आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर
जोकि (सत्रहवीं सदी ईस्वी) के संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार और भाष्य कार भी हैं ।
जो सम्पूर्ण महाभारत की टीका के लिए विशेष प्रख्यात हैं।
आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में राम और सीता के होने का वर्णन किया है।☣⬇
देखें---ऋग्वेद में सीता के लिए स्वसार (स्वसृ ) शब्द का प्रयोग- विदित हो कि स्वसार भारोपीय भाषाओं में (Sister) हो गया है ।
जब मनुष्यों में नैतिक रूप का सर्वथा अभाव था । तब यम और यमी के काल तक भाई -बहिन का सम्बन्ध पूर्व संस्कृतियों में पति पत्नी के रूप में भी विद्यमान थी परन्तु स्वसा शब्द भारोपीय मूल का है ।
संस्कृत भाषा में इसका व्युत्पत्ति- मूल इस प्रकार दर्शायी है ।
संस्कृत भाषा कोश कारों ने स्वसार (स्वसृ) शब्द की आनुमानिक व्युत्पत्ति- करने की चेष्टा की है । (सुष्ठु अस्यते क्षिप्यते इति ।
सु अस् “ सुञ्यसेरृन् । “ उणादि सूत्र २ । ९७ । इति ऋन् यणादेशश्च । भगिनी । इत्यमरःकोश । २। ६।२९ ॥
यूरोपीय भाषा परिवार मे स्वसृ का रूपान्तरण इन निम रूपों में हुआ।👇
Etymology व्युत्पत्ति :----
From Middle English sister, suster, partly from
2-Old Norse systir (“sister”) and partly from
3- Old English swustor, sweoster, sweostor (“sister, nun”); both from
4-Proto-Germanic *swestēr (“sister”), from
5-Proto-Indo-European (भारत - यूरोपीय ) swésōr (“sister”). Cognate with
6- Scots sister, syster (“sister”),
7- West Frisian sus, suster (“sister”),
8- Dutch zuster (“sister”),
9-German Schwester (“sister”),
10 Norwegian Bokmål søster (“sister”),
11- Norwegian Nynorsk and Swedish syster (“sister”),
12-Icelandic स्वीडन के भाषा परिवार से सम्बद्ध -systir (“sister”),
13-Gothic आद्य जर्मनिक -(swistar, “sister”),
14-Latin soror (“sister”),
15- Russian сестра́ - सेष्ट्रा (sestrá, “sister”),
15- Lithuanian sesuo -सेसॉ (“sister”),
15- Albanian (अलबेनियन रूसी परिवार की भाषा )
vajzë वाजे भगिनी तथा हिब्रू तथा अरब़ी भाषा में व़ाजी -बहिन ।
ये स्वसार के समानार्थक भगिनी के रूपान्तरण हैं। Sanskrit -स्वसृ (svásṛ, “sister”),
Persian अवेस्ता ए झन्द में स्वसार का रूपान्तरण خواهر (xâhar, -ज़हरा “
के रूप में है ।
संस्कृत भाषा में स्वसृ शब्द बहिन का अर्थक है।
मातरं वा स्वसारं वा मातुलां भगिनीं निजाम् ।
भिक्षेत भिक्षां प्रथमं या चैनं नावमानयेत् ॥ )
भगं यत्नः पित्रादीनां द्रव्यादानेऽस्त्यस्याः इनि ङीप् । १ सोदरायाम् स्वसरि अमरः ।
“भगिनीशुल्कं सोदर्य्याणाम्” दायभागः ।
२स्त्रीमात्रे च शब्दच० ३ भाग्यात्वितस्वीमात्रेऽपि तेन सर्वस्त्रीणां तत्पदेन सम्बोधन विहितम् ।
“परपत्नी च या स्त्री स्यादसम्बन्धाश्च योनितः ।
तां ब्रूयाद्भवतीत्येवं सुभगे भगिनीति च” मनुः स्मृति ।
