब्द  का अर्थ जंगली या असभ्य किया है । और भारत देश के नाम करण का कारण भी यही भरत जन जाति थी। भारत में आगत देव स

14

भारतीय भाषाओं में प्रचलित शब्द टैंगॉर, ठाकरे तथा ठाकुर इसी तुर्की ईरानी मूल के टेक्फुर शब्द का रूपान्तरण हैं । जिसका प्रयोग तुर्की सल्तनत में" स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान्टिन गवर्नरों के सन्दर्भ में किया गया था ।

30 मई 2018
0
0
0

टेकफुर शब्द का जन्म खिताबुक और प्रारम्भिक तुर्क काल में हुआ था ।भारतीय भाषाओं में प्रचलित शब्द टैंगॉर, ठाकरे तथा ठाकुर इसी तुर्की ईरानी मूल के टेक्फुर शब्द का रूपान्तरण हैं ।जिसका प्रयोग तुर्की सल्तनत में" स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान

15

असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग द्वित्तीय। असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग द्वित्तीय।

4 जुलाई 2018
1
0
0

इतिहास के बिखरे हुए पन्ने " कुछ कथा- वाचक ---जो कृष्ण चरित्र के विवरण के लिए भागवतपुराण को आधार मानते हैं तो भागवतपुराण भी स्वयं ही परस्पर विरोधाभासी तथ्यों को समायोजित किए हुए है ।👇रोहिण्यास्तनय: प्रोक्तो राम: संकर्षस्त्वया ।देवक्या गर्भसम्बन्ध: कुतो देहान्त विना ।।८(भागवतपुराण दशम् स्कन्ध अध

16

असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण

12 जुलाई 2018
2
1
0

असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग प्रथम __________________________________________भारत में जादौन ठाकुर तो जादौन पठानों का छठी सदी में हुआ क्षत्रिय करण रूप है ।क्योंकि अफगानिस्तान अथवा सिन्धु नदी के मुअाने पर बसे हुए जादौन पठानों का सामन्तीय अथवा जमीदारीय खिताब था तक्वुर ! जो भार

17

शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -

24 अगस्त 2018
0
1
0

शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐैतिहासिक सन्दर्भ -यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषण एवं नवीन गवेषणाओं पर आधारित शोध है ।शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआइन्हीं तथ्यों की एक विस्तृत विवेचना :- -------------

18

ऋग्वेद का पुरुष-सूक्त है ! पाणिनीय कालीन पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी पुरोहितों द्वारा रचित -- देखें प्रमाण- युक्त विश्लेषण " यादव योगेश कुमार "रोहि"

2 सितम्बर 2018
0
0
0

वर्ण-व्यवस्था की प्रक्रिया का वर्णन करने वाले ऋग्वेद के पुरुष सूक्त की वास्तविकताओं पर कुछ प्रकाशन:--- वैदिक भाषा (छान्दस्) और लौकिक भाषा (संस्कृत) को तुलनानात्मक रूप में सन्दर्भित करते हुए --__________________________________________ऋग्वेद को आप्तग्रन्थ एवं अपौरुषेय भारतीय रूढि वादी ब्राह्मण समा

19

गणेश , विष्णु और श्री इन पौराणिक पात्रों का तादात्म्य रोमनों के देवता जेनस सुमेरियन पिस्क-नु तथा रोमनों सुमेरियन देवी ईष्टर

2 अक्टूबर 2018
0
0
0

यजुर्वेद में गणेश का वर्णन ऋग्वेद के सादृश्य परगणपति रूप में  प्राप्त होता है । देखें👇“ओ३म् गणानांत्वां गणपतिगूँ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति गूँ हवामहे !निधीनां त्वा निधिपति गूँ हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्।।”उपर्युक्त ऋचा यजुर्वेद (23/19) में  है।यहाँ देव गणेश वर्णित हैं।यद्यप

20

क्या कृष्ण अहीर थे ?

9 अक्टूबर 2018
0
0
0

-क्या कृष्ण अहीर थे ?विचार-विश्लेषण---  यादव योगेश कुमार "रोहि" ग्राम- आजा़दपुर पत्रालय -पहाड़ीपुर जनपद- अलीगढ़---सम्पर्क सूत्र --8077160219...../_________________________________________संस्कृत भाषा में आभीरः, पुल्लिंग विशेषण शब्द है ---जैसे कि वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में उद्धृत किसानों है वाचस्पत्

21

शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐतिहासिक सन्दर्भ।

18 अक्टूबर 2018
0
0
0

शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐतिहासिक सन्दर्भ। यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषण नवीन गवेषणाओं पर आधारित है ।शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ ।आर्य विशेषण किस जन-जाति का प्रवृत्ति-मूलक विशेषण था ? -------------------------------------------------------------भारतीय इतिहास ही

22

भारतीय पुराणों में महापुराणों मे परिगणित भविष्य पुराण आठारहवीं सदी की रचना है । जिसमे आदम और हव्वा का वर्णन है

13 नवम्बर 2018
0
0
0

भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक  राजनेताओं के  साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।_______________________________________प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्

23

इतिहास लेखक डॉ मोहन लाल गुप्ता के अनुसार करौली के यदुवंशी अपने नाम के बाद 'सिंह' विशेषण न लगाकर 'पाल' विशेषण लगाते थे ; क्यों कि ये स्वयं को गोपाल, गोप तथा आभीरया या गौश्चर मानते थे और बंगाल का पाल वंश भी इन्हीं से सम्बद्ध है ।करौली शब्द स्वयं कुकुरावलि का तद्भव है :- कुकुर अवलि =कुकुरावलि --कुरावली---करौली

25 नवम्बर 2018
0
0
0

यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी ।ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते हैं । दाशार्ह देशबाल -दशवार , ,सात्वत ,जो कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली क्रमशः सावत ,सावन्त , कुक्कुर कुर्रा , कुर्रू आदि रूपों परिवर्तित हो गये । ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश ज

24

करौली का इतिहास और वहाँ के शासकों का वंश व व्यवसाय --- अद्यतन संस्करण--

25 नवम्बर 2018
1
1
0

प्राचीन काल में यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते थे  । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में ।जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित

25

भरतपुर के जाट जिन्हें अपना पूर्वज मानते हैं । धर्म्मपाल के बाद पैंतालीसवाँ पाल शासक अर्जुन पाल हुआ ।ये सभी पाल शासक पाल उपाधि का ही प्रयोग करते थे । क्यों कि इनका विश्वास था कि हमारे पूर्व पुरुष यदु ने गोपालन की वृत्ति को ही स्वीकार किया था । अतः पाल उपाधि गौश्चर गोप तथा अभीरों की आज तक है ।

26 नवम्बर 2018
0
0
0

प्राचीन काल में यादवों की एकशाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशजमाने जाते थे । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में । जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित र

26

यादवों का व्रज क्षेत्र की परिसीमा करौली का इतिहास--- धर्म्मपाल से लेकर अर्जुन पाल तक ---- प्रस्तुति-करण:- यादव योगेश कुमार "रोहि"

26 नवम्बर 2018
0
0
0

________________________१-धर्म्मपाल२-सिंहपाल३-जगपाल ४- नरपाल५-संग्रामपाल६-कुन्तपाल७-भौमपाल८-सोचपाल९-पोचपाल१०-ब्रह्मपाल११-जैतपाल । करौली का इतिहास प्रारम्भ होता है विजयपाल से ---यह बारहवाँ पाल शासक था ---1030 ई०सन् विजयपाल १२- विजयपाल (1030)१३- त्रिभुवनपाल(1000)१४-धर्मपाल (1090)१५- कुँवरपाल (1120)१६-

27

संस्कृत व हिन्दी वर्णमाला का ध्वनि वैज्ञानिक विवेचन नवीनत्तम गवेषणाओं पर आधारित ----- यादव योगेश कुमार "रोहि"

3 दिसम्बर 2018
0
0
0

माहेश्वर सूत्र  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से वैदिक भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों को  ध्वनि-विभाग के रूप अर्थात् (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद (विभक्ति युक्त वाक्य

28

हिन्दी वर्णमाला का वैज्ञानिक विवेचन (संशेधित संस्करण)

22 दिसम्बर 2018
0
0
0

माहेश्वर सूत्र  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से वैदिक भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों को  ध्वनि-विभाग के रूप अर्थात् (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद (विभक्ति युक्त वाक्य

29

कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर " _________________________________________

29 दिसम्बर 2018
1
0
0

कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर "_________________________________________प्रस्तुति-करण :-  यादव योगेश कुमार 'रोहि' प्रेम सृष्टि का  एक वह अनुभव है ।--जो उसके निर्माण की आधार -शिला है ।प्रेम अनेक उन  भावनाओं का समुच्चय है । जो पारस्परिक स्नेह से प्रस्फुटित होकर लेकर भ

30

यादव इतिहास

15 फरवरी 2019
0
0
0

प्राय: कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के अल्पज्ञानी लोग आभीर और यादवों को पृथक दिखाने के लिए महाभारत के मूसल पर्व के अष्टम् अध्याय से यह श्लोक उद्धृत करते हैं 👇________________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थात् वे

31

अलंकार विवेचना - भाग प्रथम --

23 फरवरी 2019
0
0
0

अलंकार (Figure of speech) का स्वरूप और भेद ---__________________________________________भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले कुशलतापूर्ण मनोरञ्जक ढंग को अलंकार कहते है।जैसे "कोई स्त्री आभूषण पहन कर सौभाग्यवती व समाज में शोभनीय प्रतीत होती है ।और यदि आभूषण न पहने हों तो विधवा के समान अश

32

अलंकार विवेचना - भाग प्रथम --

23 फरवरी 2019
0
0
0

अलंकार (Figure of speech) का स्वरूप और भेद ---__________________________________________भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले कुशलतापूर्ण मनोरञ्जक ढंग को अलंकार कहते है।जैसे "कोई स्त्री आभूषण पहन कर सौभाग्यवती व समाज में शोभनीय प्रतीत होती है ।और यदि आभूषण न पहने हों तो विधवा के समान अश

33

भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । यादव योगेश कुमार "रोहि"

27 फरवरी 2019
0
0
0

भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । 'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों। वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आर

34

💥 भागवत धर्म के संस्थापक आभीर जन-जाति के लोग 💥

5 मार्च 2019
1
0
0

भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है ।'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों ; वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आरा

35

मनुःस्मृति और श्रीमद्भगवत् गीता का पारम्परिक विरोध :-

7 मार्च 2019
0
0
0

सामवेद की महत्ता को लेकर श्रीमद्भगवद् गीता और मनुःस्मृति का पारस्परिक विरोध सिद्ध करता है ;या तो तो मनुःस्मृति ही मनु की रचना नहीं है ।या फिर  श्रीमद्भगवद् गीता कृ़ष्ण का उपदेश नहीं ।परन्तु इसका बात के -परोक्ष संकेत प्राप्त होते हैं कि कृष्ण देव संस्कृति के विद्रोही पुरुष थे । जिन्हें ऋग्वेद के अष्ट

36

योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

37

योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

38

योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

39

योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

40

योग स्वास्थ्य की साधना है ! परन्तु स्वास्थ्य क्या है ? जाने !

