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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।

2 मई 2020

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featured imageकोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है । अर्थात् ई०पू० २५०० से १५००के काल तक-- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु का साथ साथ वर्णन हुआ है। वह भी दास अथवा असुर रूप में यद्यपि दास शब्द का वैदिक ऋचाओं में अर्थ देव संस्कृति के प्रतिद्वन्द्वी असुरों से ही है। और असुर 'वह वैसे नहीं थे जैसा वर्णन भारतीय पुराणों तथा शास्त्रों में किया जाता है । क्योंकि असुर शब्द की व्युत्पत्ति असु (प्राण)परक है (असु र) का वर्ण विन्यास इस प्रकार है । असु नपुंसक लिंग (अस्यतेऽनेन इति अस् उ ):- चित्तं । उपतापः इत्युणादिकोषः ॥ तथा असुः, पुंल्लिंग (अस्यन्ते इति अस् उ ):- प्राणः पञ्चप्राणेषु बहुवचनान्तः । असवः । इत्यमरःकोश ॥ (“तेजस्विनः सुखमसूनपि संत्यजन्ति” । देखें. इति( भतृहरि नीतिशतके ९९ श्लोकः ) ऋग्वेद में असुर' शब्द का प्रयोग लगभग 105 बार हुआ है। उसमें 90 स्थानों पर इसका प्रयोग 'असु परक प्राण शक्ति मूलक अर्थों में किया गया है । और केवल 15 स्थनों पर यह 'देवताओं के शत्रु' का वाचक है। किया और जिसका वर्ण विन्यास (अ सुर)=असुर ( जो सुर 'न हो ) इस प्रकार से किया गया । 'वह भी परवर्ती वैदिक काल में वस्तुतः प्रथम और मौलिक अर्थ असुर शब्द प्राणवन्त ही है । 'असुर' का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है- प्राणवन्त, प्राणशक्ति संपन्न देखें निम्नलिखित सन्दर्भ👇 ('असुरिति प्राणनामास्त: शरीरे भवति, निरुक्ति ३.८) ( यास्क निरुक्तकोश ) और इस प्रकार यह वैदिक देवों के एक सामान्य विशेषण के रूप में भी व्यवहृत किया गया है। विशेषत: वरुण के लिए .. ईरानी धर्म में असुर महत् ( अहुर मज्दा) ईरानी आर्य्यों का सबसे बड़ी उपास्य है । सुमेरियन बैबीलॉनियन संस्कृतियों में इन्हें असीरियन कहा गया। परन्तु ये दास या असुर अपने पराक्रम बुद्धि- कौशल से सम्माननीय ही रहे हैं । अत: दास का अर्थ प्रारम्भ काल में दानी, या दाता का वाचक था। और उन्हीं प्राचीनत्तम सन्दर्भों में असुर और दास शब्दों के अर्थ निर्धारित करने चाहिए नकि आधुनिक अर्थों में... क्यों कि वैदिक सन्दर्भों में तथा पूर्ववर्ती काल में भी घृणा शब्द दया ( करुणा) का वाचक है । परन्तु आज परवर्ती काल में घृणा नफ़रत का वाचक है । यदि वेदों में घृणा शब्द पढ़ोगे तो नफरत या घृणा करने से अनर्थ ही होगा। इसी प्रकार साहस शब्द का अर्थ भी अपनी विपरीत स्थिति में जा पहुँचा है । शब्द कल्पद्रुमः संस्कृत कोश में घृणा शब्द का प्राचीन अर्थ निम्नलिखित सन्दर्भ में देखें।👇 घृणा- स्त्रीलिंग रूप (घ्रियते सिच्यते हृदयमनया इति घृणा घृ सेके बाहुलकात् नक् स्त्रियां टाप् ) दयारसेन हि हृदयं सिक्तमिवार्द्रं भवतीति तथात्वम् ) अर्थात्‌ दया रस से ही हृदय आद्र होता है । हृदय को जिसके द्वारा सींचा जाता है. दया करुणा का वाचक ही है ।👇 (यथा, किरातार्ज्जुनीये महाकाव्ये । १५। १३ । “मन्दमस्यन्निषुलतां घृणया मुनिरेष वः । प्रणुदत्यागतावज्ञं जघनेषु पशूनिव ॥ ॥ घ्रियते आच्छाद्यते गुणादिकमनयेति ) 'परन्तु कालान्तरण में घृणा शब्द का नकारात्मक अर्थ भी हुआ जैसे जुगुप्सा ( नफरत)। दया या करुणा के पर्य्यायः रूप में १- अर्त्तनम् २- ऋतीया ३- हृणीया ४-करुणा इस प्रकार से अनेक शब्द अमर कोश में हैं। ३। २। ३२ रघुःवंश महाकाव्य में भी घृणा शब्द का अर्थ करुणा ही है । ११ । १७ । देखें निम्नलिखित सन्दर्भ👇 “तां विलोक्य वनिता वधे घृणां पत्रिणा सह मुमोच राघवः" अमरकोशः में घृणा स्त्रीलिंग करुणरसः समानार्थक:कारुण्य,करुणा,घृणा,कृपा,दया,अनुकम्पा, अनुक्रोश,बत,हन्त 1।7।18।1।5 _______ उत्साहवर्धनो वीरः कारुण्यं करुणा घृणा। कृपा दयानुकम्पा स्यादनुक्रोशोऽप्यथो हसः॥ पदार्थ-विभागः : , गुणः, मानसिकभावः घृणा स्त्री। जुगुप्सनम् समानार्थक:अर्तन,ऋतीया,हृणीया,घृणा,किम् 3।2।32।2।4 उपशायो विशायश्च पर्यायशयनार्थकौ। अर्तनं च ऋतीया च हृणीया च घृणार्थकाः॥ पदार्थ-विभागः : , क्रिया घृणा स्त्री। जुगुप्सा समानार्थक:अवर्ण,आक्षेप,निर्वाद,परीवाद,अपवाद, उपक्रोश,जुगुप्सा,कुत्सा,निन्दा,गर्हण,घृणा,कु 3।3।51।2।2 त्रिषु पाण्डौ च हरिणः स्थूणा स्तम्भेऽपि वेश्मनः। तृष्णे स्पृहापिपासे द्वे जुगुप्साकरुणे घृणे॥ पदार्थ-विभागः : , गुणः, मानसिकभावः इसी प्रकार साहस शब्द का अर्थ भी नकारात्मक हो गया पूर्ववर्ती काल में साहसम् (नपुंसक लिंग) के रूप में बलात्कार अथवा बल से कार्य करने के अर्थ में रूढ़ था । (सहसा बलेन निर्वृत्तम् सहस् “तेन निर्वृत्तम् ।” ४। २ । ६८। इति अण् ) दण्डः । बलात्कार अथवा बल के द्वारा कोई कार्य करना साहस है। 👇 मनुष्यमारणञ्चौर्यं परदाराभिमशनम्। पारुष्यमुभयञ्चेति साहसं स्याच्चतुर्विधम्” (इति वृहस्पति स्मृति ) मानव-हत्या चौरी पराई स्त्री से संभोग कठोरता ये चार साहस के रूप हैं । 'परन्तु परवर्ती काल में साहस का अर्थ हिम्मत भी हो गया और यही अर्थ आज तक मान्य है। इसी प्रकार से कुछ शब्दों के अर्थ कालान्तरण पूर्ण रूप से विपरीत हो जाते हैं । असुर , राक्षस, और दानव ,और दास आदि शब्द के साथ भी या हुआ । इस लिए विद्वानों को इन वैदिक कालीन शब्दों का अर्थ भी प्राचीन सन्दर्भ या प्रसंंगों में ग्रहण करना चाहिए नकि आधुनिक अर्थों में यदि आधुनिक अर्थों में या प्रसंंगों के अनुरूप अर्थ ग्रहण 'न किया गया तो अनर्थ ही होगा । ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त की १० वीं ऋचा में यदु और तुर्वसु को स्पष्टत: दास के रूप में सम्बोधित किया गया है। 👇 वह भी गोपों को रूप में तो यहांँ गोप का अर्थ तो गो-पालन करने वाला है ; 'परन्तु दास का अर्थ प्राचीन सन्दर्भ में देवों का विद्रोही या विरोधी ही है । आधुनिक अर्थों के अनुरूप गुलाम या सेवक नहीं ________________________________________ " उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी । " गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे ।। (ऋग्वेद १०/६२/१०) यदु और तुर्वसु नामक दौनो दास जो गायों से घिरे हुए हैं हम उन सौभाग्य शाली दासों (देव संस्कृतियों के विरोधी )की प्रशंसा या वर्णन करते हैं। यहाँ पर गोप शब्द स्पष्टत: है। गो-पालक ही गोप होते हैं ऋग्वेद के प्राय: ऋचाओं में यदु और तुर्वसु का वर्णन नकारात्मक रूप में हुआ है। 👇 उद्गाता पुरोहित इन्द्र से प्रार्थना करता है कि 👇 _____________________________________ हे इन्द्र ! हम तुम्हारे मित्र रूप यजमान अपने घर में प्रसन्नता से रहें; तथा तुम अतिथिगु को सुख प्रदान करो। और तुम तुर्वसु और यादवों को क्षीण करने वाले बनो। अर्थात् उन्हें परास्त करने वाले बनो ! (ऋग्वेद ७/१९/८) प्रियास इत् ते मघवन् अभीष्टौ नरो मदेम शरणे सखाय:। नि तुर्वशं नि यादवं शिशीहि अतिथिग्वाय शंस्यं करिष्यन् ।। (ऋग्वेद ७/१९/८ ) यही उपर्युक्त ऋचा अथर्ववेद में भी (काण्ड २० /अध्याय ५/ सूक्त ३७/ ऋचा ७) पर है । ( अथर्व वेद और ऋग्वेद में भी यथावत् यही ऋचा है ; इसका अर्थ भी देखें :- हे ! इन्द्र तुम अतिथि की सेवा करने वाले सुदास को सुखी करो । और तुर्वसु और यदु को हमारे अधीन करो। और भी देखें यदु और तुर्वसु के प्रति पुरोहितों की दुर्भावना अर्वाचीन नहीं अपितु प्राचीनत्तम भी है ।... और भी देखें--- 👇 _________________________________________ अया वीति परिस्रव यस्त इन्दो मदेष्वा । अवाहन् नवतीर्नव ।१। पुर: सद्य इत्थाधिये दिवोदासाय , शम्बरं अध त्यं तुर्वशुं यदुम् ।२। (ऋग्वेद ७/९/६१/ की ऋचा १-२) हे सोम ! तुम्हारे किस रस ने दासों के निन्यानवे पुरों अर्थात् नगरों) को तोड़ा था । उसी रस से युक्त होकर तुम इन्द्र के पीने के लिए प्रवाहित हो ओ। १। शम्बर के नगरों को तोड़ने वाले ! सोम रस ने ही तुर्वसु की सन्तान तुर्को तथा यदु की सन्तान यादवों (यहूदीयों ) को शासन (वश) में किया।