भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।
भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।
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प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्षेत्र में यज्ञ करके
म्लेच्छों का विनाश करता है । परन्तु कलि युग मानव रूप धारण कर स्वयं ही म्लेच्छों के रूप में राज करता है
तभी भगवान अपनी पूजा से प्रसन्न होकर कलि को को वरदान देते हैं !
और कलि से कहते हैं कि कई दृष्टियों से तुम ए़अन्य युगों में श्रेष्ठ हो ।
तभी इसी वरदान के प्रभाव से आदम नामक पुरुष तथा हव्यवती ( हव्वा) नामकी पत्नी से म्लेच्छों के वंश की वृद्धि होती है ।
वस्तुत हिब्रू संस्कृतियों में प्राप्त आदम और हव्वा मिश्र की पुरा-कथाओं में वर्णित एतम (Atum )देव और अवि का सैमेटिक संस्करण है।
जो केवल आत्मा और जीवन शक्ति अवि का मानवीय करण आलंकारिक रूप है।
वैदिक भाषा में आदिम -- आदौ भवः आदि डिमच् । आदौ भवे इति आदिम: । प्रारम्भ में उत्पन्न होने पर आदिम नाम करण ।
संस्कृत भाषा में आत्मा शब्द के अनेक प्रासंगिक अर्थ भी हैं जैसे :----
१--वायु २--अग्नि ३---सूर्य ४--- व्यक्ति --स्त्री पुरुष दौनो का सम्यक् (पूर्ण) रूप ५---ब्रह्म जो कि द्वन्द्व से सर्वथा परे है।
:---मिश्र की प्राचीन संस्कृति में आत्मा एटुम (Atum )के रूप में सृष्टि का सृजन करने वाले प्रथम देवता के रूप में मान्य है , कालान्तरण में मिश्र की संस्कृति में यह रूप Aten या Aton के रूप में सूर्य देव को दे दिया गया ,प्राचीन मिश्र के लोग भारतीयों के समान सूर्य को विश्व की आत्मा मानते थे ।
मिश्र की संस्कृति में अातुम atum का स्वरूप स्त्री और पुरुष दौनो के समान रूप में था ।
और यही (एतुम )वास्तव में सुमेर और बैबीलॉन की संस्कृतियों में आदम के रूप उदित हुआ , जो स्त्री और पुरुष दौनो का वाचक है ।
...और यही से आदम शब्द हिब्रू परम्पराओं में उदय हुआ ।
जिसका समायोजन कुछ अल्पान्तरण के साथ यहूदी.ईसाई तथा इस्लामी शरीयत ने किया है ।
मिश्र वालों की अवधारणा थी की आतुम( Atum) पूर्ण तथा अनादि देव है ।
जिसने समग्र सृष्टि का सृजन कर दिया है ।
.. इसी सन्दर्भ में भारतीय उपनिषदों ने कहा है आत्मा के विषय में जो ब्रह्म के अर्थ में है--- "
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पूर्णम् अदः पूर्णम् इदम् पूर्णात् पूर्णम् उद्च्यते । . पूर्णस्य पूर्णम् आदाय पूर्णम् इव अवशिष्यते .।।
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..ईशावास्योपनिषद...अर्थात् यह आत्मा पूर्ण है और इस पूर्ण से पूर्ण निकालने पर भी पूर्ण ही अवशेष बचता है ।
..इधर श्रीमद भगवद् गीता उद्घोष करती है..🌷🌷 ~ नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः |
नैनं क्लेदयन्ति आपो न शोषयति मारुतः ||..
....... भारतीयों की धारणा के समान जर्मन आर्यों की अवधारणा भी यही थी ..जर्मन वर्ग की प्राचीन भाषाओं में आज भी आत्मा को एटुम (Atum) कहते हैं ।
पुरानी उच्च जर्मन O.H.G. भाषा में (Atum)
वस्तुत हिब्रू संस्कृतियों में आदम ( आत्मा) और उससे सम्बद्ध जीवन शक्ति (अवि) का केवल मानवीय करण आलंकारिक वर्णन कर दिया है ।
वेदों के अनुवर्ती लौकिक संस्कृत साहित्य (148- 184 ई०पू० ) में अवि शब्द के अनेक प्रासंगिक अर्थ विकसित हुए :- अवि:-(अव--इन् ) १ सूर्य्ये, २ अर्कवृक्षे ३ मेषे, ४ छागे, “महान्त्यपि समृद्धानि गोजाविधनधान्यतः” जिनकार्म्मुकवस्तावी पृथक् दद्याद् विशुद्धये” इति च मनुःस्मृति ५ पर्व्वते, ६ मूषिककम्बले, ७ प्रमौ च । ८ लज्जायां स्त्री वा ङीप् । खार्थे कन् । अविशब्दार्थे । अवि लज्जावान् स्त्री का वाचक हुआ ।
भविष्य पुराण में आदम और हव्वा की कथाऐं हिब्रू संस्कृतियों से ग्रहण की गयी हैं ।👇
कलि युग में तीन हजार वर्ष व्यतीत होने पर भारत में विक्रमादित्य का आविर्भाव होता है । इसी समय रूद्रकिंकर वैताल का आगमन होता है ।
इसके बाद श्री सत्यनाराण व्रत की कथा है ।
भारतीय धरा पर सत्य नारायण की कथा अत्यन्त प्रसिद्ध है ।
भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व में श्रीसत्य-नारायण की कथा छ: अध्यायों में वर्णित है---------
यह कथा स्कन्द पुराण की प्रचलित कथा से मिलती है
इसी खण्ड के अन्तिम अध्यायों में पितृ शर्मा और उनके वंश में चार पुत्रो १- व्याणि २-मीमांसक ३ वररुचि ४ पणिनी आदि की रोचक कथाऐं प्राप्त होती हैं।
मध्यचरित्र के महात्म्य में कात्यायन और मगध के राजा महानन्द की कथा तथा उत्तर- चरित में योगाचार्य
पतञ्जलि काे चरित्र का वर्णन है ।
भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व के तृत्तीय खण्ड में वलदेव के अंशावतारी आल्हा तथा कृष्ण के अंशावतारी ऊदल के चरित्र का आनुमानिक विवरण है ।
तथा जयचन्द और पृथ्वी राज चौहन की वीरगाथाओं का वर्णन है ।
इसी खण्ड में शकों के अधीश शालिवाहन ने हिमालय पर्वत के हिमशिखर पर गौर वर्ण
के एक सुन्दर पुरुष को देखा ; जो श्वेताम्बर धारण किए हुआ था ।
जिसने अपना नाम ईसा- मसीह बताया ।
शालिवाहन के वंशज अन्तिम दशवें राजा भोज हुए ।जिनके साथ महामद ( मोहम्मद -इस्लाम के पैगम्बर) का वर्णन है ।
राजा भोज ने मरुस्थल ( मदीन) में स्थित महादेव का दर्शन किया ; तथा भक्ति भाव पूर्वक पूजन- स्तुति की -- भगवान शिव ने प्रकट होकर म्लेच्छों से दूषित उस स्थान को त्याग कर महाकालेश्वर तीर्थ में जाने की आज्ञा प्रदान की -- तत्पश्चात देशराज आदि राजाओं के जन्म की कथा है ।
पृथ्वी राज चपहानि ( चौहान) की वीरगति प्राप्त होने के सहोड्डीन ( मोहम्मद गौरी) के द्वारा कोतुकोद्दीन को दिल्ली का शासन सौंप कर इस देश से धन लूटकर ले जाने का विवरण प्राप्त है।
प्रतिसर्ग पर्व का अन्तिम चतुर्थ खण्ड है । जिस में सर्व प्रथम आन्ध्र: वंशीय राजाओं के वंश का वर्णन है ।
तदन्तर राजपूताना और दिल्ली नगर के राजवंशों का इतिहास प्राप्त होता है जो कुछ कल्पना रञ्जित है ।
राजस्थान के प्रमुख नगर अजमेर की कथा मिलती है जो काल्पनिक रूप से वर्णित की गयी है ।
अज ( अजन्में ) ब्रह्मा के द्वारा रचित होने से तथा देवी लक्ष्मी (रमा) शुभ आगमन से से रम्य या रमणीय यह नगर अजमेर नाम से प्रसिद्ध हुआ । यह भारत का तल्कालीन सबसे सुन्दर नगर माना गया ।
कृष्ण वर्मा के पुत्र उदयन ने उदय पुर नामक नगर बसाया । और कान्यकुब्ज ( कन्नौज) नगर की कथा भी विचित्र है ।
एक वार राजा प्रणय की कथा से प्रसन्न होकर भगवती शारदा ने प्रसन्न होकर कन्या रूप में वर्णन वादन करती हुई आई ,और राजा प्रणय को वरदा. रूप में यह नगर प्रदान किया । इस लिए यह नगर कान्यकुब्ज हुआ ।
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चित्र-कूट का निर्माण भी भगवती की कृपा से हुआ
वहाँ कलियुग प्रवेश नहीं कर सकता इस लिए उसका नाम कलिञ्जर हुआ ।
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" नगरं चित्रकूटाद्रौ चकार कलिनिर्जरम् ।
कलिर्यत्र भवेदबद्धो नगरे८स्मिन् सुर प्रिये।।
अत: कलिंजरो नाम्ना प्रसिद्धो८भून्महीतले ।।प्रतिसर्ग पर्व (4/4/3-4)
इसी प्रकार बंगाल के राजा भोगवर्मा ने महाकाली की उपासना की तब भगवती काली ने प्रसन्न होकर एक सुन्दर नगर उत्पन्न किया जो कलिकाता पुरी कहलाया । इसी क्रम में वर्णन है दिल्ली नगर पर पठानों का के शासन का - तैमूर लंग द्वारा भारत पर आक्रमण और लुटने का वर्णन है ।
कलियुग में अवतीर्ण होने वाले विभिन्न आचार्य सन्तों का वर्णन है जैसे -- सातवीं सदी के शंकराचार्य रामानन्द , निम्बादित्य, श्रीधर पाठक, विष्णु स्वामी, वाराहमिहिर ,भट्टोजिदीक्षित ,धन्वन्तरि, चैतन्य महाप्रभु , रामानुज ,श्रीमध्वाचार्य ,गोरखनाथ ।
आदि का विस्तृत चरित्र-विवरण है। ये सभी सूर्य के अंश से उत्पन्न बताए गये हैं।
इन्हें ही द्वादश आदित्य( सूर्य) कहा गया है ।
इसी श्रृंखला में सूरदास का वर्णन है। 👇
भारतीय इतिहास के अनुसार सूरदास का जन्म इस प्रकार है ।👇
सूरदास का जन्म १४७८ ईस्वी में रुनकता नामक गाँव में हुआ। यह गाँव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है। तुलसीदास , कबीर ,नरसी मेहता ,पीपा ,नानक, रैदास ,नामदेव, रंक्कण , धन्नाजाटभगत , आदि की कथाऐं आती है ।
तथा इसी श्रृंखला में विभिन्न अखाड़ों के नाम जैसे
आनन्द , गुरू, पुरी, वन,आश्रम, पर्वत,भारती ।एवं नाथ आदि दशनामी दश साधुओं की जन्म कथा है।
इसी में हनुमान के द्वारा सूर्य के निकलने की कथा है ।
अन्तिम अध्याय में मुगलों का वर्णन है - जैसे बाबर, हुमायूँ ,अकबर, शाहजहाँ , जहाँगीर , तथा औरंगजेब आदि प्रमुख मुगल शासकों का वर्णन है।
इसी क्रम में वीर शिवाजी की वीरता का वर्णन भी है।
फिर ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया और उसके पार्लियामेण्ट का वर्णन हुआ है ।
रानी विक्टोरिया को भविष्य पुराण में विकटावती कहा गया है ।
ब्रिटिश इतिहास के अनुसार----👇
महारानी विक्टोरिया(Victoria) का जन्म 24 मई 1819 को हुआ, और वो प्रिंस एडवर्ड की बेटी थी।
जो उस समय और केण्ट और स्ट्रैथैर्न के शासक थे | उनकी मौत के बात जर्मनी में पैदा हुई उनकी माँ ने रानी विक्टोरिया (Queen Victoria )की देखभाल की और उन्हें 18 साल की उम्र में सिंहासन एक तरह से विरासत में ही मिला |
उस समय इंग्लैंड में संवैधानिक राजतंत्र (Constitutional monarchy) थी !