15 मार्च 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

41

योग स्वास्थ्य की साधना है ! परन्तु स्वास्थ्य क्या है ? जाने !

15 मार्च 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

42

योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है । अब योग क्या है ? और स्वास्थ्य क्या है ? इनकी व्याख्यापरक परिभाषा पर भी विचार आवश्यक है 👇

16 मार्च 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

43

सत्य जो किया ने कहा नहीं !

22 मार्च 2019
0
0
0

राक्षसों को महाभारत में धर्मज्ञ कहा है । ______________________________________राक्षस शब्द का अर्थ संस्कृत भाषा में होता है ।धर्म की रक्षा करने वाला " धर्मस्य रक्षयति इति "राक्षस रक्षस् एव स्वार्थे अण् । इति राक्षस “क्वचित् स्वार्थिका अपि प्रत्ययाः प्रकृतितो लिङ्गवचनान्यतिवर्त्तन्ते ।_______________

44

धर्म पहले क्या था ? और अब क्या है ?

23 मार्च 2019
0
0
0

आप जानते हो जब कोई वस्त्र नया होता है ।वह शरीर पर सुशोभित भी होता है ; और शरीर की सभी भौतिक आपदाओं से रक्षा भी करता है ।👇परन्तु कालान्तरण में वही वस्त्र जब पुराना होने पर जीर्ण-शीर्ण होकर चिथड़ा बन जाता है ।अर्थात्‌ उसमें अनेक विकार आ जाते हैं ।तब उसका शरीर से त्याग देना ही उचित है ।आधुनिक धर्म -पद

45

पश्चिमी एशिया की संस्कृतियों में ईश्वर वाची शब्द–

26 मार्च 2019
0
0
0

जहोवा ,गॉड , ख़ुदा और अल्लाह आदि ईश्वर वाची शब्दों की व्युत्पत्ति वैदिक देव संस्कृति के अनुयायीयों से भी  सम्बद्ध है। ________________________________________---- विचार विश्लेषण :--यादव योगेश कुमार 'रोहि' जैसे हिब्रू ईश्वर वाची शब्द  यहोवा ( ह्वयति ह्वयते जुहाव जुहुवतुः जुहुविथ जुहोथ ) आद संस्कृत क्

46

"योग आत्म-साक्षात्कार की कुञ्जिका " यादव योगेश कुमार "रोहि"

31 मार्च 2019
1
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: कह कर वर्णित किया है ।परवर्ती तद्भव रूप में श्वस् धातु भी स्वर् का ही रूप है ।आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa( स्वेसा )तथाswījēn( स्वजेन) शब्द आत्म बोधक हैं । अर्थात् own, relation प्राचीनत्तम जर्मन- गोथिक में: 1-swēs (a) 2-`own'; swēs n. (b) `property' 2-

47

"चौधरी, ठाकुर तथा चौहान जैसी उपाधियों के श्रोत " यादव योगेश कुमार "रोहि"

2 अप्रैल 2019
0
0
0

चौधरी शब्द पुल्लिंग विशेषण-पद के रूप में हिन्दी में विद्यमान है यह शब्द जिसका सम्बन्ध संस्कृत भाषा के चक्रधारिन् ( चक्रधारी)  शब्द से तद्भूत है-👇जो मध्यकालीन कौरवी तथा बाँगड़ू बोलीयों में चौधरी शब्द के रूप में विकसित हुआ ।संस्कृत कोश -ग्रन्थों में चक्रधारि कृष्ण का विशेषण रहा है ।कालान्तरण में चक्र

48

भविष्य पुराण अठारहवीं सदी की रचना है । परन्तु अन्ध भक्त रहते है यह महर्षि वेद - व्यास- की रचना है !

7 अप्रैल 2019
2
1
0

भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।_______________________________________प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्

49

ठाकुर उपाधि न तो वंश गत है । यह तुर्को और मुगलों की उतरन के रूप में एक । जमीदारीय खिताब था ।. प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

8 अप्रैल 2019
0
0
0

_____________________________________टेकफुर शब्द का जन्म खिताबुक और प्रारम्भिक तुर्क काल में किया गया था ।जिसका प्रयोग " स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान्टिन गवर्नरों के सन्दर्भ में किया गया था ।उत्पत्ति और अर्थ की दृष्टि सेइस शीर्षक (उपा

50

गोषा -गां सनोति सेवयति सन् (षण् )धातु विट् प्रत्यय । अर्थात्‌ --जो गाय की सेवा करता है । गोदातरि “गोषा इन्द्रीनृषामसि” “ शर्म्मन् दिविष्याम पार्य्ये गोषतमाः” ऋग्वेद ६ । ३३ । ५ । अत्र “घरूपेत्यादि” पा० सू० गोषा शब्दस्य तमपि परे ह्रस्वः ।

9 अप्रैल 2019
0
0
0

गोषा -गां सनोति सेवयति सन् (षण् )धातु विट् प्रत्यय । अर्थात्‌ --जो गाय की सेवा करता है ।गोदातरि “गोषा इन्द्रीनृषामसि” “ शर्म्मन् दिविष्याम पार्य्ये गोषतमाः” ऋग्वेद ६ । ३३ । ५ । अत्र “घरूपेत्यादि” पा० सू० गोषा शब्दस्य तमपि परे ह्रस्वः ।गोषन् (गोष: )गां सनोति सन--विच् ।“सनोतेरनः” पा० नान्तस्य नित्यषत

51

अहीरों का ऐैतिहासिक परिचय "पश्चिमीय एशिया की प्राचीन संस्कृतियों में मार्शल आर्ट के सूत्रधारकों के रूप में अहीरों का वर्णन अबीर रूप में है । विचार-विश्लषेण--- यादव योगेश कुमार "रोहि"

12 अप्रैल 2019
0
0
0

अहीरों का ऐैतिहासिक परिचय "पश्चिमीय एशिया की प्राचीन संस्कृतियों में मार्शल आर्ट के सूत्रधारकों के रूप में अहीरों का वर्णन अबीर रूप में है ।और अहीर -रेजीमेण्ट इस मार्शल आर्ट प्रायोजकों के लिए एक प्रायौगिक संस्था बनकर देश की सुरक्षात्मक गतिविधियों को सुदृढ़ता प्रदान करेगी।एेसा मेरा विश्वास है ।इस लि

52

घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण या पर्याय रहा है ।

12 अप्रैल 2019
0
0
0

यद्यपि हम घोष हैं परन्तु घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण या पर्याय रहा है ।और यह किसी वंश का सूचक कभी नहीं था ।क्यों कि हैहय वंशी यादव राजा दमघोष से पहले भी घोष यादवों का गोपालन वृत्ति मूलक विशेषण रहा।इस विषय में वेद प्रमाण हैं; उसमे भी ऋग्वेद और उसमे भी इसके चतुर्थ और षष्ठम् मण्डल मध्यप्रदेश

53

मध्यप्रदेश के घोष समाज को ठाकुर उपाधि की अपेक्षा यादव लिखना चाहिए ! क्यों कि ठाकुर उपाधि तुर्को और मुगलों की सामन्तीय उपाधि!

13 अप्रैल 2019
0
0
0

''''''''''''""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""यद्यपि हम घोष हैं परन्तु लोग हम्हें अहीर अथवा गोप कहकर भी पुकारा जाता हैं । क्यों कि ये सभी विशेषण शब्द परस्पर पर्याय वाची हैं घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण व पर्याय वाची  है।परन्तु गोष: शब्द के रूप में -और यह किसी वंश की सूचक उपाधि

54

वर्ण-व्यवस्था और मनु का ऐैतिहासिक विवेचन एस नवीनत्तम व्याख्या-

19 अप्रैल 2019
0
0
0

वैदिक सन्दर्भों के अनुसार दास से ही कालान्तरण दस्यु शब्दः का विकास हुआ हैं।मनुस्मृति मे दास को शूद्र अथवा सेवक के रूप में उद्धृत करने के मूल में उनका वस्त्र उत्पादन अथवा सीवन करने की अभिक्रिया  कभी प्रचलन में थी।परन्तु कालान्तरण में लोग इस अर्थ को भूल गये।भ्रान्ति वश एक नये अर्थ का उदय हो गया।जिस पर

55

व्यवस्थित मानव सभ्यता के प्रथम प्रकाशक के रूप में ऋग्वेद के कुछ सूक्त साक्ष्य के रूप में हैं ।

19 अप्रैल 2019
0
0
0

भारतीयों में प्राचीनत्तम ऐैतिहासिक तथ्यों का एक मात्र श्रोत ऋग्वेद के 2,3,4,5,6,7, मण्डल है ।आर्य समाज के विद्वान् भले ही वेदों में इतिहास न मानते हों ।तो भीउनका यह मत पूर्व-दुराग्रहों से प्रेरित ही है। यह यथार्थ की असंगत रूप से व्याख्या करने की चेष्टा है परन्तु हमारी मान्यता इससे सर्वथा विपरीत ही ह

56

चौहान ,परमार ,प्रतिहार,सोलंकी शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- प्रस्तुति-करण :–यादव योगेश कुमार "रोहि"

20 अप्रैल 2019
0
0
0

भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है । भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18 वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है । _______________________________________ प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरु

57

पाखण्ड शब्द का इतिहास .... ही निर्धारित करता है । पुराणों और महाभारत रामायण आदि के लेखन का काल निर्धारण ....👇

6 मई 2019
0
0
0

पाखण्ड शब्द का इतिहास ....ही पोल खोलता है । ब्राह्मणों के पाखण्डी की..________________________________________जैन परम्पराओं में पाषण्ड शब्द को पासंडिय अथवा पासंडी रूप में उद्धृत किया गया है । जैसा कि निम्न प्राकृत भाषा की पक्तियाँ लिपिबद्ध हैं 👇क्रमांक ३ "समयसार" की गाथा क्रमांक ४०८, ४१० एवं ४१३ म

58

अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ? यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है !