अब बन्धु शब्द पर विचार करें :-- (बन्ध बन्धने “ शॄस्वृस्निहित्रपीति । “उणा० १ । ११ । इति उः प्रत्यय । ) स्नेहेन मनो बध्नाति यः बन्धु: तत्पर्य्यायः । १ सगोत्रः २ बान्धवः ३ ज्ञातिः ४ स्वः ५ स्वजनः इत्यमरःकोश । २ । ६ । ३४ ॥ दायादः ७ गोत्रः ८ । इति शब्दरत्नावली ॥
प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था।
कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है:
‘वैदेहि बन्धोर्हृदयं विदद्रे’।
अर्थात् वैदेहि (विदेह राजा जनक की पुत्री ने बन्धु राम को हृदय में धारण किया "
संस्कृत भाषा में बन्धु शब्द से समान भगिनी शब्द के भी दो अर्थ हैं भगिनी शब्द के व्यापक अर्थों का प्रकाशन संस्कृत साहित्य में कालान्तरण में --दो रूपों में हुआ भगिनी = पत्नी तथा भगिनी = बहिन (सहोदरा) ।
तात्पर्य्यायः- १स्वसा २ स्त्री । इत्यमरःकोश ।२ ।६।२९ ॥
कोश कारों ने काल्पनिक व्युत्पत्ति कर डाली हैं।
भगं यत्नः पित्रादितो द्रव्यदाने विद्यतेऽस्या इति इनिप्रत्ययेन भगिनी ।
इति तट्टीकायां भरतः ॥
(भगं योनिरस्या अस्तीति । भग इनिः डीप् ) स्त्रीमात्रम् ।
यथा -“ परिगृह्या च षामाङ्गी भगिनी प्रकृतिर्नरी ॥
“ इति शब्दचन्द्रिका ॥
यहाँ भगिनी शब्द स्त्री का वाचक है ।
प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था।
कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है:
‘वैदेहि बन्धोर्हृदयं विदद्रे’।
अर्थात् वैदेहि (विदेह राजा जनक की पुत्री ने बन्धु राम को हृदय में धारण किया "
संस्कृत भाषा में बन्धु शब्द से समान भगिनी शब्द के भी दो अर्थ हैं भगिनी शब्द के व्यापक अर्थों का प्रकाशन संस्कृत साहित्य में कालान्तरण में --दो रूपों में हुआ भगिनी = पत्नी तथा भगिनी = बहिन (सहोदरा) ।
तात्पर्य्यायः- १स्वसा २ स्त्री । इत्यमरःकोश ।२ ।६।२९ ॥
कोश कारों ने काल्पनिक व्युत्पत्ति कर डाली हैं।
भगं यत्नः पित्रादितो द्रव्यदाने विद्यतेऽस्या इति इनिप्रत्ययेन भगिनी ।
इति तट्टीकायां भरतः ॥
(भगं योनिरस्या अस्तीति । भग इनिः डीप् ) स्त्रीमात्रम् ।
यथा -“ परिगृह्या च षामाङ्गी भगिनी प्रकृतिर्नरी ॥
“ इति शब्दचन्द्रिका ॥
यहाँ भगिनी शब्द स्त्री का वाचक है ।
स्वयं ऋग्वेद के दशम् मण्डल के सूक्त तीन की ऋचा तीन में देखें सीता को
राम की स्वसार कहा है ।
( स्वसृ शब्द भारोपीय भाषा परिवार में (Sister ) के रूप में विकसित हुआ है ।
देखें---ऋग्वेद में सीता को लिए स्वसार (स्वसृ ) शब्द का प्रयोग- __________________________________________ भद्रो भद्रया सचमान आगात्स्वसारं जारो अभ्येति पश्चात्।
सुप्रकेतैर्द्युभिरग्निर्वितिष्ठन्रुशद्भिर्वर्णैरभि राममस्थात्॥ _________________________________________ (ऋग्वेद १०।३।३) भावार्थ: श्री रामभद्र (भद्र) सीता जी के साथ (भद्रया) [ वनवास के लिए ] तैयार होते हुए (सचमान ) दण्डकारण्य वन (स्वसारं) यहाँ पत्नी अर्थ में अथवा -बहिन ) दौनों अर्थों में ।
जब आये थे (आगात्) , तब (पश्चात ) कपट वेष में कामुक (जारो) रावण सीता जी का हरण करने के लिए आता है (अभ्येति ), उस समय अग्नि देव हीं सीता जी के साथ थे ।
