ब्राह्मण समाज केवल कर्म-काण्ड मूलक पृथाओं का सदीयों से संवाहक रहे है ।
और धार्मिक क्रियाऐं करने वाला यौद्धिक गतिविधियों से परे ही कहता है ।
वैसे ब्राह्मण शब्द सभी महान संस्कृतियों में विद्यमान है ।
जिसका अर्थ होता है केवल और केवल
" मन्त्र -पाठ करने वाला पुजारी "
पण्डित , ब्राह्मण और पुरोहित यूरोपीय संस्कृतियों में क्रमश pedant =
1-Middle French pedant, pedante,fromFrench pédanterie.
2- Italian pedante (“a teacher, schoolmaster, pedant”), of uncertain origin,
profete =
person who speaks for God; one who foretells, inspired preacher,"
from Old French prophete, profete "prophet, soothsayer"
Modern French prophète) and directly from
Latin propheta, from .
Greek prophetes (Doric prophatas) "an interpreter, spokesman," especially of the gods, "inspired preacher or teacher,"
Bremin=
Origin and Etymology of (brahman)in European languages Middle English (Bragman )inhabitant of India, and German in Bremen city ,
derived from Latin Bracmanus,) from
Greek (Brachman,) it too derivetion from
Sanskrit brāhmaṇa of the Brahman caste, from brahman ।
Brahman First Known Use: 15th century
आर्यों के पुरोहित तथा सर्वेसर्वा: ब्राह्मण समाज का आगमन स्वर्ग से हुआ।
परन्तु स्वर्ग तो स्वीडन का पुराना मिथकीय नाम है ।
समग्र भारतीय पुराणों में तथा वैदिक ऋचाओं मे भी यही तथ्य प्रतिध्वनित होता है ।
कि ब्राह्मण तो स्वर्ग से आये ।
सर्व-प्रथम हम यूरोपीय भाषा परिवार में तथा वहाँ की प्राचीनत्तम संस्कृतियों से भी यह तथ्य उद्घाटित करते हैं कि वास्तविक रूप में स्वर्ग कहाँ था ?
और देवों अथवा सुरों के रूप में ब्राह्मणों का आगमन किस प्रकार हुआ ?
व्युत्पत्ति-मूलक दृष्टि से कुछ उद्धरण आँग्लभाषा में हैं ।
जिनका सरलत्तम अनुवादित रूप भी प्रस्तुत है ।
( ब्राह्मण शब्द का मूल व उसकी व्युत्पत्ति-) ब्राह्मण वर्ण का वाचक है ।
भारतीय पुराणों में ब्राह्मण का प्रयोग मानवीय समाज में सर्वोपरि रूप से निर्धारित किया है ।
क्योंकि इन -ग्रन्थों को लिखने वाले भी स्वयं वही थे ।
संस्कृत भाषा के ब्राह्मण शब्द सम्बद्ध है ।
, ग्रीक ("ब्राचमन" ) तथा लैटिन ("ब्रैक्समेन" ) मध्य अंग्रेज़ी का ("बागमन ") भारतीय पुरोहितों का मूल विशेषण बामन जो ब्राह्मण शब्द का तत्सम है ।
इसका पहला यूरोपपीय ज्ञात प्रयोग: 15 वीं शताब्दी में है ।
भारतीय संस्कृति में वर्णित ब्राह्मणों का तादात्म्य जर्मनीय शहर ब्रेमन में बसे हुए ब्रामरों से प्रस्तावित है ।
पुरानी फारसी भाषा में जो अवेस्ता ए झन्द से सम्बद्ध है उसमे बिरहमन शब्द ब्राह्मण शब्द का ही तद्भव है ।
सुमेरियन तथा अक्काडियन भाषा में बरम ( Baram ) ब्राह्मण का वाचक है ।
वैसे अरब की संस्कृतियों में "वरामक " पुजारी का वाचक है ।
अंग्रेज़ी भाषा में ब्रेन (Brain) मस्तिष्क का वाचक है ।