6 मई 2019
0
0
0

अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ?यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है !---मैं भी असली घोषी अहीर जन समुदाय से तालुकात रखता  हूँ । मैंने भी उन रुढ़ि वादी ब्राह्मणों और राजपूत समुदाय के लोगों के द्वारा जन-जाति गत अपमान कितनी वार सहा है ? वह मुझे सब याद है

59

समग्र महाभारत का एक समग्र विश्लेषण मूलक अध्ययन"

15 मई 2019
0
0
0

"एक कथन शाश्वत सत्य है कि --जो  तथ्य या कथ्य अपने आप में पूर्ण होते हैं ; उन्हें क्रम-बद्ध करने की भी आवश्यकता नहीं होती है।परन्तु भारतीय संस्कृति के अभिभावक और आधार भूत वेदों और  उनके व्याख्या कर्ता या विवेचक ग्रन्थों पुराणों, रामायण तथा महाभारत आदि में परस्पर विरोधी व भिन्न-भिन्न कथाओं का वर्णन  त

60

भारत में भागवत धर्म का उदय और विकास -

23 मई 2019
1
0
0

भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है ।यद्यपि प्रारम्भ में यह भागवत धर्म के रूप में ही गुप्त काल में  मान्य था कालान्तरण में ब्राह्मणों ने इसे वैष्णवधर्म बना कर हिन्दू धर्म में विलय कर लिया ।भागवत धर्म में वर्ण-व्यवस्था के लिए कोई स्थानान्तरण नहीं था।'भागवत धर्म' का तात्प

61

जादौन चारण बंजारों का इतिहास-

27 मई 2019
0
0
0

__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं ।परन्तु उनका तो पौराणिक ग्रन्थों में किसी प्रकार का इतिहास नहीं क्यों कि इनका

62

कर्म की उत्पत्ति और उसका स्वरूप-

2 जून 2019
0
0
0

एक सतसंग में निरंकारी मिशन के महापुरुष-जब मंच पर खुल कर विचार करने की हम्हें अनुमति देते हैं ।और प्रश्न करते हैं कि कर्म-- क्या है ? और यह किस प्रकार उत्पन्न होता है ?कई विद्वानों से यह प्रश्न किया जाता है ।मुझे भी अनुमति मिलती है ।हमने किसी शास्त्र को पढ़ा नहीं परन्तु हमने विचार करना प्रारम्भ किया

63

जादौन जन-जाति के आयाम -

9 जून 2019
0
0
0

__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं ।परन्तु उनका तो पौराणिक ग्रन्थों में किसी प्रकार का इतिहास नहीं क्यों कि इनका

64

जादौन चारण बंजारों का ऐैतिहासिक विवरण -उद्धृत अंश भारत की बंजारा जाति और जनजाति -3" लेखक S.G.DeoGaonkar शैलजा एस. देवगांवकर पृष्ठ संख्या- (18)चैप्टर द्वितीय...

9 जून 2019
0
0
0

__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं क्यों कि पुराणों या स्मृतियों ने जिन वेदों को आप

65

महाभारत के लेखक गणेश देवता "भाग चतुर्थ" एक समीक्षात्मक लेख .../

9 जून 2019
0
1
0

महाभारत के लेखक गणेश देवता "भाग चतुर्थ"__________________________________________महाभारत बौद्ध कालीन संस्कृतियों का प्रकाशन करने वाला अधिक है ।-जैसे चाण्यक नीति से प्रभावित निम्न श्लोक देखे:-👇सतां साप्तपदं मैत्रं स सखा मे८सि पण्डित:।सांवास्यकं करिष्यामि नास्ति ते भयमद्य वै।56।( महाभारत शान्ति पर्व

66

शब्दों की अर्थावनति - राँड़ और रड़ुआ --

9 जून 2019
0
0
0

रडुओं का  क्या हाल होता है भक्तो                     सुनो- क्वार कनागत कुत्ता रोवे।तिरिया रोवे तीज त्यौहार ।                 आधी रात पै रडुआ रोवे सुनके पायल  की झंकार ।।_____________________________________________भावार्थ:- अश्वनी मास अर्थात क्वार के महीने में जब कनागत आते हैं यानी सूर्य कन्या राशि

67

जन्म जन्मान्तरण के अहंकारों का सञ्चित रूप ही तो नास्तिकता है जो जीवन को निराशाओं के अन्धेरों से आच्छादित कर देती है।

9 जून 2019
0
0
0

जन्म जन्मान्तरण के अहंकारों का सञ्चित रूप ही तो नास्तिकता है जो जीवन को निराशाओं के अन्धेरों से आच्छादित कर देती है।समझने की आवश्यकता है कि नास्तिकता क्या है ?अपने अस्तित्व को न मानना ही नास्तिकता है ।क्यों कि लोग अहं में जीते है ।परन्तु यदि वे स्वयं में जी कर देखें तो वे परम आस्तिक हैं ।बुद्ध ने भी

68

मनस् सिन्धु की विचार लहरें ! जहाँ ज्ञान के बुद्बुद ठहरें !

9 जून 2019
0
0
0

१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार हो

69

कर्म का जन्म और सृष्टि का विस्तार- एक आध्यात्मिक विवेचना

9 जून 2019
0
1
0

एक सतसंग में निरंकारी मिशन के महापुरुष-जब मंच पर खुल कर विचार करने की हम्हें अनुमति देते हैं ।और प्रश्न करते हैं कि कर्म-- क्या है ? और यह किस प्रकार उत्पन्न होता है ?कई विद्वानों से यह प्रश्न किया जाता है ।मुझे भी अनुमति मिलती है ।मुझे भी आश्चर्य होता है !कि जिस प्रश्न को हम पर कोई उत्तर नहीं है ।फ

70

भागवत धर्म के प्रणयिता -

9 जून 2019
0
0
0

वर्तमान में हिन्दुत्व के नाम पर अनेक व्यभिचारपूर्ण और पाखण्ड पूर्ण क्रियाऐं धर्म के रूप में व्याप्त हैं ।केवल हरिवंशपुराण को छोड़ कर सभी पुराणों में कृष्ण को चारित्रिक रूप से पतित वर्णित किया है।नियोग गामी पाखण्डी ब्राह्मणों ने  कृष्ण को एक कामी ,व्यभिचारी ,और रासलीला का नायक बनाकरयादवों की गरिमा को

71

गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
0
0
0

अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

72

गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
0
0
0

अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

73

गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
0
0
0

अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

74

आज गायत्री जयन्ती के पावन पर्व पर श्रृद्धा प्रवण हृदय से हम सब माता गायत्री को नमन और भाव-- पूर्ण स्मरण करते हैं।

14 जून 2019
0
1
0

आज गायत्री जयन्ती के पावन पर्व पर श्रृद्धा प्रवण हृदय से हम सब माता गायत्री को नमन और भाव-- पूर्ण स्मरण करते हैं।____________________________________________वेद की अधिष्ठात्री देवी गायत्री अहीर की कन्या थीं और ज्ञान के अधिष्ठाता कृष्ण भी आभीर( गोप) वसुदेव के पुत्र थे ।ऐसा महाभारत के खिल-भाग हरिवंश प

75

भागवत धर्म का स्वरूप-भाग प्रथम एवं द्वितीय -प्रस्तुति करण :- यादव योगेश कुमार "रोहि"

14 जून 2019
0
0
0

भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । 'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों ; वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आर

76

कृष्ण के मौलिक आध्यात्मिक सिद्धान्त सदैव पुरोहित वाद और वैदिक यज्ञ मूलक कर्म--काण्डों ते विरुद्ध हैं ।

15 जून 2019
0
0
0

भागवत धर्म एवं उसके सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाला एक मात्र ग्रन्थ श्रीमद्भगवद् गीता थी ।--जो उपनिषद् रूप है । परन्तु पाँचवी शताब्दी के बाद से अनेक ब्राह्मण वादी रूपों को समायोजित कर चुका है --जो वस्तुत भागवत धर्म के पूर्ण रूपेण विरुद्ध व असंगत हैं ।--जो अब अधिकांशत: प्रक्षिप्त रूप में महाभारत क

77

कर्म और धर्म के सिद्धान्त - यादव योगेश कुमार" रोहि"

15 जून 2019
0
0
0

कर्म का स्वरूप और जीवन का प्रारूप :- विचारक यादव योगेश कुमार 'रोहि' कर्म का अपरिहार्य सिद्धान्त - श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 3 का श्लोक 5 भागवत धर्म के सार- गर्भित सिद्धान्त--जैसे कर्म सृष्टि और जीवन का मूलाधार है निम्न श्लोक देखें-_________________________________________न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्

78

कर्म धर्म और जाति की सुन्दर व्याख्या - यादव योगेश कुमार "रोहि"

15 जून 2019
0
0
0

गुप्त काल में -जब ब्राह्मण वाद का विखण्डन होने लगा तो परास्त ब्राह्मण वाद ने अपने प्रतिद्वन्द्वी भागवत धर्म को स्वयं में समायोजित कर लिया ।यह भागवत धर्म अहीरों का भक्ति मूलक धर्म था ।और ब्राह्मणों का धर्म था - वर्ण व्यवस्था मूलक व स्वर्ग एवं भोग प्राप्ति हेतु पशु बलि व यज्ञ परक कर्म काण्डों पर आधार

79

कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर

19 जून 2019
0
1
0

कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर -- यादव योगेश कुमार 'रोहि'  की गहन मीमांसाओं पर आधारित-भागवत धर्म के जन्मदाता आभीर जन-जाति के लोग थे प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व विशेषज्ञ सर राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर-जैसे विद्वानों ने ईस्वी सन् 1877 क

80

अहीर ही यादव होते हैं !