२। यदु को ही ईरानी पुरातन कथाओं में यहुदह् कहा जो ईरानी तथा बैबीलॉनियन संस्कृतियों से सम्बद्ध साम के वंशज- असीरियन जन-जाति के सहवर्ती यहूदी थे। सुमेरियन मिथकों में यदु का वर्णन उदु के रूप में है । असुर तथा यहूदी दौनो साम के वंशज- हैं । भारतीय पुराणों में साम के स्थान पर सोम हो गया । और देव संस्कृतियों के अनुयायी इन्द्र के उपासक पुरोहितों की यादवों से घृणा चिर-प्रचीन है देखें--और भी 👇 सत्यं तत् तुर्वशे यदौ विदानो अह्नवाय्यम् । व्यानट् तुर्वशे शमि । (ऋग्वेद ८/४६/२) हे इन्द्र ! तुमने यादवों के प्रचण्ड कर्मों को सत्य (अस्तित्व) में मान कर संग्राम में अह्नवाय्यम् को प्राप्त कर डाला । अर्थात् उनका हनन कर डाला । अह्नवाय्य :- ह्नु--बा० आय्य न० त० । निह्नवाकर्त्तरि । “सत्यं तत्तुर्वशे यदौ विदानो अह्नवाय्यम्” (ऋ० ८, ४५, २७) अथर्ववेद तथा ऋग्वेद में यही ऋचांश बहुतायत से है । किम् अंगत्वा मघवन् भोजं आहु: शिशीहि मा शिशयं त्वां श्रृणोमि ।। अथर्ववेद का० २०/७/ ८९/३/ हे इन्द्र तुम भोग करने वाले हो । तुम शत्रु को क्षीण करने वाले हो । तुम मुझे क्षीण न करो । यदु को दास अथवा असुर कहना सिद्ध करता है कि ये असीरियन जन-जाति से सम्बद्ध सेमेटिक यहूदीयों के पूर्वज यहुदह् ही थे। __________ और दूसरी बात की दास और असुर शब्द ईरानी आर्य्यों के धर्म ग्रन्थों अवेस्ता ए जेन्द में उच्चतम अर्थों में मान्य हैं असु-र महत् ( अहुर मज्दा के रूप में ईरानी आर्य्यों का सबसे बड़ा उपास्य और दास दाहे के रूप में दाता या दानी का वाचक तथा दागेस्तान के मूल निवासीयों का वाचक है । जिसका अन्य रूप देसिया भी है । अब भक्त स्वयं अन्दाजा लगा सकते हैं कि किस प्रकार कालान्तरण में शब्दों के अर्थ विपरीत अर्थ को प्रकट करने लगते हैं । यद्यपि वैदिक कालीन यदु और हिब्रूू यहुदह् शब्द की व्युत्पत्तियाँ समान है । अर्थात् यज्ञ अथवा स्तुति से सम्बद्ध व्यक्ति । यहूदीयों का सम्बन्ध ईरान तथा बेबीलोन से भी रहा है । ईरानी असुर संस्कृति में दाहे शब्द दाहिस्तान के सैमेटिक मूल के व्यक्तियों का वाचक है। और यदु एेसे स्थान पर रहते थे। जहाँ ऊँटो का बाहुल्य था ऊँट उष्ण स्थान पर रहने वाला पशु है । पश्चिमीय एशिया इज़राएल जॉरडन फलिस्तीन आदि में यह स्थान है । और वहाँ ऊँटों का बाहुल्य भी है । यह उष्ट्र शब्द उष् (वस) स्था (उष ष्ट्रन् किच्च ) ऊषरे तिष्ठति इति उष्ट्र (ऊषर अर्थात् मरुस्थल मे रहने से ऊँट संज्ञा )। (ऊँट) प्रसिद्धे पशुभेदे स्त्रियां जातित्त्वात् ङीष् । उष्ट्र वैसे भी मरुस्थलीय प्राणी है यह रेगिस्तानीय है उसका नामकरण भी उसकी पारिवेशक तथा जलवायवीय विशेषताओं को समन्वित किए हुए है । “हस्तिगोऽश्वोष्ट्रदमकोनक्षत्रैर्यश्च जीवति” “नाधीयीताश्वमारूढ़ो न रथं न च हस्तिनम् देखें-👇 -ऋग्वेद में ये प्रसंंग हैं । शतमहं तिरिन्दरे सहस्रं वर्शावा ददे । राधांसि यादवानाम् त्रीणि शतान्यर्वतां सहस्रा दश गोनाम् ददुष्पज्राय साम्ने ४६। उदानट् ककुहो दिवम् उष्ट्रञ्चतुर्युजो ददत् । श्रवसा याद्वं जनम् ।४८।१७।👇 यदु वंशीयों में परशु के पुत्र तिरिन्दर से सहस्र संख्यक धन मैने प्राप्त किया ! ऋग्वेद ८/६/४६ यह स्थान इज़राएल अथवा फलस्तीन ही है । क्या जादौन अपने को इन रूपों में मानते हैं । क्या वो यादवों के पूर्वज यदु के इस ऐैतिहासिक विवरण को जानते और मानते हैं । विदित हो की देव संस्कृतियों के पुरोहित ब्राह्मणों का आगमन यूरोप स्वीडन से मैसॉपोटमिया सुमेरो-फोनियन के सम्पर्क में रहते हुए हुआ था । अत: भारतीय वैदिक सन्दर्भों में सुमेरियन बैबीलॉनियन सांस्कृतिक रूपों का भी समन्वय हुआ । विष्णु देवकी सुमेरियन( विष् नु- अर्ध मत्स्य मानव ) का प्रतिरूप है। इन्द्र इन-दरु तथा वरुण आदि देवकी सुमेरियन हैं । सुमेरियन पुरातन कथाओं में (बरमन) /बरम (Baram) पुरोहितों को कहते हैं । ईरानी में बिरहमन तथा जो जर्मनिक जन-जातियाँ में ब्रेमन ब्रामर अथवा ब्रेख्मन है। जो ब्राह्मण शब्द का तद्भव है। पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मणों ने अहीरों( यादवों से सदीयों से घृणा की है )उन्हें ज्ञान से वञ्चित किया और उनके इतिहास को विकृत किया और उन्हें दासता की जञ्जीरों में बाँधने की कोशिश भी की परन्तु अहीरों ने दास (गुलाम) न बन कर दस्यु बनना स्वीकार किया । तत्कालीन सन्दर्भों में दस्यु का अर्थ बागी या विद्रोही है जो दास का उन्नत प्रतिरूप है । ईरानी मिथकों में "दह्यु"शब्द वैदिक दस्यु का रूपान्तरण ही है। _________________________________________ "यह समग्र शोध श्रृंखला :- यादव योगेश कुमार' 'रोहि' के द्वारा अनुसन्धानित नवीनत्तम तथ्य है " ईरानी भाषा में दस्यु तथा दास शब्द क्रमश दह्यु तथा दाहे के रूप में हैं । ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त की १० वीं ऋचा में यदु और तुर्वसु को स्पष्टत: दास के रूप में सम्बोधित किया गया है। यह तथ्य हम पूर्व में वर्णित कह चुके हैं । अमरकोश में जो गुप्त काल की रचना है ;उसमें अहीरों के अन्य नाम-पर्याय वाची रूप में गोप शब्द भी वर्णित हैं। आभीर पुल्लिंग विशेषण संज्ञा गोपालः समानार्थक: १-गोपाल,२-गोसङ्ख्य, ३-गोधुक्, ४-आभीर,५-वल्लव,६-गोविन्द, ७-गोप ८ - गौश्चर: (2।9।57।2।5) अमरकोशः) अत: साक्ष्य अहीरों के पक्ष में ही अधिक हैं यदुवंशी होने के और सम्पूर्ण भारत में अहीर ही यादव या गोपं के रूप में मान्य हैं । जादौनों के रूप में कोई पौराणिक साक्ष्य नहीं है । भारतीय इतिहास मे जादौन जन-जाति चारण बंजारों का एक छोटे राठौड़ों का समुदाय है । इनके विषय में आगे अधिक स्पष्ट किया जाएगा ! विदित हो कि यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते हैं दाशार्ह देशबाल -दशवार , ,सात्वत ,जो कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली क्रमशः सावत ,सावन्त , कुक्कुर कुर्रा , कुर्रू आदि रूपों परिवर्तित हो गये । ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश जहाँ कुक्कुर जाति के यादव रहते थे यह देश राजपूताने के अन्तर्गत है ; जो कभी मत्स्या देश था । और कालान्तरण में उसके वंशजों द्वारा नामकरण हुआ । कुकुर अवलि =कुकुरावलि --कुरावली---करौली 'परन्तु मुगल काल में पारसी में करौल का अर्थ छावनी या सैनिक पढ़ाब होने से इस स्थान पर मुगलों के सैनिक पढ़ाब डाल कर रहते थे इस लिए भी इसे करौली या करौल कहा गया । _____________________________________________ संस्कृत ग्रन्थों में कुकुर यादवों के विषय में पर्याप्त आख्यान परक विवरण प्राप्त होता है । कोश ग्रन्थों में इस शब्द की व्युत्पत्ति काल्पनिक रूप से इस प्रकार दर्शायी है । कुम् पृथिवीं कुरति त्यजति स्वामित्वेन इति कुकुर । यदुवंशीयनृपभेदे तेषां ययातिशापात् राज्यं नास्तीति पुराणकथा यदुशब्दे दृश्या । अर्थात् कुकुर 'वह हैं --जो अपने स्वामित्व के द्वारा 'पृथ्वी का राज को त्यागते हैं क्यों कि यदु के वंशज जिनके पूर्वज यदु ने ययाति के शाप से राज्य प्राप्त नहीं किया । इस रूढ़िवादी परम्पराओं के प्रभाव से ... 'परन्तु हरिवंशपुराण तथा अन्य पुराणों में हैहयवंश के यादव सहस्रबाहु चक्रवर्ती सम्राट भी थे । तो यह कहना भी मिथ्या ही है कि यदुतथा उनके वंशज राज्य हीन ही रहे । इन्हीं कुकल यादवों की परवर्ती शाखा में भजमान शुचि ,कम्बलबर्हिषतथा अन्धक आदि हुए । क्रिया अहीरों का सम्बन्ध कम्बल मरहिष से है जो आजकल कमलनयन राज से सम्बद्ध करते हैं । “ भजमानशुचिकम्बलबर्हिषास्तथान्धकस्य पुत्राः” इति (विष्णु पुराण) “कुकुरो भजमानश्च शुचिः कम्बलबर्हिषः । “अन्धकात् काश्यदुहिता चतुरोलभतात्मजान् कुकुरं भजमानं च शमं कम्बलबहिषम्” (हरिवंश पुराण ३८ अध्याय) । ________________________________________ विदित हो कि मध्यकालीन वारगाथा काल में नल्ह सिह भाट द्वारा विजय पाल रासो के रचना की गयी । नल्हसिंह भाट कृत इस रचना के केवल '42' छन्द उपलब्ध है। विजयपाल, जिनके विषय में यह रासो काव्य है, विजयगढ़, करौली के पाल 'यादव' राजा थे। इनके आश्रित कवि के रुप में 'नल्ह सिंह' का नाम आता है। रचना की भाषा से यह ज्ञात होता है कि यह रचना 17 वीं शताब्दी से पूर्व की नहीं हो सकती है। " करौली के यदुवंशी राजा शौरसैनी कहे जाते थे यह कहना भी निर्धारित व मनगड़न्त मिथक है । क्योंकि यदुवंशीयों का वंशमूलक विशेषण यादव और व्यवसाय मूलक विशेषण गोप तथा ईसा० पूर्व द्वत्तीय सदी के संस्कृत विद्वानों'ने आभीर या अभीर भी कहा । यादवों का घोष विशेषण भी गोष: के अर्थ रूपों गोप का ही वाचक रहा है । कुछ यदुवंशी बाद में समय के प्रभाव से मथुरा को त्याग कर और सम्वत् 1052 में बयाने के पास बनी पहाड़ी की उपत्यका में ये जा बसे | राजा विजयपाल के पुत्र तहनपाल (त्रिभुवनपाल) ने तहनगढ़ का किला बनवाया । तहनपाल के पुत्र धर्मपाल (द्वितीय) और हरिपाल थे ; जिनका समय संवत् 1227 का है । कृष्ण जी के प्रपौत्र (नाती )वज्र को मथुरा का अधिपति बनाने का प्रसंग श्रीमद भागवत् के दशम स्कन्ध में आता है और वज्रनाभ के पुरोहित शाण्डिल्य ही थे । जो गर्गाचाय की शिष्य परम्परा में थे। कहा जाता है की लगभग सातवीं शताब्दी के आस पास सिंध से (जहां भाटियों का वर्चस्व था ). कुछ यदुवंशी मथुरा वापस आ गए और उन्हों