संस्कृत भाषा में तथा प्राचीन - भारोपीय भाषा में इसका रूप ब्रह्मण है। मस्तिष्क ( संज्ञा ) का रूप :----
क्योंकि कि मिथकों में ब्राह्मण विराट पुरुष के मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
क्योंकि इन्होंने ज्ञान पर अपना एकाधिकार कर लिया ।
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-ब्रह्मण ऋग्वेद के १०/९०/१२
" ब्राह्मणोSस्य मुखमासीत् बाहू राजन्यकृत: ।
"उरू तदस्ययद् वैश्य: पद्भ्याम् शूद्रोsजायत।। _________________________________________
अर्थात् ब्राह्मण विराट-पुरुष के मुख से उत्पन्न हुए, और बाहों से राजन्य ( क्षत्रिय) ,उरु ( जंघा) से वैश्य तथा पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए । ________________________________________________
यद्यपि यह ऋचा पाणिनीय कालिक ई०पू० ५०० के समकक्ष है । परन्तु यहाँ ब्राह्मण को विद्वान् होने से मस्तिष्क-(ब्रेन )कहना सार्थक था ।
देव संस्कृति के उपासक ब्राह्मणों ने आध्यात्मिक विद्या को कैल्ट संस्कृति के मूर्धन्य ड्रयूड( Druids) पुरोहितों से ग्रहण किया था। यूरोपीय भाषा परिवार में विद्यमान ब्रेन (Brain) शब्द उच्च अर्थ में, "चेतना और मन का अवयव," है ।
पुरानी अंग्रेजी मेंं (ब्रेजेगन) "मस्तिष्क",
तथा प्रोटो-जर्मनिक (ब्रैग्नाम ) (मध्य जर्मन (ब्रीगेन )के स्रोत भी यहीं से हैं ,
भौतिक रूप से ब्रेन " (कोमल तथा भूरे रंग का पदार्थ, एक कशेरुकीय कपाल गुहा है " पुरानी फ़्रिसियाई और डच में (ब्रीन),है । यहाँ इसकी व्युत्पत्ति-अनिश्चितता से सम्बद्ध, है ।
कदाचित भारोपीय-मूल * मेरगम् (संज्ञा)- "खोपड़ी, मस्तिष्क" तथा (ग्रीक ब्रेखमोस) "खोपड़ी के सामने वाला भाग, सिर के ऊपर") से भी साम्य है ।
लेकिन भाषा वैज्ञानिक लिबर्मन लिखते हैं "कि मस्तिष्क "पश्चिमी जर्मनी के बाहर कोई स्थापित संज्ञा नहीं है ।
..." तथा यह और ग्रीक शब्द से जुड़ा नहीं है। अधिक है तो शायद, वह लिखते हैं, कि इसके व्युत्पत्ति-सूत्र भारोपीयमूल के हैं । *( bhragno) "कुछ टूटा हुआ है से हैं । संस्कृत भाषा में देखें--- भ्रंश् भ्रञ्ज् :-- अध: पतने भ्रंशते । बभ्रंशे । भ्रंशित्वा । भ्रष्ट्वा । भ्रष्टः । भ्रष्टिः । भ्रश्यते इति भ्रशो रूपम् 486।
परन्तु अब प्रमाण मिला है कि यह शब्द संस्कृत भाषा में प्राप्त भारोपीय धातु :--- ब्रह् से सम्बद्ध है ।
ब्रह् अथवा बृह् धातु का अर्थ :---- मन्त्रों का उच्चारण करना विशेषत: तीन अर्थों में रूढ़ है यह धातु :--- १- वृद्धौ २- प्रकाशे ३- भाषे च
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बृह् :--शब्दे वृद्धौ च - बृंहति बृंहितम बृहिर् इति दुर्गः अबृहत्, अबर्हीत् बृंहेर्नलोपाद् बृहोऽद्यतनः
( 16वी सदी में प्राप्त उल्लेख "बौद्धिक शक्ति" का आलंकारिक अर्थ अथवा 14 सदी के अन्त से है; यूरोपीय भाषा परिवार में प्रचलित शब्द ब्रेगनॉ जिसका अर्थ है "एक चतुर व्यक्ति" इस अर्थ को पहली बार (1914 )में दर्ज किया गया है।
वस्तुत यह ब्रह्माणों की चातुर्य वृत्तियों का प्रकाशन करता है-