20 जून 2019
1
0
0

यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते हैं । दाशार्ह देशबाल -दशवार , ,सात्वत ,जो कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली क्रमशः सावत ,सावन्त , कुक्कुर कुर्रा , कुर्रू आदि रूपों परिवर्तित हो गये । ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश जहाँ

81

साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।।

22 जून 2019
0
1
0

१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल ,गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार ह

82

कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिछाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।

23 जून 2019
1
1
1

कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर कर सकता है ।यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं ।क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिछाया है ।वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।अर्थात् ई०पू० २५०० से १५००के काल तक-- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु का साथ साथ

83

वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है ।

25 जून 2019
1
0
0

वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते | पिबा त्वस्य गिर्वण : ।। (ऋग्वेद ३/५ १/ १ ० ) अर्थात् :- हे ! राधापति श्रीकृष्ण ! यह सोम ओज के द्वारा निष्ठ्यूत किया ( निचोड़ा )गया है । वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं, उनके द्वारा सोमरस पान करो। यहाँ राधापति के र

84

श्रीमद्भगवत् गीता का उचित स्थान महाभारत का भीष्म पर्व नहीं अपितु शान्ति पर्व होना चाहिए था ।

30 जून 2019
0
0
0

कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर -- यादव योगेश कुमार 'रोहि'  की गहन मीमांसाओं पर आधारित-भागवत धर्म के जन्मदाता आभीर जन-जाति के लोग थे प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व विशेषज्ञ सर राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर-जैसे विद्वानों ने ईस्वी सन् 1877 क

85

"राम विश्व संस्कृतियों में " एस संक्षिप्त परिचय- " प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

30 जून 2019
0
0
0

राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का प्रासंगिक न होना ही है ________________________________________________ प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था। कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है:

86

आर्य और वीर शब्दों का विकास परस्पर सम्मूलक है ।

1 जुलाई 2019
0
0
0

आर्य और वीर शब्दों का विकास परस्पर सम्मूलक है ।और पश्चिमीय एशिया तथा यूरोप की  समस्त भाषाओं में ये दौनों  शब्द प्राप्त हैं ।परन्तु  आर्य शब्द वीर  शब्द का ही सम्प्रसारित रूप है ।अत: वीर शब्द ही  प्रारम्भिक है ।दौनों शब्दों की व्युपत्ति पर एक सम्यक् विश्लेषण -प्रस्तुति-करण :-यादव योगेश कुमार  'रोहि'_

87

हूणों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत प्राच्य और पाश्चात्य इतिहासकारों के हवाले से...

4 जुलाई 2019
0
0
0

हूणों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत- शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- महाभारत ,वाल्मीकि रामायण तथा पुराणों के सन्दर्भों से उद्धृत करते हुए चीन के इतिहास से भी कुछ प्रकाशन किया है।यद्यपि ब्राह्मणों द्वारा

88

इतिहास के कुछ बिखरे हुए पन्ने ...शायद आप नहीं जानते हो

6 जुलाई 2019
1
0
0

यूनानीयों तथा ट्रॉय वासी -जब एगमेम्नन और प्रियम के नैतृत्व में यौद्धिक गतिविधियों में संलग्न थे ।तब उनकी संस्कृतियों में वैदिक परम्पराओं के सादृश्य कुछ संस्कार थे ।जैसे मृतक का दाह-संस्कार आँखों पर दो स्वर्ण-सिक्का रखकर किया जाने तथा बारह दिनों तक शोक होना....यह समय ई०पू० बारहवीं सदी है होमर ई०पू० अ

89

शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित ।

18 जुलाई 2019
0
0
0

शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित --------------------------------------------------------- भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत् शोध "यादव योगेश कुमार 'रोहि ' के द्वारा अनुसन्धानित तथ्य विश्व सांस्कृतिक अन्वेषणों के पश्चात् एक तथ्य पूर्णतः

90

हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप के अन्तर्गत वर्णमाला की व्युत्पत्ति मूलक विवेचना। रोहि हिन्दी व्याकरण (भाग पञ्चम्)

4 अगस्त 2019
0
0
0

हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप ।रोहि हिन्दी व्याकरण (भाग पञ्चम्)__________________________________________________माहेश्वर सूत्र को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने वैदिक भाषा (छान्दस्) के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से माहेश्वर सूत्रों का न

91

राम और सीता पश्चिमीय संस्कृतियों में....

15 अगस्त 2019
0
0
0

राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का प्रासंगिक न होना ही है __________________________________________ प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था। कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है: ‘वैदे

92

राम और सीता ऋग्वेद में तो हैं ही ; ये प्राचीनत्तम पात्र सुमेरियन तथा मिश्र की संस्कृतियों में भी

17 अगस्त 2019
1
0
0

आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर जोकि (सत्रहवीं सदी ईस्वी) के संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार और भाष्य कार भी हैं ।जो सम्पूर्ण महाभारत की टीका के लिए विशेष प्रख्यात हैं।आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में राम और सीता के होने का वर्णन किया है।☣⬇देखें--

93

राम सीता लक्ष्मण और भरत सुमेरियन और मिश्र की संस्कृतियों में...

18 अगस्त 2019
0
0
0

आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर जोकि (सत्रहवीं सदी ईस्वी) के संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार और भाष्य कार भी हैं ।जो सम्पूर्ण महाभारत की टीका के लिए विशेष प्रख्यात हैं।आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में राम और सीता के होने का वर्णन किया है।☣⬇देखें--

94

मित्रों ब्राह्मणों का कृषि और गौपालन से क्या वास्ता ? मन्दिर तक है इन पुरोहितों का रास्ता !

20 अगस्त 2019
0
0
0

ब्राह्मण समाज केवल कर्म-काण्ड मूलक पृथाओं का सदीयों से संवाहक रहे है ।और धार्मिक क्रियाऐं करने वाला यौद्धिक गतिविधियों से परे ही कहता है ।वैसे ब्राह्मण शब्द सभी महान संस्कृतियों में विद्यमान है ।जिसका अर्थ होता है केवल और केवल " मन्त्र -पाठ करने वाला पुजारी "पण्डित , ब्राह्मण और पुरोहित यूरोपीय

95

अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-

25 अगस्त 2019
0
0
0

अंग्रेजी व्याकरण में इट और देयर का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-Use of It and There and question Words___________________________________________Use of It and There When a sentence has no subject, then 'It and There' are used as an Introductory Word. e.g. (exempli gratia)( for exam

96

अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-

25 अगस्त 2019
0
0
0

अंग्रेजी व्याकरण में इट और देयर का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-Use of It and There and question Words___________________________________________Use of It and There When a sentence has no subject, then 'It and There' are used as an Introductory Word. e.g. (exempli gratia)( for exam

97

कृष्ण जीवन को कलंकित करने वाले षड्यन्त्र कारक पक्ष- जिनका सृजन कृष्ण को चरित्र हीन बनाकर देवसंस्कृति के अनुयायी पुरोहितों ने किया !

25 अगस्त 2019
0
0
0

कृष्ण जीवन को कलंकित करने वाले षड्यन्त्र कारक पक्ष- जिनका सृजन कृष्ण को चरित्र हीन बनाकर देवसंस्कृति के अनुयायी पुरोहितों ने किया !परिचय :-- यादव योगेश कुमार'रोहि'_______________________________________________ कामी वासनामयी मलिन हृदय ब्राह्मणी संस्कृति ने हि

98

ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में वासुदेव कृष्ण का वर्णन:-

1 सितम्बर 2019
0
0
0

ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में वासुदेव कृष्ण का वर्णन:-_________________________________________ऋग्वेद के प्रथम मण्डल अध्याय दश सूक्त चौबन 1/54/ 6-7-8-9- वी ऋचाओं तक यदु और तुर्वशु का वर्णन है ।और इसी सूक्त में राधा तथा वासुदेव कृष्ण आदि का वर्णन है ।परन्तु यहाँ भी परम्परागत रूप से  देव संस्कृतियों के पु

99

ऋग्वेद में कृष्ण का वर्णन है परन्तु आर्य्य समाजी मानसिकता के लोग वैदिक ऋचाओं की यौगिग शब्द मूलक अर्थ व्यञ्जन करते हैं और ये भी मानवीय वेद को अपौरुषेय बनाते हैं ।

5 सितम्बर 2019
4
0
0

महानुभाव ! षड्यन्त्र प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक क्रिया है ।जिसे जन साधारण निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहता है । यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दिया गया ।श्रृँगार वैराग्य का सनातन प्रतिद्वन्द्वी भाव है. इसी

100

अहीर विश्व संस्कृतियों में प्रतिभासित रूप --

9 सितम्बर 2019
0
0
0

आज के समय से लगभग ई०पू० द्वित्तीय सदी में संस्कृत के विद्वानों ने चरावाहों के एक समुदाय की वीरता और भयंकरताप्रवृत्ति को दृष्टि गत करके उन्हें अभीरु अथवा अभीर कहा । क्योंकि यहाँं के पुरोहितों को इनके मूल नाम "एवीर" / अबीरमें अभीर की ध्वनि सुनायी दी ।अहीर हिब्रू-भाषाओं में बीर/ बर से विकसित है ।जो अबी

101

कृष्ण के चरित्र को पतित करने का एक षड्यन्त्र ...

10 सितम्बर 2019
0
0
0

महानुभाव ! षड्यन्त्र प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक क्रिया है ।जिसे जन साधारण  निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहता है ।यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दिया गया ।श्रृँगार  वैराग्य का सनातन प्रतिद्वन्द्वी भाव है. इसी

102

तुमको हम इतना समझा दें कि धर्म वास्तव में क्या है ? धर्म साधना है मन की , इन्द्रिय-नियमन की क्रिया है|

15 सितम्बर 2019
0
0
0

जिस घर में रोहि संस्कार नहीं, और शिक्षा का प्रसार नहीं ||*********************उन्मुक्त Sex का ताण्डव है , वहाँ चरित्र सलामत कब है||***********************इस काम की उच्छ्रंखलता से दुनियाँ में जो कुकर्म है ,पाप पतन कारी कितना .? आदमी अब बेशर्म है ||*********************इन सभी विकृतियों की

103

कुछ प्रथाऐं जो अब समाज के लिए अनावश्यक और अर्थ हीन हैं !