( अर्थात स्वयं सीता माँ अग्नि में स्थित हो चुकी थी राम जी के कथन के अनुसार), अब रावण वध के पश्चात, देदीप्यमान तथा लोहितादी वर्णों वाली ज्वालाओं से युक्त स्वयं अग्नि देव हीं (सुप्रकेतैर्द्युभिरग्निर्वितिष्ठन्रुशद्भिर्वर्णैरभि) हीं शुभ-लक्षणों से युक्त कान्तिमयी सीता जी के साथ [सीता जी का निर्दोषत्व सिद्ध करने के लिए] श्री राम के सम्मुख उपस्थित हुए (राममस्थात्) | ________________________________________
उपर्युक्त ऋचा में सीता के लिए स्वसा शब्द है;
जो राम और सीता को भाई-बहिन मानने के लिए भ्रमित करता है ।
और यह वैदिक ऋचाओं में प्राचीनत्तम हैं मिश्र की पुरातन कथाओं में रेमेशिस तथा सीतामुन शब्द राम और सीता का ही रूपान्तरण हैं ।
यद्यपि मिश्र की संस्कृति में भाई-बहिन ही पति - पत्नी के रूप में राजकीय परम्पराओं का निर्वहन करते हैं ।
कदाचित प्राचीन काल में किन्हीं और संस्कृतियों में भी ऐसी परम्पराओं का निर्वहन होता हो।
यम और यमी सूक्त पर विचार विश्लेषण करना चाहिए
कि यमी यम से भाई होने पर भी
प्रणय नवेदन करती है ।
पाली भाषा में रचित जातकट्ठवण्णना के दशरथ जातक में राम और सीता की कथा का संक्षेप में भाई-बहिन के रूप में वर्णन है।
इन कथाओं के अनुसार दशरथ वाराणसी के राजा हैं दशरथ की बड़ी रानी की तीन सन्तानें थीं ।
राम पण्डित (बुद्ध) लक्खण (लक्ष्मण ) तथा एक पुत्री सीता जिसे वाल्मीकि-रामायण में सान्ता कर दिया गया है ।
दशरथ जातक के अनुसार राम का वनवास बारह वर्ष से लिए है ।
नौवें वर्ष में जब भरत उन्हें वापस लिवाने के लिए आते हैं तो राम यह कहकर मना कर देते कि मेरे पिता ने मुझे बारह वर्ष के लिए वनवास कहा था ।
________________________________________
अभी तो तीन वर्ष शेष हैं ।
तीन वर्ष व्यतीत होने पर राम पण्डित लौटकर अपना बहन सीता से विवाह कर लेते हैं ।
और सोलह हजार वर्ष ✍ तक राज्यविस्तार करने से वाद स्वर्ग चले जाते हैं ।
जिसमें वंश में महात्मा बुद्ध हुए थे; उस शाक्य (शाकोई) वंश में भाई-बहिन के परस्पर विवाह होने का उल्लेख मिलता है ।
क्योंकि मिश्र आदि हैमेटिक जन जातियाँ स्वयं को उक्कुसि (इक्ष्वाकु) और मेनिस (मनु) का वंशज मानती हैं उक्कुसि का वर्णन सुमेरियन राज-सूची में भी है।
जो कालान्तरण में सैमेटिक मिथकों में इश्हाक के रूप में दृष्टि गोचर होता है ।
यम - समुद्र का एक सीरियाई देवता जो मिस्र के कुछ ग्रंथों में दिखाई देता है ।
कालान्तरण इसे ही हेम रूप में मिश्र की सभ्यता का आदि पुरुष माना गया ।
इसी लिए यम और यमी के काल तक भाई-बहिन के विवाह की परम्पराओं के अवशेष मिलते हैं ।
जैन पुरा-कथाओं के अनुसार भोग-भूमियों में सहोदर भाई-बहिन के विवाह की स्थिर प्रणाली रही है ।
मिश्र में रेमेशिस तथा सीतामुन
मिश्र में रेमेशिस तथा सीतामुन शब्द राम और सीता शब्द के अवशेष हैं ।
वैदिक ऋचाओं में यम और यमी भाई-बहिन थे और ये सूर्य की सन्तानें थे ; और यमी यम से प्रणय याचना करती है ।
ऋग्वेद के दशम मण्डल का दशम -सूक्त यम-यमी सूक्त है।
इसी सूक्त के मन्त्र कुछ वृद्धि सहित तथा कुछ परिवर्तनपरक अथर्ववेद (18/1/1-16) में दृष्टिपथ होते हैं, अब विचारणीय है कि- यम-यमी क्या है?