और पुजारी पुरोहित आर्य्य अर्थात् यौद्धा अथवा वीर नहीं हो सकता क्योंकि आर्य्य वीर शब्द का सम्प्रसारण है ।
और वीर यौद्धिक गतिविधियों में संलग्न होता है ।
वैसे भी अरि शब्द वैदिक संहिताओं में ईश्वर का यौद्धिक देव रूप है
असुरों अथवा असीरिय न लोगों की भाषाओं में अरि: शब्द अलि अथवा इलु हो गया है ।
परन्तु इसका सर्व मान्य रूप अब एलॉह (elaoh) तथा एल (el) ही हो गया है ।
ऋग्वेद के अष्टम् मण्डल के ५१ वें सूक्त का ९ वीं ऋचा में
अरि: का ईश्वर के रूप में वर्णित है ।
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"यस्यायं विश्व आर्यो दास: शेवधिपा अरि:
तिरश्चिदर्ये रुशमे पवीरवि तुभ्येत् सोअज्यते रयि:|९ ।
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अर्थात्-- जो अरि इस सम्पूर्ण विश्व का तथा आर्य और दास दौनों के धन का पालक अथवा रक्षक है ,
जो श्वेत पवीरु के अभिमुख होता है ,
वह धन देने वाला ईश्वर तुम्हारे साथ सुसंगत है ।९।
ऋग्वेद के दशम् मण्डल सूक्त( २८ ) ऋचा संख्या (१) में
देखें- यहाँ भी अरि: देव अथवा ईश्वरीय सत्ता का वाचक है ___________________________________________
" विश्वो ह्यन्यो अरिराजगाम ,
ममेदह श्वशुरो ना जगाम ।
जक्षीयाद्धाना उत सोमं पपीयात्
स्वाशित: पुनरस्तं जगायात् ।।
ऋग्वेद--१०/२८/१
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एक ऋषि की पत्नी कहती है ! कि सब देवता निश्चय हमारे यज्ञ में आ गये (विश्वो ह्यन्यो अरिराजगाम)।
परन्तु मेरे श्वसुर नहीं आये इस यज्ञ में (ममेदह श्वशुरो ना जगाम )।
यदि वे आ जाते तो भुने हुए जौ के साथ सोमपान करते (जक्षीयाद्धाना उत सोमं पपीयात् )।
और फिर अपने घर को लौटते (स्वाशित: पुनरस्तं जगायात् )।
प्रस्तुत सूक्त में अरि: शब्द देव वाचक है ।
देव संस्कृति के उपासक आर्यों ने और असुर संस्कृति के उपासक आर्यों ने अर्थात् असुरों ने अरि: अथवा अलि की कल्पना युद्ध के अधिनायक के रूप में की थी ।
सुमेरियन और बैबीलॉनियन तथा असीरियन संस्कृतियों के पूर्वजों के रूप में ड्रयूड (Druids )अथवा द्रविड संस्कृति से सम्बद्धता स्पष्ट है ।
जिन्हें हिब्रू बाइबिल में द्रुज़ कैल्डीयन आदि भी कहा है
ये असीरियन लोगों से ही सम्बद्ध हैं।
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ऋग्वेद के द्वित्तीय मण्डल के १२६ वें सूक्त का पञ्चम छन्द (ऋचा) में अरि शब्द आर्यों के सर्वोपरि ईश्वरीय सत्ता का वाचक है:-
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पूर्वामनु प्रयतिमा ददे वस्त्रीन्
युक्ताँ अष्टौ-अरि(अष्टवरि) धायसो गा: ।
सुबन्धवो ये विश्वा इव व्रा
अनस्वन्त:श्रव ऐषन्त पज्रा: ।।५।।
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ऋग्वेद---२/१२६/५
तारानाथ वाचस्पति ने वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में इसे ईश्वर वाची
सन्दर्भित करते हुए वर्णित किया है--
अरिभिरीश्वरे:धार्य्यतेधा ---असुन् पृ० युट् च ।