16 सितम्बर 2019
0
0
0

एक परम्परागत पण्डित जी कहते हैं ; कि ये त्रयोदशी- भोग राज परिवारों की प्रथा है।तो हमारा उनसे कहना कि फिर जनता इसका अनुकरण क्यों करती है ?क्या राजा के समान सुविधाऐं जनता के पास हैं ?नहीं !और आज राज तन्त्र है क्या ?नहीं !तो इस मूर्खता पूर्ण पृथा को राजपरिवारों के साथ समाप्त कर दो !गरीब जनता क्यों

104

१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।।

19 सितम्बर 2019
0
0
0

१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार हो

105

आभीरों का भागवत धर्म ( आत्मा की खोज और जीवन का रहस्य )

27 सितम्बर 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: कह कर वर्णित किया है । परवर्ती तद्भव रूप में श्वस् धातु भी स्वर् धातु का ही रूप है । आद्य-जर्मनिक भाषाओं में यह रूप :- swḗsa( स्वेसा ) तथा swījēn( स्विजेन) शब्द के रूप में आत्मा का बोधक हैं । अर्थात् own, relation ।प्राचीनत्तम जर्मन- गोथिक भाषा में: 1-sw

106

योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ; इसीलिए योग और स्वास्थ्य इन दौनों का पारस्परिक सातत्य समन्वय अथवा एकता अपेक्षित  है । तृतीय चरण की प्रस्तुति ... _______________________________________________

1 अक्टूबर 2019
0
0
0

_______________________________________________योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ; इसीलिए योग और स्वास्थ्य इन दौनों का पारस्परिक सातत्य समन्वय अथवा एकता अपेक्षित  है ।तृतीय चरण की प्रस्तुति ..._______________________________________________योग’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा की  ‘युजँ समाधौ’ संयमने

107

भारोपाय भाषाओं में गुरू शब्द की व्युत्पत्ति और गुरुशिष्य परम्परा के आयाम -

4 अक्टूबर 2019
0
0
0

भारोपाय भाषाओं में गुरू शब्द की व्युत्पत्ति और गुरुशिष्य परम्परा के आयाम -__________________________________________संसार में ज्ञान और कर्म का सापेक्षिक अनुपात ही जीवन की सार्थकता का कारण है ।गुरू इसी सार्थकता का ही निमित्त कारण है ।अन्यथा व्यक्ति एक अभाव में या तो अन्धा है या तो लंगड़ा ।  गुरू ! की

108

चारण और भाटों का साहित्यिक परिचय...

5 अक्टूबर 2019
0
0
0

पिंगल और डिंगल -राजस्थान की पूर्वीय और पश्चिमीय बोलीयों का सीमांकन करती हैं ।'डिंगल' पश्चिमीय राजपूताने की वह राजस्थानी भाषा गत शैली है; जिसमें चारण लोग आज तक काव्य और वंशावली आदि लिखते चले आ रहे  हैं । विशेषत: चारण लोग डिंगल भाषा में काव्य रचनाऐं करते रहे हैं।'यह' भाषाशैली कृत्रिम होते हुए भी कलात

109

यादवों का इतिहास "द्वितीय भाग" ( नवीन संस्करण)

2 नवम्बर 2019
0
0
0

यादवों का इतिहास "द्वितीय भाग" ( नवीन संस्करण)____________________________________________वैदिक साहित्य में असुरों के विशाल तथा दृढ़ दुर्गों एव प्रासादों ( भवनों)के वर्णन मिलते हैं ।संभवतः लवण-पिता मधु या उनके किसी पूर्वज ने यमुना के तटवर्ती प्रदेश पर अधिकार कर लिया हो ; यह अधिकार लवण के समय से समाप

110

"हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप " संशोधित संस्करण (भाग एक)

6 नवम्बर 2019
0
0
1

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।उसने  अपने विचार ,भावनाओं एवं अनुभुतियों को अभिव्यक्त करने के लिए जिन माध्यमों को चुना वही  भाषा है ।मनुष्य कभी शब्दों से तो कभी संकेतों द्वारा  संप्रेषणीयता (Communication) का कार्य सदीयों से करता रहा है।अर्थात् अपने मन्तव्य को दूसरों तक पहुँचाता रहा है ।किन्तु भाषा उसे

111

ये हुश़्न भी "कोई " ख़ूबसूरत ब़ला है !

6 नवम्बर 2019
0
0
0

ये हुश़्न भी "कोई " ख़ूबसूरत ब़ला है ! _______________________________ बड़े बड़े आलिमों को , इसने छला है !!इसके आगे ज़ोर किसी चलता नहीं भाई! ना इससे पहले किसी का चला है !!ये आँधी है , तूफान है ये हर ब़ला है!परछाँयियों का खेल ये सदीयों का सिलस़िला है !आश़िकों को जलाने के लिए इसकी

112

मेरी अनुभूतियों के पल और बीते हुए कल...

31 दिसम्बर 2019
0
0
0

हर कर्म की प्रेरक मेरी ये हालात है !सहायक प्रवृत्ति या परिवेश ये संस्कार दूसरी बात है ।मुझे हर तरफ मोड़ा उन हालातों ने मेरे रुहानी जज्बातों ने या विरोधीयों की बातों ने ।मेरा व्यक्तित्व बस परिस्थियों की सौगात है ।ये मेरा प्रारब्ध है किसी गैर की कहाँ औख़ात है ये परिस्थियाँ हैं मेरे ग़म से नातों क

113

अनुभतियों के पल मेरे बीते हुए पल ...

2 जनवरी 2020
0
0
0

गलतीयाँ सामाजिक विसंगतियाँ ।और भूल मनुष्यगत भौतिक विस्मृतियाँ ।दौनों की ही अलग-अलग हैं गतियाँ।।हमने बहुत समझा औरों को दिल में बहुत कुछ और था ।हमको अपना समझा गैरों ने जिन पर हमारा नहीं गौर था हर कर्म की प्रेरक मेरी ये हालात है ! सहायक प्रवृत्ति या परिवेश ये संस्कार दूसरी बात है । मुझे हर तरफ मोड़ा

114

मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।

4 जनवरी 2020
0
0
0

मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।फिर क्यों ये मेरा मन, उदास है ।मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।मेरे प्रभु तेरी खुशबू , बड़ी अद्भुत और ख़ास है- मैं एक पापी तू सर्वव्यापी मेरा विश्वास है- ।है तेरा शमा तू 'न जन्मा न तेरा नाश है ।मुझे एहसास है प्रभु मेरे पास है ।××××××××××××××××××××××××××××××सत्कर्

115

मेरे कान्हा तेरी महिमा, अपरम्पार है। तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार है ।

6 जनवरी 2020
0
0
0

मेरे कान्हा तेरी महिमा, अपरम्पार है।तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार है ।तू मेरा सरकार है ,तू मेरा सरकार... है ।___________________________तेरी बातें ये सौगातें ,जीवन का एक सार हैं ।तू मेरा सरकार है ,तू मेरा सरकार है ।तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार... है ।मेरे प्रभू तेरा बजूह , मन में जो भी संजोता ।

116

उसूल सदियों सदियों पुराने हैं

6 फरवरी 2020
0
0
0

धर्म की आड़ में उसूल कुछ सदियों सदियों पुराने हैं।प्रसाद वितरण करने वालों में भी अब ज़हर खुराने हैं ।।धर्म की चादर ओढ़कर मन्दिर में ,आसन लगाऐ बैठे व्यभिचारी ।अब मन्दिर ही मक्कारों के ठिकाने हैं ।शराफत को अब कमजोरी समझते हैं लोग "रोहि"निघोरेपन में अब कुछ और फरेबी पहचाने हैं।ईमानदारी जहालत के मायनेहा

117

"सत्य विकल्प रहित और सर्वथा एक रूप होता है जबकि असत्य बहुरूपिया और बहुत से विकल्पों में उद्भासित होता है "

16 फरवरी 2020
0
0
0

किसी की महानता और प्रसिद्धि कुछ अहंवादी व्यक्तियों को सहन नहीं हुई तो उन्होंने अपने अहं को तुष्ट करने के लिए उनके इतिहास और वंश-व्युत्पत्ति को इस प्रकार से सम्पादित किया कि उन्हें सर्वथा हीन और हेय रूप में समाज की दृष्टि में सिद्ध किया जा सके !ये महान और वीरतापूर्ण प्रवृत्तियों से सम्पन्न जनजातिय

118

छलावा ...

18 फरवरी 2020
1
0
0

धर्म बनाया ढ़कोसला ! तिलक ,छाप ठगने की कला ।इनका ईश्वर पैसे भी लेता ।आज हमको ये पता चला।।और देव दासीयाँ को 'रोहि' ।पुजारियों ने हरपल छला ।।सुन्दरता नाम नहीं 'रोहि' किसी के गोरे होने का ।और पवित्रता नाम नहीं ,केवल शरीर के धोने का ।।काला हो या हो श्यामल और लम्पट, चंचल ना हो कभी ।।गोरा भी कुरूप हो जात

119

अर्जुन को नारायणी सेना के वीरों ने परास्त कर दिया ..

21 फरवरी 2020
0
0
0

कारण एक सुभद्रा का हरण ।।वह भी चुपके से न किया रण।। नारायणी सेना के यौद्धा शान्त कारण था कृष्ण का संरक्षण ।जब कृष्ण भी अर्जुन के साथ नहीं।।तब अर्जुन की औकात नहीं ।।सब असहाय बाल और स्त्रियाँ हैंयादव स्त्रियों के नाथ नहीं ।ले जा रहा सैकड़ों अबला जन को ,ये निर्लज्ज बेहया दीठा है ।जो लोभी लालची और कामी

120

अहीर जाट और गूजरों की समान खापें ...

21 फरवरी 2020
1
0
0

अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।आज इसी तथ्य का विश्लेषण करते हैं ।अब कुछ जाट तो जो स्वयं को भरत पुर के राजा सूरजमल से जोड़ते हैं ।जिसका समय सत्रहवीं सदी है ।अपने को सिनसिनीवार जाट कहते हैं ।राजस्थानी क्षेत्र में भरत पुर में एक सूरजमल की प्रतिमा के

121

"घर घर की घटना अजब अजब बनी हालात "

22 फरवरी 2020
0
0
0

घर घर की घटना अजब ।अजब बनी हालात ।एक बार कोई महानुभाव ।कोलेब में रहते गात ।स्टार मेकर पर करते । महिलाओं संग मुलाकात ।सुना रहे थे पत्नी को अपने स्वरों की सौगात ।पत्नी जरि कौयला भई ,सुन पर तिरियन की बात ।कोलर पकड़ रगड़ पति को धरि दीनी दो लात ।और पूछती इतनी देर तककहाँ बिताते रात ।कई दिनों से दूर दूर तु

122

गोप ,गोपाल, गौधुक ,आभीर यादव गुप्त गौश्चर पल्लव घोष आदि....