ने यह इलाका पुनः जीत लिया विदित हो की भाटी चारण (करण)बंजारों के रूपान्तरण थे जो वंशमूलक विरुदावलियों का संग्रह और गायन करते थे। ________ इन यदुवंशी पाल राजाओं की वंशावली राजा धर्मपाल से शुरू होती है जो की श्री कृष्ण 77वीं पीढ़ी के वंशज थे यह तथ्य कमान के चौंसठ खम्बा शिलालेख पर उत्कीर्ण है । वर्तमान काल में करौली के राजघराना में पाल राजाओं के वंशज है । पाल अहीरों का प्राचीनत्तम विशेषण रहा है। पहाड़ों पर बसने वाले डोगरा राजपूतों में भी इनकी कई खांपें मिली हुई हैं । ये ढढोर कबीले को अहीर से सम्बद्ध हैं ढढोर ' यदुवंशी अहीरों की एक प्रसिद्ध गोत्र है जिनका निर्गमन राजस्थान के प्रसिद्ध ढूंढार क्षेत्र से हुआ है। इनके उर हृदय में दृढ़ता( दृढ़ उर)थी तो लोगोंने इन्हें डिढ़ोर भी कहा जाने लगा राजस्थान में जयपुर के आसपास के क्षेत्र जैसे करौली, धौलपुर, नीमराणा और ढींग (दीर्घपुर) बयाना (वज्रायन) के विशाल क्षेत्र को " ढूंढार " कहा जाता है एवं यहाँ ढूंढारी भाषा बोली जाती है। आज भी यहाँ ढंढोर अहीरों के गांव यहाँ मौजूद हैं। ढढोर अहीर मूलतः द्वारिकाधीश भगवान कृष्ण के प्रपौत्र युवराज वज्रनाभ यदुवंशी के वंशजों में से एक माने जाते हैं एवं इनकी अराध्य देवी कैलादेवी(कंकाली माता) हैं। _______________________________________ भगवान कृष्ण की पीढ़ी के 135 वें पाल या अबीर राजा विजयपाल यदुवंशी के ही विभिन्न पुत्रों में से एक से यह "ढढोर" वंश चला। ऐसा "विजयपाल रासो "में भी वर्णन मिलता है कि यदुवंशी क्षत्रियों के उस समय राजस्थान और बृज में 1444 गोत्र उपस्थित थे। इन्हीं विभिन्न 1444 यदुवंशी क्षत्रियों के गोत्र में से एक था । ढढोर गोत्र जिन्होंने मुहम्मद गौरी के राजस्थान पर आक्रमण के समय गुर्जर राजा पृथ्वीराज चौहान की ओर से लड़ते हुए गौरी की सेना से युद्ध किया था। सन् 1018 में मथुरा के महाराज कुलचन्द्र यादव और महमूद गज़नी के बीच भीषण युद्ध हुआ जिसमें गज़नी की सेना ने कपट पूर्वक यदुवंशीयों को पराजित कर दिया। राजा कुलचंद्र यादव के पुत्र राजा विजयपाल यदुवंशी के नेतृत्व में ज्यादातर यादव बयाना आ गए। और बयाना शब्द अनिरुद्ध के पुत्र वज्रनाभ के आधार पर है । यह वज्रायन शब्द का तद्भव है । इस लिए विजयपाल ने मथुरा के क्षेत्र में बनी अपनी प्राचीन राजधानी छोड़कर पूर्वी राजस्थान की मानी नामक पहाड़ी के उच्च-स्थली भाग पर बयाना का दुर्ग का निर्माण किया। विजयपाल रासो नामक ग्रन्थ में इस राजा के पराक्रम का अच्छा वर्णन है । इसमे लिखा है कि महाराजा विजयपाल का 1045 ई0 में अबूबक्र शाह कान्धारी से घमासान युद्ध हुआ । संवत 1103 में यवनों ने संगठित होकर अबूबक्र कंधारी के नेतृत्व में विजय मंदिर गढ़ पर हमला किया और दुर्ग को चारों तरफ से घेर लिया इस युद्ध में विजयपाल वीरगति को प्राप्त हुये । और कालान्तरण में उनके साथ उनके 18 में से 11 पुत्र भी वीरगति को प्राप्त हुए पराजय का समाचार किले में पहुचते ही महाराजा विजयपाल की रानियों ने राजपरिवार की अन्य स्त्रियों एवं किले की सैकड़ो अहीर क्षत्राणियों के साथ अग्नि की प्रचंड ज्वाला में कूद कर जौहर कर लिया शायद ही देश के इतिहास में इतना बड़ा जौहर हुआ होगा यह चित्तौड़ के जौहर से भी बड़ा जौहर था जिसके साक्ष्य आज भी विजयमन्दिरगढ़ किले में मौजूद है यह घटना फाल्गुन वदी तीज दिन सोमवार संवत 1103 को घटित हुई थी । _________________________________________ सन् 1196 ई0 सन् में मोहम्मद गौरी ने बयाना( विजयमन्दिरगढ़) और तिमनगढं पर हमला किया जिसमे विजयपाल यदुवंशी के पीढ़ी के शासक राजा कुंवरपाल सिंह यदुवंशी के नेतृत्व में यादव सेना ने मोहम्मद गौरी की सेना का डटकर रणभूमि में मुकबला किया लेकिन पराजित होकर वहा से पलायन करना पड़ा। इसके पश्चात वहाँ से पलायन कर राजा कुंवरपाल सिंह यदुवंशी ने बचे हुए यादव सेना और सामंतों के साथ चित्तौड़ में शरण ली । यादव रजवाड़ों ने चित्तौड़ के दुर्ग में अपने कुल देवी माँ योगमाया गोप कन्या विन्ध्यावासिनी के भव्य मंदिर का निमार्ण करवाया जो कंकाली माता के मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। राजा कुवंरपाल यदुवंशी के पुत्र हुए महिपाल सिंह यादव यदुवंशी अहीरों ने राजस्थान के कोटा से 22 किलो मीटर दूर पाटन में आये तथा यहाँ तक यदुवंशी अभीरों के 14 44 गोत्र एक साथ मौजूद थे । तथा यहाँ केशवराय जी के विशाल मन्दिर का निर्माण कराया इस मन्दिर के नाम से ही आज वह शहर केशवराय पाटन शहर के नाम से जाना जाता है। पाटन से यादव समाज के लोग बिखर गए और राजा कुंवरपाल यदुवंशी के जेष्ठ पुत्र महिपाल सिंह यादव के नेतृत्व में यादव वंश के 86 गोत्र नर्मदांचल में आकर बस गए और शिवपुरी में स्वतंत्र जागीर स्थापित करी। इन्हीं 1444 गोत्रों में से एक गोत्र है ढंढोर गोत्र जो मुहम्मद गौरी से युद्ध के बाद राजस्थान से पलायन कर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के गोरखपुर, आज़मगढ़ आदि इलाकों में जा बसे। और आज भी स्वयं को अहीर कहते हैं । करौली के सस्थापक कुकुर यादवों की शाखा से लोग थे यद्यपि ये लोग चरावाहों की परम्पराओं का निर्वहन यदु को द्वारा स्थापित होने से करते थे । क्यों कि यदु ने कभी भी राज्य स्वीकार नहीं किया । वे गोप थे और हमेशा गायों से घिरे रहते थे । ऋग्वेद के दशम मण्डल के 62 वें सूक्त की दशवीं ऋचा में देखें-- " उत् दासा परिविषे स्मत्दृष्टी गोपर् ईणसा यदुस्तुर्वशुश्च मामहे ।।ऋ०10/62/10 । इतिहास लेखक मोहन दास गुप्ता ने लिखा की ये कभी भी राजपूत सूचक विशेषण सिंह अपने नाम के पश्चात् नहीं लगाते थे केवल पाल विशेषण लगाते थे । क्योंकि सिंह गाय को कैसे छोड़ सकता है । ये स्वयं को गोपाल कृष्ण का वंशज मानते थे । गोपाल , पाल गोप तथा आभीर केवल यादवों के व्यवसाय और प्रवृत्तिपरक विशेषण हैं । और आभीर वीरता सूचक प्रवृत्ति का सूचक है । करौली के मन्दिर में गाय और भेड़ यदुवंशी शासकों के पाल गोपाल रूपों की स्मृति के आज तक जीवन्त अवशेष हैं। इसलिए जादौन समाज का यह दावा निराधार व भ्रान्ति मूलक है कि अहीर यदुवंशी नहीं होते हैं । जबकि स्वयं जादौन जन-जाति चारण बंजारों का उप समुदाय है । चारण या करण तथा भाट ये बंजारों और वंशमूलक विरुदावलियों का संग्रह और गायन करने वाले हैं ये कालान्तरण में स्वयं को राजपूत भी कहने लगे क्योंकि भारतीय पुराणों में विशेषत: ब्रह्मवैवर्तपुराणम् तथा स्कन्द पुराण के सह्याद्रि खण्ड अध्याय 26 में राजपूत की उत्पत्ति दर्शायी है ब्रह्मवैवर्तपुराणम् में भी राजपूत की उत्पत्ति का वर्णन👇 इसी करण कन्या को चारणों ने करणी माता के रूप में अपनी कुल देवी स्वीकार कर लिया है । जिसका विवरण हम आगे देंगे - ज्वाला प्रसाद मिश्र ( मुरादावादी) 'ने अपने ग्रन्थ जातिभास्कर में पृष्ठ संख्या 197 पर राजपूतों की उत्पत्ति का हबाला देते हुए उद्धृत किया कि ब्रह्मवैवर्तपुराणम् ब्रह्मवैवर्तपुराणम्‎ (खण्डः १ -(ब्रह्मखण्डः) ← अध्यायः ०९ ब्रह्मवैवर्तपुराणम् अध्यायः १० _______ क्षत्रात्करणकन्यायां राजपुत्रो बभूव ह ।। राजपुत्र्यां तु करणादागरीति प्रकीर्तितः।। 1/10।। ब्रह्मवैवर्तपुराणम् में भी राजपूत की उत्पत्ति क्षत्रिय से करण (चारण) कन्या में राजपूत उत्पन्न हुआ और राजपुतानी में करण पुरुष से आगरी उत्पन्न हुआ । तथा स्कन्द पुराण सह्याद्रि खण्ड अध्याय 26 में राजपूत की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए कहा " कि क्षत्रिय से शूद्र जाति की स्त्री में राजपूत उत्पन्न होता है यह भयानक, निर्दय , शस्त्रविद्या और रण में चतुर तथा शूद्र धर्म वाला होता है ;और शस्त्र वृत्ति से ही अपनी जीविका चलाता है ।👇 ( स्कन्द पुराण सह्याद्रि खण्ड अध्याय 26) और ब्रह्मवैवर्तपुराणम् में भी राजपूत की उत्पत्ति क्षत्रिय से करण (चारण) कन्या में राजपूत उत्पन्न हुआ और राजपुतानी में करण पुरुष से आगरी उत्पन्न हुआ । आगरी संज्ञा पुं० [हिं० आगा] नमक बनानेवाला पुरुष । लोनिया ये बंजारे हैं । प्राचीन क्षत्रिय पर्याय वाची शब्दों में राजपूत ( राजपुत्र) शब्द नहीं है । विशेष:- उपर्युक्त राजपूत की उत्पत्ति से सम्बन्धित पौराणिक उद्धरणों में करणी (चारण) और शूद्रा दो कन्याओं में क्षत्रिय के द्वारा राजपूत उत्पन्न होने में सत्यता नहीं क्योंकि दो स्त्रियों में एक पुरुष से सन्तान कब से उत्पन्न होने लगीं और रही बात राजपूतों की तो राजपूत एक संघ है जिसमें अनेक जन-जातियों का समायोजन है । चारण, भाट , लोधी( लोहितिन्) कुशवाह ( कृषिवाह) बघेले आदि और कुछ गुर्जर जाट और अहीरों से भी राजपूतों का उदय हुआ । ब्रह्मवैवर्त पुराण में राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में वर्णन है।👇 < ब्रह्मवैवर्तपुराणम्‎ (खण्डः १ -(ब्रह्मखण्डः) ← अध्यायः ०९ ब्रह्मवैवर्तपुराणम् अध्यायः १० क्षत्रात्करणकन्यायां राजपुत्रो बभूव ह ।। राजपुत्र्यां तु करणादागरीति प्रकीर्तितः।। 1/10।। "ब्रह्म वैवर्तपुराण में राजपूतों की उत्पत्ति क्षत्रिय के द्वारा करण कन्या से बताई "🐈 करणी मिश्रित या वर्ण- संकर जाति की स्त्री होती है ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार करण जन-जाति वैश्य पुरुष और शूद्रा-कन्या से उत्पन्न है। और करण लिखने का काम करते थे । ये करण ही चारण के रूप में राजवंशावली लिखते थे । एेसा समाज-शास्त्रीयों ने वर्णन किया है । तिरहुत में अब भी करण पाए जाते हैं । लेखन कार्य के लिए कायस्थों का एक अवान्तर भेद भी करण कहलाता है । करण नाम की एक आसाम, बरमा और स्याम की जंगली जन-जाति है । क्षत्रिय पुरुष से करण कन्या में जो पुत्र पैदा होता उसे राजपूत कहते हैं। वैश्य पुरुष और शूद्रा कन्या से उत्पन्न हुए को करण कहते हैं । और ऐसी करण कन्या से क्षत्रिय के सम्बन्ध से राजपुत्र (राजपूत) पैदा हुआ। वैसे भी राजा का वैध पुत्र राजकुमार कहलाता था राजपुत्र नहीं । इसी लिए राजपूत शब्द ब्राह्मणों की दृष्टि में क्षत्रिय शब्द की अपेक्षा हेय है । राजपूत बारहवीं सदी के पश्चात कृत्रिम रूप से निर्मित हुआ । पर चारणों का वृषलत्व कम है । इनका व्यवसाय राजाओं ओर ब्राह्मणों का गुण वर्णन करना तथा गाना बजाना है । चारण लोग अपनी उत्पत्ति के संबंध में अनेक अलौकिक कथाएँ कहते हैं; कालान्तरण में एक कन्या को देवी रूप में स्वीकार कर उसे करणी माता नाम दे दिया करण या चारण का अर्थ मूलत: भ्रमणकारी होता है । चारण जो कालान्तरण में राजपूतों के रूप में ख्याति-लब्ध हुए और अब इसी राजपूती परम्पराओं के उत्तराधिकारी हैं । करणी चारणों की कुल देवी है । ________ विशेष:- उपर्युक्त राजपूत की उत्पत्ति से सम्बन्धित पौराणिक उद्धरणों में करणी (चारण) और शूद्रा दो कन्याओं में क्षत्रिय के द्वारा राजपूत उत्पन्न होने में सत्यता नहीं क्योंकि दो स्त्रियों में एक पुरुष से सन्तान कब से उत्पन्न होने लगीं और रही बात राजपूतों की तो राजपूत एक संघ है जिसमें अनेक जन-जातियों का समायोजन है । जैसे चारण, भाट , लोधी( लोहितिन्) कुशवाह ( कृषिवाह) बघेले आदि और कुछ गुर्जर जाट और अहीरों से भी राजपूतों का उदय हुआ । _____ 'परन्तु बहुतायत से चारण और भाट या भाटी बंजारों का समूह ही राजपूतों में विभाजित है । : 54 (10 सबसे बड़ा दिखाया गया) सभी दिखाएं उपसमूह का नाम जनसंख्या। नाइक 471,000 चौहान 35,000 मथुरा 32,000 सनार (anar )23,000 लबाना (abana) 19,000 मुकेरी (ukeri )16,000 हंजरा (anjra) 14,000 पंवार 14,000 बहुरूपिया ahrupi 9100 भूटिया खोला 5,900 ______________ परिचय / इतिहास हिंदू बंजारा, जिन्हें 53 विभिन्न नामों से जाना जाता है, मुख्य रूप से लमबाड़ी या लमानी (53%), और बंजारा (25%) बोलते हैं। वे भारत में सबसे बड़े खानाबदोश समूह हैं और पृथ्वी के मूल रोमानी के रूप में जाने जाते हैं। रोमनी ने सैकड़ों साल पहले भारत से यूरोप के विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा शुरू की, और अलग-अलग बोलियाँ उन क्षेत्रों में विकसित हुईं जिनमें प्रत्येक समूह बसता था। बंजारा का नाम बाजिका( वाणिज्यार )शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है व्यापार या व्यवसाय, और बैंजी से, जिसका अर्थ है पैल्डलर पैक। _________ कई लोग उन्हें मिस्र से निर्वासित किए गए यहूदियों के रूप में मानते हैं, क्योंकि वे मिस्र और फारस से भारत आए थे। कुछ का मानना ​​है कि उन्हें मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा अपनी मातृभूमि से निष्कासित कर दिया गया था। अब वे भारत के पचास प्रतिशत से अधिक जिलों में स्थित हैं। उनका जीवन किस जैसा है? अधिकांश भारतीय रोमानी जैतून की त्वचा, काले बाल और भूरी आँखें हैं। हालाँकि हम आम तौर पर इन समूहों को भाग्य से रंग-बिरंगे कारवां में जगह-जगह से यात्रा करने वालों के बैंड के साथ जोड़ते हैं, लेकिन अब बंजारा के साथ ऐसा नहीं है। ऐतिहासिक रूप से वे खानाबदोश थे और मवेशी रखते थे, नमक का कारोबार करते थे और माल का परिवहन करते थे। अब, उनमें से अधिकांश खेती या पशु या अनाज को पालने-पोसने के लिए बस गए हैं। अन्य अभी भी नमक और अन्य वस्तुओं का व्यापार करते हैं। कुछ क्षेत्रों में, कुछ सफेदपोश पदों को धारण करते हैं या सरकारी कर्मचारियों के रूप में काम करते हैं। वे चमकदार डिस्क और मोतियों के साथ जटिल कढ़ाई वाले रंगीन कपड़े भी सिलते हैं। वे गहने और अलंकृत गहने बनाते हैं, जो महिलाएं भी पहनती हैं। न केवल बंजारे के पास आमतौर पर एक से अधिक व्यवसाय होते हैं,। वे समय पर समाज की जरूरतों के आधार पर, अपनी आय को पूरक करने के लिए अतिरिक्त कौशल का भी उपयोग करते हैं। कुछ लोग झाड़ू, लोहे के औजार और सुई जैसी वस्तुएं बनाने में माहिर हैं। वे उपकरणों की मरम्मत भी कर सकते हैं या पत्थर के साथ काम कर सकते हैं। दूसरों का मानना ​​है कि किसी को "धार्मिक भीख" से जीवन यापन के लिए काम नहीं करना पड़ता है। वे विशिष्ट देवता के नाम पर भीख माँगते हुए विशेष श्रृंगार में गाते और पहनते हैं। बंजारा को संगीत पसंद है, लोक वाद्य बजाना और नृत्य करना। बंजार भी कलाबाज, जादूगर, चालबाज, कहानीकार और भाग्य बताने वाले हैं। क्योंकि वे गरीब हैं, वे डेयरी उत्पादों के साथ अपने बागानों में उगाए गए खाद्य पदार्थ खाते हैं। कई घास की झोपड़ियों में रहते हैं, अक्सर विस्तारित परिवारों के साथ। अन्य जातियों के साथ न्यूनतम संबंध रखने वाले बंजारा परिवार घनिष्ठ हैं। समुदाय के नेता की भूमिका नेता के बेटे को दी जाती है। सभी जैविक पुत्रों को पैतृक संपत्ति से बराबर हिस्सा मिलता है। विवाह की व्यवस्था की जा सकती है, खासकर तीन पीढ़ियों के रिश्तेदारों के मिलन से बचने के लिए। कुछ समूहों में, हालांकि, बहिन से चचेरे भाई को शादी करने की अनुमति है। दहेज 20,000 रुपये या लगभग $ 450.00 के रूप में उच्च हो सकता है। शादीशुदा महिलाएं हाथी दांत की मेहंदी लगाती हैं। उनके विश्वास क्या हैं? बंजारा बहुसंख्यक हिंदू हैं; कुछ ने हिंदू प्रथाओं को अपनी खुद की एनिमेटिड मान्यताओं के साथ जोड़ दिया है। अन्य समूह इस्लाम का पालन करते हैं; अभी तक अन्य सिख हैं। रोमानी अक्सर लोक मान्यताओं का पालन करते हैं, और इन धार्मिक मान्यताओं के साथ मिश्रित कई वर्जनाएं हैं (चीजें जो कभी नहीं करनी चाहिए।) एक हिंदू वर्जना यह है कि एक महिला के बालों को कंघी नहीं करना चाहिए या पुरुषों की उपस्थिति में लंबे समय तक नीचे नहीं रहना चाहिए। एक और बात यह है कि एक महिला को बैठे हुए पुरुष के सामने से नहीं गुजरना चाहिए, बल्कि उसके पीछे होना चाहिए। भले ही रोमानी भाषण में अनारक्षित हैं, कई में उच्च नैतिक मानक हैं। उदाहरण के लिए, शुद्धता बहुत महत्वपूर्ण है। ______ कुल या वंश की उच्चता का निर्धारण व्यक्तियों के संस्कार और व्यवहार से ही किया जाता है । श्रेष्ठ वंश में श्रेष्ठ सन्तानें का ही प्रादुर्भाव होता है । दोगले और गाँलि- गलोज करने वाले और अय्याश लोग नि: सन्देह अवैध यौनाचारों से उत्पन्न होते हैं । भले हीं वे स्वयं को समाज में अपने ही मुख से ऊँचा आँकते हों । जिनके पास कुतर्क ,गाली और भौंकने के अतिरिक्त कुछ नहीं होता ! जिनमें न क्षमा होती है; और न क्षमता ही । वह लोग धैर्य हीन बन्दर के समान चंचल व लंगोटी से कच्चे होते हैं । और बात बात पर गीदड़ धमकी कभी पुलिस की तो कभी कोर्ट की और गालियाँ तो जिनका वाणी का श्रृँगार होती हैं। जिनमें मिथ्या अहं और मुर्दों जैसी अकड़ ही होती है । ज्ञान के नाम पर रूढ़िवादी पुरोहितों से सुनी सुनायीं किंवदन्तियाँ ही प्रमाण होती हैं । 'परन्तु पौराणिक या वैदिक कोई साक्ष्य जिनके पास नहीं होता । अहीरों को द्वेष वश गालियाँ देने वाले कुछ चारण बंजारे और माली जन-जाति के लोग इसका प्रबल प्रमाण हैं । ये वास्तविक रूप में अवैध संताने हैं , उन दासी पुत्रों से और क्या अपेक्षा की जा सकती है ? कुलहीन, संस्कारहीन मनुष्य से अच्छे तो जानवर है . विदित हो कि अपनी फेस बुक या ब्लोगर आइडी पर अहीरों को निरन्तर गाली या उनके इतिहास की गलत तरीके से ऐडिटिंग करने वाले .. ये भाटी भाट या चारण बंजारे का एक समुदाय है । जादौन - ये बंजारा समुदाय हैऔर भारत में आने से पहले अफगानिस्तान में जादून/ गादूँन पठान थे भारत में बीकानेर और जैसलमैर में जादौन बंजारे हैं । आधुनिक समाज शास्त्री यों ने इन्हें छोटी राठौड़ों समुदाय के अन्तर्गत चिन्हित किया है । इन्हीं के समानान्तरण जाडेजा हैं जाड़ेज़ा - जाम उनार बिन बबिनाह नाम के मुसलिमों के वंशज हैं ये लोग जो ठीक से हिन्दु भी नहीं हैं इनका जाम जाड़ा भी मुसलिमों से सम्बद्ध था । और सैनी - ये माली लोग इनकी हैसियत सिर्फ़ पेड़ पौधों को पानी देने की है . आज ये शूरसेन से सम्बद्ध होने का प्रयास कर रहे हैं। विदित हो कि कायस्थों में सैनी और शक्सैनी वे लोग थे; जिन्होंने शक और सीथियनों की सैना में नौकरी की .. अब य भी स्वयं को राजपूत लिखते हैं । ये ख़ुद को मालिया राजपूत कहते हैं ; सैना में काम करने कारण ये सैनिक से सैनी उपनाम लगाने लगे . और अब सैनी स्वयं को शूरसेन से जोड़ रहे है। विदित हो की सिसौदिया आदि राजपूत इन्हें कम ही स्वीकार करते हैं। जादौन जन-जाति का यदुवंश से प्रत्यक्ष कोई सम्बन्ध नहीं है । अफगानिस्तान के गादौन जादौन पठान जो वनी इज़राएल या यहूदियों की स्वयं को शाखा मानते हैं उसी के आधार पर ये भी अपने को यदुवंशी मानने की बात करते हैं । जबकि समस्त यदुवंशज स्वयं को गोप अथवा यादव ही मानते थे । इस आधार पर कल को कोई वसुदेव सैनी भी लिखा सकता है । सूरसैनी नाम ये प्राचीनत्तम ग्रन्थों में किसी यदुवंशी का विवरण नहीं है । -सूर सैन के किसी वंशज 'ने भी यह विशेषण कभी अपने नाम के पश्चात नहीं लगाया । केवल यादव गोप और घोष विशेषण ही रूढ़ रहे आभीर शब्द तो आर्य्य का ही रूपान्तरण है । आर्य्य शब्द का प्रयोग 'न करके भारतीय पुरोहित वर्ग 'ने आभीर शब्द का प्रयोग यादवों या गोपों को ईसा० पूर्व द्वत्तीय सदी के समकालिक किया था । जो परवर्ती प्राकृत अपभ्रंश और हिन्दी भाषाओं में आहिर अहीर ,अहर आदि रूपान्तरण में प्रकाशिका हुआ । _________ अभी तक जादौन , राठौड़ और भाटी आदि चारण बंजारों के रूप में थे अव ये लोग स्वयं को राजपूत भी कहने लगे हैं । इन्हीं जातियों के कुछ लोग पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं। इनका अहीरों से द्वेष उनके यदुवंश को लेकर है । जादौन जन-जाति का पूर्वाग्रह इस लिए भी की इतिहास कारों'ने जादौन जन-जाति की उत्पत्ति अहीरों या गूजरों से प्रतिपादित की 'परन्तु इनका तो कोई विवरण ही नहीं पुराणों में विदित हो कि पुराणों या स्मृतियों ने जिन वेदों को आपना उपजीव्य माना है । उनमें भी यदु और तुर्वशु को दास, दस्यु और असुर तक कह कर वर्णित किया है। 'परन्तु प्राचीन काल में इनके अर्थ आज के अर्थ से विपरीत ही थे । जैसे- ऋग्वेद में --जो भारतीय संस्कृति में ही नहीं अपितु विश्व- संस्कृतियों में प्राचीनत्तम ग्रन्थ है । और जिसके सूक्त ई०पू० २५०० से १५००के काल तक का दिग्दर्शन करते हैं -- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु का साथ साथ वर्णन हुआ है । गो-पालक ही गोप होते हैं अन्यत्र ऋग्वेद में प्राय: ऋचाओं में यदु और तुर्वसु का वर्णन नकारात्मक रूप में हुआ है । 👇 ________ अब जादौन जन-जाति के लोग क्या अपने पूर्वज यदु के इन ऐतिहासिक तथ्यों को जानते और मानते हैं। कभी नहीं ! मध्य कालीन भारतीय ग्रन्थों में जादौं एक निम्न जातिके रूप में वर्णित हैं। जैसे जादौन (जिसे जादोैं के रूप में भी जाना जाता है) राजपूतों के एक कबीले (गोत्र) से सम्बद्ध हैं। जादौन मूलतः चारण बंजारा समुदाय रहा है । एक खानाबदोश समुदाय, माली (माली) जाति का एक समूह और भारत में यह जादौं कुर्मी जाति की एक उपजाति को भी सन्दर्भित करता है। पहले हम नीचे भारत के प्रसिद्ध समाजशास्त्री व लेखक एस.जी. देवगांवकर (S.G.DeoGaonkar) और उनकी सहायिका शैलजा एस. देवगांवकर के द्वारा लिखी बंजारा जन-जाति के गहन सर्वेक्षण पर आधारित पुस्तक " "भारत की बंजारा जाति और जनजाति - भाग 3" से जादौन जन-जाति से सम्बद्ध कुछ अंश उद्धृत करते हैं ।👇 _________________________________________ 💐Sociologist Deu Gaonkar and his assistant Shelaja Gaonkar Wrote in his book. - which publishes books and lives on history.👇 "Mathurias ,Labhans and Dharias are The Charans Banjara , Who are more in numbers and important Among The Banjara are Divided into Five main class viz. Rathod, Panwar, Chauhan, puri and Jadon or Burthia. Each Class Sept is Divided into a Number of Sub-Septs Among Rathods The important Sub-sept of Bhurkiya called After The Bhika, Rathod Which is Again sub-divided into four groups viz Merji, Mulaysi, Dheda and Khamdar( The Groups based on the four son of Bhika Rathod ) ⛑ The Mathuriya Banjara already referred to Aabove derive their name from mathura and are supposed to be bramins Whith The secred thread ceremony monj. They are who called Ahiwasi. The third Devision the Labhans Probably Derived Their from Labana i.e. Salt Which they used to Carry from place to place Another etymology relate the Lava The son of Lord Rama chandra connecting lineage to him . The Dharis( Dhadis) are The bards of the caste who get the lowest rank According to their story, their ancestor was a disple of Guru Nanak (The Sikh guru) Whith whom The Attended a feast given by mughal Emperor humanyun . There he ete cow flesh and conseguently become a muhmmedan and and was circumcised . He worked as a musicians at mughal court .his son joined at the Charans and became the Bards of the banjaras. the Dharias are musicians and mendicants . they worship sarswati and their marriage offer a he-got to Gagi and Gandha. The two sons of original bhat who become Muhammedan. From the used tahsil of Yeotmal District. where both he sub-Groups of Rathods viz. the bada Rathod and The chhota Rathod are present the following clans are reported👇 Bada -Rathod : (1-khola 2-Ralot 3- Khatrot 4- Gedawat 5- Raslinaya 6- Didawat . Chhota- Bajara (1-Meghawat 2- Gheghawat 3-Ralsot 4- Ramavat 5-Khelkhawat 6- Manlot 7-Haravat 8-Tolawat 9-Dhudhwat 10- Sangawat 11- Patolot .. These two types are from the Charans banjara Alternativly are called "Gormati" in the area Another set of reported from the area are .. "The Banjara caste and tribe of India -3 " writer S.G.DeoGaonkar Shailja S. Deogaonkar . इसी का हिन्दी रूपान्तरण निम्न है 👇 भारत की बंजारा जाति और जनजाति - भाग 3" लेखक एस .जी.देवगॉनकर (S.G.DeoGaonkar) और शैलजा एस. देवगांवकर ________________________________________ अध्याय द्वितीय पृष्ठ संख्या- 18-👇 --जो लोग राजपूत हैं उन्हीं के कुछ समुदाय बंजारे भी हैं -जैसे मथुरिया ,लाभान और धारीस ये चारण (भाट) हैं जो संख्या में अधिक हैं ; और बंजारों के बीच बंजारे रूप में ही महत्वपूर्ण पाँच मुख्य वर्गों में विभाजित हैं। ____________ १-राठौड़, २-पंवार, ३-चौहान, ४-पुरी और ५-जादौन या बुर्थिया। भाटी ये भी मूलतः चारण बंजारे हैं --जो अब स्वयं को यदुवंशी या जादौनों से सम्बद्ध करते हैं । वस्तुत वे भाट या चारण ही हैं । भाट शब्द संस्कृत भरत ( नट- वंशावलि गायक) शब्द का तद्भव रूप है। और व्रात्य का रूपान्तरण भी भाट या भट्टा हुआ । अंग्रेज़ी में बरड(Bard) शब्द भरत का रूपान्तरण है। क्यों कि दौनों रूपों से भाट या भट्टा शब्द ही विकसित होता है । मध्यकालीन हिन्दी कोशों में जादौं का अर्थ नीच कुल में उत्पन्न / नीच जाति का । ✍✍ 👇 प्रोफेसर मदन मोहन झा द्वारा सम्पादित हिन्दी शब्द कोश में जादौं का एक अर्थ नीचजाति या नीच कुल में उत्पन्न लिखा है । प्रोफेसर, राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, मानित विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से सम्बद्ध हैं । यद्यपि जादौन शब्द राजस्थानी भाषा में जादव का रूपान्तरण है । कुछ जादौन राजपूत स्वयं को करौली के यदुवंशी पाल ( आभीर) राजाओं का तो वंशज मानते हैं ; परन्तु अहीरों से पीढ़ी दर पीढ़ी घृणा करते रहते हैं । दर असल मुगल काल में ये लोग मुगलों से जागीरें मिलने के कारण ठाकुर उपाधि धारण करने लगे । और ब्राह्मणों ने इनका राजपूती करण करके इन्हे मूँज के जनेऊ पहनायी और इन्हें तभी क्षत्रिय प्रमाण पत्र दे दिया। तब से अधिकतर बंजारे क्षत्रिय हो गये और ब्राह्मण धर्म का पालन करने लगे । ठाकुर शब्द भी तुर्को के माध्यम से ईसा की नवम शताब्दी में प्रचलित होता है । यह मूलत: तेक्वुर (tekvur) रूप में है। --जो संस्कृत कोश कारों ने ठक्कुर के रूप स्वीकार कर लिया। _____________ विदित हो कि बाद में प्रत्येक वर्ग को राठौड़ बंजारों के बीच कई उप-वर्गों में विभाजित किया गया है। अब राठौर और राठौड़ --जो अलग अलग रूपों में दो जातियाँ बन गयी हैं । वे भी मूलत: एक ही थे एक राजपूत के रूप में हैं तो दूसरी बंजारे के रूप में। आज भी हैं । ऐसे ही जादौनों का हाल हुआ है-। जादौन --जो बंजारे थे वे मुगलों के प्रभाव में ठक्कुर हो गये । इसी प्रकार गौड और गौड़ जन-जातियों के भेद इतना ही नहीं अहीरों की शाखा गुज्जर और राजपूतों की गुर्ज्जरः दो हैं । 'वह भी इसी प्रकार हुआ एक अपने को रघुवंश से सम्बद्ध मानते रहे हैं तो दूसरे नन्द या वृषभानु गोप अथवा अहीरों से सम्बद्ध मानते रहे हैं। _______________________________________ क्यों कि राधा और वेदों की अधिष्ठात्री गायत्री को अपने गुज्जर कबीले की मानने वाले अहीरों से सम्बद्ध हैं। गुज्जर गायत्री और राधा को चैंची गोत्र की कन्या बताते हैं परन्तु पुराणों में इन्हें आभीर कन्या बताया गया यद्यपि पाश्चात्य इतिहास कार दोनों गुज्जर और गुर्ज्जरः को जॉर्जिया (गुर्जिस्तान) से भी सम्बद्ध मानते हैं। इसी प्रकार जाट और जट्ट दो रूप हैं । जट्ट गुरूमुखी होकर गुरूनानक के अनुयायी हैं और जाट मुसलमान और हिन्दु रूप में भी हैं । दर -असल महाभारत के कर्ण पर्व में बल्ख अफगानिस्तान में तथा ईरान में रहने वाले जर्तिका जन -जाति-के रूप में हैं --जो पंजाब के अहीरों से सम्बद्ध हैं वास्तव में जर्तिका शब्द पूर्व रूप में संस्कृत चारतिका का रूपान्तरण है। क्यों कि ये चरावाहों का समुदाय था । जिसे पाश्चात्य इतिहास विदों ने आर्य्य कहा । गुर्ज्जरः तो गौश्चर का परवर्ती रूपान्तरण है ही । अब बात करते हैं कि जादौन शब्द की व्युत्पत्ति कैसे हुई विशेष:-जाट, गुर्जर तथा राजपूत ये सभी संघ हैं जिनमें बहुतायत से गुर्जर जाट और अहीरों से ही सम्बद्ध जनजातियाँ हैं । 👇 यद्यपि ये जादौन यदुवंशी की अफगानिस्तान के जादौन पठानों से निकल् हुई शाखा है । जो स्वयं को वनी- इज़राएल अर्थात्‌ यहूदियों के वंशज मानते हैं । 🐂 इस लिए ये भी यदुवंश की ही एक यायावर शाखा थी । कालान्तरण में इन्होंने करौली रियासत के पाल उपाधि धारक यदुवंशी शासकों को अपनाया। पाल केवल अहीरों का गो-पालन वृत्ति मूलक विशेषण रहा है। धेनुकर धनगर इन्हें की शाखा है । अन्यत्र भी पश्चिमीय एशिया के संस्कृतियों में पॉल और गेडेरी शब्द चरावाहों के लिए रूढ़ हैं । इसलिए मध्यकालीन इतिहास कारों'ने जादौन जन-जाति को गुर्जर या अहीरों से ही सम्बद्ध माना है । यदुवंश एक प्राचीनत्तम चरावाहों का वंश है । जिसके वंशज पश्चिमी एशिया इज़राएल जॉरडन फलिस्तीन आदि में आबाद है । हिब्रू बाइबिल में पॉल ईसाई मिशनरीयों की उपाधि रही है --जो वपतिस्मा या उपनयन संस्कार करते थे । --जो मूलतः ये ईसाई भी यहूदियों से सम्बद्ध थे । भारतीय चारण या भाट बंजारों में जादौनों के बाद के भूरिया नामक महत्वपूर्ण उप-वर्ग, राठौड़ों में है; जिसे फिर से चार समूहों में उप-विभाजित किया गया है , मुलसेई ,खेड़ा और खामदार और भीका ये राठौड़ के चार पुत्रों पर आधारित समूह) है । राजस्थान का भीकानगर ही बीकानेर हो गया । मथुरिया बंजारों का पहले ही ऊपर उल्लेख किया है जो उनका नाम मथुरा से सम्बद्ध होता है और माना जाता है कि वे धार्मिकों के रूप में थे। ब्राह्मणों ने इन्हें मूँज का यज्ञोपवीत पहनाया। ये ही कालान्तरण में ब्राह्मण धर्म के संरक्षक हुए ये ही लोग अपने को करौली से जोड़ने लगे । तीसरा विभाजन लावनांस👴 लबना (लवण)यानि साल्ट से सम्बद्ध है जो लवण (नमक)एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए इस्तेमाल किया था! ये लोग फिर लव से स्वयं को सम्बद्ध मानने लगे । लव भगवान राम के पुत्र हैं , जो लावांस को इस लव के वंश से जोड़ते हैं। धारीस (धादी) जाति के गोत्र हैं। सबसे निचली रैंक( श्रेणि) प्राप्त करें उनकी कहानी के अनुसार, उनके पूर्वज गुरु नानक (सिख गुरु) के एक शिष्य थे ! जिनका साथ मुगल सम्राट हुमायूं ने दी था। वहाँ वह गाय का मांस खाता है और शंकुधारी होकर मुसलमान बन जाते हैं और उसका खतना कर दिया जाता है। फिर उन्होंने मुगल दरबार में एक संगीतकार के रूप में काम किया। यह भाट चारणों में शामिल होकर अन्त में बंजारों का आश्रय बन गये। वे धारी संगीतकार अथवा गायक हैं। वे सरस्वती की पूजा करते हैं और उनके विवाह की एक भेंट बकरा ,गगी और गन्ध से होती है।🚶🐂 मूलभाव के दो पुत्र जो भाट थे मुसलमान बने। ये ओतमल जिले की प्रयुक्त तहसील से सम्बद्ध हैं । जहाँ दोनों ने राठौड़ों के उप-समूह मे स्वयं को समायोजित किया हैै । -जिन्हें इतिहास कारों ने १- बड़ा राठौड़ और २- छोटा राठौड़ रूपों में प्रस्तुत किया है। _______ इनके निम्नलिखित कबीले बताए गए हैं👇 बड़ा-राठौड़: (1- खोला 2-रालोट 3- खटरोट 4- गेडावत 5- रसलिनया 6- डिडावत। छोटा- राठौड़-बंजारा (१-मेघावत २- घेघावत ३-रालसोत ४- रामावत ५-खलखावत ६- मनलोत--हारावत । -तोलावत ९-धुधावत १०संगावत ११- पटोलोट ।। ये दो प्रकार के हैं चारण बंजारा वैकल्पिक रूप से क्षेत्र में गोरमती कहा जाता है। वास्तव आज बंजारों का रूपान्तरण राजपूतों के रूप में है। ये प्राय: कुछ भूबड़िया के रूप में भी हैं । --जो चीमटा फूकनी आदि बनाते और अपनी जीविका उपार्जन करते हैं। ___________________________________________ उद्धृत अंश भारत की बंजारा जाति और जनजाति -3" लेखक S.G.DeoGaonkar शैलजा एस. देवगांवकर पृष्ठ संख्या- (18)चैप्टर द्वितीय... __________________________________ Originally there were only one. As a Rajput, then in the form of the second Banjara. There has been a similar situation - - After Bhuria, the important sub-class Bhuria is in Rathore; Which is again subdivided into four groups, Mulsei Kheda and Khamdar (a group based on the four sons of Bhika Rathod). Bhiknagar too became Bikaner. Mathuria Bazar has already mentioned above that his name is associated with Mathura and it is believed that he was in the form of a religious. These people started connecting themselves with Karauli. Third partition lavanasanaSalt (salt) i.e. salt which they used to take from one place to another, These people again believed to be associated with love. Love is the son of Rama, who connects the lineage to the lineage. Dharis (Dhari) are the tribes of caste. Get the lowest rank according to his story, his ancestor was a disciple of Guru Nanak (Sikh Guru) , With whom the Mughal emperor Humayun gave. There he eats the flesh of the cow and becomes a conch, becomes a Muslim and is circumcised. Then he worked as a musician in the Mughal court. This bhawan joined the barns and became a shelter for the buyers. He is a striker composer and singer. They worship Saraswati and a gift from her marriage comes from herbs and smell. Two sons of origin who became Muslims. These are from the Tahsil used in Othamal district. Where the two are the sub-groups of Rathodas - the history cars 1- Big Rathore and 2-small Rathore are presented, The following clan has been described 👇 Bada-Rathod: _______ (1-Opened 2-Ralot 3- Khatrot 4- Gedavat 5- Russellia-6- Chhote-Rathod-Banjara (1-Meghavat 2-Ghaghav 3-Resolutions 4- Ramavat 5-Khalkhawat-6-Manlot-Harawat -Returning 9-stunned 10-sympathetic 11-footolote .. These are of two types: Charan Banjara is alternatively called Gormati in the area. Today the conversion of Banjars is in the form of Rajputs. _________________ The excerpted portion of India's Banjara caste and tribe-3 " Author S.G.DeOGaonkar Shelaja S. Devgaonkar page no- (18) chapter II ... ________________________________________ The Banjara https://books.google.co.in › books Shashishekhar Gopal Deogaonkar, ‎Shailaja Shashishekhar Deogaonkar - 1992 - ‎झलक देखें - ‎ज़्यादा वर्शन Social life and customs of the Lambadi, nomadic tribe in Vidarbha Region, Maharashtra. विरोध के लिए विरोध करना कुछ लोगों का रिवाज है । दोश्ती पहले निभाई पर दुश्मनी आज है ।।__________________________________________