जिसमे सम्राट के हाथ में पूरी शक्ति नहीं होती है | Victoria ने Albert of Saxe-Coburg and Gotha से 1840 में शादी की ....
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भविष्य पुराण के अनुसार इसके श्लोकों की संख्या 50,000 के लगभग होनी चाहिए, परन्तु वर्तमान में कुल 14,000 श्लोक ही उपलब्ध हैं।
भारतीय प्राच्य विद्या के रूढ़िवादी विद्वानों के अनुसार भविष्य पुराण में मूलतः पचास हजार श्लोक विद्यमान थे।
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परन्तु श्रव्य परम्परा पर निर्भरता और अभिलेखों के लगातार विनष्टीकरण के परिणामस्वरूप वर्तमान में केवल 129 अध्याय और अठ्ठाइस हजार श्लोक ही उपलब्ध रह गए हैं।
स्पष्ट है कि अभी भी दुनिया उन अद्भुत एवं विलक्षण घटनाओं और ज्ञान से पूर्णतया अनभिज्ञ हैं, जो इस पुराण के विलुप्त आधे भाग में वर्णित रही होंगी।
यह पुराण ब्रह्म, मध्यम, प्रतिसर्ग तथा उत्तर- इन 4 प्रमुख पर्वों में विभक्त है-।
ऐैतिहासिक घटनाओं का वर्णन प्रतिसर्ग पर्व में वर्णित है।
---जो बड़ी चालाकी से भविष्य की घटना के रूप में निर्धारित कर दी
परन्तु इसे पुराण में अनेक शब्द व्युत्पत्ति मूलक प्रक्षिप्त हैं ।
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जैसे पृथ्वीराज चौहान को चापिहान लिखना जैसे चौहान शब्द चापिहान का ही तद्भव रूप हो !
परन्तु मूर्ख लेखक को शब्द व्युत्पत्ति का कोई ऐैतिहासिक ज्ञान नहीं था ।
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चौहान , चाह्वाण आदि शब्द राजस्थान के शाम्बर क्षेत्र से सम्बद्ध हैं ।
शाम्बर झील राजस्थान में नमक के लिए प्रसिद्ध रही है
इसी से चौहान शब्द का विकास हुआ है । परन्तु यह भी भ्रान्ति मूलक व्युत्पत्ति है । क्यों कि यह झील भी चौहान वंश के शासकों ने बाद में खुदवायी थी ।
चौहान मंगोलिया के (चाउ-हुन ) श्वेत-हूण का तद्भव रूप है ।
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डॉ. डी. आर. भण्डारकर राजपूतों को गुर्जर मानकर उनका संबंध श्वेत-हूणों के स्थापित करके विदेशी वंशीय उत्पत्ति को और बल देते हैं। इसकी पुष्टि में वे बताते हैं कि पुराणों में गुर्जर और हूणों का वर्णन विदेशियों के सन्दर्भ में मिलता है। इसी प्रकार उनका कहना है कि अग्निवंशीय प्रतिहार, परमार, चालुक्य और चौहान भी गुर्जर थे, क्योंकि राजोर अभिलेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।. 👇
चौहान शब्द भारतीय इतिहास में चौथी शताब्दी ईस्वी में उद्भासित होता है । श्वेत-हूण, चाहल (यूरोपीय इतिहास का भारतीय चोल संस्करण चालुक्य जो बाद में सौलंकी बन गया ) के वंशज, कैस्पियन समुद्र के पूर्व में बसे हुए थे। यही वह अवधि थी जब चाहल (चोल) गजनी क्षेत्र में ज़बुलिस्तान पर कब्जा कर रहे थे।
यह वंश मध्य एशियाई है और मूल निवासीयों के साथ अन्तःक्रिया के कारण यह भारतीय, ईरानी और तुर्की भी है। इस उपनाम के बारे में और पढ़ें चौहान उपनाम वितरण - 25% पत्रक
| जनसंख्या डेटा © Forebears के अनुसार---
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-घटनाओं से पूर्ण स्क्रीन 2014 क्षेत्र में घटना आवृत्ति रैंक रखें भारत 1,592,334 1: 482 53 इंग्लैंड 9150 1: 6076 861 संयुक्त राज्य अमेरिका 3,730 1: 96,850 10,829 संयुक्त अरब अमीरात 2,679 1: 3,425 428 सऊदी अरब 2,0 9 2 1: 14,751 2,0 9 5 पाकिस्तान 1,719 1: 101,474 3310 कनाडा 1,677 1: 21,943 3006 ओमान 1,549 1: 2,547 505 केन्या 1,349 1: 34,128 4126 फिजी 943 1: 948 108 सभी राष्ट्र दिखाओ चौहान उपनाम अर्थ $ 100 वंशावली डीएनए परीक्षण जीतने की संभावना के लिए इस उपनाम पर जानकारी जमा करें ।
डीएनए परीक्षण जानकारी उपयोगकर्ता द्वारा प्रस्तुत संदर्भ चौथी शताब्दी ईस्वी में व्हाइट हूण, चाहल्स (चालुक्य) (यूरोपीय इतिहास का चोल संस्करण) के वंशज,
। हालांकि, नाम चोल को एक और कबीले द्वारा साझा किया जाता है और अंतर मिश्रण होता है;।
इसलिए वंश मिश्रित है।
चाहल (चोल) नाम लेबनान, इज़राइल और मध्य एशियाई देशों के मूल निवासीयों के रूप में पाया जा सकता है।
- hsingh1861 ध्वन्यात्मक रूप से समान नाम उपनाम समानता घटना Prevalency Chaouhan 93 307 / Chauahan 93 253 / Chauhaan 93 243 / Chauhana 93 94 / Chauhanu 93 60 / Chauehan 93 46 / Chauohan 93 35 / Chauhann 93 21 / Chaauhan 93 18 / Chauhani 93 15 /
बंगाली में चौहान চৌহান cauhana - हिंदी में चौहान चौहान cauhana 98.92 सभी अनुवाद दिखाएं मराठी में चौहान चौहान cauhana 77.03 चौहाण cauhana 16.16 छगन chagana 1.99 चोहान cohana 1.23 सभी अनुवाद दिखाएं तिब्बती में चौहान ཅུ་ ཝཱན ་. chuwen 66.67 ཅུ་ ཧན ་. chuhen 33.33 उडिया में चौहान େଚୗହାନ ecahana 60.75 େଚୗହାନ୍ 14.52 ecahan ଚଉହାନ ca'uhana 6.99 େଚୖହାନ ecahana 4.84 େଚୖାହାନ ecaahana 3.23 େଚୗହାଣ ecahana 2.15 ଚୗହନ ecahana 2.15 େଚୗାନ ecaana 2.15 सभी अनुवाद दिखाएं अरबी में चौहान شوهان shwhan - उपनाम आंकड़े अभी भी विकास में हैं, अधिक मानचित्र और डेटा पर जानकारी के लिए साइन अप करें सदस्यता लें मेलिंग सूची में साइन अप करके आप केवल विशेष रूप से फोरबियर पर उपनाम संदर्भ के बारे में ईमेल प्राप्त करेंगे और आपकी जानकारी तीसरे पक्ष को वितरित नहीं की जाएगी। फुटनोट उपनाम वितरण आंकड़े 4 बिलियन लोगों के वैश्विक नमूने से उत्पन्न होते हैं रैंक: उपनामों को क्रमिक रैंकिंग विधि का उपयोग करके घटनाओं द्वारा क्रमबद्ध किया जाता है; उपनाम जो सबसे अधिक होता है उसे 1 का रैंक सौंपा जाता है; उपनाम जो अक्सर कम होते हैं, एक वृद्धिशील रैंक प्राप्त करते हैं; यदि दो या दो से अधिक उपनाम समान संख्या में होते हैं तो उन्हें एक ही रैंक आवंटित किया जाता है और कुल रैंक को उपरोक्त उपनामों द्वारा क्रमशः बढ़ाया जाता है इसी तरह: "समान उपनाम" खंड में सूचीबद्ध उपनाम ध्वन्यात्मक रूप से समान हैं और शायद चौहान से कोई संबंध नहीं हो सकता है वेबसाइट जानकारी....👇 AboutContactCopyrightPrivacyCredits संसाधन forenames उपनाम वंशावली संसाधन इंग्लैंड और वेल्स गाइड © Forebears 2012-2018
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Chauhan Surname User-submission:
Descandants of White Huns, the Chahals (Chols of European history) ---
in the fourth century AD, were settled on the east of Caspian sea. This was the period when Chahals were occupying Zabulistan in the Ghazni area. Ancestry is Central Asian and due to interbreeding with natives it is Indian, Iranian, and Turkish.
Chauhan Surname Meaning
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Descandants of White Huns, the Chahals (Chols of European history) in the fourth century AD, were settled on the east of Caspian sea. This was the period when Chahals were occupying Zabulistan in the Ghazni area. Ancestry is Central Asian and due to interbreeding with natives it is Indian, Iranian, and Turkish.
However, the name Chahal is shared by another clan and inter mixing has occurred; so ancestry is mixed. The name Chahal can be found native to Lebanon, Israel and Central Asian countries.
- hsingh1861
Phonetically Similar Names
SurnameSimilarityIncidencePrevalency
Chaouhan93307/
Chauahan93253/
Chauhaan93243/
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চৌহানcauhana-
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प्राचीन चीन का सबसे लंबा स्थायी राजवंश चौ
( चाउ) ने चीन को लगभग 1027 से 221 ई०पू० तक शासन किया। यह चीनी इतिहास में सबसे लंबा राजवंश था और उस समय जब प्राचीन चीनी संस्कृति का विकास हुआ था।
चौ राजवंश ने दूसरे चीनी राजवंश, शांग (शुंग) का पालन किया।
मूल रूप से पादरी, चौउ ने प्रशासनिक नौकरशाही के साथ परिवारों पर आधारित एक (प्रोटो-) सामन्ती सामाजिक संगठन स्थापित किया।
उन्होंने एक मध्यम वर्ग भी विकसित किया।
हालांकि शुरुआत में एक विकेन्द्रीकृत आदिवासी प्रणाली, चाउ समय के साथ केंद्रीकृत हो गया।
अब ये हूण तो थे ही ..
विदित हो की सुंग एक चीनी वंशगत विशेषण भी है और पुष्य-मित्र सुंग कालीन शुल्क तथा भारद्वाज ब्राह्मणों का भी ....
हुन उत्पत्ति के सन्दर्भों में इतिहास कारों का यह मत भी मान्य है कि अपने
जीवन में यौद्धिक क्रियाओं में हूण
रोमन साम्राज्य तक पहुंचें और बाद में
एकजुट हुए ---
हूण भयानक योद्धा थे जिन्होंने चौथी और 5 वीं शताब्दी में यूरोप और रोमन साम्राज्य के अधिकांश क्षेत्रों को आतंकित किया था।
वे प्रभावशाली घुड़सवार थे जो सबसे आश्चर्यजनक सैन्य उपलब्धियों के लिए जाने जाते थे।
जैसे ही उन्होंने यूरोपीय महाद्वीप में जाने वाले रास्ते को लूट लिया, हुनों ने क्रूर, अदम्य यौद्धिक प्रतिष्ठा हासिल की।
हुन उत्पत्ति के विषय में विद्वानों में मतभेद है ।
कोई भी नहीं जानता कि हूण कहाँ से आये थे। कुछ विद्वानों का मानना है कि वे नामांकित (Xiongnu) लोगों से निकले हैं जिन्होंने 318 बीसी ( ई०पू०) में ऐैतिहासिक रिकॉर्ड में प्रवेश किया था।
और क्यून राजवंश के दौरान और बाद में हान राजवंश के दौरान चीन को भी आतंकित किया।
चीन की महान दीवार को शक्तिशाली (Xiongnu ) लोगो के खिलाफ सुरक्षा में मदद के लिए बनाया गया था।
अन्य इतिहासकारों का मानना है कि हूण कजाकिस्तान से या एशिया में कहीं और से पैदा हुए थे।
चौथी शताब्दी से पहले, हूण ने सरदारों के नेतृत्व में छोटे समूहों में यात्रा की और उन्हें कोई व्यक्तिगत राजा या नेता नहीं पता था।
वे 370 एडी के आसपास दक्षिण-पूर्वी यूरोप पहुंचे और 70 से अधिक वर्षों तक एक के बाद एक क्षेत्र पर विजय प्राप्त की।
हूण घुड़सवार स्वामी (सरदार) थे जिन्होंने कथित तौर पर घोड़ों को सम्मानित किया और कभी-कभी घुड़सवारी पर शयन ।
उन्होंने तीन साल की उम्र में घुड़सवारी सीखा और पौराणिक कथाओं के अनुसार, उनके चेहरे को एक युवा उम्र में एक तलवार से पीटा जाता था । ताकि उन्हें दर्द सहन करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सके।
अधिकांश हुन सैनिकों ने बस कपड़े पहने लेकिन राजनीतिक रूप से सोने, चांदी और कीमती पत्थरों में छिद्रित सड़कों और रकाबों के साथ अपने कदमों को बाहर निकाला।
उन्होंने पशुधन उठाया लेकिन किसान नहीं थे और शायद ही कभी एक क्षेत्र में बस गए थे। वे भूमि को शिकारी-समूह के रूप में, जंगली खेल पर भोजन और जड़ें और जड़ी बूटी इकट्ठा करते थे।
हूणों ने युद्ध के लिए एक अनूठा दृष्टिकोण लिया। वे युद्ध के मैदान पर तेजी से और तेजी से चले गए और प्रतीत होने वाले विवाद में लड़े, जिसने अपने दुश्मनों को भ्रमित कर दिया और उन्हें दौड़ में रखा। वे विशेषज्ञ तीरंदाज थे जिन्होंने अनुभवी बर्च, हड्डी और गोंद से बने रिफ्लेक्स क्रोस वॉ ( नावक धनुष) का उपयोग किया था।
भविष्य पुराण में आबू पूर्वत पर अग्निवंशीय राजपूतों की उत्पत्ति का परिकल्पना
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भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व अध्याय सात में महाराज विक्रमादित्य के चरित्र-उपक्रम में सूत जी और शौनक के संवाद का भूमिका करण किया गया है कि -
सूतजी बोले ------चित्र-कूट ( आज का बुन्देलखण्ड और बघेलखण्ड ) पर्वत के समीप वर्ती क्षेत्र में परिहार नामक एक राजा हुआ ; उसने रमणीय कलिञ्जर नगर में अपने पराक्रम से बौद्धों को परास्त कर पूर्ण प्रतिष्ठा प्राप्त की तभी राजपूताना रे क्षेत्र ( दिल्ली नगर) में चपहानि (चौहान)नामक राजा हुआ ; उसने अति सुन्दर नगर अजमेर में सुख-पूर्वक राज्य लिया ।
उसके राज्य में चारों वर्ण स्थित थे ।आनर्त (गुजरात ) प्रदेश में शुल्क नामक राजा हुआ उसने द्वारिका को राजधानी बनाया ।
शौनकजी ने कहा ----- हे महाभाग ! अब आप अग्नि वंशी राजाओं का वर्णन करें ।
सूतजी बोले--- ब्राह्मणों इस समय
मैं योग- निद्रा के वशीभूत हो गया हूँ ; अब आप लोग भी भगवान का ध्यान करें ।
अब मैं अल्प विश्राम करुँगा ।
यह सुन कर ब्राह्मण- भगवान विष्णु के ध्यान में लीन हो गये ।
दीर्घ अन्तराल के पश्चात् ध्यान से उठकर सूत जी पुन: बोले -----महामुने कलियुग के सैंतील़स सौ दश वर्षों व्यतीत होने पर प्रमर ( परमार) नामक राजा ने राज्य करना प्रारम्भ किया । उन्हें महामद ( मोहम्मद) नामक पुत्र उत्पन्न हुआ ।
तब तीन हजार वर्ष पूर्ण होने पर कलियुग का आगमन हुआ ।
तब शकों के विनाश के लिए और आर्य धर्म की वृद्ध के लिए वे ही शिव-दृष्टि गुह्यकों की निवास भूमि कैलास से शंकर की आज्ञा पाकर पृथ्वी पर विक्रमादित्य नाम से प्रसिद्ध हुए । अम्बावती नगरी में आकर विक्रमादित्य ने बत्तीस मूर्तियों से समन्वित किया ।भगवती पार्वती के द्वारा प्रेषित एक वैताल उसकी रक्षा में सदैव तत्पर रहता था । इन चारों क्षत्रियों ने ब्राह्मणों के निर्देश पर
अशोक के वंशजों को अपने अधीन कर भारत वर्ष के सभी बौद्धों को नष्ट कर दिया ।
अवन्त में परमार ---प्रमर राजा हुए उसने चार योजन लम्बी अम्बावती नगरी में स्थित होकर सुख-पूर्वक जीवन व्यतीत किया ।
अध्याय सोलहवाँ समाप्त हुआ !!
गीताप्रेस गोरख पुर संस्करण कल्याण भविष्य पुराण अंक पृष्ठ संख्या--244 💥👹
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भविष्य पुराण में वर्णन है कि बिम्बसार के पुत्र अशोक के समय कान्यकुब्ज (कन्नौज) देश का एक ब्राह्मण आबू पर्वत पर चला गया और वहाँ उसने विध-पूर्वक ब्रह्महोत्र सम्पन्न किया तभी वेद मन्त्रों के प्रभाव से यज्ञ कुण्ड से चार क्षत्रियों की उत्पत्ति हुई । 1- प्रमर (परमार) सामवेदी मन्त्र प्रभाव से , 2- चपहानि ( कृष्ण यजुर्वेदी त्रिवेदी मन्त्र प्रभाव से 3--गहरवार (शुक्ल यजुर्वेदी और 4--परिहारक अथर्वेदी क्षत्रिय थे । ये सब एरावत कुलों में उत्पन्न हाथीयों पर आरूढ (सवार) थे ।
अग्निकुंड का सिद्धांत
लेखक चंद्रवरदाई ने अपने ग्रंथ पृथ्वीराज रासो में राजपूतों की उत्पत्ति का अग्नि कुंड का सिद्धांत प्रतिपादित किया इनकी उत्पत्ति के बारे में उन्होंने बताया कि माउंट आबू पर गुरु वशिष्ट का आश्रम था, गुरु वशिष्ठ जब यज्ञ करते थे तब कुछ दैत्यो द्वारा उस यज्ञ को असफल कर दिया जाता था! तथा उस यज्ञ में अनावश्यक वस्तुओं को डाल दिया जाता था
अग्निकुण्ड का सिद्धान्त का यथार्थ----
वशिष्ठ के यज्ञ में असुर उत्पात करते हैं जिसके कारण यज्ञ दूषित हो जाता था गुरु वशिष्ठ ने इस समस्या से निजात पाने के लिए अग्निकुंड अग्नि से 3 योद्धाओं को प्रकट किया इन योद्धाओं में परमार, गुर्जर, प्रतिहार, तथा चालुक्य( सोलंकी) पैदा हुए, लेकिन समस्या का निराकरण नहीं हो पाया इस प्रकार गुरु वशिष्ठ ने पुनः एक बार यज्ञ किया और उस यज्ञ में एक वीर योद्धा अग्नि में प्रकट किया यही अन्तिम योद्धा ,चौहान, कहलाया इस प्रकार चंद्रवरदाई ने राजपूतों की उत्पत्ति अग्निकुंड से बताई ।
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एक व्युत्पत्ति और हास्यास्पद है:- विकटावती ।
विकटावती का प्रयोग रानी विक्टोरिया के लिए हुआ है
---जो विक्टर शब्द है उसका सम्बन्ध भारोपीय धातु Weik- से है ; जिससे तीन प्रसिद्ध अर्थ हैं ।
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1- घर. 2- युद्ध. 3--झुकाव
वेक(Weik) प्रोटो-इण्डो-यूरोपीय धातु जिसका मतलब है "लड़ना, जीतना।"
यह सभी या भाग का गठन करती है: दोषी; समझाने; बेदख़ल करना; जताना; इन्विक्टुस; अजेय; जिससे; प्रांत; जीतना; विजेता; विजय; विन्सेंट; vincible।
यह अपने अस्तित्व के लिए साक्ष्य या सबूत /के तौर पर लैटिन (विक्टर) "एक विजेता," विंस्रे का रूप है :- "जीतने, पराजित करने, हारने के लिए;" रूसी परिवार की लिथुआनियन भाषा में apveikiu, apveikti "रूप देखें--- पर काबू पाने के लिए;" पुरानी चर्च स्लाविक भाषा में veku रूप "ताकत, शक्ति, " पुराना नॉर्स में विगर "युद्ध में सक्षम", पुरानी अंग्रेज़ी में विगन "लड़ाई;" वेल्श में gwych क्वच "बहादुर, ऊर्जावान," तथा पुरानी आयरिश में फिचिम "मैं लड़ता हूं," सेल्टिक में Ordovices में दूसरा तत्व "जो हथौड़ों के साथ लड़ते हैं।"
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Weik- (1)
प्रोटो-इण्डो-यूरोपियन धातु अर्थ "कबीले, घर के ऊपर सामाजिक इकाई"।
यह सभी या अंग का हिस्सा बनता है: एंटोसिएशन; जिंदा; ब्रंसविक; सूबा; पारिस्थितिकी; अर्थव्यवस्था; सार्वभौम; Metic; बुरा; पल्ली; संकीर्ण; पड़ोस; आसपास के क्षेत्र; वाइकिंग; विला; गाँव; खलनायक;
villanelle; -ville; villein; वारविक शायर; विक (संज्ञा 2) "डेयरी फार्म।"
यह अपने अस्तित्व के लिए साक्ष्य या सबूत के तौर पर संस्कृत विश, वेश्मन "घर," विट "निवास, घर, निपटान;" अवेस्तान वी "घर, गांव, कबीले;"
पुरानी फारसी विथम "घर, शाही घर;" यूनानी भाषा में ओकोस "घर;" लैटिन विला "देश का घर, खेत,"
vicus "गांव, घरों का समूह;" लिथुआनियन viešpats "घर के मालिक;" ओल्ड चर्च स्लाविक वीसी "गांव;" गोथिक Weihs "गांव।"
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वीक Weik- (2)
भी * weig-, प्रोटो-इण्डो-यूरोपीय धातु जिसका अर्थ है "हवा में झुकाव करना।"
यह सभी या भाग का हिस्सा बनता है:
vetch; पादरी; प्रतिनिधिक; उपाध्यक्ष "सहायक, सहायक, विकल्प;" viceregent; विपरीतता से; अन्याय; कमजोर; weakfish; सप्ताह; विकर; विकेट; विच हैज़ल; wych।
यह इसके अस्तित्व के लिए सबूत के तौर पर संस्कृत विष्टी "बदलना, बदलना;"
पुराने अंग्रेजी wac "कमजोर, विशाल, मुलायम," जादूगर "रास्ता देने के लिए, उपज," पुराना नोर्स में विकजा "मोड़ने के लिए, बारी," स्वीडिश विकर "विलो ट्विग, वंड," जर्मन Wechsel "परिवर्तन। "
लैटिन विजेता "एक विजेता," विंस्रे "जीतने, पराजित करने, हारने के लिए;" लिथुआनियन apveikiu, apveikti "subdue करने के लिए, पर काबू पाने के लिए;" पुरानी चर्च स्लाविक veku "ताकत, शक्ति, उम्र;" पुराना नॉर्स विगर "युद्ध में सक्षम", पुरानी अंग्रेज़ी विगन "लड़ाई;" वेल्श gwych "बहादुर, ऊर्जावान," पुरानी आयरिश फिचिम "मैं लड़ता हूं," सेल्टिक Ordovices में दूसरा तत्व "जो हथौड़ों के साथ लड़ते हैं।"
संबंधित प्रविष्टियां
, लैटिन, शाब्दिक रूप से विक्टोरिया "युद्ध में जीत", की रोमन देवी कानाम है ।
विक्टोरिया क्रॉस एक सजावट है जिसे ग्रेट ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया द्वारा 1856 की स्थापना की गई और युद्ध में विशिष्ट बहादुरी के कृत्यों के लिए सम्मानित किया गया।
और वह विक्टोरिया कहलायी ...😂
परन्तु संस्कृत भाषा में विकट का शुद्ध रूप विकृत है
और विकृत का अर्थ है :- बिगड़ा हुआ ,विकारयुक्त
( वि कट--अच् )
१ विस्फोटके शब्दरत्नावली
२ विशाले त्रि० मेदि० ।
३ विकृत त्रि० त्रिका० ४सुन्दरे त्रि० विश्वः ५दन्तुरे त्रि० घरणिकोषः ६ मायादेव्यां स्त्री त्रिकाण्डशेषः ।
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यह पुराण भारतवर्ष के वर्तमान समस्त आधुनिक इतिहास का आधार है।
भविष्य पुराण में भारत के राजवंशों और भारत पर शासन करने वाले विदेशियों के बारे में स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
इस पुराण के संबंध में कहा जाता है कि कलियुगीन राजाओं की पुराणों में प्राप्त बहुत सी जानकारी सर्वप्रथम ‘भविष्य पुराण ’ में वर्णित की गयी थी, जिसकी रचना दूसरी शताब्दी के पश्चात् मगध देश में पाली अथवा अर्धमागधी भाषा में, एवं खरोष्ट्री लिपि में दी गयी थी।
भविष्य पुराण के इस सर्वप्रथम संस्करण की रचना आंध्र राजा शातकर्णि के राज्यकाल में (द्वितीय शताब्दी का अंत) की गयी थी।
भविष्यपुराण के इस आद्य संस्करण में तत्कालीन सूत एवं मगध लोगों में प्रचलित राजवंशों के सारे इतिहास की जानकारी वर्णित की गयी थी।
यद्यपि यह पुराण 5 हजार वर्ष पूर्व ऋषि वेद व्यास द्वारा लिखे जाने का उल्लेख मिलता है ।
जो कि कल्पना मात्र है । क्यों कि सभी परस्पर विरोधाभासी पुराणों को एक ही व्यक्ति व्यास के द्वारा रचित क़करने लिए व्यास नाम की मौहर लगायी गयी ।
भविष्य पुराण भी व्यास की रचना बना दी गयी ।
जैसा सभी पुराणों के रचियता होने की मौहर व्यास नामक व्यक्ति पर लगायी गयी ।
जिसका समय समय पर नवीनतम संस्करण निकलते रहे हैं।
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ईसा मसीह के बारे में भी भविष्य पुराण में वर्णन है । इस पुराण में ईसा मसीह का जन्म, उनकी हिमालय यात्रा और तत्कालीन सम्राट शालिवाहन से भेंट के बारे में कथा दी गई हैं।
जिसे आधुनिक रिसर्च के बाद प्रमाणित भी किया जा चुका है।
( Jesus Crist) जीजस क्राइष्ट भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व के तृतीय खण्ड के द्वितीय अध्याय के श्लोक में वर्णित हैं ।
जिसमें ईसा मसीह के लंबे समय तक भारत के उत्तरा- खण्ड में निवास करने और साधना रत रहने का वर्णन है। उस समय उत्तरी भारत में शालिवाहन का शासन था।
एक दिन जब वे शालिवाहन हिमालय गए जहां लद्दाख की ऊंची पहाड़ियों पर उन्होंने एक गौरवर्ण दिव्य पुरुष को ध्यानमग्न अवस्था में तपस्या करते हुए देखा।
समीप जाकर उन्होंने उनसे पूछा-आपका नाम क्या है और आप कहां से आए हैं? उस पुरुष ने उत्तर दिया-
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‘मेरा नाम ईसा मसीह है।
मैं कुंवारी मां के गर्भ से उत्पन्न हुआ हूं। विदेश से आया हूं जहां बुराइयों का अंत नहीं है।
उन आस्थाहीनों के बीच मैं मसीहा के रूप में प्रकट हुआ हूं।
जैसे कि ..
‘म्लेच्छदेश मसीहो८हं समागत।।
..... ईसा मसीह इति च ममनाम प्रतिष्ठितम् ।।
कलयुग का वर्णन : ''रविवारे च सण्डे च फाल्गुनी चैव फरवरी।
षष्टीश्च सिस्कटी ज्ञेया तदुदाहार वृद्धिश्म्।।''
अर्थात भविष्य में अर्थात आंग्ल युग में जब देववाणी संस्कृत भाषा लुप्त हो जाएगी, तब रविवार को ‘सण्डे’, फाल्गुन महीने को ‘फरवरी’ और षष्टी को सिक्स कहा जाएगा।
अब भविष्य पुराण कार की कल्पना भी हास्यास्पद ही है ।
भविष्यपुराण में बताया गया है कि कलयुग में लोगों के दिलों में छल होगा और अपनों के लिए भी लोगों के दिलों में जहर भरा होगा।
अपनों का भी बुरा करने से कलयुग के लोग घबराया नहीं करेंगे। दूसरों का भी हक़ खाने की आदत लोगों को हो जाएगी और चारों तरफ लूट ही लूट होगी।
कलयुग में हर व्यक्ति को किसी न किसी चीज का अहंकार होगा और वह खुद को इसलिए दूसरों से ऊपर समझने का काम करेगा।
ब्रह्मा जी ने कहा- हे नारद! भयंकर कलियुग के आने पर मनुष्य का आचरण दुष्ट हो जाएगा और योगी भी दुष्ट चित्त वाले होंगे। संसार में परस्पर विरोध फैल जाएगा।
द्विज (ब्राह्मण) दुष्ट कर्म करने वाले होंगे और विशेषकर राजाओं में चरित्रहीनता आ जाएगी।
देश-देश और गांव-गांव में कष्ट बढ़ जाएंगे। साधू लोग दुःखी होंगे।
अपने धर्म को छोड़कर लोग दूसरे धर्म का आश्रय लेंगे। देवताओं का देवत्व भी नष्ट हो जाएगा और उनका आशीर्वाद भी नहीं रहेगा।
मनुष्यों की बुद्धि धर्म से विपरीत हो जाएगी और पृथ्वी पर म्लेच्छों के राज्य का विस्तार हो जाएगा।
म्लेच्छ का अर्थ होता है दुष्ट, नीच और अनार्य।
जब हिन्दू तथा मुसलमानों में परस्पर विरोध होगा और औरंगजेब का राज्य होगा, तब विक्रम सम्वत् १७३८ का समय होगा।
उस समय अक्षर ब्रह्म से भी परे सच्चिदानन्द परब्रह्म की शक्ति भारतवर्ष में इन्द्रावती आत्मा के अन्दर विजयाभिनन्द बुद्ध निष्कलंक स्वरूप में प्रकट होगी। वह चित्रकूट के रमणीय वन के क्षेत्र (पद्मावतीपुरी पन्ना) में प्रकट होंगे।
वे वर्णाश्रम धर्म (निजानन्द) की रक्षा तथा मंदिरों की स्थापना कर संसार को प्रसन्न करेंगे।
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भविष्य पुराण कार ने मोहम्मद साहब के विषय में वर्णन किया है कि ...
लिंड्गच्छेदी शिखाहीन: श्मश्रुधारी सदूषक:। उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनोमम।।25।। विना कौलं च पश्वस्तेषां भक्ष्या मतामम।
मुसलेनैव संस्कार: कुशैरिव भविष्यति ।।26।। तस्मान्मुसलवन्तो हि जातयो धर्मदूषका:।
इति पैशाचधर्मश्च भविष्यति मया कृत:।। 27।। : (भविष्य पुराण पर्व 3, खंड 3, अध्याय 1, श्लोक 25, 26, 27)
व्याख्या : रेगिस्तान की धरती पर एक 'पिशाच' जन्म लेगा जिसका नाम महामद होगा, वो एक ऐसे धर्म की नींव रखेगा जिसके कारण मानव जाति त्राहिमाम् कर उठेगी।
वो असुर कुल सभी मानवों को समाप्त करने की चेष्टा करेगा।
उस धर्म के लोग अपने लिंग के अग्रभाग को जन्म लेते ही काटेंगे, उनकी शिखा (चोटी) नहीं होगी, वो दाढ़ी रखेंगे, पर मूंछ नहीं रखेंगे।
वो बहुत शोर करेंगे और मानव जाति का नाश करने की चेष्टा करेंगे।
राक्षस जाति को बढ़ावा देंगे एवं वे अपने को 'मुसलमान' कहेंगे और ये असुर धर्म कालान्तरण में स्वत: समाप्त हो जाएगा।
भविष्य पुराण में मोहम्मद साहब के विषय में विस्तृत विवरण है ।👇
भविष्य पुराण में महामद ( मुहम्मद ) एक पैशाचिक धर्म स्थापक हैं । -भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व, खण्ड 3, अध्याय 3 श्लोक 1 -31
पुराणों की रचना भी पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी रूढ़िवादी ब्राह्मणों की परम्परागत कल्पना प्रवण मिथकीयता रचनाऐं हैं । जिनमें सूय और शौनक के संवाद रूप में वर्णन है ।जैसे भविष्य पुराण में भी वही संवाद शैली है ।
श्री सूत उवाच-
1. शालिवाहन वंशे च राजानो दश चाभवन्।
राज्यं पञ्चशताब्दं च कृत्वा लोकान्तरं ययुः।।
श्री सूत जी ने कहा - राजा शालिवाहन के वंश में दस राज हुए थे। उन सबने पञ्च सौ वर्ष पर्यन्त राज्य शासन किया था और अंत में दुसरे लोक में चले गए थे।
2. मर्य्यादा क्रमतो लीना जाता भूमण्डले तदा। भूपतिर्दशमो यो वै भोजराज इति स्मृतः।
उस समय में इस भू-मण्डल में क्रम से मर्यादा लीन हो गयी थी। जो इनमे दशम राजा हुआ है वह भोजराज नाम से प्रसिद्द हुआ। .
3. दृष्ट्वा प्रक्षीणमर्य्यादां बली दिग्विजयं ययौ। सेनया दशसाहस्र्या कालिदासेन संयुतः।
उसने मर्यादा क्षीण होते देखकर परम बलवान उसने(राजा ने) दिग्विजय करने को गमन किया था। सेना में दस सहस्त्र सैनिक के साथ कविश्रेष्ठ कालिदास थे।
4. तथान्यैर्ब्राह्मणैः सार्द्धं सिन्धुपारमुपाययौ जित्वा गान्धारजान् म्लेच्छान् काश्मीरान् आरवान् शठान्।
.तथा अन्य ब्राह्मणों के सहित वह सिन्धु नदी के पार प्राप्त हुआ(अर्थात पार किया) था। और उसने गान्धारराज, मलेच्छ, काश्मीर, नारव और शठों को दिग्विजंय में जीता।
5. तेषा प्राप्य महाकोषं दण्डयोग्यानकारयत् एतस्मिन्नन्तरे म्लेच्छ आचार्येण समन्वितः।
. उनका बहुत सा कोष प्राप्त करके उन सबको योग्य दण्ड दिया था। इसी समय काल में मल्लेछों का एक आचार्य हुआ।
6. महामद इति ख्यातः शिष्यशाखा समन्वितः नृपश्चैव महादेवं मरुस्थलनिवासिनम्।
महामद शिष्यों की अपने शाखाओं में बहुत प्रसिद्द था। नृप(राजा) ने मरुस्थल में निवास करने वाले महादेव को नमन किया।
7. गंगाजलैश्च सस्नाप्य पञ्चगव्य समन्वितैः। चन्दनादिभिरभ्यर्च्य तुष्टाव मनसा हरम् ।
. पञ्चजगव्य से युक्त गंगा के जल से स्नान कराके तथा चन्दन आदि से अभ्यार्चना (महादेव) को स्तुति की।
भोजराज उवाच-
8. नमस्ते गिरिजानाथ मरुस्थलनिवासिने। त्रिपुरासुरनाशाय बहुमायाप्रवर्त्तिने।
. भोजराज ने कहा - हे गिरिजा नाथ ! मरुस्थल में निवास करने वाले, बहुत सी माया में प्रवत होने त्रिपुरासुर नाशक वाले हैं।
9. म्लेच्छैर्गुप्ताय शुद्धाय सच्चिदानन्दरूपिणे। त्वं मां हि किंकरं विद्धि शरणार्थमुपागतम् ।
. मलेच्छों से गुप्त, शुद्ध और सच्चिदानन्द रूपी, मैं आपकी विधिपूर्वक शरण में आकर प्रार्थना करता हूँ।
सूत उवाच-
10. इति श्रुत्वा स्तवं देवः शब्दमाह नृपाय तम्। गन्तव्यं भोजराजेन महाकालेश्वरस्थले ।
. सूत जी ने कहा - महादेव ने प्रकार स्तुति सुन राजा से ये शब्द कहे "हे भोजराज आपको महाकालेश्वर तीर्थ जाना चाहिए।"
11. म्लेच्छैस्सुदूषिता भूमिर्वाहीका नाम विश्रुता। आर्य्यधर्मो हि नैवात्र वाहीके देशदारुणे ।
. यह बाह्लीक भूमि म्लेच्छों द्वारा दूषित हो चुकी है। इस दारुण(भयंकर) प्रदेश में आर्य ( देव-संस्कृति मूलक)-धर्म नहीं है।
12. बभूवात्र महामायी योऽसौ दग्धो मया पुरा। त्रिपुरो बलिदैत्येन प्रेषितः पुनरागतः ।
. जिस महामायावी राक्षस को मैंने पहले माया नगरी में भेज दिया था(अर्थात नष्ट किया था) वह त्रिपुर दैत्य कलि के आदेश पर फिर से यहाँ आ गया है।
13. अयोनिः स वरो मत्तः प्राप्तवान् दैत्यवर्द्धनः। महामद इति ख्यातः पैशाच कृति तत्परः ।
. वह मुझसे वरदान प्राप्त अयोनिज(मूलहीन) हैं।
एवं दैत्य समाज की वृद्धि कर रहा है। महामद के नाम से प्रसिद्ध और पैशाचिक कार्यों के लिए तत्पर है।
14. नागन्तव्यं त्वया भूप पैशाचे देशधूर्तके। मत् प्रसादेन भूपाल तव शुद्धिः प्रजायते ।
. हे भूप (भोजराज) ! आपको मानवता रहित धूर्त देश में नहीं जाना चाहिए।
मेरी प्रसाद(कृपा) से तुम विशुद्ध राजा हो।
15. इति श्रुत्वा नृपश्चैव स्वदेशान् पुनरागमत्। महामदश्च तैः सार्द्धं सिन्धुतीरमुपाययौ ।
. यह सुनने पर राजा ने स्वदेश को वापस प्रस्थान किया। और महामद उनके पीछे सिन्धु नदी के तीर(तट) पर आ गया।
16. उवाच भूपतिं प्रेम्णा मायामदविशारदः। तव देवो महाराज मम दासत्वमागतः ।
. मायामद माया के ज्ञाता(महामद) ने राजा से झूठ कहा - हे महाराज ! आपके देव ने मेरा दासत्व स्वीकार किया है अतः वे मेरे दास हो गए हैं।
17. ममोच्छिष्टं संभुजीयाद्याथात त्पश्य भो नृप। इति श्रुत्वा तथा परं विस्मयमागतः ।
. हे नृप(भोजराज) ! इसलिए आज से आप मुझे ईश्वर के सम्भुज(बराबर) उच्छिष्ट(अवशेष) मानिए, ये सुन कर राजा विस्मय को प्राप्त भ्रमित हुआ।
18. म्लेच्छधर्मे मतिश्चासीत्तस्य भूपस्य दारुणे, तच्छृत्वा कालिदासस्तु रुषा प्राह महामदम्।
. राजा की दारुण(भयंकर) म्लेच्छ धर्म में रूचि में वृद्धि हुई।
यह राजा के श्रवण करते देख, कालिदास ने क्रोध में भरकर महामद से कहा।
19. माया ते निर्मिता धूर्त नृपम्हन हेतवे हनिष्यामि दुराचारं वाहीकं पुरुषाधमम्।
१९. हे धूर्त ! तूने नृप(राजधर्म) से मोह न करने हेतु माया रची है। दुष्ट आचार वाले पुरुषों में अधम वाहीक (बाह्लीक) को मैं तेरा नाश कर दूंगा।
20. इत्युक्त्वा स द्विजः श्रीमान् नवार्ण जप तत्परः जप्त्वा दशसहस्रं च तद्दशांशं जुहाव सः।
. यह कह श्रीमान ब्राह्मण(कालिदास) ने नर्वाण मंत्र में तत्परता की। नर्वाण मंत्र का दश सहस्त्र जाप किया और उसके दशाश जप किया।
21. भस्म भूत्वा स मायावी म्लेच्छदेवत्वमागतः, भयभीतस्तु तच्छिष्या देशं वाहीकमाययुः।
. वह मायावी भस्म होकर मलेच्छ देवत्व अर्थात मृत्यु को प्राप्त हुआ। भयभीत होकर उसके शिष्य वाहीक देश में आ गए।
22. गृहीत्वा स्वगुरोर्भस्म मदहीनत्वमागतम्, स्थापितं तैश्च भूमध्ये तत्रोषुर्मदतत्पराः।
. उन्होंने अपने गुरु(महामद) की भस्म को ग्रहण कर लिया और और वे मदहीन को गए।
भूमध्य में उस भस्म को स्थापित कर दिया। और वे वहां पर ही बस गए।
23. मदहीनं पुरं जातं तेषां तीर्थं समं स्मृतम्, रात्रौ स देवरूपश्च बहुमायाविशारदः।
. वह मदहीन पुर हो गया और उनके तीर्थ के सामान माना जाने लगा।
उस बहुमाया के विद्वान(महामद) ने रात्रि में देवरूप धारण किया।
24. पैशाचं देहमास्थाय भोजराजं हि सोऽब्रवीत् आर्य्यधर्म्मो हि ते राजन् सर्ब धर्मोतमः स्मृतः ।
. आत्मा रूप में पैशाच देह को धारण कर भोजराज आकर से कहा।
हे राजन(भोजराज) !मेरा यह आर्य समस्त धर्मों में अतिउत्तम है।
25. ईशाज्ञया करिष्यामि पैशाचं धर्मदारुणम् लिंगच्छेदी शिखाहीनः श्मश्रुधारी स दूषकः।
. अपने ईश की आज्ञा से पैशाच दारुण धर्म मैं करूँगा। मेरे लोग लिंगच्छेदी(खतना किये हुए), शिखा(चोटी) रहित, दाढ़ी रखने वाले दूषक होंगे।
26. उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनो मम विना कौलं च पशवस्तेषां भक्ष्या मता मम।
. ऊंचे स्वर में अलापने वाले और सर्वभक्षी होंगे। हलाल(ईश्वर का नाम लेकर) किये बिना सभी पशु उनके खाने योग्य न होगा।
27. मुसलेनैव संस्कारः कुशैरिव भविष्यति तस्मात् मुसलवन्तो हि आतयो धर्मदूषकाः।
. मूसल से उनका संस्कार किया जायेगा। और मूसलवान हो इन धर्म दूषकों की कई जातियां होंगी।
28. इति पैशाच धर्म श्च भविष्यति मयाकृतः इत्युक्त्वा प्रययौ देवः स राजा गेहमाययौ।
. इस प्रकार भविष्य में मेरे(मायावी महामद) द्वारा किया हुआ यह पैशाच धर्म होगा। यह कहकर वह वह (महामद) चला गया और राजा अपने स्थान पर वापस आ गया।
29. त्रिवर्णे स्थापिता वाणी सांस्कृती स्वर्गदायिनी,शूद्रेषु प्राकृती भाषा स्थापिता तेन धीमता।
. उसने तीनों वर्णों में स्वर्ग प्रदान करने वाली सांस्कृतिक भाषा को स्थापित किया और विस्तार किया। शुद्र वर्ण हेतु वहां प्राकृत भाषा के का ज्ञान स्थापित विस्तार उसका विस्तार किया
(ताकि शिक्षा और कौशल का आदान प्रदान आसान हो)।
30. पञ्चाशब्दकालं तु राज्यं कृत्वा दिवं गतः, स्थापिता तेन मर्यादा सर्वदेवोपमानिनी।
. राजा ने पचास वर्ष काल पर्यंत राज(शासन) करते हुए दिव्य गति(परलोक) को प्राप्त हुआ। तब सभी देवों की मानी जाने वाली मर्यादा स्थापित हुई।
31. आर्य्यावर्तः पुण्यभूमिर्मध्यंविन्ध्यहिमालयोः आर्य्य वर्णाः स्थितास्तत्र विन्ध्यान्ते वर्णसंकराः।
. विन्ध्य और हिमाचल के मध्य में आर्यावर्त परम पुण्य भूमि है अर्थात सबसे उत्तम(पवित्र) भूमि है, आर्य(श्रेष्ठ) वर्ण यहाँ स्थित हुए। और विन्ध्य के अंत में अन्य कई वर्ण मिश्रित हुए।
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भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व, खण्ड 3, अध्याय 3 श्लोक . 1 -31
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इस पुराण में द्वापर और कलियुग के राजा तथा उनकी भाषाओं के साथ-साथ विक्रम-बेताल तथा बेताल पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है।
सत्यनारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गई है। इस पुराण में ऐतिहासिक व आधुनिक घटनाओं का वर्णन किया गया है।
इसमें आल्हा-उदल के इतिहास का प्रसिद्ध आख्यान इसी पुराण के आधार पर प्रचलित है।
इस पुराण में नन्द वंश, मौर्य वंश एवं शंकराचार्य आदि के साथ-साथ इसमें मध्यकालीन हर्षवर्धन आदि हिन्दू और बौद्ध राजाओं तथा चौहान एवं परमार वंश के राजाओं तक का वर्णन प्राप्त होता है।
इस पुराण में कबीर गुरु नानक आदि सन्तों का भी वर्णन है ।
इसमें तैमूर, बाबर, हुमायूं, अकबर, औरंगजेब, पृथ्वीराज चौहान तथा छत्रपति शिवाजी के बारे में भी स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
श्रीमद्भागवत पुराण के द्वादश स्कंध के प्रथम अध्याय में भी वंशों का वर्णन मिलता है।
अब महात्मा बुद्ध को भी भविष्य पुराण कार ने असुर अवतार घोषित कर दिया ...
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पौराणिक पुरोहित सदैव ही इस बात को लेकर द्विविधा अर्थात् दो विरोधी धारणाओं से आक्रान्त रहे हैं कि वे महात्मा बुद्ध को स्वीकार करें तो किस रूप में ?
पुराणों के अध्ययन से भी यह बात स्पष्ट हो जाती है कि महात्मा बुद्ध को लेकर पौराणिकों मे सदैव दो मत रहे हैं। कुछ पौराणिक चाहते थे कि बुद्ध को विष्णु का अवतार बनाकर ब्राह्मण धर्म का ही अंग घोषित कर दे, और कुछ बुद्ध से काफी कुपित थे तो उनके लिये अपशब्द ही बोलते थे।
गालियाँ देते चौर भी कहते 👇
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वाल्मीकि रामायण में चौर के रूप में वाल्मीकि-रामायण में यह उत्तर- काण्ड का प्रकरण
पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मणों ने शूद्रों को लक्ष्य करके यह मनगढ़न्त रूप से राम-कथा से सम्बद्ध कर दिया ---
ताकि लोक में इसे सत्य माना जाय !
इतनी ही नहीं वाल्मीकि-रामायण के अयोध्या काण्ड १०९ वें सर्ग ३४ वें श्लोक में जावालि ऋषि के साथ सम्वाद रूप में राम के मुख से बुद्ध को चौर तथा नास्तिक कहलवाया गया देखें---
वाल्मीकि-रामायण अयोध्या काण्ड १०९ वें सर्ग का ३४ वाँ श्लोक--
यथा ही चौर स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि -
वायुपुराण, विष्णुपुराण और नरसिंहपुराण तथा भागवत पुराण ने बुद्ध को विष्णु का अवतार माना तो भविष्यपुराण ने बुद्ध को आसुरी-स्वरूप घोषित कर दिया। अब स्पष्ट सी बात है कि व्यास ने ये दो विरोधी बाते क्या लिखी थी?
भविष्यपुराण (गीताप्रेस कोड-584) प्रतिसर्गपर्व चतुर्थखण्ड (पृष्ठ सं-372) मे लिखा है कि
"2700 वर्ष कलियुग बीत जाने के बाद बलि नामक असुर के द्धारा भेजा गया 'मय' नामक असुर धरती पर आया! वह असुर शाक्यगुरू बनकर दैत्यपक्ष को बढ़ाने लगा और जो उसका शिष्य होता उसे 'बौद्ध' कहा जाएगा
वह अनेक तीर्थों पर मायावी यन्त्रों को स्थापित कर देगा , जिससे जो भी मानव उन तीर्थों पर जाता वह 'बौद्ध' हो जाएगा ।
इससे चारों तरफ बौद्ध व्याप्त हो गये और दस करोड़ आर्य बौद्ध बन गये।"
इस पुराण मे जिस "मय" असुर का वर्णन है, वह कोई और नही बल्कि गौतम बुद्ध है! इस पुराण मे बुद्ध को मानने वाले बौद्धों को "दैत्यपक्षी" कहा गया है।
भविष्यपुराण के इस कथन से यह स्पष्ट है कि पौराणिकों को बुद्ध से किस कदर चिढ़ थी कि उन्हे दैत्य ही घोषित कर दिया।
जबकि इसके पूर्व के पुराणों ने बुद्ध को विष्णु का अवतार माना है।
नरसिंहपुराण अध्याय-36 श्लोक-9 मे लिखा है-
"कलौ प्राप्ते यथा बुद्धो भवेन्नारायणः प्रभुः"
अर्थात- कलियुग प्राप्त होने पर भगवान नारायण बुद्ध का रूप धारण करेंगे।
इसी नरसिंहपुराण मे एक अन्य स्थान पर बुद्ध को राम का ही वंशज तथा सूर्यवंशी भी बताया गया है। इस पुराण के 21वें अध्याय मे लिखा है कि राम के पुत्र लव, लव के पुत्र पद्म, पद्म के पुत्र अनुपर्ण, अनुपर्ण के पुत्र वस्त्रपाणि, वस्त्रपाणि के पुत्र शुद्धोधन और शुद्धोधन के पुत्र गौतम बुद्ध हुये।
अर्थात राम की छठवीं पीठी मे बुद्ध पैदा हुये थे।
वैसे अगर इसे पूर्ण सच मान लिया जाये तो फिर राम का समय आज से लगभग तीन हजार साल के आसपास का ही होता है !
यदि बुद्ध अब से ढ़ाई हजार साल पहले थे तो उनके छः पूर्वज अधिकतम छः सौ साल और पूर्व होगे, जो लगभग ईसा से 1100 सौ वर्ष पूर्व का हो सकता है!
अब यह गणना इतनी कम है, अतः सनातनी इसे मानने से तुरन्त इनकार कर देंगे।
यहाँ मै आपको एक बात और बता दूँ कि नरसिंहपुराण हिन्दूधर्म के 18 पुराणों मे नही आता।
यह एक उपपुराण है, अतः अधिकांश लोग यही मानते हैं की इसमे मिलावट नही है।
अब सोचना यह है कि यदि इतने पुराणों मे बुद्ध को विष्णु का अवतार कहा गया है तो सबसे अन्त मे लिखे गये भविष्यपुराण मे उन्हे असुर क्यों कहा गया?
इसी भविष्यपुराण प्रतिसर्गपर्व के तृतीयखण्ड मे आल्हा के भाई ऊदल को कृष्ण का अवतार कहता है, पर इतने बड़े समाज-सुधारक तथागत बुद्ध को असुर बताता है।
जबकि भागवत पुराण में बुद्ध विष्णु का रूप हैं ।
ये सब बाद में ब्राह्मण धर्म की पुन:प्रतिष्ठा हेतु ग्रन्थ लिखे गये ...
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..भागवतपुराण में महात्मा बुद्ध का वर्णन सिद्ध करता है-कि भागवतपुराण बुद्ध के बहुत बाद की रचना है ।
दशम् स्कन्ध अध्याय 40 में श्लोक संख्या 22 ( गीताप्रेस गोरखपुर संस्करण )पर
वर्णन है कि 👇
नमो बुद्धाय शुद्धाय दैत्यदानवमोहिने ।
म्लेच्छ प्राय क्षत्रहन्त्रे नमस्ते कल्कि रूपिणे ।।22
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दैत्य और दानवों को मोहित करने के लिए आप शुद्ध अहिंसा मार्ग के प्रवर्तक बुद्ध का जन्म ग्रहण करेंगे ---मैं आपके लिए नमस्कार करता हूँ ।
और पृथ्वी के क्षत्रिय जब म्लेच्छ प्राय हो जाऐंगे तब उनका नाश करने के लिए आप कल्कि अवतार लोगे ! मै आपको नमस्कार करता हूँ 22।
भागवतपुराण में अनेक प्रक्षिप्त (नकली) श्लोक हैं
जैसे- 👇
पौराणिक पुरोहित सदैव से ही इस बात को लेकर द्विविधा अर्थात् दो विरोधी धारणाओं से आक्रान्त रहे हैं कि वे महात्मा बुद्ध को स्वीकार करें तो किस रूप में
क्यों बुद्ध ब्राह्मण वाद और वर्ण व्यवस्था के विध्वंसक थे
पुराणों के अध्ययन से भी यह बात स्पष्ट हो जाती है कि महात्मा बुद्ध को लेकर पौराणिकों मे सदैव दो मत रहे हैं। कुछ पौराणिक चाहते थे कि बुद्ध को विष्णु का अवतार बनाकर भारतीय धर्म का ही अंग घोषित कर दे, और कुछ बुद्ध से काफी कुपित थे तो उनके लिये अपशब्द ही बोलते थे।
जैसा कि वाल्मीकि रामायण में भी ..😊
वायुपुराण, विष्णुपुराण और नरसिंहपुराण ने खुले तौर पर बुद्ध को विष्णु का अवतार माना तो भविष्यपुराण ने बुद्ध को आसुरी-स्वरूप घोषित कर दिया।
भविष्यपुराण (गीताप्रेस कोड-584) प्रतिसर्गपर्व चतुर्थखण्ड (पृष्ठ सं-372) मे लिखा है कि "2700 साल कलियुग बीत जाने के बाद बलि नामक असुर के द्धारा भेजा गया 'मय' नामक असुर धरती पर आया! वह असुर शाक्यगुरू बनकर दैत्यपक्ष को बढ़ाने लगा और जो उसका शिष्य होता उसे 'बौद्ध' कहा जाता। उसने तमाम तीर्थों पर मायावी यन्त्रों को स्थापित कर दिया था, जिससे जो भी मानव उन तीर्थों पर जाता वह 'बौद्ध' हो जाता। इससे चारों तरफ बौद्ध व्याप्त हो गये और दस करोड़ आर्य बौद्ध बन गये।"
इस पुराण मे जिस "मय" असुर का वर्णन है, वह कोई और नही बल्कि गौतम बुद्ध है! इस पुराण मे बुद्ध को मानने वाले बौद्धों को "दैत्यपक्षी" कहा गया है।
भविष्यपुराण के इस कथन से यह स्पष्ट है कि पौराणिकों को बुद्ध से किस कदर चिढ़ थी कि उन्हे दैत्य ही घोषित कर दिया। जबकि इसके पूर्व के पुराणों ने बुद्ध को विष्णु का अवतार माना है।
नरसिंहपुराण अध्याय-36 श्लोक-9 मे लिखा है-
"कलौ प्राप्ते यथा बुद्धो भवेन्नारायणः प्रभुः"
अर्थात- कलियुग प्राप्त होने पर भगवान नारायण बुद्ध का रूप धारण करेंगे।
इसी नरसिंहपुराण मे एक अन्य स्थान पर बुद्ध को राम का ही वंशज तथा सूर्यवंशी भी बताया गया है। इस पुराण के 21वें अध्याय मे लिखा है कि राम के पुत्र लव, लव के पुत्र पद्म, पद्म के पुत्र अनुपर्ण, अनुपर्ण के पुत्र वस्त्रपाणि, वस्त्रपाणि के पुत्र शुद्धोधन और शुद्धोधन के पुत्र गौतम बुद्ध हुये।
अर्थात राम की छठवीं पीठी मे बुद्ध पैदा हुये थे।
वैसे अगर इसे पूर्ण सच मान लिया जाये तो फिर राम का समय आज से लगभग तीन हजार साल के आसपास का ही होता है! यदि बुद्ध अब से ढ़ाई हजार साल पहले थे तो उनके छः पूर्वज अधिकतम छः सौ साल और पूर्व होगे, जो लगभग ईसा से 1100 सौ वर्ष पूर्व का हो सकता है!
अब यह गणना इतनी कम है, अतः सनातनी इसे मानने से तुरन्त इनकार कर देंगे।
यहाँ मै आपको एक बात और बता दूँ कि नरसिंहपुराण हिन्दूधर्म के 18 पुराणों मे नही आता। यह एक उपपुराण है, अतः अधिकांश लोग यही मानते हैं की इसमे मिलावट नही है।
अब सोचना यह है कि यदि इतने पुराणों मे बुद्ध को विष्णु का अवतार कहा गया है तो सबसे अन्त मे लिखे गये भविष्यपुराण मे उन्हे असुर क्यों कहा गया?