ईश्वरधार्य्ये ।" अष्टौ अरि धायसो गा: "
ऋग्वेद १/१२६/ ५/ अरिधायस:
" अर्थात् अरिभिरीश्वरै: धार्य्यमाणा "भाष्य ।
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अरि शब्द के लौकिक संस्कृत मे कालान्तरण में अनेक अर्थ रूढ़ हुए ---
अरि :---१---पहिए का अरा २---शत्रु ३-- विटखदिर ४-- छ: की संख्या ५--ईश्वर ।
वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में अरि का वर्णन:- धामश्शब्दे ईश्वरे
उ० विट्खरि अरिमेद:।" सितासितौ चन्द्रमसो न कश्चित बुध:शशी सौम्यसितौ रवीन्दु ।
रवीन्दुभौमा रविस्त्वमित्रा" इति ज्योतिषोक्तेषु रव्यादीनां
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हिब्रू से पूर्व इस भू-भाग में फॉनिशियन और कनानी संस्कृति थी ,
जिनके सबसे बड़े देवता का नाम हिब्रू में "एल - אל "था
जिसे अरबी में ("इल -إل "या इलाह إله-" )भी कहा जाता था ।
और अक्कादियन लोग उसे "इलु - Ilu "कहते थे , इन सभी शब्दों का अर्थ "देवता -god " होता है ।
इस "एल " देवता को मानव जाति ,और सृष्टि को पैदा करने वाला और "अशेरा -" देवी का पति माना जाता था ।
वस्तुत यह अशेरा ही वैदिक स्त्री देवी है ।
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परन्तु कालान्तरण में आर्य्य शब्द नस्लीय विचार धारा का संवाहक बना तो
इस नस्लीय विचारधारा के नाम पर किए गए अत्याचारों ने शिक्षाविदों को "आर्यन" शब्द से बचने के लिए प्रेरित किया है, जिसे ज्यादातर मामलों में "भारत-ईरानी" द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है।
यह शब्द अब केवल "इंडो-आर्य भाषा" के संदर्भ में दिखाई देता है।
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व्युत्पत्ति मूलक दृष्टि कोण से आर्य शब्द हिब्रू बाइबिल में वर्णित एबर से भी सम्बद्ध है ।
लैटिन वर्ग की भाषा आधुनिक फ्राञ्च में आर्य शब्द Arien तथा Aryen दौनों रूपों में।
इधर दक्षिणी अमेरिक की ओर पुर्तगाली तथा स्पेनिश भाषाओं में यह शब्द आरियो (Ario) के रूप में विद्यमान है।
पुर्तगाली में इसका एक रूप ऐरिऐनॉ (Ariano) भी है और फिन्नो-उग्रियन शाखा की फिनिश भाषा में Arialainen (ऐरियल-ऐनन) के रूप में है।
रूस की उप शाखा पॉलिस भाषा में (Aryika) के रूप में है।
कैटालन भाषा में (Ari )तथा (Arica) दौनों रूपों में है। स्वयं रूसी भाषा में आरिजक (Arijec) अथवा आर्यक के रूप में यह आर्य शब्द है विद्यमान है।
इधर पश्चिमीय एशिया की सेमेटिक शाखा आरमेनियन तथा हिब्रू और अरबी भाषा में भी यह आर्य शब्द क्रमशः (Ariacoi) तथा (Ari )तथा अरबी भाषा में हिब्रू प्रभाव से म-अारि. M(ariyy तथा अरि दौनों रूपों में है ।
. तथा ताज़िक भाषा में ऑरियॉयी (Oriyoyi )रूप में है …इधर बॉल्गा नदी मुहाने वुल्गारियन संस्कृति में आर्य शब्द ऐराइस् (Arice) के रूप में है।
वेलारूस की भाषा में (Aryeic) तथा (Aryika) दौनों रूप में; पूरबी एशिया की जापानी ,कॉरीयन और चीनी भाषाओं में बौद्ध धर्म के प्रभाव से आर्य शब्द .