24 फरवरी 2020
0
0
0

यादव शब्द एक वंशमूलक विशेषण है ।जब कि गोप गोपालन वृत्ति( व्यवसाय) मूलक विशेषण और आभीर( अभीर शब्द से अण् तद्धित प्रत्यय करने पर निर्मित हुआ आभीर एक प्रवृत्ति मूलक विशेषण है ) जिसका अर्थ है वीर अथवा निर्भीक यौद्धा परन्तु षड्यन्त्र पूर्वक पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मणों ने यादवों को वंश के आधा

123

देश आज फिर घायल है । झूँठे अपवाह विवादों में ।।

29 फरवरी 2020
0
0
0

देश आज फिर घायल है । झूँठे अपवाह विवादों में ।। ऊँच नीच और छुआछूत । है अहंकार संवादों में । हिन्दू हो या मुसलमान , अब नेकी नहीं इरादों में । सब एक वृक्ष के पौधे थे । था एक सूत्र परदादों में ।।विचार ,उम्र और , समान सम्पदा ।ये सम्बन्ध सफल है सर्वदा ।। समय ,परिस्थिति और देश में

124

बोला शब्द की अवधारणा का श्रोत ...

3 मार्च 2020
0
0
0

होलि शब्द की अवधारणा का श्रोत मूलत: संस्कृत भाषा के स्वृ= तापे उपतापे च धातु से निष्पन्न है । य: स्वरयति तापयति सर्वान् लोकान् इति सूर्य: कथ्यते "अर्थात् जो सम्पूर्ण लोगों को तपाता है वह सूर्य है " होली एक वसन्त सम्पातीय ऋतु-सम्बन्धी अग्नि का स्वागत उत्सव है ---जो ग्रीष्म ऋतु के आगमन रूप फाल्गुनी

125

हरे कृष्णा हरे रामा रामा हरे हरे...गीत

5 मार्च 2020
0
0
0

हरे कृष्णा हरे रामा ~~ रामा रामा हरे - हरे कृष्णा हरे !हरे रामा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे ..🎼🎼हरे रामाँ~~ हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे रामा हरे ।(दीर्घ )-हरे कृष्णाँ आँ हरे रामाँ आँआँ .... हरे कृष्णा हरे हरे हरे रामा हरे ---हरे रामाँ हरे कृष्णा कृष्णा- कृष्णा हरे हरे कृष्णा हरे ~~_______

126

"कृष्ण का धर्म भागवत और उनका व्यक्तित्व " एक संक्षिप्त परिचय

6 मार्च 2020
0
0
0

महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ही मुख्य भूमिका में हैं ।कृष्ण ने स्वयं तो पाण्डवों का साथ दिया ,जबकि अपनी अहीरों अथवा गोपों की नारायणी सेना को दुर्योधन का साथ देने का आदेश दिया। उनकी इस कूट राजनीति में एक श्रेष्ठ व्यक्तित्व का संयोजन है । कृष्ण ही एक एेसा महामानव इस भारतीय धरा पर उत्पन्न हुआ जिसन

127

कृष्ण का व्यक्तित्व और उनका भागवत धर्म "एक प्रस्तावना " प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार 'रोहि'

8 मार्च 2020
1
0
0

महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ही मुख्य भूमिका में हैं ।कृष्ण ने स्वयं तो पाण्डवों का साथ दिया  ,जबकि अपनी अहीरों अथवा गोपों की नारायणी सेना को दुर्योधन का साथ देने का आदेश किया। उनकी इस कूट राजनैतिक गतिविधि में  एक श्रेष्ठ सामाजिक व्यक्तित्व का संयोजन है । कृष्ण  ही एक एेसा महामानव इस भारतीय धरा प

128

भागवत पुराण के प्रक्षेप ...(भाग प्रथम )

14 मार्च 2020
0
0
0

सत्य और यथार्थ यद्यपि समानार्थक प्रतीत होने वाले नाम हैं ।'परन्तु सत्य हमारी कल्याण मूलक अवधारणाओं पर अवलम्बित है ।समय , परिस्थिति और देश के अनुकूलता पर जो उचित है- वही सत्य है ।सत्य मे यद्यपि कल्याण का भाव विद्यमान है।यथार्थ में नहीं...यथार्थ को पुराण कार व्यक्त न कर सके ।इसी लिए तत्कालीन पुरोहि

129

भागवत पुराण और श्रीमद्भगवदगीता का काल निर्धारण ...

17 मार्च 2020
0
0
0

श्रीमद्भगवदगीता में पञ्चम सदी में मिलाबट की गयी जिसमें वर्ण व्यवस्था और याज्ञिक 'कर्म' काण्डों को समायोजित कर दिया गया । वर्ण- व्यवस्था कृष्ण का प्रतिपाद्य विषय नहीं था ,अपितु इसके खण्डन करने के लिए ही उन्होंने नया मार्ग भागवत धर्म के नाम से प्रसारित किया ।जिसके उपदेश श्रीमद्भगवदगीता उपनिषत् को रूप

130

लोक-तन्त्र हुआ डम्प ...

19 मार्च 2020
0
0
0

अभिवञ्चन अधिकारों का हो ! क्या कर्तव्य भावना के मायने ?तस्वीर बदलती है रोहि ,अक्श नहीं बदलते आयने । लोकतंत्र नहीं षड्यंत्र है केवल शोषण का सब मंत्र है जूस डाला आम-जन को अवशेष केवल अन्त्र हैं !नेताओं की लूट भी संवैधानिक है यहांँ गरीबों का विद्रोह जुल्म के मानिक यहांँ परोक्ष राजतंत्र जहां सब परम्परा

131

नन्द और वसुदेव दौनों सगे सजातीय गोप बन्धु थे ।

29 मार्च 2020
0
0
0

यादवों का गुप्त तथा गोप अथवा गोपाल नामक विशेषण उनकी गो पालन व रक्षण प्रवृत्ति के कारण हुए ...______________________________________________(हरिवंशपुराण एक समीक्षात्मक अवलोकन ...)हरिवंशपुराण के हरिवंश पर्व में दशम अध्याय का 36वाँ वह श्लोक देखें -रेवत के प्रसंंग में यह श्लोक विचारणीय है 👇__________

132

इतिहास के कुछ बिखरे हुए पन्ने .... हैहयवंश और शक यवन हूण पारद किरात पह्लव आदि की विलय गाथा ... भाग प्रथम

31 मार्च 2020
3
0
0

यादवों का गुप्त और गोप नामक विशेषण उनकी गो पालन व रक्षण प्रवृत्तियों के कारण हुआशक यवन हूण पारद और पह्लवों से हैहयवंश के यादवों का सामंजस्य व विलय ... भाग प्रथम______________________________________________(हरिवंशपुराण के एक समीक्षात्मक अवलोकन सन्दर्भ में हमने पाया कि भारतीय पौराणिक कथाऐं पश्चिमीय

133

अवर जन जाति का इतिहास ....

1 अप्रैल 2020
0
0
0

the avars were a confederation ofheterogeneous (diverse or varied) people consisting of Rouran, Hephthalites, and Turkic-Oghuric races who migrated to the region of the Pontic Grass Steppe (an area corresponding to modern-day Ukraine, Russia, Kazakhstan) from Central Asia after the fall of the Asiat

134

इतिहास लेखन के पूर्वाग्रह...

11 अप्रैल 2020
0
0
0

प्रत्येक काल में इतिहास पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर लिखा जाता रहा है ; आधुनिक इतिहास हो या फिर प्राचीन इतिहास या पौराणिक आख्यानकों में वर्णित कल्पना रञ्जित कथाऐं !सभी में लेखकों के पूर्वाग्रह समाहित रहे हैं ।अहीरों की निर्भीकता और पक्षपात विरोधी प्रवृत्ति के कारण या 'कहें' उनका बागी प्रवृत्ति के का

135

जीवन की अनन्त यात्रा ...

13 अप्रैल 2020
0
0
0

जीवन की अनन्त यात्रा ...__________________________________अभिशाप है अकेलापन 'रोहि' इस जहान का !अनन्त के द्वार से लौट आया।- दीदार किया भगवान का ।।एकान्त जो शान्त है । इस संसार का वरदान है कोई ।नये जोश और जज्बात को । विश्राम लेता थका बटोही ।।ये एकान्त और अकेलापन दौनों एक स्थिति के ,प्रवाह है

136

दास और दस्यु के सन्दर्भ ...

14 अप्रैल 2020
0
0
0

दास और दस्यु यद्यपि अपने प्रारम्भिक रूप में समानार्थक है ।वैदिक कालीन सन्दर्भ सूची में दास का अर्थ देव संस्कृति के विरोधी असुरों के लिए बहुतायत से हुआ है ।और जो दक्षता की पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठित होकर अपने अधिकारों के लिए बागी या द्रोही हो गये वे दस्यु कहलाऐ और जिन्होंने उत्तर वैदिक काल में आते -आत

137

दास और दस्यु के वैदिक कालीन सन्दर्भ ...

14 अप्रैल 2020
0
0
0

दास और दस्यु यद्यपि अपने प्रारम्भिक रूप में समानार्थक शब्द रहे हैं । वैदिक कालीन सन्दर्भ सूची में दास का अर्थ देव संस्कृति के विरोधी असुरों के लिए बहुतायत से हुआ है । और जो दक्षता की पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठित होकर अपने अधिकारों के लिए बागी या द्रोही हो गये वे दस्यु कहलाऐ और जिन्होंने उत्तर वैदिक काल

138

आज का ये हाल है ...

16 अप्रैल 2020
1
0
0

अजब चाल है अजब हाल है । क्या बताऊँ सब बेमिसाल है ।विवाह से पूर्व सम्बन्ध बनाना ! लड़के लड़कियों की मजाल है ।ये गैंग-रेप किडनैप के तरीके । अन्धा हो जाना फिर दारू पीके ।आज वस्त्रों में अब सब तन दीखे। और क्रिया कलाप भी बे सलीके ।नैतिकता अब बि

139

अहीर ,गूर्जर ,जाट और राजपूतों का इतिहास में विवरण विभिन्न सन्दर्भों में ...

18 अप्रैल 2020
0
0
0

____________________________________ इतिहास अपने आप को पुनः दोहराता है।____________________________________ महान होने वाले ही सभी ख़य्याम नहीं होते ।उनकी महानता के 'रोहि' इनाम नहीं होते । फर्क नहीं पढ़ता उनकी शख्सियत में कुछ भी ,ग़मों में सम्हल जाते हैं जो कभी नाकाम नहीं होते।।बड़ी सिद्दत से संजोया

140

मिथक और यथार्थ के समकक्ष ...