अर्थात् यम-यमी किसको कहा । इस प्रश्न का उदय उस समय हुआ जब आचार्य सायणादि भाष्यकारों ने यम-यमी को भाई-बहन के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
इस अश्लील परक अर्थ को कोई भी सभ्य समाज का नागरिक कदापि स्वीकार नहीं कर सकता है।
परन्तु सृष्टि में सभ्यताओं का विकास तो अनैतिकताओं के धरातल से हुआ।
यम और मनु दौनों को भारतीय पुराणों में भाई भाई कहा है मनु भारतीय धरा की विरासत नहीं थे ।
और ना हि अयोध्या उनकी जन्म भूमि थी ।
वैसे भी आधुनिक थाइलेण्ड में अयोध्या है ।
और सुमेरियन बैबीलॉनियन संस्कृतियों में अयोध्या को अजेडा तथा दशरथ को तसरत राम को रॉम सीता को सिता कहा गया है ।
हम्बूरावी की विधि संहिता और गिलगमेश के महाकाव्य में ये अवशेष प्राप्त हैं ।
प्राचीन काल में एशिया - माइनर ---(छोटा एशिया), जिसका ऐतिहासिक नाम करण अनातोलयियो के रूप में भी हुआ है ।
यूनानी इतिहास कारों विशेषत: होरेडॉटस् ने अनातोलयियो के लिए एशिया माइनर शब्द का प्रयोग किया है ।
जिसे आधुनिक काल में तुर्किस्तान अथवा टर्की नाम से भी जानते हैं ।
.. यहाँ की पार्श्व -वर्ती संस्कृतियों में मनु की प्रसिद्धि उन सांस्कृतिक-अनुयायीयों ने अपने पूर्व- जनियतृ ( Pro -Genitor )के रूप में स्वीकृत की है !
मनु को पूर्व- पुरुष मानने वाली जन-जातियाँ प्राय: भारोपीय वर्ग की भाषाओं का सम्भाषण करती रहीं हैं । वस्तुत: भाषाऐं सैमेटिक वर्ग की हो अथवा हैमेटिक वर्ग की अथवा भारोपीय , सभी भाषाओं मे समानता का कहीं न कहीं सूत्र अवश्य है ।
जैसा कि मिश्र की संस्कृति में मिश्र का प्रथम पुरूष जो देवों का का भी प्रतिनिधि था , वह मेनेस्- (Menes)अथवा मेनिस् "Menis" संज्ञा से अभिहित था मेनिस ई०पू० 3150 के समकक्ष मिश्र का प्रथम शासक था !
और मेंम्फिस (Memphis) नगर में जिसका निवास था , मेंम्फिस प्राचीन मिश्र का महत्वपूर्ण नगर जो नील नदी की घाटी में आबाद है ।
तथा यहीं का पार्श्वर्ती देश फ्रीजिया (Phrygia)के मिथकों में मनु का वर्णन मिअॉन (Meon)के रूप में है ।
मिअॉन अथवा माइनॉस का वर्णन ग्रीक पुरातन कथाओं में क्रीट के प्रथम राजा के रूप में है , जो ज्यूस तथा यूरोपा का पुत्र है ।
और यहीं एशिया- माइनर के पश्चिमीय समीपवर्ती लीडिया( Lydia) देश वासी भी इसी मिअॉन (Meon) रूप में मनु को अपना पूर्व पुरुष मानते थे। इसी मनु के द्वारा बसाए जाने के कारण लीडिया देश का प्राचीन नाम मेअॉनिया Maionia भी था ।
ग्रीक साहित्य में विशेषत: होमर के काव्य में --- मनु को (Knossos) क्षेत्र का का राजा बताया गया है कनान देश की कैन्नानाइटी(Canaanite ) संस्कृति में बाल -मिअॉन के रूप में भारतीयों के बल और मनु (Baal- meon)और यम्म (Yamm) देव के रूप मे वैदिक देव यम से साम्य विचारणीय है-
यम: यहाँ भी भारतीय पुराणों के समान यम का उल्लेख यथाक्रम नदी ,समुद्र ,पर्वत तथा न्याय के अधिष्ठात्री देवता के रूप में हुआ है ;
कनान प्रदेश से ही कालान्तरण में सैमेटिक हिब्रु परम्पराओं का विकास हुआ था ।
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भद्रो भद्रया सचमान आगात्स्वसारं जारो अभ्येति पश्चात्।
सुप्रकेतैर्द्युभिरग्निर्वितिष्ठन्रुशद्भिर्वर्णैरभि राममस्थात्॥ _________________________________________