Aria–iin..के रूप में है ।
आर्य शब्द के विषय में इतने तथ्य अब तक हमने दूसरी संस्कृतियों से उद्धृत किए हैं।
परन्तु जिस भारतीय संस्कृति का प्रादुर्भाव देव संस्कृति के उपासक आर्यों की संस्कृति से हुआ ।
उनका वास्तविक चित्रण होमर ने ई०पू० 800 के समकक्ष इलियड और ऑडेसी महाकाव्यों में ही किया है ;
ट्रॉय युद्ध के सन्दर्भों में-
ग्राम संस्कृति के जनक देव संस्कृति के अनुयायी यूरेशियन लोग थे।
तथा नगर संस्कृति के जनक द्रविड अथवा ड्रयूड (Druids) लोग ।
उस के विषय में हम यहाँं कुछ तथ्य उद्धृत करते हैं ।
विदित हो कि यह समग्र तथ्य यादव योगेश कुमार 'रोहि' के शोधों पर आधारित हैं।
भारोपीय आर्यों के सभी सांस्कृतिक शब्द समान ही हैं स्वयं आर्य शब्द का धात्विक-अर्थ Rootnal-Mean ..आरम् धारण करने वाला वीर …..संस्कृत तथा यूरोपीय भाषाओं में आरम् Arrown =अस्त्र तथा शस्त्र धारण करने वाला यौद्धा ….अथवा वीरः |आर्य शब्द की व्युत्पत्ति( Etymology )
संस्कृत की अर् (ऋृ) धातु मूलक है— अर् धातु के तीन अर्थ सर्व मान्य है ।
१–गमन करना To go
२– मारना to kill
३– हल (अरम्) चलाना plough….
Harrow मध्य इंग्लिश—रूप Harwe कृषि कार्य करना
..प्राचीन विश्व में सुसंगठित रूप से कृषि कार्य करने वाले प्रथम मानव आर्य ही थे ।
इस तथ्य के प्रबल प्रमाण भी हमारे पास हैं ! पाणिनि तथा इनसे भी पूर्व ..कार्तसन धातु पाठ में …ऋृ (अर्) धातु कृषिकर्मे गतौ हिंसायाम् च.. के रूप में परस्मैपदीय रूप —-ऋणोति अरोति वा
अन्यत्र ऋृ गतौ धातु पाठ .३/१६ प० इयर्ति -जाता है ।
वास्तव में संस्कृत की अर् धातु का तादात्म्य. identity. यूरोप की सांस्कृतिक भाषा लैटिन की क्रिया -रूप इर्रेयर Errare =to go से प्रस्तावित है ।
जर्मन भाषा में यह शब्द आइरे irre =to go के रूप में है पुरानी अंग्रेजी में जिसका प्रचलित रूप एर (Err) है …….इसी अर् धातु से विकसित शब्द लैटिन तथा ग्रीक भाषाओं में क्रमशः Araval तथा Aravalis हैं ।
अर्थात् कृषि कार्य.भी ड्रयूडों की वन मूलक संस्कृति से अनुप्रेरित है !
देव संस्कृति के उपासक आर्यों की संस्कृति ग्रामीण जीवन मूलक है और कृषि विद्या के जनक आर्य थे ।
परन्तु आर्य विशेषण पहले असुर संस्कृति के अनुयायी ईरानीयों का था।
यह बात आंशिक सत्य है क्योंकि बाल्टिक सागर के तटवर्ती ड्रयूडों (Druids) की वन मूलक संस्कृति से जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध इस देव संस्कृति के उपासक आर्यों ने यह प्रेरणा ग्रहण की।
…सर्व-प्रथम अपने द्वित्तीय पढ़ाव में मध्य -एशिया में ही कृषि कार्य आरम्भ कर दिया था।
देव संस्कृति के उपासक आर्य स्वभाव से ही युद्ध-प्रिय व घुमक्कड़ थे ।
घोड़े रथ इनके -प्रिय वाहन थे ।
ये कुशल चरावाहों के रूप में यूरोप तथा सम्पूर्ण एशिया की धरा पर अपनी महान सम्पत्ति गौओं के साथ कबीलों के रूप में यायावर जीवन व्यतीत करते थे।
….यहीं से इनकी ग्राम - सभ्यता का विकास हुआ था .अपनी गौओं के साथ साथ विचरण करते हुए .