25 अप्रैल 2020
0
0
0

प्रश्न (1)कुछ लोग जो आज भी पूर्व दुराग्रह से ग्रस्त रूढ़िवादी सड़ी-गली मानसिकता से समन्वित होकर जी रहे हैं ।ले सत्य के प्रकाश ले बचकर असत्य के अँधेरे में ही जी रहे हैं ।उन्हें प्रकाश से भय या चौंद भी लगती हैं ।उन्हें 'हम क्या 'कहें' उनका इस प्रवृत्ति के कारण उल्लू या चमकादर या एकाक्ष कौआ वे लोग अक्

141

कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।

2 मई 2020
0
0
0

कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है । अर्थात् ई०पू० २५०० से १५००के काल तक-- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु क

142

प्रभु की शरण में आके ,सिर चरणों में झुकाके ।

5 मई 2020
0
0
0

प्रभु की शरण में आके ,सिर चरणों में झुकाके ।मन को तसल्ली मिलती है , प्रभु का भजन गाके ।समय के पथ पर जिन्दगी जा रही है यों ही ।फिर कुछ हासिल नहीं होगा रोहि पछिताके।________________________________________कौन है बनाने वाला इस संसार का -२कौन है खिवैया मेरी मझधार का -2धड़कनों की तालों में श्वाँसों की ल

143

गुर्जर ,जाट और अहीरों का समन्वय...

10 मई 2020
2
1
0

ब्राह्मणस्य द्विजस्य वा भार्या शूद्रा धर्म्मार्थे न भवेत् क्वचित्।रत्यर्थ नैव सा यस्य रागान्धस्य प्रकीर्तिता ।। (विष्णु- स्मृति)___________________________________________अर्थात्‌ ब्राह्मण के लिए शूद्रा स्त्री धर्म कार्य के लिए नही अपितु वासना तृप्ति के लिए होनी चाहिए अत:

144

भागवत धर्म की प्रस्तावना...

14 मई 2020
1
0
0

जब जैन-धर्म तथा बौद्ध-धर्म ह्रास के मार्ग पर बढ़ रहे थे तब दूसरी ओर इन्हीं के समानान्तरण भागवत धर्म भी वैदिक-धर्म की प्रतिक्रिया स्वरूप उदय हो रहा था ।वैदिक-धर्म भी अपने पुनरुत्थान में लगा था। उसने गुप्त काल के प्रारम्भ में भागवत धर्म को अपना में आत्मसात् करने का प्रयास किया।ब्राह्मण-चिंतकों ने खर्च

145

गूजरों से राजपूत संघ तक .... गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज....

19 मई 2020
1
0
0

गूजरों से राजपूत संघ तक .... गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज....________________________________________________यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है। चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं । अठारह वीं सदी तक सम्पादित भविष्य पुराण के प

146

चौहानों का गूजरों और जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...)

21 मई 2020
0
0
0

चौहानों का गूजरों ,जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...)________________________________________________यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है। चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं । अठारहवीं सदी तक स

147

वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।( तेरी राहों खड़े हैं दिल थाम के )

4 जून 2020
0
0
0

ओ३म्' ओ .....वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।तू ही मेरा हुजूर , मुझसे क्यों है दूर ।तेरा ही है ये नूर , फिर कैसी ये गुरूर ।।वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।आज देश

148

हरि का भजन कर , मत चल तनकर । हरि का भजन कर , मत चल तनकर । जीवन का है लम्बा सफर ... ( दिल दे दिया है )

4 जून 2020
0
0
0

हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ...हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ... 'हरि बोल 'हरि बोल .....ओ--- रे मुसाफिर तेरा बड़ी दूर घर ..हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ..._

149

कृष्ण के चरित्र को दूषित करने वाले....

4 जून 2020
1
0
0

कृष्ण के चरित्र को दूषित करने के षड्यन्त्र रचने वाले अगर पूछा जाय तो कोई और नहीं थे !देव संस्कृति के उपासक इन्द्र के आराधक वर्ण व्यवस्था वादी कर्म काण्ड को धर्म कहने वाले व्यभिचार मूलक नियोग को ईश्वरीय विधान बताने वाले इसी प्रकार के दूषित प्रवृत्ति के लोग थे । श्रीमदभगवद् गीता पञ्चम सदी में महाभार

150

यादव इतिहास के बिखरे हुए पन्ने....

5 जून 2020
3
0
0

कृष्ण के चरित्र को दूषित करने के षड्यन्त्र को रचने वाले अगर पूछा जाय तो कोई और नहीं थे ! देव संस्कृति के उपासक इन्द्र के आराधक वर्ण व्यवस्था वादी कर्म काण्ड को धर्म कहने वाले व्यभिचार मूलक नियोग को ईश्वरीय विधान बताने वाले कुछ इसी प्रकार की दूषित प्रवृत्ति के लोग थे ।यह घटना है पुष्यमित्र सुंग कालीन

151

भारतीय भाषाओं में ठाकुर शब्द का प्रयोग तेरहवीं सदी से अब तक ...

8 जून 2020
0
0
0

हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम ( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था । कालान्तरण में  विशेषत: भारतीय मध्य काल में इनके हरम अय्याशी क

152

भारतीय भाषाओं में ठाकुर शब्द का प्रयोग तेरहवीं सदी से अब तक...

8 जून 2020
0
0
0

हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम ( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था । कालान्तरण में  विशेषत: भारतीय मध्य काल में इनके हरम अय्याशी क

153

यदु , जरासन्ध और दमघोष आभीर जन-जाति....

16 जून 2020
0
0
0

यह सत्य है कि यादवों का इतिहास कि़स प्रकार विकृत हुआ यद्यपि जरासन्ध और दमघोष हैहयवंश के यादव ही थे 'परन्तु उन्हें यादव कहकर कितनी बार सम्बोधित किया गया ?सायद नहीं के बरावर ...इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है हरिवंशपुराण से यह विश्लेषण ...और किस प्रकार परवर्ती पुराण कारों 'ने यदु को ही सूर्य वंश में घ

154

यदु , जरासन्ध और दमघोष आभीर जन-जाति....

16 जून 2020
2
0
0

यह सत्य है कि यादवों का इतिहास कि़स प्रकार विकृत हुआ यद्यपि जरासन्ध और दमघोष हैहयवंश के यादव ही थे 'परन्तु उन्हें यादव कहकर कितनी बार सम्बोधित किया गया ?सायद नहीं के बरावर ...इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है हरिवंशपुराण से यह विश्लेषण ...और किस प्रकार परवर्ती पुराण कारों 'ने यदु को ही सूर्य वंश में घ

155

भागवत धर्म की रूप रेखा ...

17 जून 2020
0
0
0

भागवत धर्म और ब्राह्मण धर्म का पारस्परिक विरोध निरूपण-संशोधित संस्करण -___________________________________________भागवत धर्म के अधिष्ठात्री देवता के रूप में बलदाऊ का वर्णन हरिवंशपुराण में है ।एक प्रसंग के अनुसार जब एक यादव भक्त यमुना जी के इस कुण्ड के जल में प्रवेश करके दिव्य भागवत मन्त्रों द्वारा

156

सोमवंशी ययाति पुत्र यदु बनाम सूर्य वंशी हर्यश्व पुत्र यदु ...

5 जुलाई 2020
0
0
0

महाभारत का सम्पादन बृहद् रूप पुष्यमित्र सुंग के शासन काल में हुआ ।भारत की प्राचीनत्तम ऐैतिहासिक राजधानी मगध थी ।जो आधुनिक विहार है ।मगध से विहार बनने के सन्दर्भ में ये तथ्य विदित हैं कि महात्मा बुद्ध के नवीनत्तम सम्प्रदाय पाषण्ड में जो नव दीक्षित श्रमण थे उनके आश्रमों को विहार कहा गया था ।पाषण्ड श

157

पुराणों में दो यदु हुए ययाति पुत्र और हर्यश्व पुत्र .. अहीर ययाति पुत्र यदु के वंशज हैं ।

6 जुलाई 2020
0
0
0

महाभारत की कथाऐं जन- किंवदंतियों पर आधारित आख्यानकों का बृहद् संकलन हैं।जिसे महर्षि व्यास के नाम पर सम्पादित किया गया और इसे जय संहिता का नाम दिया गया ।कोई भा मानवीय ग्रन्थ पूर्व दुराग्रह से रहित नहीं होता है ।दुराग्रह कहीं न कहीं मोह और हठों से समन्वित रूप से प्रेरित होते हैं ।और हठों और मोह दौनों'

158

दो यदु ,दो ययाति, दो नहुष जिसमें एक सूर्य के और एक सोम वंश के सूर्यवंश के अम्बरीष पुत्र नहुष , ययाति और हर्यश्व पुत्र यदु का अस्तित्व ही कल्पना प्रसूत है ।...

7 जुलाई 2020
0
0
0

यदु जब दो हैं । तो फिर अहीर कौन से यदु के वंशज यादव हैं ?ययाति और देवयानि के पुत्र यदु जो तुर्वशु के भाई हैं ।या इक्ष्वाकु वंशी राजा हर्यश्व और उनका पत्नी मधुमती के गर्भ से उत्पन्न यदु के वंशज यादव हैं !हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 37 श्लोक 41-45 पर वर्णन है कि⬇पुत्र की इच्छा रखने वाले

159

गोप कृष्ण की लीला .... हरिवशं पुराण

9 जुलाई 2020
0
0
0

गोपों अथवा अहीरों के साथ भारतीय ग्रन्थों में दोगले विधान कहीं उन्हें क्षत्रिय तो कहीं वैश्य तो कहीं शूद्र कहा गया यह शसब क्रमोत्तर रूप से हुआ ....____________________________________________इसी सन्दर्भ में हरिवशं पुराण में एक आख्यानक है ⬇एक बार जब कृष्ण हिमालय पर्वत के कैलास शिखर पर तप करने तथा भूत

160

यदु के लिए गोप और उनके वंशज गोप अहीर आदि नामों से जाने गये ...

