गूजरों से राजपूत संघ तक .... गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज....
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यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है।
चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं ।
अठारह वीं सदी तक सम्पादित भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व के अनुसार अशोक के पुत्रों के समय राजस्थान के आबू पर्वत पर कान्यकुब्ज(कन्नौज ) के ब्राह्मणों द्वारा ब्रह्म-होम( यज्ञ) किया और उसमें वेद मन्त्रों के प्रभाव से चार क्षत्रिय उत्पन्न हुए।
इनमें चौहान वंश भी एक था ।
वारगाथा काल के कवि चन्द्रवरदाई भी पृथ्वीराजरासो में चौहानों की उत्पत्ति आबू पर्वत की यज्ञ से बताते हैं ।
विदेशी विद्वान कुक आदि 'ने यज्ञ से उत्पन्न होने का तात्पर्य निर्धारण किया है कि यज्ञ से विदेशियों को शुद्ध कर हिन्दू बनाया जाना अतः ये विदेशी थे ।
प्राचीनकाल में भारतीय संस्कृति के अनुसार यज्ञ किये जाते थे और यज्ञ के रक्षक को क्षत्रिय के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता था ।
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(क्षतस्त्रायते त्रै क पञ्चमी तत्पुरुष ( विनाशक से रक्षा करता है ) क्षद--संभृतौ कर्त्तरि त्र वा अर्द्धर्चा० ।
१ क्षत्रिये “यस्य व्रह्म च क्षत्त्रं च उमे भवति ओदनः” श्रुतिः “यत्र ब्रह्म च क्षत्त्रञ्च सम्यञ्चौ चरतः सह” यजुर्वेद२० । २५ ।
“क्षत्त्रं क्षतयजातिः” – “क्षतात् किल त्रायते इत्युग्रः क्षत्त्रस्य शब्दोभुवनेषु रूढः” रघुवंश महाकाव्य ।
अत्र मल्लिनाथ टीका “क्षणु हिंसायामिति धातोः सम्पदादित्वात् क्विप् गमादीनामिति वक्तव्यादनुनासिकलोपे तुगागमे च क्षदिति रूपं सिद्धम् क्षतः न शात् त्रायते इति क्षत्त्रः सुपीति योगविभागात् कः ।
तामेतां व्युत्पत्तिं कविरर्थतोऽनुक्रामति क्षतादित्यादिना ।
उदग्रः उन्नतः क्षत्त्रस्य क्षत्त्रवर्णस्य वाचकः शब्दः
क्षत्त्रशब्द इत्यर्थः क्षतात् त्रायते इति
अर्थात् जो विनाश ( क्षद् ) से रक्षा (त्राण ) करता है वही क्षत्रिय या क्षत्त्र है ।
अतः संभव लगता है आबू पर्वत पर जो अशोक के पुत्रों के समय यज्ञ किया गया उनमें चार क्षत्रिय वीरों को यज्ञ रक्षा के लिए तैनात किया गया ताकि यज्ञ में विघ्न न हो या वैदिक धर्म के अनुसार चलने वाले क्षत्रिय (व्रात्य) या सम्भवत: बौद्धधर्म मानने वाले चार क्षत्रियों को यज्ञ द्वारा वैदिकधर्म का संकल्प कराया होगा।
इन क्षत्रियों के वंशज आगे चलकर उन्हीं के नाम से चौहान, परमार, प्रतिहार, चालुक्य हुए ।
कुक आदि का विचार है कि विदेशी लोगों को शुद्ध किया गया,
यद्यपि सूर्य वंश और चन्द्र वंश की भारतीय मिथकों में जो परिकल्पना की गयी उसका मूलाधार साम और हैं का ही वंश है ।
जो एब्राहम के पुत्र थे ।🌸
सूर्यवंश या अग्नि वंश के उपवंश चौहानवंश में राजा विजयसिंह हुए डॉ. परमेश्वर सोलंकी का हरपालीया कीर्तिस्तम्भ का मूल शिलालेख सम्बन्धी लेख (मरू भर्ती पिलानी) अचलेश्वर शिलालेख (विक्रम संवत् 1377) है जिसमेंचौहान आसराज के प्रसंग में लिखा है –
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राघर्यथा वंश करोहिवंशे सूर्यस्यशूरोभूतिमण्डलाग्रे |
तथा बभूवत्र पराक्रमेणा स्वानामसिद्ध: प्रभुरामासराजः | 16 ||
अर्थात पृथ्वीतल पर जिस प्रकार पहले सूर्यवंश में पराक्रमी (राजा) रघु हुआ, उसी प्रकार यहाँ पर (इस वंश) में अपने पराक्रम से प्रसिद्ध कीर्तिवाला आसराज (नामक) राजा हुआ |
इन शिलालेखों व साहित्य से मालूम होता है कि चौहान सूर्यवंशी रघु के कुल में थे ।
'परन्तु यह मात्र एक स्थापना ही है सूर्य या रघु वंश का सत्य अभी भी अन्वेषणीय है ।
हमीर महाकाव्य, और अजमेर के शिलालेख आदि भी चौहानों को सूर्यवंशी ही सिद्ध करते है।
अग्नि से सूर्य की तरफ अग्रसर हो गया ये वंश ।
(अ) राजपूताने चौहानों का इतिहास प्रथम भाग- ओझा पृ. 64 (ब) हिन्दू भारत का उत्कर्ष सी. वी. वैद्य पृ. 147) इन आधारों पं० गौरीशंकर ओझा, सी. वी. वैद्य आदि ने चौहानों को सूर्यवंशी क्षत्रिय सिद्ध किया है।
(हिन्दू भारत का उत्कर्ष पृष्ठ संख्या 140)
'परन्तु यह तथ्य भी पूर्ण रूप से प्रमाणित नहीं है ।
क्योंकि चौहान शब्द 🌸 भारत में लगभग चतुर्थ सदी में उदय हुआ है ।श्वेत- हूणों को चाउ-हूण के नामान्तरण से भी सम्बोधित किया गया है । यूरोपीय इतिहास म चाउ-हूण चोल या चॉहल्स के वंशज हैं ।चौहल्स नाम लेबनान, इज़राइल और मध्य एशियाई देशों के मूल निवासीयों में भी पाया जाता है।
यही वह अवधि थी जब चहल गजनी क्षेत्र में ज़बुलिस्तान पर कब्जा कर रहे थे। वंश मध्य एशियाई है और मूल निवासी के साथ अंतःक्रिया के कारण यह भारतीय, ईरानी और तुर्की है।
इस चौहान शब्द का प्रयोग आज भी विभिन्न देशों में विभिन्न जातियों में प्रचलित है ।
जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात , पाकिस्तान, कन्या ,कनाडा ,औमान , फिजी ,आदि ।
चाउ-हूण कबीले के लोग चतुर्थ सदी में कैस्पीयन समुद्र के पूर्व में वस गये थे ।
भारत में लगभग छठवीं और सातवीं सदी में इनका ऊ़भारत में आगमन भी हुआ।
भारत में चौहानो का प्राचीन इतिहास का प्रारम्भ...👇
चौहानों के राज्य :-
1. अजमेर राज्य :-
पृथ्वीराज प्रथम के पुत्र अजयराज हुए ; उन्होंने ही उज्जैन पर आक्रमण कर मालवा के परमार शासक नरवर्मन को पराजित किया था ।
अपनी सुरक्षा के लिए उन्होनें विक्रम संवत् 1113 से 1170 के लगभग अजमेर नगर की स्थापना की
यही से सांभर-अजमेर राजवंश का उदय हुआ
जिसमे वासुदेव प्रथम राजा थे ।👇
१-वासुदेव२-सामंत३-नरदेव४-जयराज ५-विग्रहराज ६-चन्द्रराज (प्रथम)७-गोपेन्द्रराज (प्रथम)८-दुर्लभराज ९-गोपेन्द्रराज (गुहक)
१०-चन्द्रराज (चन्दनराज)
११-गुहक
१२-चन्द्रराज
१३-वाक्पतिराज (प्रथम)
१४-सिंहराज
१५-सिंहराज (950)
१६-विग्रहराज द्वितीय (973)
१७-दुर्लभराज (973-997)
१८-गोविन्दराज
१९-वाक्पतिराज
२०-वीर्यराज
२१-चामुंडराज
२२-सिंहट
२३दुर्लभराज (1075-1080)
२४-विग्रहराज (1080-1105)
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✍२५-पृथ्वीराज | (1105-1113)
२६-अजयराज (1113-1133)
२७-अर्णोराज (1133-1151)
२८-विग्रहदेव (विसलदेव)(1152-1163)
२९-अपर गांगये (1163-1166)
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✍३०-पृथ्वीराज (1167-1169)
३१-सोमेश्वर (1170-1177)
३२-पृथ्वीराज (1179-1192)
३३-गोविन्दराज (1192-)
३४-हरिराज (1192-1194)
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2. रणथम्भौर राज्य :-👇
पृथ्वीराज चौहान (सन् 1166-1192) गुर्जरों के चाउ-हूण कबीले के ही राजा थे
–जिन्होंने 12 वीं सदी के उत्तरार्ध में राजस्थान(अजमेर) और दिल्ली पर राज्य किया।
रासो ग्रन्थों में पृथ्वीराज को 'राय पिथौरा' भी कहा गया है।
वह गुर्जर के चौहान गौत्र के प्रसिद्ध राजा थे।
पृथ्वीराज चौहान का जन्म अजमेर राज्य के वीर गुर्जर महाराजा सोमश्वर के यहाँ हुआ था।
उनकी माता का नाम कपूरी देवी था जिन्हेँ पूरे बारह वर्ष के बाद पुत्र रत्न कि प्राप्ति हुई थी।
पृथ्वीराज के जन्म से राज्य मेँ राजनीतिक खलबली मच गई उन्हेँ बचपन मेँ ही मारने के कई प्रयत्ऩ किए गए पर वे बचते गए। पृथ्वीराज चौहान जो कि मूलत: गुर्जर ही थे बचपन से ही तीर और तलवारबाजी के शौकिन थे।
उन्होँने बाल अवस्था मेँ ही शेर से लड़ाई कर उसका जबड़ा फार डाला।
पृथ्वीराज के जन्म के समय ही महाराजा सोमेश्वर को एक अनाथ बालक मिला जिसका नाम चन्दबरदाई रखा गया।
जिसे कविताऐं लिखने का शौक था ; चन्दबरदाई और पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही अच्छे मित्र और भाई के समान व्यवहार करते थे।
पृथ्वीराज की ननिहाल दिल्ली में ही थी ।
दिल्ली नामकरण भी दिल्लों नाम के गुर्जर या जाट राजाओं के आधार पर हुआ ।
इस समय दिल्ली में अनंगपाल तंवर गुर्जर राजा शासन करते थे ।
जो पृथ्वीराज के नाना थे ।
पृथ्वीराज को नाना से विरासत में दिल्ली का राज्य भी मिल गया ।
उसके अधिकार में दिल्ली से लेकर अजमेर तक का विस्तृत भूभाग था।
पृथ्वीराज ने अपनी राजधानी दिल्ली का निर्माण नये सिरे से किया। तोमर नरेश ने एक गढ़ के निर्माण का शुभारंभ किया था, जिसे पृथ्वीराज ने सबसे पहले इसे विशाल रूप देकर पूर्ण किया।
वह उनके नाम पर पिथौरागढ़ कहलाता है औरआज भी दिल्ली के पुराने क़िले के नाम से जीर्णावस्था में विद्यमान है।
कई इतिहासकारों के अनुसार अग्निकुल गुट मूल रूप से गुर्जर थे और चौहान गुर्जर के प्रमुख कबीले था।
चौहान गुर्जर के चेची कबीले से मूल निकाले जाते हैं।
बंबई गजेटियर के अनुसार चेची गुर्जर ने अजमेर पर 700 साल राज किया।
इससे पहले मध्य एशिया में तारिम बेसिन (झिंजियांग प्रांत) के रूप में जाना जाता क्षेत्र में रहते थे।
वहाँ से (Chu- han) शब्द का प्रकाशन हुआ यह समय लगभग (200 ईसा पूर्व) है ।चीन के "चू" (चाउ) राजवंश और चीन के "हान" राजवंश के बीच वर्चस्व की लड़ाई जिसमे yuechis / Gujars भी इस विवाद का हिस्सा थे।
गुर्जर जब भारत में अरब सैनिकों से लड़ते थे ।
जब वे "चू-हान" (चाउ-हून) शीर्षक अपने बहादुर सैनिकों को सम्मानित करने के लिए प्रयोग किया जाता था जो बाद मे चौहान कहा जाने लगा।
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पृथ्वीराज चौहान 1166 ईस्वी में अजमेर में पैदा हुआ थे ।
उनके पिता गुर्जर सोमेश्वर चौहान और माता कपूरी देवी, एक कलचुरी (चेडी) की राजकुमारी, (त्रपूरी के अचलराजा की पुत्री) थीं
मुहम्मद गौरी ने भारत पर कई बार हमला किया था । पहली लड़ाई 1178 ईसवी में माउंट आबू के पास कायादर्रा पहाड़ी पर लड़ी गयी और पृथ्वीराज ने गौरी को भरपूर हराया था।
इस हार के बाद गौरी गुजरात के माध्यम भारत में कभी नही घुसा । 1191 में तारोरी की पहली लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान ने घुड़सवार सेना और गोरी पर कब्जा कर लिया।
गोरी ने अपने जीवन की भीख मांग ली ।
पृथ्वीराज ने उसे दोबारा ना घुसने की चेतावनी देकर उसको सेनापतियों के साथ जाने की अनुमति दी।
मोहम्मद गोरी और गयासुद्दीन गजनी ने 1175. में भारत आक्रमण शुरू कर दिया। और 1176 में मुल्तान पर कब्जा कर लिया ..
1178 ईस्वी में मोहम्मद गोरी ने गुजरात पर आक्रमण किया और गुर्जरेश्वर भीमदेव सौलंकी ने अच्छी तरह से हरा दिया और गुजरात से वापस भगा दिया ।
यह वही समय था जब पृथ्वीराज चौहान अजमेर और दिल्ली के सिंहासन पर चढ़े थे ।
उस समय तक"गुर्जर शासक " गोरी के आगामी खतरे से अच्छी तरह परिचित थे।
गुर्जरेश्वर भीमदेव सोलंकी ने "गुर्जर मंडल" नामक एक संघ के तहत सभी "क्षत्रिय" शासकों को एकत्र किया ।
गोरी 1186 ईस्वी में पंजाब पर कब्जा कर लिया।
चौहान इस समय तक सुप्रीम लॉर्ड्स बन गया था ।
.. 1187-88 ईस्वी सन् में गुर्जरेश्वर भीमदेव और पृथ्वीराज भी रक्त के द्वारा एक दूसरे से संबंधित थे ।
तो भीमदेव ने इस समूह का नेतृत्व करने के लिए पृथ्वीराज से पूछा।पृथ्वीराज ने तारेन (1191 ईस्वी) में गोरी के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
जिसमे गुर्जरों की अन्य शाखा खोखर, घामा, भडाना, सौलंकी, प्रतिहार और रावत ने भाग लिया।
खांडेराव धामा (पृथ्वी की पहली पत्नी का भाई) के आदेश के तहत गुर्जरो और खोखर के संयुक्त सैनिकों ने मुसलिमों को बुरी तरह हराया और सीमा तक उनका पीछा किया।
गौरी बुरी तरह घायल हो गया था और उसकी घुड़सवार द्वारा युद्ध के मैदान से दूर ले जाया गया था। )
"पृथ्वी विजय" और "पृथ्वीराज रासो" में कहा कि उन्हें पृथ्वीराज द्वारा कब्जा कर लिया गया था बल्कि वह भाग खडा हुआ और एक साल (1192 ईस्वी) के बाद गौरी दोगुने सैनिकों के साथ लौट आया इस समय तक खोखार गुर्जर से चला गया , सोलंकी और चौहान के बीच एक अजीब प्रतिद्वंद्विता शुरू हो गई।
यह पृथ्वी की एकल बलों की हार थी । और घामा को तार्रेन युद्ध के पहले दिन में मौत की सजा दे दी गई ।
पृथ्वीराज को भी गौरी के दास द्वारा हार का नेत्रृत्व करना पडा ।
जिसका कुतुब-उद-दीन-ऐबक नाम दिया है।
जिसको बाद मे दिल्ली की गद्दी इनाम के रूप मे दी गई पृथ्वीराज अपनी मौत से मिलने के लिए स्पष्ट रूप से अपनी अदालत में गोरी को मारता है और कैसे यह है।
पृथ्वीराज चौहान की कब्र गोरी की कब्र के बगल में आज तक मौजूद है।
और 1200 के आसपास चौहान की हार के बाद राजस्थान का एक हिस्सा मुस्लिम मुगल शासकों के अधीन आ गया।
और इसी समय से भारत में राजपूती करण का नया तुर्क-मंगोली संस्करण उत्पन्न हुआ ।
अब ये गुजरों के वंशज राजपूत संघ में सम्मिलित होकर स्वयं को राजपूत कहने लगे ।
शक्तियों का प्रमुख केन्द्रों नागौर और अजमेर ही थे।
पृथ्वीराज भी 1195 ईस्वी में हार के बाद गुर्जरेश्वर का ताज अजमेर के हमीर सिंह चौहान ( पृथ्वीराज का भाई) ने लिया इसके बाद कन्नौज (1193 ईस्वी), अजमेर (1195), अबध, बिहार (1194), ग्वालियर (1196), अनहीलवाडा (1197), चंदेल (1201 ईस्वी) पर मुसलमानों द्वारा कब्जा कर लिया गया और "गुर्जर मंडल" उस के बाद ही समाप्त हो गया।
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यह केवल 1400 ईस्वी के बाद एक नए नाम "राजपूत" के साथ इतिहास में दिखा ।
1398 ईस्वी में हिंदू योद्धाओं को लैंग की 'आमिर तैमूर' द्वारा 'राजपूत' के रूप में संबोधित कर रहे थे।
राजपूत, राजा का पुत्र या बेटे से मतलब नहीं है।
राजपूत"राज्य-पुत्र" जिसका मतलब "राज्य के बेटे" से है।
और आक्रमणकारियों से अपने राज्य वापस पाने के लिए आयोजित किया जाता था
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विदित हो कि राजपूत संघ तत्कालीन पुरोहितों के द्वारा राजस्थान(मारवाड़ क्षेत्र में) 13 वीं सदी के दौरान मुस्लिम और, बौद्ध आक्रमणकारियों से लड़ने के लिए बनाई गई थी।
यह प्रसिद्ध गुर्जर कुलों यानी (प्रतिहार, पंवार, चालुक्य, चौहान, गुहीलोट, गेहडवाल, चंदेल, तोमर/तंवर, छावडा, घामा) आदि का समन्वय था ।
तोमर जाट गूजर और राजपूत तीनों में हैं ।
राजपूत संघ के लिए इसी समय जैसलमेर और देवगिरि , करौली आदि रियासतों से
अहीर या पाल यादवों के संयोग से दहिया और खोखरस तरह के कुछ चयनित जाट यौद्धा जनजातियों के से राजपूत संघ का निर्माण हुआ ।
यद्यपि सत्रहवीं सदी के भरत पुर के राजा सूरज मल यदुवंशी जाट थे
'परन्तु उन्होंने राजपूत संघ को स्वीकार नहीं किया ।
गुर्जर जाति के चौहान पश्चिमी उत्तर प्रदेश (कलश्यान चौहान), मैनपुरी उत्तर प्रदेश में और राजस्थान के नीमराना अलवर जिले में हैं, जो अव स्वयं को राजपूत ही मानते हैं ।
गुर्जर शब्द को भूल गये ।
चौहान आज मुसलिमों सुखों और हिन्दुओं का जन समुदाय भी है ।
यहां के चौहान मुख्यतः हिंदू हैं ।
जो गुर्जर और राजपूत दो पुराने और नये संस्करण में विद्यमान हैं
और एक दूसरे के प्रतिद्वन्द्वीयों में सुनार हैं ।
चौहान पंजाब में वे सिख हैं। पाकिस्तान में चौहानों मुख्य रूप से मुसलमान हैं।
अनंगपाल तंवर और पृथ्वीराज चौहान मूलत: गुर्जर ही थे।
13 गांव गुर्जर तंवरों के आज भी दिल्ली के महरौली में स्थित हैं ,
दक्षिण दिल्ली में 40 से अधिक गांव गुर्जर तंवरों (मुस्लिम) के गुड़गांव में हैं।
और अभी भी तंवरो को दिल्ली का राजा कहा जाता है।
पाकिस्तान के एक प्रसिद्ध लेखक (राणा अली हसन चौहान) जिनका परिवार विभाजन के दौरान पाकिस्तान चला गया, वह पृथ्वीराज की 37 वीं पीढ़ी से हैं।
'परन्तु वे आज मुसलिमों में सुमार हैं ।
दिल्ली के समीप वर्ती
प्रवासन और गुर्जर चौहान के तुपराना, कैराना, नवराना और यमुना नदी के तट पर अन्य गुर्जर चौहानों के गांव अभी भी मौजूद हैं,
इसके अलावा दापे चौहान और देवड़ा चौहान के 84 गांव यूपी में हैं।
इस लिए प्रतिहार, सौलंकी और तंवर के साथ पृथ्वीराज के संबंध थे।
1178 ईस्वी में गुर्जर मंडल का उनका गठन और उनकी वर्तमान पीढी अजमेर के चौहान शासकों अजय पाल, पृथ्वीराज ,जगदेव, विग्रहराज पंचम ,अपरा गंगेया, पृथ्वीराज द्वितीय, और सोमेश्वर हैं।
मैनपुरी के चौहान शासकों में प्रताप रुद्र, वीर सिंह, घारक देव, पूरन चंद देव, करण देव और महाराजा तेज सिंह चौहान अब राजपूत संघ सम्बद्ध हैं।
गुर्जर समाज में जन्मे महापुरुषों में सुमार भगवान देवनारायण चौहान थे और 24 बगडावत राजा भी गुर्जर चौहान थे ,
इसी वंश से आगे चलकर पैदा हुए थे पृथ्वीराज चौहान
पृथ्वीराज रासो में जिन चौहानो की चौरासी गाँव का वर्णन है वो 84 गॉव आज भी गुर्जरो के है शामली कैराना में ।
दिल्ली के राजा रहे गुर्जर अनंगपाल तंवर जिन्होने अपनी बेटी का विवाह गुर्जर के चौहान गौत्र मे किया ।
उनकी बेटी के पुत्र का नाम था पृथ्वीराज चौहान ही कहलाया ।
राजा अनंपाल तंवर ने अपना राजपाठ अपनी बेटी के पुत्र पृथ्वीराज चौहान को दिया ।
अनंगपाल तंवर के राजपाठ मे बहुत ज्यादा संख्या मे तंवरो के गाव थे जहा अाज भी दिल्ली के तंवरो के गाव मे बहुत ज्यादा संखंया मे तंवर गुर्जर रहते है।
उस वक्त राजपूत थे भी नही तो पृथ्वीराज का राजपूत होने का तो सवाल ही नही पैदा होता क्योकि राजपूत शब्द का पुराने ग्रथो में कही भी कोई उलेख नही है , ये शब्द गयाहरवी शताब्दी के बाद दिखाइ देता है।
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मुगल काल से राजपूत शब्द प्रकाश में आया
राजपूत कहते हैं कि पृथ्वीराज चौहान गुर्जर चौहान गोत्र के थे ।
जबकि गुर्जरो के पूज्य भगवान देवनारायण भी स्वयं चौहान वंशीय थे सवाई भोज अजमेर के राजा बीसलदेव के भाई (चचेरे भाई) थे।
बीसलदेव के बाद अजमेर की गद्दी पर महेंद्र सिंह चौहान आसीन हुए जो की भगवान देवनारायण का भाई थे।
अब ऐसा कैसे हो सकता है की एक भाई गुर्जर एक भाई राजपूत हो
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भारतीय पुराणों में मिथकीय रूप में गुर्जरों से उत्पन्न चौहान प्रतिहार सौलंकी परहार आदि का राजपूती करण इस प्रकार किया गया 👇
और एक काल्पनिक रूप से कथा या आख्यानक बनाया गया
चह्वान (चतुर्भुज)
अग्निवंश के सम्मेलन कर्ता ऋषि
१.वत्सन ऋषि,२.भार्गव ऋषि,३.अत्रि ऋषि,४.विश्वामित्र,५.च्यवन ऋषि ।
विभिन्न ऋषियों ने प्रकट होकर अग्नि में आहुति दी तो विभिन्न चार वंशों की उत्पत्ति हुयी जो इस इस प्रकार से है-
१.पाराशर ऋषि ने प्रकट होकर आहुति दी तो परिहार की उत्पत्ति हुयी (पाराशर गोत्र)
२.वशिष्ठ ऋषि की आहुति से परमार की उत्पत्ति हुयी (वशिष्ठ गोत्र)
३.भारद्वाज ऋषि ने आहुति दी तो चालुक्य(सोलंकी )की उत्पत्ति हुयी (भारद्वाज गोत्र)
४.वत्सन ऋषि ने आहुति दी तो चतुर्भुज चौहान की उत्पत्ति हुयी (वत्स गोत्र)
चौहानों की उत्पत्ति आबू शिखर मे हुयी इस विषय में ब्राह्मणों 'ने कालान्तरण में हिन्दी में एक दोहा भी रच दिया
जिसमें बताया की बौद्धों को परास्त करने के लिए यज्ञकुण्ड से चार क्षत्रिय ब्राह्मणों 'ने उत्पन्न किये ।👇
दोहा-
चौहान को वंश उजागर है,जिन जन्म लियो धरि के भुज चारी,
बौद्ध मतों को विनास कियो और विप्रन को दिये वेद सुचारी॥
चौहान की कई पीढियों के बाद अजय पाल पैदा हुये
जिन्होने आबू पर्वत छोड कर अजमेर शहर बसाया
अजमेर मे पृथ्वी तल से १५ मील ऊंचा तारागढ किला बनाया जिसकी वर्तमान में १० मील ऊंचाई है,महाराज अजयपाल जी चक्रवर्ती सम्राट हुये.।
इसी में कई वंश बाद माणिकदेवजू हुये,जिन्होने सांभर झील बनवाई थी।
सांभर बिन अलोना खाय,माटी बिके यह भेद कहाय"
इनकी बहुत पीढियों के बाद माणिकदेवजू उर्फ़ लाखनदेवजू हुये
इनके चौबीस पुत्र हुये और इन्ही नामो से २४ शाखायें चलीं
चौबीस शाखायें इस प्रकार से है-
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१. मुहुकर्ण जी उजपारिया या उजपालिया चौहान पृथ्वीराज का वंश
२.लालशाह उर्फ़ लालसिंह मदरेचा चौहान जो मद्रास में बसे हैं।
३. हरि सिंह जी धधेडा चौहान बुन्देलखंड और सिद्धगढ में बसे है।
४. सारदूलजी सोनगरा चौहान जालोर झन्डी ईसानगर मे बसे है।
५. भगतराजजी निर्वाण चौहान खंडेला से बिखराव ।
६. अष्टपाल जी हाडा चौहान कोटा बूंदी गद्दी सरकार से सम्मानित किया २१ तोपों की सलामी से ।
७.चन्द्रपाल भदौरिया चौहान चन्द्रवार भदौरा गांव नौगांव जिला आगरा से सम्बद्ध है ।
. शूरसेन जी देवडा चौहान सिरोही (सम्मानित)
१०.सामन्त जी साचौरा चौहान सन्चौर का राज्य टूट गया
११.मौहिल जी मौहिल चौहान मोहिल गढ का राज्य टूट गया
१२.खेवराज जी उर्फ़ अंड जी वालेगा चौहान पटल गढ का राज्य टूट गया बिखराव
१३. पोहपसेन जी पवैया चौहान पवैया गढ गुजरात
१४. मानपाल जी मोरी चौहान चान्दौर गढ की गद्दी
१५. राजकुमारजी राजकुमार चौहान बालोरघाट जिला सुल्तानपुर में
१६.जसराजजी जैनवार चौहान पटना बिहार गद्दी टूट गयी
१७.सहसमल जी वालेसा चौहान मारवाड गद्दी
१८.बच्छराजजी बच्छगोत्री चौहान अवध में गद्दी टूटगयी.
१९.चन्द्रराजजी चन्द्राणा चौहान अब यह कुल खत्म हो गया है
२०. खनगराजजी कायमखानी चौहान झुन्झुनू मे है लेकिन गद्दी टूट गयी है,मुसलमान बन गये है
२१. हर्राजजी जावला चौहान जोहरगढ की गद्दी थे लेकिन टूट गयी.
२२.धुजपाल जी गोखा चौहान गढददरेश मे जाकर रहे.
२३.किल्लनजी किशाना चौहान किशाना गोत्र के गूजर हुये जो बांदनवाडा अजमेर मे है
२४.कनकपाल जी कटैया चौहान सिद्धगढ मे गद्दी (पंजाब)
उपरोक्त प्रशाखाओं में अब करीब १२५ हैं
बाद में आनादेवजू पैदा हुये
आनादेवजू के सूरसेन जी और दत्तकदेवजू पैदा हुये
सूरसेन जी के ढोडेदेवजी हुये जो ढूढाड प्रान्त में था,यह नरमांस भक्षी भी थे.
ढोडेदेवजी के चौरंगी-—सोमेश्वरजी--—कान्हदेवजी हुये
सोम्श्वरजी को चन्द्रवंश में उत्पन्न अनंगपाल की पुत्री कमला ब्याही गयीं थीं
सोमेश्वरजी के पृथ्वीराजजी हुये
पृथ्वीराजजी के-
रेनसी कुमार जो कन्नौज की लडाई मे मारे गये
अक्षयकुमारजी जो महमूदगजनवी के साथ लडाई मे मारे गये
बलभद्र जी गजनी की लडाई में मारे गये
इन्द्रसी कुमार जो चन्गेज खां की लडाई में मारे गये
पृथ्वीराज ने अपने चाचा कान्हादेवजी का लडका गोद लिया जिसका नाम राव हम्मीरदेवजू था
हम्मीरदेवजू के-दो पुत्र हुये रावरतन जी और खानवालेसी जी
रावरतन सिंह जी ने नौ विवाह किये थे और जिनके अठारह संताने थीं,
सत्रह पुत्र मारे गये
एक पुत्र चन्द्रसेनजी रहे
चार पुत्र बांदियों के रहे
खानवालेसी जी हुये जो नेपाल चले गये और सिसौदिया चौहान कहलाये.
रावरतन देवजी के पुत्र संकट देवजी हुये
संकटदेव जी के छ: पुत्र हुये
१. धिराज जू जो रिजोर एटा में जाकर बसे इन्हे राजा रामपुर की लडकी ब्याही गयी थी
२. रणसुम्मेरदेवजी जो इटावा खास में जाकर बसे और बाद में प्रतापनेर में बसे
३. प्रतापरुद्रजी जो मैनपुरी में बसे
४. चन्द्रसेन जी जो चकरनकर में जाकर बसे
५. चन्द्रशेव जी जो चन्द्रकोणा आसाम में जाकर बसे इनकी आगे की संतति में सबल सिंह चौहान हुये जिन्होने महाभारत पुराण की टीका लिखी.
मैनपुरी में बसे राजा प्रतापरुद्रजी के दो पुत्र हुये
१.राजा विरसिंह जू देव जो मैनपुरी में बसे
२. धारक देवजू जो पतारा क्षेत्र मे जाकर बसे
मैनपुरी के राजा विरसिंह जू देव के चार पुत्र हुये
१. महाराजा धीरशाह जी इनसे मैनपुरी के आसपास के गांव बसे
हूण बंजारे लोग थे जिनका मूल स्थान वोल्गा के पूर्व में था। वे ३७० ई में यूरोप में पहुँचे और वहाँ विशाल हूण साम्राज्य खड़ा किया। हूण वास्तव में चीन के पास रहने वाली एक जाति थी। इन्हें चीनी लोग "ह्यून यू" अथवा "हून यू" कहते थे। कालान्तर में इसकी दो शाखाएँ बन गईँ जिसमें से एक वोल्गा नदी के पास बस गई तथा दूसरी शाखा ने ईरान पर आक्रमण किया और वहाँ के सासानी वंश के शासक फिरोज़ को मार कर राज्य स्थापित कर लिया। बदलते समय के साथ-साथ कालान्तर में इसी शाखा ने भारत पर आक्रमण किया इसकी पश्चिमी शाखा ने यूरोप के महान रोमन साम्राज्य का पतन कर दिया।
यूरोप पर आक्रमण करने वाले हूणों का नेता अट्टिला था। भारत पर आक्रमण करने वाले हूणों को श्वेत हूण तथा यूरोप पर आक्रमण करने वाले हूणों को अश्वेत हूण कहा गया भारत पर आक्रमण करने वाले हूणों के नेता क्रमशः तोरमाण व मिहिरकुल थे तोरमाण ने स्कन्दगुप्त को शासन काल में भारत पर आक्रमण किया था।
चित्र दीर्घा
संज्ञा पुं० [देश० या सं०] एक प्राचीन मंगोल जाति जो पहले चीन की पूरबी सीमा पर लूट मार किया करती थी, पर पीछेअत्यंत प्रबल होकर अशिया और योरप के सभ्य देशों पर आक्रमण करती हुई फैली। विशेष—हूणों का इतना भारी दल चलता था कि उस समय के बड़े बड़े सभ्य साम्राज्य उनका उवरोध नहीं कर सकते थे। चीन की ओर से हटाए गए हूण लोग तुर्किस्तान पर अधिकार करके सन् ४०० ई० से पहले वंक्षु नद (आवसस नदी) के किनारे आ बसे। यहाँ से उनकी एक शाखा ने तो योरप के रोम साम्राज्य की जड़ हिलाई और शेष पारस साम्राज्य में घुसकर लूटपाट करने लगे। पारसवाले इन्हें 'हैताल' कहते थे। कालिदास के समय में हूण वंक्षु के ही किनारे तक आए थे, भारतवर्ष के भीतर नहीं घुसे थे; क्योंकि रघु के दिग्विजय के वर्णन में कालिदास ने हूणों का उल्लेख वहीं पर किया है। कुछ आधुनिक प्रतियों में 'वंक्षु' के स्थान पर 'सिंधु' पाठ कर दिया गया
पर वह ठीक नहीं। प्राचीन मिली हुई रघुवंश की प्रतियों में 'वंक्षु' ही पाठ पाया जाता है। वंक्षु नद के किनारे से जब हूण लोग फारस में बहुत अपद्रव करने लगे, तब फारस के प्रसिद्ध बादशाह बहराम गोर ने सन् ४२५ ई० में उन्हें पूर्ण रूप से परास्त करके वंक्षु नद के उस पार भगा दिया। पर बहराम गोर के पौत्र फीरोज के समय में हूणों का प्रभाव फारस में बढ़ा। वे धीरे धीरे फारसी सभ्यता ग्रहण कर चुके थे और अपने नाम आदि फारसी ढंग के रखने लगे थे। फीरोज को हरानेवाले हूण बादशाह का नाम खुशनेवाज था। जब फारस में हूण साम्राज्य स्थापित न हो सका, तब हूणों ने भारतवर्ष की ओर रुख किया। पहले उन्होंने सीमांत प्रदेश कपिश और गांधार पर अधिकार किया, फिर मध्यदेश की ओर चढ़ाई पर चढ़ाई करने लगे। गुप्त सम्राट् कुमारगुप्त इन्हीं चढ़ाइयों में मारा गया। इन चढ़ाइयों से तत्कालीन गुप्त साम्राज्य निर्बल पड़ने लगा। कुमारगुप्त के पुत्र महाराज स्कंदगुप्त बड़ी योग्यता और वीरता से जीवन भर हूणों से लड़ते रहे। सन् ४५७ ई० तक अंतर्वेद, मगध आदि पर स्कंदगुप्त का अधिकार बराबर पाया जाता है। सन् ४६५ के उपरांत हुण प्रबल पड़ने लगे और अंत में स्कंदगुप्त हूणों के साथ युध्द करने में मारे गए। सन् ४९९ ई० में हूणों के प्रतापी राजा तुरमान शाह (सं० तोरमाण) ने गुप्त साम्राज्य के पश्चिमी भाग पर पूर्ण अधिकार कर लिया। इस प्रकार गांधार, काश्मीर, पंजाब, राजपूताना, मालवा और काठियावाड़ उसके शासन में आए। तुरमान शाह या तोरमाण का पुत्र मिहिरगुल (सं० मिहिरकुल) बड़ा ही अत्याचारी और निर्दय हुआ। पहले वह बौद्ध था, पर पीछे कट्टर शैव हुआ। गुप्तवंशीय नरसिंहगुप्त और मालव के राजा यशोधर्मन् से उसने सन् ५३२ ई० मे गहरी हार खाई और अपना इधर का सारा राज्य छोड़कर वह काश्मीर भाग गया। हूणों में ये ही दो सम्राट् उल्लेख योग्य हुए। कहने की आवश्यकता नहीं कि हूण लोग कुछ और प्राचीन जातियों के समान धीरे धीरे भारतीय सभ्यता में मिल गए। राजपूतों में एक शाखा हूण भी है। कुछ लोग अनुमान करते हैं कि राजपूताने और गुजरात के कुनबी भी हूणों के वंशज हैं। २. एक स्वर्णमुद्रा। दे० 'हुन' (को०)। ३. बृहत्संहिता के अनुसार एक देश का नाम जहाँ हूण रहते थे।—बृहत्०, पृ० ८६।
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✍ डाक्टर आर के सिन्हा और डाक्टर राम के द्वारा लिखित हिस्ट्री आफ इंडिया में स्पष्ट लिखा है कि मैत्रिक, प्रतिहार, परमार, चालुक्य और चौहान आदि वंश गुर्जर हैँ।
✍ ए. एम. टी. जैक्सन ने साफ साफ लिखा है कि प्रतिहार, चालुक्य और चौहान कहलाने वाले सभी गुर्जर हैं।
✍इतिहासकार भगवान लाल इंद्र जी कहते हैं कि राजपूतों के श्रेष्ठ वंश गुर्जर संतान हैँ।
✍ ठाकुर यशपाल सिहं राजपुत, एम.ए पूर्व सांसद यतीन्द्र कुमार वर्मा के गुर्जर इतिहास कि महिमा लिखते हुए कहते है
गुर्जर दुनिया की महान जाति है ।
गुर्जर जब उपमहाद्विप मे शासन कर रहे थे , मध्यकाल मे उन्ही के कुछ परिवार राजपूत कहलाए इन सब के अतिरिक्त ये कोई क्षत्रिय जति नही है ।
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चौहान उपनाम उपयोगकर्ता सबमिशन: चौथी शताब्दी ईस्वी में व्हाइट हंस, चहल्स (यूरोपीय इतिहास की चोल) के वंशज, कैस्पियन समुद्र के पूर्व में बस गए थे। यही वह अवधि थी जब चहल गजनी क्षेत्र में ज़बुलिस्तान पर कब्जा कर रहे थे। वंश मध्य एशियाई है और मूल निवासी के साथ अंतःक्रिया के कारण यह भारतीय, ईरानी और तुर्की है। इस उपनाम के बारे में और पढ़ें चौहान उपनाम वितरण - 25% पत्रक |
जनसंख्या डेटा © Forebears घटनाओं से पूर्ण स्क्रीन 2014 क्षेत्र में घटना आवृत्ति रैंक रखें भारत 1,592,334 1: 482 53 इंग्लैंड 9150 1: 6076 861 संयुक्त राज्य अमेरिका 3,730 1: 96,850 10,829 संयुक्त अरब अमीरात 2,679 1: 3,425 428 सऊदी अरब 2,0 9 2 1: 14,751 2,0 9 5 पाकिस्तान 1,719 1: 101,474 3310 कनाडा 1,677 1: 21,943 3006 ओमान 1,549 1: 2,547 505 केन्या 1,349 1: 34,128 4126 फिजी 943 1: 948 108 सभी राष्ट्र दिखाओ चौहान उपनाम अर्थ $ 100 वंशावली डीएनए परीक्षण जीतने की संभावना के लिए इस उपनाम पर जानकारी जमा करें
डीएनए परीक्षण जानकारी उपयोगकर्ता द्वारा प्रस्तुत संदर्भ चौथी शताब्दी ईस्वी में व्हाइट हंस, चहल्स (यूरोपीय इतिहास की चोल) के वंशज, कैस्पियन समुद्र के पूर्व में बस गए थे। यही वह अवधि थी जब चहल गजनी क्षेत्र में ज़बुलिस्तान पर कब्जा कर रहे थे। वंश मध्य एशियाई है और मूल निवासी के साथ अंतःक्रिया के कारण यह भारतीय, ईरानी और तुर्की है।
हालांकि, नाम चहल को एक और कबीले द्वारा साझा किया जाता है और अंतर मिश्रण होता है; इसलिए वंश मिश्रित है।
चाहल नाम लेबनान, इज़राइल और मध्य एशियाई देशों के मूल निवासी पाया जा सकता है। -
hsingh1861 ध्वन्यात्मक रूप से समान नाम उपनाम समानता घटना Prevalency Chaouhan 93 307 / Chauahan 93 253 / Chauhaan 93 243 / Chauhana 93 94 / Chauhanu 93 60 / Chauehan 93 46 / Chauohan 93 35 / Chauhann 93 21 / Chaauhan 93 18 / Chauhani 93 15 /
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सभी समान सुरनाम देखो चौहान उपनाम लिप्यंतरण घटनाओं का लिप्यंतरण आईसीयू लैटिन प्रतिशत
बंगाली में चौहान চৌহান cauhana -
हिंदी में चौहान चौहान cauhana 98.92 सभी अनुवाद दिखाएं मराठी में चौहान चौहान cauhana 77.03 चौहाण cauhana 16.16 छगन chagana 1.99 चोहान cohana 1.23 सभी अनुवाद दिखाएं तिब्बती में चौहान ཅུ་ ཝཱན ་. chuwen 66.67 ཅུ་ ཧན ་. chuhen 33.33 उडिया में चौहान େଚୗହାନ ecahana 60.75 େଚୗହାନ୍ 14.52 ecahan ଚଉହାନ ca'uhana 6.99 େଚୖହାନ ecahana 4.84 େଚୖାହାନ ecaahana 3.23 େଚୗହାଣ ecahana 2.15 େଚୗହନ ecahana 2.15 େଚୗାନ ecaana 2.15
सभी अनुवाद दिखाएं अरबी में चौहान شوهان shwhan - उपनाम आंकड़े अभी भी विकास में हैं, अधिक मानचित्र और डेटा पर जानकारी के लिए साइन अप करें सदस्यता लें मेलिंग सूची में साइन अप करके आप केवल विशेष रूप से फोरबियर पर उपनाम संदर्भ के बारे में ईमेल प्राप्त करेंगे और आपकी जानकारी तीसरे पक्ष को वितरित नहीं की जाएगी।
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Chauhan Surname User-submission:
Descandants of White Huns, the Chahals (Chols of European history) in the fourth century AD, were settled on the east of Caspian sea. This was the period when Chahals were occupying Zabulistan in the Ghazni area. Ancestry is Central Asian and due to interbreeding with natives it is Indian, Iranian, and Turkish.
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Chauhan Surname Distribution
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25%
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By incidence
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2014
PlaceIncidenceFrequencyRank in Area
India1,592,3341:48253
England9,1501:6,076861
United States3,7301:96,85010,829
United Arab Emirates2,6791:3,425428
Saudi Arabia2,0921:14,7512,095
Pakistan1,7191:101,4743,310
Canada1,6771:21,9433,006
Oman1,5491:2,547505
Kenya1,3491:34,1284,126
Fiji9431:948108
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Chauhan Surname Meaning
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Descandants of White Huns, the Chahals (Chols of European history) in the fourth century AD, were settled on the east of Caspian sea. This was the period when Chahals were occupying Zabulistan in the Ghazni area. Ancestry is Central Asian and due to interbreeding with natives it is Indian, Iranian, and Turkish.
However, the name Chahal is shared by another clan and inter mixing has occurred; so ancestry is mixed. The name Chahal can be found native to Lebanon, Israel and Central Asian countries.
- hsingh1861
Phonetically Similar Names
SurnameSimilarityIncidencePrevalency
Chaouhan93307/
Chauahan93253/
Chauhaan93243/
Chauhana9394/
Chauhanu9360/
Chauehan9346/
Chauohan9335/
Chauhann9321/
Chaauhan9318/
Chauhani9315/
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Chauhan Surname Transliterations
TransliterationICU LatinPercentage of Incidence
Chauhan in Bengali
চৌহানcauhana-
Chauhan in Hindi
चौहानcauhana98.92
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Chauhan in Marathi
चौहानcauhana77.03
चौहाणcauhana16.16
छगनchagana1.99
चोहानcohana1.23
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Chauhan in Tibetan
ཅུ་ཝཱན།chuwen66.67
ཅུ་ཧན།chuhen33.33
Chauhan in Oriya
େଚୗହାନecahana60.75
େଚୗହାନ୍ecahan14.52
ଚଉହାନca'uhana6.99
େଚୖହାନecahana4.84
େଚୖାହାନecaahana3.23
େଚୗହାଣecahana2.15
େଚୗହନecahana2.15
େଚୗାନecaana2.15
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Chauhan in Arabic
شوهانshwhan-
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