जहाँ जहाँ भी ये विशाल ग्रास-मेदिनी (घास के मैदान )देखते उसी स्थान पर अपना पढ़ाव डाल देते थे ।
संस्कृत भाषा में ग्राम शब्द की व्युत्पत्ति इसी व्यवहार मूलक प्रेरणा से हुई।
…क्यों कि अब भी संस्कृत तथा यूरोप के शब्द लगभग 90% प्रतिशत साम्य - मूलक हैं ।
पुरानी आयरिश भाषा में आइर (आयर ) शब्द है जिसका अर्थ है :- अभिजात अथवा स्वतन्त्र और "महान" Old Irish (aire), meaning "freeman" and "noble"
एरियो- के साथ व्यक्तिगत नाम गॉलिश (प्राचीन फ्राँन्स की भाषा ) में तथा ईरानीयों के धर्म-ग्रन्थ है ।
अवेस्ता में एेर्या (airya) है जिसका अर्थ है आर्यन, ईरानी बड़े अर्थ में है ।
ओल्ड इंडिक प्राचीन भारतीय भाषा में एरि-अर्थात्, वफादार, समर्पित व्यक्ति और रिश्तेदार से जुड़ा हुआ है।
आयर आर्य्य का रूपान्तरण है ।
वस्तुत: गोपालन वृत्ति से समन्वित जन-जाति आभीर हिब्रू-बाइबिल के अहीर( बीर ) तथा आयरिश शब्द आयर से सम्बन्धित है ।
यूनानी देवता अरिस् एक सिद्ध का ही देवता है ।
ares (/ esriːz /; प्राचीन यूनानी: ηςρÁ, [res [árɛːs]) युद्ध का ग्रीक देवता है।
वह ज़ीउस और हेरा के पुत्र है जो बारह ओलंपिक में से ही एक हैं। Ares (/ˈɛəriːz/; Ancient Greek: Ἄρης, Áres [árɛːs]) is the Greek god of war.
He is one of the Twelve Olympians, the son of Zeus and Hera.
Reference:- Hesiod, Theogony 921 (Loeb Classical Library numbering); Iliad, 5.890–896. By contrast, Ares's Roman counterpart Mars was born from Juno alone, according to Ovid (Fasti 5.229–260).
ग्रीक साहित्य में, वह अरिस् अक्सर अपनी बहन के विपरीत युद्ध के भौतिक या हिंसक और अदम्य पहलू का प्रतिनिधित्व करता है।
बख़्तरबंद एथेना, जिसके कार्यों में बुद्धि की देवी के रूप में सैन्य रणनीति और सेनापती शामिल हैं।
In Greek literature, he often represents the physical or violent and untamed aspect of war, in contrast to his sister, the armored Athena,
whose functions as a goddess of intelligence include military strategy and generalship.
Reference :-
Walter Burkert, Greek Religion (Blackwell, 1985, 2004 reprint, originally published 1977 in German), pp.
141; William Hansen, Classical Mythology: A Guide to the Mythical World of the Greeks and Romans (Oxford University Press, 2005), p. 113.
रोमन देव संस्कृति के अनुयायीयों ने मार्स ( मार) के रूप में युद्ध के देवता की कल्पना की
प्राचीन रोमन धर्म और मिथक में, (लैटिन: Mārs,) युद्ध का देवता था और यह एक कृषि संरक्षक भी था, जो प्रारंभिक रोम की विशेषता थी।
वह केवल बृहस्पति के लिए दूसरे स्थान पर था और वह रोमन सेना के धर्म में सैन्य देवताओं में सबसे प्रमुख था। उनके अधिकांश त्योहार मार्च, (लैटिन मार्टियस) नाम के महीने में और अक्टूबर में आयोजित किए जाते थे, जो सैन्य अभियान के लिए मौसम की शुरुआत करते थे और खेती के लिए मौसम का अंत करते थे।
अंग्रेजी में प्रचलित मार्च( March) - युद्ध अभियान के अर्थ में रूढ़ हो गया है ।
मित्रों ब्राह्मणों का कृषि और गौपालन से क्या वास्ता ?
मन्दिर तक है इन पुरोहितों का रास्ता !
प्रस्तुति करण:- यादव योगेश कुमार "रोहि"
सम्पर्क सूत्र:- 8077160219..