10 जुलाई 2020
1
0
0

यादवों ने कभी वर्ण -व्यवस्था को नहीं माना ।कारण वह राजतंत्र की व्यवस्था का अंग थी और ये किसी के द्वारा परास्त नहीं हुए ।क्योंकि इनकी गोपों'की नारायणी सेना अजेय थी ।इसी नवीन भागवत धर्म की अवधारणा का भी जन्म हुआ था ।इसलिए ब्राह्मणों ने द्वेष वश अहीरों या यादवों को शूद्र वर्ण में निर्धारित करने की असफल

161

🌸– •यादव –यादव– यादव– यादव– यादव •–🌸

13 जुलाई 2020
0
0
0

यादव" भारत में ही नहीं अपितु पश्चिमी एशिया, मध्य अफ्रीका , तथा यूरोप का प्रवेश द्वार समझे जाने वाले यूनान तक अपनी धाक दर्ज कराने वाली आभीर जन-जाति का प्रतिनिधि समुदाय है। पारम्परिक रूप से इन्हें इनके वृत्ति (व्यवसाय) मूलक विशेषण के तौर पर गोप , गोपाल कहा जाता है ।यद्यपि वंशमूलक रूप से भारतीय पुराणों

162

कायस्थः कासाइट कार्थेज काशी और कशमीर तक ...

16 जुलाई 2020
0
0
0

भारतीय समाज ही नहीं अपितु विश्व के सम्पूर्ण मानव समाजों में संस्कृतियों की भित्तियाँ ( दीवारें) धर्म की आधार-शिलाओं पर प्रतिष्ठित हुईं । भाषा जो परम्परागत रूप से अर्जित सम्पदा है वह भी मानव समाजों के सांस्कृतिक , धार्मिक और व्यावहारिक जीवन के संवादों की संवाहिका रही है । संस्कृतियों 'ने समय के अन्तर

163

यादवों का इतिहास ...

22 जुलाई 2020
0
0
0

प्राय: कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा भ्रान्त -मति राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने के लिए महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह श्लोक उद्धृत करते हैं । ____________________________________ ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७। अर्था

164

शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति पर  एक प्रासंगिक विश्लेषण-   --------------------------------------------------------------

23 जुलाई 2020
0
0
0

  शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति पर  एक प्रासंगिक विश्लेषण-  --------------------------------------------------------------भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत शोध " यादव योगेश कुमार 'रोहि ' के द्वारा अनुसन्धानित.भारत में वर्ण व्यवस्था के नियामक शूद्रजातीया शब्द और इस नाम से सूचित जनज

165

ब्राह्मण बकरे के सजातीय वैश्य गाय के सजातीय क्षत्रिय भेड़े (मेढ़ा)के और शूद्र घोड़े के सजातीय है । अब बताओ सबसे श्रेष्ठ पशु कौन है ?

26 जुलाई 2020
0
0
0

कृष्ण यजुर्वेद तैत्तिरीय संहिता ७/१/४/९ में सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन है कि ______________________________________________प्रश्न किया श्रोता ने " यत्पुरुषं व्यदधु: कतिधा व्यकल्पयन् ?मुखं किमस्य कौ बाहू कावूरू पादा उच्येते ? 10/90/11जिस पुरुष का विधान क्या गया ?उसका कितने प्रकार कल्पना की गयी अर्थात

166

शूद्र ऐर आर्य शब्दों की अवधारणा इतिहास में ----

29 जुलाई 2020
0
0
0

  शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय--13 फरवरी 2018 | Yadav Yogesh kumar -Rohi- (324 बार पढ़ा जा चुका है) लेख शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय-- शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________🎠शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ --------------------------------

167

भरद्वाज के पिता

30 जुलाई 2020
0
0
0

भरत से पहले देशका नाम क्या हो सकता है?क्यों कि कुछ बातें तर्क की कषौटी पर खरी नहीं उतरती हैं ।भागवत पुराण और विष्णु पुराण में भरत ने ममता के पुत्र दीर्घतमा को अपना पुरोहित बनाकर अनेक अश्वमेध यज्ञ किये ।भागवत पुराण के नवे स्कन्ध के बीसवें अध्याय के श्लोकों तीस में में वर्णन है कि भरत ने दिग्विजय के

168

कृष्ण असुर क्यों ? कृष्ण का समय

20 सितम्बर 2020
0
0
0

पुरातत्तवेत्ता (अरनेष्ट मैके ) के प्रमाणों के अनुसार कृष्ण का समय ई०पू० 900 कुछ वर्ष पूर्व सिद्ध होता है ।कृष्ण को क्यों साढ़े पाँच हजार वर्ष प्राचीन घसीटा जाता हैसिन्धु घाटी की सभ्यता के उत्खनन के सन्दर्भ कृष्ण की यमलार्जुन वृक्षों में समन्वित उलूखल दामोदर मूर्ति की प्राप्त हुयी है जिसकी कार्बन

169

कृष्ण असुर क्यों ? कृष्ण का समय

20 सितम्बर 2020
1
0
0

पुरातत्तवेत्ता (अरनेष्ट मैके ) के प्रमाणों के अनुसार कृष्ण का समय ई०पू० 900 कुछ वर्ष पूर्व सिद्ध होता है ।कृष्ण को क्यों साढ़े पाँच हजार वर्ष प्राचीन घसीटा जाता हैसिन्धु घाटी की सभ्यता के उत्खनन के सन्दर्भ कृष्ण की यमलार्जुन वृक्षों में समन्वित उलूखल दामोदर मूर्ति की प्राप्त हुयी है जिसकी कार्बन

170

नवी सदी में तुर्कों और पठानों का ख़िताब था ”ठाकुर” ‘ताक्वुर’ (Tekvur) और भारत में राजपूतो साथ ठाकुर शब्द का सम्बन्ध ...

8 अक्टूबर 2020
0
0
0

नवी सदी में तुर्कों और पठानों का ख़िताब था ”ठाकुर” ‘ताक्वुर’ (Tekvur)_______________________________________तुर्कों और पठानों का खिताब था तक्वुर हिन्दुस्तानी भाषाओं मे विशेषत: व्रज भाषा में आने पर यह ठक्कुर हो गया यद्यपि संस्कृत पुट देने के लिए इसे ठक्कुर रूप में प्रतिष्ठित किया गया  ठाकुर  शब्द नवी

171

सनातन धर्म और सम्प्रदायों की रूप रेखा ...

12 अक्टूबर 2020
0
0
0

(प्रथम अध्याय)in 1550 Senturies, "goal, end, final point," from Latin terminus (plural termini) "an end, a limit, boundary line," from PIE *ter-men- "peg, post," from root *ter-, base of words meaning "peg, post; boundary, marker, goal" (source also of Sanskrit tarati "passes over, crosses over," ta

172

सनातन धर्म और सम्प्रदायों की रूप रेखा ...

12 अक्टूबर 2020
0
0
0

(प्रथम अध्याय)in 1550 Senturies, "goal, end, final point," from Latin terminus (plural termini) "an end, a limit, boundary line," from PIE *ter-men- "peg, post," from root *ter-, base of words meaning "peg, post; boundary, marker, goal" (source also of Sanskrit tarati "passes over, crosses over," ta

173

दुर्गा भारतीय और अशीरियन मिथकों में ...

20 अक्टूबर 2020
1
0
0

भारतीय पुराणों में दुर्गा को यदु वंश में उत्पन्न नन्द आभीर की पुत्री कहा गया है ये देवी यशोदा के उदर से जन्म धारण करती हैं हम आपको मार्कण्डेय पुराण से सन्दर्भ देते हैं देखें निम्न श्लोक ...वैवस्वते८न्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे शम्भो निशुम्भचैवान्युवत् स्येते महासुरौ |३७|______________________

174

देव संस्कृति और कृष्ण ...

28 अक्टूबर 2020
1
0
0

महानुभावों ! षड्यन्त्र सदीयों से प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक उपक्रियाओं के रूप में अपना विस्तार करते रहे हैं । जिसे जन साधारण भी सदा ही निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहा है ।यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दि

175

ऋग्वेद में असुर का अर्थ प्रज्ञावान और बलवान भी है ऋग्वेद में ही वरुण को महद् असुर कहा इन्द्र को भी असुर कहा है इन्द्र सूर्य और अग्नि भी असुर है और कृष्ण ो भी असुर कहा गया है

5 नवम्बर 2020
1
0
0

ऋग्वेद में असुर का अर्थ प्रज्ञावान और बलवान भी है ऋग्वेद में ही वरुण को महद् असुर कहा इन्द्र को भी असुर कहा है मह् पूजायाम् धातु से महत् शब्द विकसित हुआ वह जो पूजा के योग्य है फारसी जो वैदिक भाषा की सहोदरा है वहाँ महत् का रूप मज्दा हो गया है सूर्य को उसके प्रकाश और ऊर्जा के लिए वेदों में असुर कहा

176

गोप यादव और आभीर सदैव से एक वंश के विशेषण थे ...

19 दिसम्बर 2020
2
0
0

यादवों को गो पालक होनो से ही गोप कहा गया है |भागवत पुराण के दशम स्कन्ध के अध्याय प्रथम के श्लोक संख्या बासठ ( 10/1/62) पर वर्णित है|______नन्दाद्या ये व्रजे गोपा याश्चामीषां च योषितः । वृष्णयो वसुदेवाद्या देवक्याद्या यदुस्त्रियः ॥ ६२ ॥●☆• नन्द आदि यदुवंशीयों की वृष्णि की शाखा के व्रज में रहने वाले ग

177

यादवों के आदि पूर्वज...

22 दिसम्बर 2020
2
0
0

यादवों के इतिहास के सबसे बड़े विश्लेषक और अध्येता परम श्रृद्धेय गुरुवर सुमन्त कुमार यादव के श्री चरणों मे श्रृद्धानवत होते हुए यह यादवों के पूर्वज व यादव संस्कृति के प्रवर्तक  यदु का पौराणिक विवरण जिज्ञासुओं में प्रेषित है प्रस्तुति करण :-यादव योगेश कुमार रोहिसम्पर्क सूत्र 8077160219..._____________

178

पुङ्गव और उससे विकसित पौंगा शब्द का जीवन चरित-

27 अक्टूबर 2022
0
1
0

पुङ्गव और उससे विकसित पौंगा शब्द का जीवन चरित-आज कल टीवी चैनल वाले चाहे जिस पौंगा पण्डित को पकड़ लाते हैं और उसका परिचय धर्मगुरू अथवा शंकराचार्य कहकर सारी दुनियाँ से कराते हैं। उनकी ब

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए