होलि शब्द की अवधारणा का श्रोत मूलत: संस्कृत भाषा के स्वृ= तापे उपतापे च धातु से निष्पन्न है ।
य: स्वरयति तापयति सर्वान् लोकान् इति सूर्य: कथ्यते "
अर्थात् जो सम्पूर्ण लोगों को तपाता है वह सूर्य है "
होली एक वसन्त सम्पातीय ऋतु-सम्बन्धी अग्नि का स्वागत उत्सव है ---जो ग्रीष्म ऋतु के आगमन रूप फाल्गुनी पूर्णिमा को मनाया जाता है।
इसका समानान्तरण होरा शब्द फारसी मूल से है और सैमेटिक भाषाओं में जोहर शब्द भी इसी हॉरा से विकसित हुआ।
फिर जौहर काल में भारतीय मिथकीय मानसिकता ने एक काल्पनिक कथा होलि की जोड़ दी जो हिरण्याकश्प की बहिन सिंहिका थी ।
सत्य पूछा जाय तो होलि शब्द भारोपीय मूल से हेलि का तद्भव है जिसका अर्थ है:- " अग्नि तथा सूर्य "।
और होलि एक वसन्त सम्पातीय अग्नि उत्सव है।
संस्कृत भाषा के प्राचीन साहित्य-ग्रन्थों में
हु--विच् लकति लक--अच् कर्मणि सूत्र विधान से होलक शब्द निष्पन्न होता है ।
“अर्द्धपक्वे शमीधान्यैस्तृणभ्रष्टैश्च होलकः”
इत्युक्ते तृणादिना अर्द्धपक्वे शमीधान्ये"
अर्थात् आधा पका हुआ और भुना हुआ गोधुक गैंहूँ
आदि अनाज की बालें जिसका आस्वादन हम फाल्गुनी पूर्णिमा को करते हैं।
“होलकोऽल्पानिलो मेदःकफ- दोषश्रमापहः ।
भवेद् यो होलको यस्य स च तत्तद्- गुणो भवेत्”
भावप्रकाश ।
अर्थात् होलक धीमी अग्निहोत्री में निर्मित होता है जिसे खाने से मेद और कफ दोषों का निराकरण हो जाता है ।
होलक = (हु विच् लक्यते आस्वाद्यते इति ।
लक् अप् । )
तृणाग्निभृष्टार्द्धपक्वशमीधान्यम् ।
होरा इति हिन्दी भाषा होलक:
(शब्द कल्प द्रुम कोश)
संस्कृत ग्रन्थ भावप्रकाश में वर्णन है कि होला के सेवन से वात पित्त कफ का जो अल्प विकार होता है ;वह नष्ट हो जाता है ।
यूरोपीय संस्कृति में ईष्टर इसी होलक का प्रतिरूप है ।
परन्तु उसे नाम दिया स्त्रियों के प्रेमोत्सव का ...
पुराण काल में भारतीय ब्राह्मणों ने फिर एक काल्पनिक कथा जोड़ दी दीपावली के समान ..
क्यों कि दिपावली भी शारदिक सम्पातीय प्राकृतिक उत्सव है उसी के समानान्तर होली भी है )
संस्कृत भाषा के ज्योतिष शास्त्रों में हेलि शब्द ग्रीक भाषा से आयात है।
जिसके अर्थ हैं :-
१ –सूर्य्ये २ –अर्कवृक्षे च ३– अवज्ञायां हड्डचन्द्रः ४– सूर्य्ये ज्यो० त० णिनि हेलिन् सूर्य्ये ।
अर्थात् सूर्य , अकौआ का पौधा तथा अपमान की भावना भी हेलि के अर्थ हैं
________________________________________________
संस्कृत भाषा में सूर्य शब्द है , तो अवेस्तन(ईरानी) में ह्वॉर ( प्रकाश, तथा आकाश अर्थ में) तो ग्रीक भाषा हैलियॉस; लैटिन भाषा सोल (सूर्य) तथा रोशनी;" रूसी परिवार की लिथुआनियन भाषा स्यूले और ओल्ड चर्च स्लावोनिक भाषा में स्लाइने; गॉथिक में सॉइले, पुरानी अंग्रेज़ी में सोल (सूरज;)तथा स्वेगल "
आकाश और सूर्य अर्थ में ।"
वेल्श भाषा में हॉल , ओल्ड कोर्निश भाषा में हेउल, ब्रेटन में हेल "सूरज;" और पुरानी आयरिश स्वेल "आँख;" अवेस्तान ज़ुएेंग "सूर्य;" पुरानी आयरिश सनी "प्रकाश " पुरानी अंग्रेज़ी सन्नी जर्मनी सोन्ने, गॉथिक सन्नो "सूर्य" आदि उच्चारण भेद से सूर्य शब्द ही मिलता है ।
__________________________________________
It is the hypothetical source of/evidence for its existence is provided by:
1-Sanskrit suryah,
2- Avestan hvar "sun, light, heavens;"
3- Greek helios; Latin sol "the sun, sunlight;"
4- Lithuanian saulė,
5-Old Church Slavonic slunice;
6-Gothic sauil,
7-Old English sol "sun;"
8-Old English swegl "sky, heavens, the sun;"
9- Welsh haul,
10-Old Cornish heuul,
11-Breton heol "sun;"
12Old Irish suil "eye;"
13-Avestan xueng "sun;"
14-Old Irish fur-sunnud "lighting up;"
15-Old English sunne
16-German Sonne,
17-Gothic sunno "the sun."
__________________________________________
_
स्त्री इस संसार में पुरुष के लिए प्रेम और प्रसन्नता की देवी है, जो दूसरों को प्रसन्न करती-- स्त्री संसार का विस्तार भी करती है ।
प्राचीन सुमेरियन संस्कृति में यह शब्द ईष्टर ( Ishtar) है, अक्काडियन पुरा -कथाओं में यह देवी "अशेरा " जिसे यूनानीय आर्यों (यौद्धा जनजातियों )ने (Oistros) ऑइष्ट्रॉस कहा तथा रोमन आर्यों ने (Oestrus) ऑइषट्रस् कह कर सम्बोधित किया है ..
Oestrus is the Heat of sexual impulse" अर्थात् रति - भाव जो स्त्रियों के सम्पूर्ण सौन्दर्य व कारुणिक भावनाओं का विस्तार है ।
"ईसाई संस्कृति में ईश्तर का त्यौहार इसी वसन्त और प्रेम की देवी के उपलक्ष्य में मनाया जाता है ।
वैदिक साहित्य में स्त्री का ही इतर (अन्य ) विकसित रूप श्री और उषा के रूप में प्रतिष्ठित हुआ --- जो रोमन मिथको में (Ceres) सेरीज़ के रूप में कृषि तथा धन - धान्य की अधिष्ठात्री देवी है -
श्री :-(श्रि--क्विप् नि०) इस शब्द के शब्द कोशीय अर्थ निम्नलिखित हैं ⬇⏬
१ लक्ष्म्यां २ लवङ्गे अमरः । ३ शोभायां ४ वाण्यां ५ वेशरचनायां ६ सरलवृक्षे ७ धर्मार्थका ८ सम्पत्तौ ९ प्रकारे १० उपकरणे ११ बुद्धौ (ceriba)१२ विभूतौ मेदि० । १३ अधिकारे १४ प्रभायां १५ कीर्त्तौ धरणिः । १६ वृद्धौ १७ सिद्धौ शब्दर० १८ कमले १९ बिल्ववृक्ष २० वृद्धिनामौषधौ राजनि० “देवं गुरुं गुरुस्थानं क्षेत्रं क्षेत्रा- घिदेवताम् । सिद्धं सिद्धाधिकारांश्च श्रीपूर्वं समुदीरयेत्”
( होलि वसन्त उत्सव है ! प्रेम उत्सव ! होलि कृषि उत्सव !
होली का वैचारिक पक्ष
( यादव योगेश कुमार'रोहि' )
8077160219
__________________________________________