(ऋग्वेद १०।३।३) भावार्थ: श्री रामभद्र (भद्र) सीता जी के साथ (भद्रया) [ वनवास के लिए ] तैयार होते हुए (सचमान ) दण्डकारण्य वन (स्वसारं) यहाँ पत्नी अर्थ में अथवा -बहिन ) दौनों अर्थों में ।
जब आये थे (आगात्) , तब (पश्चात ) कपट वेष में कामुक (जारो) रावण सीता जी का हरण करने के लिए आता है (अभ्येति ), उस समय अग्नि देव हीं सीता जी के साथ थे ।
( अर्थात स्वयं सीता अग्नि में स्थित हो चुकी थी राम के कथन के अनुसार), अब रावण वध के पश्चात, देदीप्यमान तथा लोहितादी वर्णों वाली ज्वालाओं से युक्त स्वयं अग्नि देव हीं (सुप्रकेतैर्द्युभिरग्निर्वितिष्ठन्रुशद्भिर्वर्णैरभि:)
शुभ-लक्षणों से युक्त कान्तिमयी सीता जी के साथ [सीता जी का निर्दोषत्व सिद्ध करने के लिए] श्री राम के सम्मुख उपस्थित हुए (राममस्थात्) | ________________________________________
उपर्युक्त ऋचा में सीता के लिए स्वसा शब्द है;
जो राम और सीता को भाई-बहिन मानने के लिए भ्रमित करता है ।
और यह वैदिक ऋचाओं में प्राचीनत्तम हैं ; मिश्र की पुरातन कथाओं में रेमेशिस तथा सीतामुन शब्द राम और सीता का ही रूपान्तरण हैं ।
शब्दार्थ व्याकरणिक विश्लेषण :-
भद्र:- प्रथमा विभक्ति कर्ता कारक( भजनीयो ) ।
भद्रया - तृतीय विभक्ति करण कारक( भजनीयया-सीतया)सीता के द्वारा ।
सचमान:- सच् धातु आत्मनेपदीय रूप में शानच् प्रत्यय (विवाह विधिना संगतो वनं प्रति अनुगम्यमानश्च - विवाह विधि द्वारा संयुक्त होकर वन गमन के लिए अनुगामी ) ।
आगात:- गम् धातु लुंगलकार ( तेषु वनेषु विचरन् पञ्चवट्यां समागत:(चित्रकूटआदि अनेक वनों में वितरण करते हुए पञ्चवटी आ पहुँचे) ।
पश्चात् -( रामे लक्ष्मणे च मायामृग व्याजेन स्थानान्तरिते)
माया मृग मारीच द्वारा राम और लक्ष्मण दौंनों के स्थानान्तरित हो जाने के बाद ) ।
जार :- ( परस्त्री दूषक: ( परायी स्त्रीयों का सतीत्व भंग करने वाला अर्थात् रावण)
स्वसारं :- ( भगिनीं)बहिन अथवा पत्नी !
रामाश्रमम् :-(राम के आश्रम में अभ्येति:-( प्रप्नोति) पहुँचता है ।
सुप्रकेतैर्द्युभि:- तृतीय विभक्ति बहुवचन ( समुज्जवल तेजोभिरुपलक्षिता सीताम्
( पातिव्रत्य की तेजस्विता से देदीप्यमान सीता के लेकर )
उषद्भिर्वर्णै: तृतीय विभक्ति बहुवचन कान्तियुक्तवर्णोपलक्षित: (कान्ति युक्त वर्ण से युक्त )
अग्नि : प्रथमा विभक्ति कर्ता कारक -अग्नि ने ।
रामम् अभ्यस्थात् -( राम के सामने उपस्थित हुए
भाष्य कार के अनुसार ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत निन्यानवैं वें सूक्त में भी विशद रूप में राम कथा का वर्णन है!
इस सूक्त के द्रष्टा "वग्रा" ऋषि हैं ।
जिनका ही दूसरा नाम वाल्मीकि है ।
भाष्य कार ने उक्त सूक्त की व्याख्या राम के चरित्र से सम्बद्ध की है ।
ऋग्वेद 10/99/2 के अनुसार भी राम चरित्र है ! जो इस प्रकार है ।⚛⏬
स हि द्युता विद्युता वेति सामं पृथुयोनिम् असुरत्व आससाद।
स सनीडेभि: प्रहसनो अस्य भर्तुर्नऋते सप्तथस्य माया:।। ऋग्वेद 10/99/2
(स हि ):- वही राम (द्युता) :- द्योतमान अपनी अभिव्यक्ति के द्वारा ( विद्युता :- विशेष प्रकाशमान माया शक्ति से ( सामम् :- राक्षसीय उपद्रवों के समन के लिए ) वा एति - बहुलता से अवतरित होता है (रावण) ।
असुरत्वात् - आसुरी यौनि के कारण !