इसी भविष्यपुराण प्रतिसर्गपर्व के तृतीयखण्ड मे आल्हा के भाई ऊदल को कृष्ण का अवतार कहता है, पर इतने बड़े समाज-सुधारक तथागत बुद्ध को असुर बताता है
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सन् 1857 में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के भारत की साम्राज्ञी बनने और आंग्ल भाषा के प्रसार से भारतीय भाषा संस्कृत के विलुप्त होने की भविष्यवाणी भी इस ग्रंथ में स्पष्ट रूप से की गई है।
भविष्य पुराण में वर्णन आता है कि एक समय जब हिन्दुस्तान की सीमा हिंदकुश पर्वत तक थी तो वहां के प्रसिद्ध शिव मंदिर था।
ऐसा कहा जाता है कि एक बार कुछ लोग हिन्दकुश पर्वत पर शिव के दर्शन करने गए थे तो भगवान शिव ने इन लोगों को बताया था कि अब आप सभी यहां से लौट जाओ।
मैं भी इस स्थान को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ रहा हूं।
जाओ और सभी को बताओ कि अब यहां किसी को नहीं आना है। थोड़े दिनों में प्रलय की शुरुआत यहां होने वाली है।
कहा जाता है कि इसके बाद खलिफाओं के आक्रमण ने अफगान और हिन्दुकुश पर्वतमाला के पास रहने वाले 15 लाख हिन्दुओं का सामूहिक नरसंहार किया था।
अफगान इतिहासकार खोण्डामिर के अनुसार यहाँं पर कई आक्रमणों के दौरान 15 लाख हिन्दुओं का सामूहिक नरसंहार किया गया था।
इसी के कारण यहां के पर्वत श्रेणी को हिन्दुकुश नाम दिया गया, जिसका अर्थ है 'हिंदुओं का वध।'
हालांकि कुछ संत लोग मानते हैं कि भगवान जब किसी स्थान से नाराज होते हैं तो वहां प्राकृतिक प्रलय आने लगती हैं।
आज हिंद्कुश पर्वत और आसपास का क्षेत्र भूकंप के आने का केंद्र बना हुआ है।
''अपनी तुच्छ बुद्धि को ही शाश्वत समझकर कुछ मूर्ख ईश्वर की तथा धर्मग्रंथों की प्रामाणिकता मांगने का दुस्साहस करेंगे इसका अर्थ है उनके पाप जोर मार रहे हैं।''
पुराणों में भारत में आज तक होने वाले सभी शासकों की वंशावली का उल्लेख मिलता है।
पुराणकार पुराणों की भविष्यवाणियों का अलग-अलग अर्थ निकालते हैं।
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यहां प्रस्तुत हैं भागवत पुराण में दर्ज भविष्यवाणी के अंश।
''ज्यों-ज्यों घोर कलयुग आता जाएगा त्यों-त्यों सौराष्ट्र, अवंति, अभीर शूर, अर्बुद और मालव देश के ब्राह्मणगण संस्कारशून्य हो जाएंगे तथा राजा लोग भी शूद्रतुल्य हो जाएंगे।''
जो ब्रह्म को मानने वाले हैं वही ब्राह्मण है। आज की जनता ब्रह्म को छोड़कर सभी को पूजने लगी है। जब सभी वेदों को छोड़कर संस्कारशून्य हो जाएंगे तब... ''सिंधुतट, चंद्रभाग का तटवर्ती प्रदेश, कौन्तीपुरी और कश्मीर मंडल पर प्राय: शूद्रों का संस्कार ब्रह्मतेज से हीन नाममात्र के द्विजों का और म्लेच्छों का राज होगा। सबके सब राजा आचार-विचार में म्लेच्छप्राय होंगे।
वे सब एक ही समय में भिन्न-भिन्न प्रांतों में राज करेंगे।'' आप जानते हैं कि सिंधु के ज्यादातर तटवर्ती इलाके अब पाकिस्तान का हिस्सा बन गए हैं। कुछ कश्मीर में हैं, जहां नाममात्र के द्विज अर्थात ब्राह्मण हैं। इन सभी (म्लेच्छों) के बारे में पुराणों में लिखा है कि... ''ये सबके सब परले सिरे के झूठे, अधार्मिक और स्वल्प दान करने वाले होंगे। छोटी बातों को लेकर ही ये क्रोध के मारे आग-बबूला हो जाएंगे।''
अब आगे पढ़िए कश्मीर में ब्राह्मणों के साथ जो हुआ, ''ये दुष्ट लोग स्त्री, बच्चों, गौओं और ब्राह्मणों को मारने में भी नहीं हिचकेंगे। दूसरे की स्त्री और धन हथिया लेने में ये सदा उत्सुक रहेंगे। न तो इन्हें बढ़ते देर लगेगी और न घटते।
इनकी शक्ति और आयु थोड़ी होगी।
राजा के वेश में ये म्लेच्छ ही होंगे।'' पूरे देश की यही हालत है अब राजा (राजनेता) न तो क्षत्रित्व धारण करने वाले रहे और न ही ब्राह्मणत्व। राजधर्म तो लगभग समाप्त ही हो गया है तो ऐसी स्थिति में, ''वे लूट-खसोटकर अपनी प्रजा का खून चूसेंगे।
जब ऐसा शासन होगा तो देश की प्रजा में भी वैसा ही स्वभाव, आचरण, भाषण की वृद्धि हो जाएगी। राजा लोग तो उनका शोषण करेंगे ही, आपस में वे भी एक-दूसरे को उत्पीड़ित करेंगे और अंतत: सबके सब नष्ट हो जाएंगे।'' -भागवत पुराण (अध्याय 'कलयुग की वंशावली' से अंश)
ब्रह्मा जी ने कहा- हे नारद! भयंकर कलियुग के आने पर मनुष्य का आचरण दुष्ट हो जाएगा और योगी भी दुष्ट चित्त वाले होंगे। संसार में परस्पर विरोध फैल जाएगा। द्विज (ब्राह्मण) दुष्ट कर्म करने वाले होंगे और विशेषकर राजाओं में चरित्रहीनता आ जाएगी। देश-देश और गांव-गांव में कष्ट बढ़ जाएंगे। साधू लोग दुःखी होंगे। अपने धर्म को छोड़कर लोग दूसरे धर्म का आश्रय लेंगे। देवताओं का देवत्व भी नष्ट हो जाएगा और उनका आशीर्वाद भी नहीं रहेगा। मनुष्यों की बुद्धि धर्म से विपरीत हो जाएगी और पृथ्वी पर मलेच्छों के राज्य का विस्तार हो जाएगा। मलेच्छ का अर्थ होता है दुष्ट, नीच और अनार्य।
जब हिन्दू तथा मुसलमानों में परस्पर विरोध होगा और औरंग जैब आयेगा ।
भविष्यपुराण (गीताप्रेस कोड-584) प्रतिसर्गपर्व चतुर्थखण्ड (पृष्ठ-343) पर तैमूरलंग द्वारा भारत पर आक्रमण की कथा लिखी है। यह घटना चौदहवीं सदी की बात है ।
भविष्य पुराण में लिखा है कि तैमूरलंग ने भारत पर आक्रमण करके यहाँ के देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तोड़ डाली, और पुजारियों से कहा कि तुम लोग मूर्तिपूजक हो, तुम लोग शालिग्राम को विष्णु (भगवान) मानते हो जबकि यह एक पत्थर है।
ऐसा कहकर वह शालग्राम की तमाम मूर्तियाँ ऊँट पर लदबाकर अपने देश तातार (उजबेकिस्तान के पास का क्षेत्र) लेकर चला गया और वहाँ उसने उन मूर्तियों का सिंहासन बनवाया तथा उस पर बैठने लगा!
शालग्राम की ऐसी दुर्दशा देखकर तमाम देवता दुःखी होकर इन्द्र के पास गये और बोले कि हे देवराज! अब आप ही कुछ करो।
फिर क्रोध में आकर इन्द्र ने अपना वज्र तातार देश की ओर फैंककर मारा! वज्र के प्रहार से तैमूरलंग का राज्य टुकड़े-टुकड़े हो गया और तैमूरलंग अपने सभी सभासदों समेत मृत्यु को प्राप्त हो गया।
तातपर्य यह पुराण कह रहा है कि तैमूरलंग का वध इन्द्र ने किया था।
अब जरा यह सोचो कि यदि इन्द्र इतना बड़ा यौद्धा था । तो जब बाबर के कहने पर मीरबाकी राममन्दिर तोड़ रहा था तब वे क्या कर रहे था ?
इस कथा से यह स्पष्ट होता होता है कि पुराणों में कितना काल्पनिक वर्णन है! वास्तव में जैसे इन्द्र ने तैमूरलंग को मारा,
तैमूर लंग (अर्थात तैमूर लंगड़ा) (जिसे 'तिमूर' भी कहा जाता है । इसकी जन्म (8 अप्रैल सन् 1336 – और मृत्यु 18 फ़रवरी 1405) को इतिहास में दर्ज है । यह चौदहवी शताब्दी का एक शासक था जिसने प्रसिद्धं तैमूरी राजवंश की स्थापना की थी।
उसका राज्य पश्चिम एशिया से लेकर मध्य एशिया होते हुए भारत तक फैला था।
उसकी गणना संसार के महान् और निष्ठुर विजेताओं में की जाती है। वह बरलस तुर्क खानदान में पैदा हुआ था। उसका पिता तुरगाई बरलस तुर्कों का नेता था। भारत के मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक बाबर तिमूर का ही वंशज था।
इतिहास में इसका जन्म विवरण इस प्रकार है ।
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तमेद चिन्गिज़ खान (Tamed Chingizid Khan)
जन्म६ अप्रैल १३३६
शहर-ऐ-सब्ज़, उज्बेगिस्तान
मृत्यु१९ फ़रवरी १४०५
ओत्रार, कजाख्स्तान
दफ़नगुर-ऐ-आमिर, समरकन्द उज्बेगिस्तान
राजघरानातिमुर
वंशमुगल
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अठारहवीं सदी की विक्टोरिया का वर्णन भी भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व में है ।
विक्टोरिया
पूर्व संयुक्त राजशाही की महारानी थी
महारानी विक्टोरिया, (यूनाइटेड किंगडम इग्लेण्ड) की महारानी थीं।
इसकी मृत्यु: 22 जनवरी 1901 है । भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व में (विक्टोरिया )का नाम (विकटावती) कह कर वर्णित किया गया है
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वास्तव मे पुराणों मे जितने पात्रों का वर्णन है, वे पात्र तो रहे होंगे, पर उनसे जुड़ी कथाऐं इन्द्र और तैमूरलंग की कथा जितनी ही सच होगी।
अब जो लोग मुझे कहते हैं कि पुराणों मे अलंकरण है, उसे समझना आसान नही! वे लोग जरा इस कथा को आसान करके मुझे समझा दें।
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संग्राहक - यादव योगेश कुमार "रोहि"