पृथुयोनिम् -( पृथ्वी से उत्पन्न होने वाली सीता को )
आससाद ( उड़ा ले गया, गमन करले गया ) ।♿
सद् धातु लिट सकार ( अनन्द्यतन परोक्ष भूत काल )
सद् गतौ विशरणे अवसादनेषु ।
स: वह राम ।
सनीडेभि: - समान लोक वासीयों को
( अस्यभर्तु: ) इनके स्वामीयों सहित ।
प्रसहान: -कष्टों को सहन करते हुए ।
सप्तथस्य - विष्णु परम्परा में समावेशित ब्रह्मा, कश्यप, मरीचि, पुलस्त्य, विश्रवा और रावण।
सातवें व्यक्ति की (माया ) कूटनीति का प्रभाव (ऋते -सत्य पर ।
न - नहीं हुआ।
ऋग्वेद संहिता 10/99/5 के अनुसार आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर का भाष्य इस प्रकार है ⏬
स रूद्रेभिरशस्तवार ऋभ्वा हित्वी गयमारे अवद्य आगत् वम्रस्य मन्ये मिथुना विक्त्री अन्नमभीत्यारोदयन् मुषायन् ।।
अर्थ:- स: (वह राम ) रूद्रेभिर् ( रूद्र अंश हनुमान आदि की सहायता से )
आरे अवद्य- अग्नि अग्नि परीक्षा द्वारा ।
ऋभ्वा - सत्य से भासमान सीता सहित।
गयम् - अपने गन्तव्य को ।
आगात - आगये ।
पश्चात् -अस्तवारो हित्वी - रजक निन्दा के कारण त्याग दी गयी ।
वम्रस्य - वाल्मीकि के ।
मिथुने - यमल शिष्य लव- कुश ।
विक्त्री - (रामायण ग्रन्थ के) विवरण करने वाले हुए।
मन्ये - एेसा मानता हूँ।
मुषायन् :- तस्कर रावण ने चुराते हुए ।
अन्नम् - भूमिजा सीता को ।
अभीत्य - जाकर चुराया ।
एैसे मिथ्या अपवाद के कारण सीता परित्यक्ता सीता ।अरोदयत् - रुदन करता थी ।
यह व्याकरणिक विश्लेषण से समन्वित व्याख्या है ।
राम की वर्णन वस्तुत पश्चिमीय एशिया की -पुरातन कथाओं में ही है ।
’पूर्व-इस्लामी ईरान में एक पवित्र नाम था ; राम ।
आर्य राम- अनना दारियस-प्रथम के प्रारंभिक पूर्वज थे जिसका सोना का टैबलेट पुरानी फ़ारसी में एक प्रारंभिक दस्तावेज़ है;।
राम जोरास्ट्रियन कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण नाम भी है; राम- यश राम और वायु को समर्पित है,
संभवतः हनुमान की एक प्रतिध्वनि; कई राम-नाम पर्सेपोलिस (ईरान शहर) में पाए जाती है ।
राम बजरंग फारस की एक कुर्दिश जनजाति का नाम है। फ्राइ लिस्ट [xvi] राम-नामों के साथ कई ससैनियन शहर: राम अर्धशीर, राम होर्मुज़, राम पेरोज़, रेमा और रुमागम।
राम-सहस्त्रानन सूरों की प्रसिद्ध राजधानी थी।
राम-अल्ला यूफ्रेट्स पर एक शहर है और फिलिस्तीन में भी है। _________________________________________
उच्च प्रामाणिक सुमेरियन राज-सूची में राम और भरत दौनों का वर्णन भाई भाई के रूप में है।
सौभाग्य से, सुमेरियन इतिहास का एक अध्ययन राम का एक बहुत ही ज्वलंत और मांस और रक्त का चित्र प्रदान करता है।
उच्च प्रामाणिक सुमेरियन राज-सूची में भरत (वरद-सिन Warad sin) और (Ram sin)राम सिन जैसे पवित्र नाम दिखाई देते हैं।
जो लारसा के शासक हैं ।
हम्मू-रावी के समकालिक उसके प्रतिद्वन्द्वी हैं ।
हम्मू-रावी शम्भु - रावण का रूपान्तरण है ।
सिन (सोम) -चंद्रमा का प्रतिरूप होने से चंद्र देवता थे और can रिम ’के लिए क्यूनिफॉर्म प्रतीक के रूप में’ राम ’के रूप में भी पढ़ा जा सकता है,
राम सिन राम चंद्र के समान है।
सुमेरियन ग्रंथों में राम-सिन को एलाम से सम्बन्धित कहा गया है जो उन्हें भारत-ईरान से जोड़ता है।
राम मेसोपोटामिया के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले सम्राट थे ; जिन्होंने 60 वर्षों तक शासन किया।
भरत सिन ने 12 वर्षों तक शासन किया (1834-1822 ई.पू.), जैसा कि दशरथ जातक में भी भरत के विषय में कहा गया है।
जातक का कथन है कि "साठ बार सौ, और दस हज़ार से अधिक, सभी को बताया, / प्रबल सशस्त्र राम ने" केवल इसका मतलब है कि राम ने साठ वर्षों तक शासन किया, जो अश्शूरियों असुरों के आंकड़ों से बिल्कुल सहमत हैं।
______________________________________
🌃 अयोध्या सरगोन की राजधानी अजाडे (अजेय) हो सकती है ; जिसकी पहचान अभी तक नहीं हुई है।
यह संभव है कि एजेड डेर या हार्ट के पास हरायु (हरू) या सरयू के पास था। ।
डी० पी० मिश्रा जैसे विद्वान इस बात से अवगत थे कि राम हेरात क्षेत्र से सम्बन्धित हो सकते हैं।
प्रख्यात भाषाविद् सुकुमार सेन ने भी यह कहा कि राम अवेस्ता में एक पवित्र नाम है जहां उनका उल्लेख वायु के साथ किया गया है।
राम को कुछ ग्रंथों में राम मार्गवेय कहा जाता है, जिसमें से डॉ० सेन ने निष्कर्ष निकाला था कि वे मारिजुआना से सम्बन्धित हैं।
कैम्ब्रिज प्राचीन इतिहास में भारतीय प्राचीन इतिहास से संबंधित अमूल्य जानकारी शामिल है।
सुमेरियन अभिलेख सिंधु युग की पहली तारीख प्रस्तुत करते हैं -हम्बूरावी (रावण )के साथ युद्ध 1794 ईसा पूर्व में हुआ था।
इस तथ्य का महत्व राम-सिन के शासनकाल (60 वर्ष) में सुमेरियन इतिहास में सबसे लंबे समय तक रहा था, यह तथ्य अधिकांश लेखकों पर से खो गया है।
सुमेरियन इतिहास में दो राम-सिन हैं।
प्रथम और द्वित्तीय !
बाइबल के पुराने नियम में रघुपति राम, हैं हालांकि आर० थापर जैसे इतिहासकारों के अनुसार, बाइबल भारतीय इतिहास में अप्रासंगिक है,।
इसका एक सावधानीपूर्वक अध्ययन रघुपति राम (लगुमल) के बारे में अमूल्य जानकारी प्रदान करता है ;
जो हम्हें ऐैतिहासिक समीकरणों तो हल करने में उत्साहित करते हैं ।
पुराने नियम में एक उत्पत्ति कहानी इस प्रकार है:
"उस समय शिनार के आम्रपाल राजा, एलासर के अरोच राजा, एलाम के केदोरलोमेर राजा और गोइल के राजा टाइडल, गोमोराह के बिरशा राजा, सदोम के बेरा राजा के खिलाफ युद्ध में गए थे।
अदम्ह का राजा शिनब, ज़ेबियोइम का किन्नर राजा, और बेला का राजा (जो कि ज़ोअर है)।
सभी का संगम होता है ।
"आम्रपाल की व्याख्या ज्यादातर विद्वानों द्वारा हम्मुराबी-इलू के संकुचन के रूप में की जाती है,
लेकिन लारसा (सुमेरियन शहर) के एरोच राजा और एलाम के राजा केदोरलोमेर के नामों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने की आवश्यकता है।
यह नाम कुदुर-लहगूमल के अनुरूप प्रतीत होता है, जो तीन दिवंगत बेबीलोन की किंवदंतियों में होता है, जिनमें से एक काव्य रूप में है।
कुदुर-लहगूमल के अलावा, इनमें से दो टेबलेटों में दुरमा-इलानी के बेटे एरी-अकु का भी उल्लेख है।
और उनमें से एक का अर्थ तुधुल (क) या ज्वार है जो बाइबिल परंपरा की सत्यता को साबित करता है। ________________________________________
दूर्मा नाम में वैदिक धर्म की प्रतिध्वनि है और भारतीय इतिहास से संबंधित हो सकती।
यह यूनानीयों में टर्म और रोमनों में टर्मीनस तथा ईरानीयों दार के रूप में था ।
द बैम्बिलियन टेक्सस के दुरमा-इलानी, दशरथ थे,
राम के पिता "कुदुर माबूक" को अक्सर साहित्य में एक आदिवासी शेख के रूप में वर्णित किया जाता है।
शेख शब्द को अधिक उपयुक्त रूप से साका (साक्य)द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए जो उसे इंडो-ईरानी या इंडो-आर्यन वर्ग से जोड़ता है।
यह इस तथ्य से संबंधित है कि गोतम बुद्ध को शाक्य कहा जाता था।
यही कारण है कि बौद्धों ने राम को अपना नायक माना, हालांकि सर हेरोल्ड बेली जैसे विद्वानों ने इसे शुद्ध धर्मवाद के रूप में माना है।
माबूक शब्द का संबंध महाभाष्य से भी है।
यह उल्लेख किया जा सकता है कि गोैतम को एक भगवान कहा जाता था जो बागापा के बेबीलोनियन शीर्षक से मेल खाता है।
यह दुर्मह-इलानी नाम के महत्व पर प्रकाश डालता है। कुछ बाद के मितानियन (वैदिक रूप मितज्ञु) राजाओं का (तुसरत) नाम दशरथ की प्रतिध्वनि प्रतीत होता है।
मार्गरेट एस० ड्रावर ने तुसरत के नाम का अनुवाद 'भयानक रथों के मालिक' के रूप में किया है!
लेकिन यह वास्तव में 'दशरथ रथों का मालिक' या 'दस गुना रथ' हो सकता है, जो दशरथ के नाम की गूँज है।
दशरथ ने दस राजाओं के संघ का नेतृत्व किया।
इस नाम में आर्यार्थ जैसे बाद के नामों की प्रतिध्वनि है। सीता ऋग्वेद के दशम मण्डल के तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में हैं _________________________________________
राम नाम के एक असुर (शक्तिशाली राजा) को संदर्भित करता है,
लेकिन कोशल का कोई उल्लेख नहीं करता है ; वास्तव में कोसल नाम शायद सुमेरियन शहर (खस-ला) था।
और सुमेरियन अभिलेखों के मार-कासे (बार-कासे) के अनुरूप हो सकता है।
वह बाली ईरान का राजा था जिसे भुला दिया गया है। सुमेरियन मिथक में,
बल्ह (बल्ली) इटाणा के बेटे ने 400 वर्षों तक किश पर शासन किया।
रामायण में भी किष्किन्ध्य (किश-खंड;) सुग्रीव की राजधानी थी? यह बाली का भाई था
Ilu-मा-Ilu, महाकाव्य के हनुमान, एक मारुत या अमोराइट थे ।
इलू ’के लिए क्यूनिफॉर्म प्रतीक के रूप में also ए’ के रूप में भी पढ़ा जा सकता है, इलू-मा-इलू नाम जो हम्मू-रावी वंश का एक विरोधी था वह हनुमान के रूप में भी पढ़ा जा सकता है।
जोना ओट्स ने इसका नाम इलिमन भी लिखा है जो इसका समर्थन करता है।
वानरों के नेता हनुमान को मारुति कहा जाता है, जो उन्हें सुमेरियन ग्रंथों के मार्तस या मारुत से जोड़ सकता है।
मार्तस आधुनिक लेखकों के एमोराइट थे।
सबसे प्रसिद्ध अमोराइट हम्मुराबी था जो इलिमान या हनुमान का दूर का परिजन रहा होगा।
मरुतों (एमोराइत) के मूल चरित्र, वैदिक इंद्र के व्यक्तिगत परिचारकों के बीच प्रमुख प्रारंभिक वैदिक साहित्य में अस्पष्ट और छायादार झलक है।
मारुत वैदिक देवता रुद्र से जुड़े थे और कहा जाता है कि वे मृत्यु के दूत थे, उनका नाम मूल उमर से लिया गया था, मरने के लिए।
मरुतों को तूफ़ान-देवता कहा जाता था।
रावण, द ग्रेट लॉ-मेकर हम्मू-रावी था, मुबलित का बेटा अगर राम-सिन को राम के रूप में पहचाना जाता है, तो उसके सबसे बड़े अमोराइट शत्रु हम्मुरावी रावण या
रवि-अन्ना होना चाहिए।
यह कुछ कठिनाइयों को प्रस्तुत करता है,
हालांकि वाल्मीकि द्वारा सीता के अपहरण के संस्करण का शायद इतिहास की तुलना में काव्यात्मक कल्पना से अधिक प्रस्यूत किया गया है।
राम की पत्नी
हालाँकि, वह उर में चाँद-मंदिर की मुख्य पुजारी थीं जो राजनीतिक रूप से अशांत युग की कुछ घटनाओं के मूल में रही होंगी।
ऐसी संभावना है कि किसी समय "उर" को हम्मुराबी ने ग्रहण कर लिया था ।
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प्रस्तुति करण यादव योगेश कुमार "रोहि"