Yadav Yogesh kumar -Rohi- की अन्य किताबें

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अहीरों के इतिहास को मिटाने की साज़िश

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सत्य का अवलोकन -- आभीर ,गोप , यादव कृष्ण की सनातन उपाधि परक विशेषण

10 फरवरी 2018
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सत्य का अवलोकन -- आभीर ,गोप , यादव कृष्ण की सनातन उपाधि परक विशेषण । कृष्ण का वास्तविक वंश ---____________________________________कृष्ण वास्तविक रूप में आभीर (गोप) ही थे ।क्योंकि महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण में वसुदेव को गोप ही कहा गया है ।और कृष्ण का जन्म भी गोप (आभीर ) परिवार में हुआ यादव

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कृष्ण का यथार्थ जीवन-दर्शन

10 फरवरी 2018
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श्री कृष्ण एक ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं । जिनका सम्बन्ध असीरियन तथा द्रविड सभ्यता से भी है । द्रविड (तमिल) रूप अय्यर अहीर से विकसित रूप है।_________________________________________कृष्ण का स्पष्ट प्रमाण हमें छान्दोग्य उपनिषद के एक श्लोक में मिलता है। छान्दोग्य उपनिषद  :--(3.17.6 ) कल्पभेदादिप्रायेणैव “

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यदुवंशी क्षत्रिय नहीं अपितु शूद्र होते हैं ; ब्राह्मणों की वर्ण-व्यवस्था के अनुसार और क्षत्रिय तो ब्राह्मणों की अवैध सन्तानें हैं ।

13 फरवरी 2018
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यदुवंशी क्षत्रिय नहीं शूद्र हैं ; क्षत्रिय तो ब्राह्मणों की अवैध सन्तानें हैं_________________________________________जब यदु को ही वेदों में दास अथवा शूद्र कहा है । ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त की १० वीं ऋचा में यदु और तुर्वसु को स्पष्टत: दास के रूप में सम्बोधित किया गया है।  वह भी गोपों को र

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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय--

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आत्मा के साथ कर्म और प्रारब्ध करते हैं जीवन की व्याख्या--__________________________________________

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अफगानिस्तान में जादौन पठानों का खिताब तक्वुर (ठक्कुर) और भारत में जादौन ठाकुर ..

13 अप्रैल 2018
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---जो लोग ठाकुर अथवा क्षत्रिय उपाधि से विभूषित किये गये थे । जिसमे अधिकतर अफ़्ग़ानिस्तान के जादौन पठान भी थे, जो ईरानी मूल के यहूदीयों से सम्बद्ध थे। यद्यपि पाश्चात्य इतिहास विदों के अनुसार यहुदह् ही यदु:  शब्द का रूप है ।एेसा वर्णन ईरानी इतिहास में भी मिलता है । जादौन पठानों की भाषा प्राचीन अवेस्ता

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गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ?

3 मई 2018
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गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? सभी यादव बन्धु इस लेख को पूर्ण मनोयोग से पढ़कर कृपया प्रतिक्रिया दें आपका बन्धु यादव योगेश कुमार 'रोहि' ग्राम-आज़ादपुर पत्रालय-पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---उ०प्र० ______________________________________________गोपों ने प्रभा

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गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? एक विचार विश्लेषण ---

6 मई 2018
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अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ?यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है ।---मैं भी असली घोषी अहीर हूँ ।मैंने भी उन रुढ़ि वादी ब्राह्मणों और राजपूतोंलोगों के द्वारा जन-जाति गत अपमान कितनी वार सहा है ? वह मुझे सब याद है इन लोगों हम्हें समाज में कभी भी

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स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य . ....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है।

8 मई 2018
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स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य .....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है।भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी संस्कृत साहित्य में भरत का अर्थ जंगली या असभ्य किया है ।और भारत देश के नाम करण का कारण भी यही भरत जन जाति थी। भारतीय प्रमाणतः जर्मन आर्यों की ही शाखा थे ।जैसे यूरोप में पाँचवीं

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आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।

10 मई 2018
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आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।यादवों के इतिहास को बिगाड़ने के षड्यन्त्र तो खूब किया गया परन्तु  फिर भी सफल न हो पाए षड्यन्त्रकारी ! सत्य विकल्प रहित निर्भीक एक रूप होता है ।जबकि असत्य बहुरूप धारण करने वाला बहुरूपिया ।आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।जाट और

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सुरों का निवास स्थान स्वर्ग आज का स्वीडन ! एक शोध श्रृंखला अन्वेषक:-- यादव योगेश कुमार 'रोहि'

12 मई 2018
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स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य ।. ....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है। भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी ; संस्कृत साहित्य में देव संस्कृति के अनुयायी ब्राह्मणों ने भरत शब्द  का अर्थ जंगली या असभ्य किया है । और भारत देश के नाम करण का कारण भी यही भरत जन जाति थी। भारत में आगत देव स

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भारतीय भाषाओं में प्रचलित शब्द टैंगॉर, ठाकरे तथा ठाकुर इसी तुर्की ईरानी मूल के टेक्फुर शब्द का रूपान्तरण हैं । जिसका प्रयोग तुर्की सल्तनत में" स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान्टिन गवर्नरों के सन्दर्भ में किया गया था ।

30 मई 2018
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टेकफुर शब्द का जन्म खिताबुक और प्रारम्भिक तुर्क काल में हुआ था ।भारतीय भाषाओं में प्रचलित शब्द टैंगॉर, ठाकरे तथा ठाकुर इसी तुर्की ईरानी मूल के टेक्फुर शब्द का रूपान्तरण हैं ।जिसका प्रयोग तुर्की सल्तनत में" स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान

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असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग द्वित्तीय। असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग द्वित्तीय।

4 जुलाई 2018
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इतिहास के बिखरे हुए पन्ने " कुछ कथा- वाचक ---जो कृष्ण चरित्र के विवरण के लिए भागवतपुराण को आधार मानते हैं तो भागवतपुराण भी स्वयं ही परस्पर विरोधाभासी तथ्यों को समायोजित किए हुए है ।👇रोहिण्यास्तनय: प्रोक्तो राम: संकर्षस्त्वया ।देवक्या गर्भसम्बन्ध: कुतो देहान्त विना ।।८(भागवतपुराण दशम् स्कन्ध अध

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असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण

12 जुलाई 2018
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असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग प्रथम __________________________________________भारत में जादौन ठाकुर तो जादौन पठानों का छठी सदी में हुआ क्षत्रिय करण रूप है ।क्योंकि अफगानिस्तान अथवा सिन्धु नदी के मुअाने पर बसे हुए जादौन पठानों का सामन्तीय अथवा जमीदारीय खिताब था तक्वुर ! जो भार

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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -

24 अगस्त 2018
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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐैतिहासिक सन्दर्भ -यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषण एवं नवीन गवेषणाओं पर आधारित शोध है ।शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआइन्हीं तथ्यों की एक विस्तृत विवेचना :- -------------

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ऋग्वेद का पुरुष-सूक्त है ! पाणिनीय कालीन पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी पुरोहितों द्वारा रचित -- देखें प्रमाण- युक्त विश्लेषण " यादव योगेश कुमार "रोहि"

2 सितम्बर 2018
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वर्ण-व्यवस्था की प्रक्रिया का वर्णन करने वाले ऋग्वेद के पुरुष सूक्त की वास्तविकताओं पर कुछ प्रकाशन:--- वैदिक भाषा (छान्दस्) और लौकिक भाषा (संस्कृत) को तुलनानात्मक रूप में सन्दर्भित करते हुए --__________________________________________ऋग्वेद को आप्तग्रन्थ एवं अपौरुषेय भारतीय रूढि वादी ब्राह्मण समा

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गणेश , विष्णु और श्री इन पौराणिक पात्रों का तादात्म्य रोमनों के देवता जेनस सुमेरियन पिस्क-नु तथा रोमनों सुमेरियन देवी ईष्टर

2 अक्टूबर 2018
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यजुर्वेद में गणेश का वर्णन ऋग्वेद के सादृश्य परगणपति रूप में  प्राप्त होता है । देखें👇“ओ३म् गणानांत्वां गणपतिगूँ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति गूँ हवामहे !निधीनां त्वा निधिपति गूँ हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्।।”उपर्युक्त ऋचा यजुर्वेद (23/19) में  है।यहाँ देव गणेश वर्णित हैं।यद्यप

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क्या कृष्ण अहीर थे ?

9 अक्टूबर 2018
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-क्या कृष्ण अहीर थे ?विचार-विश्लेषण---  यादव योगेश कुमार "रोहि" ग्राम- आजा़दपुर पत्रालय -पहाड़ीपुर जनपद- अलीगढ़---सम्पर्क सूत्र --8077160219...../_________________________________________संस्कृत भाषा में आभीरः, पुल्लिंग विशेषण शब्द है ---जैसे कि वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में उद्धृत किसानों है वाचस्पत्

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शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐतिहासिक सन्दर्भ।

18 अक्टूबर 2018
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शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐतिहासिक सन्दर्भ। यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषण नवीन गवेषणाओं पर आधारित है ।शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ ।आर्य विशेषण किस जन-जाति का प्रवृत्ति-मूलक विशेषण था ? -------------------------------------------------------------भारतीय इतिहास ही

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भारतीय पुराणों में महापुराणों मे परिगणित भविष्य पुराण आठारहवीं सदी की रचना है । जिसमे आदम और हव्वा का वर्णन है

13 नवम्बर 2018
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भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक  राजनेताओं के  साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।_______________________________________प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्

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इतिहास लेखक डॉ मोहन लाल गुप्ता के अनुसार करौली के यदुवंशी अपने नाम के बाद 'सिंह' विशेषण न लगाकर 'पाल' विशेषण लगाते थे ; क्यों कि ये स्वयं को गोपाल, गोप तथा आभीरया या गौश्चर मानते थे और बंगाल का पाल वंश भी इन्हीं से सम्बद्ध है ।करौली शब्द स्वयं कुकुरावलि का तद्भव है :- कुकुर अवलि =कुकुरावलि --कुरावली---करौली

25 नवम्बर 2018
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यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी ।ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते हैं । दाशार्ह देशबाल -दशवार , ,सात्वत ,जो कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली क्रमशः सावत ,सावन्त , कुक्कुर कुर्रा , कुर्रू आदि रूपों परिवर्तित हो गये । ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश ज

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करौली का इतिहास और वहाँ के शासकों का वंश व व्यवसाय --- अद्यतन संस्करण--

25 नवम्बर 2018
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प्राचीन काल में यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते थे  । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में ।जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित

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भरतपुर के जाट जिन्हें अपना पूर्वज मानते हैं । धर्म्मपाल के बाद पैंतालीसवाँ पाल शासक अर्जुन पाल हुआ ।ये सभी पाल शासक पाल उपाधि का ही प्रयोग करते थे । क्यों कि इनका विश्वास था कि हमारे पूर्व पुरुष यदु ने गोपालन की वृत्ति को ही स्वीकार किया था । अतः पाल उपाधि गौश्चर गोप तथा अभीरों की आज तक है ।

26 नवम्बर 2018
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प्राचीन काल में यादवों की एकशाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशजमाने जाते थे । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में । जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित र

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यादवों का व्रज क्षेत्र की परिसीमा करौली का इतिहास--- धर्म्मपाल से लेकर अर्जुन पाल तक ---- प्रस्तुति-करण:- यादव योगेश कुमार "रोहि"

26 नवम्बर 2018
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________________________१-धर्म्मपाल२-सिंहपाल३-जगपाल ४- नरपाल५-संग्रामपाल६-कुन्तपाल७-भौमपाल८-सोचपाल९-पोचपाल१०-ब्रह्मपाल११-जैतपाल । करौली का इतिहास प्रारम्भ होता है विजयपाल से ---यह बारहवाँ पाल शासक था ---1030 ई०सन् विजयपाल १२- विजयपाल (1030)१३- त्रिभुवनपाल(1000)१४-धर्मपाल (1090)१५- कुँवरपाल (1120)१६-

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संस्कृत व हिन्दी वर्णमाला का ध्वनि वैज्ञानिक विवेचन नवीनत्तम गवेषणाओं पर आधारित ----- यादव योगेश कुमार "रोहि"

3 दिसम्बर 2018
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माहेश्वर सूत्र  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से वैदिक भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों को  ध्वनि-विभाग के रूप अर्थात् (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद (विभक्ति युक्त वाक्य

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हिन्दी वर्णमाला का वैज्ञानिक विवेचन (संशेधित संस्करण)

22 दिसम्बर 2018
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माहेश्वर सूत्र  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से वैदिक भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों को  ध्वनि-विभाग के रूप अर्थात् (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद (विभक्ति युक्त वाक्य

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कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर " _________________________________________

29 दिसम्बर 2018
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कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर "_________________________________________प्रस्तुति-करण :-  यादव योगेश कुमार 'रोहि' प्रेम सृष्टि का  एक वह अनुभव है ।--जो उसके निर्माण की आधार -शिला है ।प्रेम अनेक उन  भावनाओं का समुच्चय है । जो पारस्परिक स्नेह से प्रस्फुटित होकर लेकर भ

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यादव इतिहास

15 फरवरी 2019
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प्राय: कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के अल्पज्ञानी लोग आभीर और यादवों को पृथक दिखाने के लिए महाभारत के मूसल पर्व के अष्टम् अध्याय से यह श्लोक उद्धृत करते हैं 👇________________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थात् वे

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अलंकार विवेचना - भाग प्रथम --

23 फरवरी 2019
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अलंकार (Figure of speech) का स्वरूप और भेद ---__________________________________________भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले कुशलतापूर्ण मनोरञ्जक ढंग को अलंकार कहते है।जैसे "कोई स्त्री आभूषण पहन कर सौभाग्यवती व समाज में शोभनीय प्रतीत होती है ।और यदि आभूषण न पहने हों तो विधवा के समान अश

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अलंकार विवेचना - भाग प्रथम --

23 फरवरी 2019
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अलंकार (Figure of speech) का स्वरूप और भेद ---__________________________________________भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले कुशलतापूर्ण मनोरञ्जक ढंग को अलंकार कहते है।जैसे "कोई स्त्री आभूषण पहन कर सौभाग्यवती व समाज में शोभनीय प्रतीत होती है ।और यदि आभूषण न पहने हों तो विधवा के समान अश

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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । यादव योगेश कुमार "रोहि"

27 फरवरी 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । 'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों। वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आर

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💥 भागवत धर्म के संस्थापक आभीर जन-जाति के लोग 💥

5 मार्च 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है ।'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों ; वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आरा

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मनुःस्मृति और श्रीमद्भगवत् गीता का पारम्परिक विरोध :-

7 मार्च 2019
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सामवेद की महत्ता को लेकर श्रीमद्भगवद् गीता और मनुःस्मृति का पारस्परिक विरोध सिद्ध करता है ;या तो तो मनुःस्मृति ही मनु की रचना नहीं है ।या फिर  श्रीमद्भगवद् गीता कृ़ष्ण का उपदेश नहीं ।परन्तु इसका बात के -परोक्ष संकेत प्राप्त होते हैं कि कृष्ण देव संस्कृति के विद्रोही पुरुष थे । जिन्हें ऋग्वेद के अष्ट

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की साधना है ! परन्तु स्वास्थ्य क्या है ? जाने !

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की साधना है ! परन्तु स्वास्थ्य क्या है ? जाने !

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है । अब योग क्या है ? और स्वास्थ्य क्या है ? इनकी व्याख्यापरक परिभाषा पर भी विचार आवश्यक है 👇

16 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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सत्य जो किया ने कहा नहीं !

22 मार्च 2019
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राक्षसों को महाभारत में धर्मज्ञ कहा है । ______________________________________राक्षस शब्द का अर्थ संस्कृत भाषा में होता है ।धर्म की रक्षा करने वाला " धर्मस्य रक्षयति इति "राक्षस रक्षस् एव स्वार्थे अण् । इति राक्षस “क्वचित् स्वार्थिका अपि प्रत्ययाः प्रकृतितो लिङ्गवचनान्यतिवर्त्तन्ते ।_______________

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धर्म पहले क्या था ? और अब क्या है ?

23 मार्च 2019
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आप जानते हो जब कोई वस्त्र नया होता है ।वह शरीर पर सुशोभित भी होता है ; और शरीर की सभी भौतिक आपदाओं से रक्षा भी करता है ।👇परन्तु कालान्तरण में वही वस्त्र जब पुराना होने पर जीर्ण-शीर्ण होकर चिथड़ा बन जाता है ।अर्थात्‌ उसमें अनेक विकार आ जाते हैं ।तब उसका शरीर से त्याग देना ही उचित है ।आधुनिक धर्म -पद

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पश्चिमी एशिया की संस्कृतियों में ईश्वर वाची शब्द–

26 मार्च 2019
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जहोवा ,गॉड , ख़ुदा और अल्लाह आदि ईश्वर वाची शब्दों की व्युत्पत्ति वैदिक देव संस्कृति के अनुयायीयों से भी  सम्बद्ध है। ________________________________________---- विचार विश्लेषण :--यादव योगेश कुमार 'रोहि' जैसे हिब्रू ईश्वर वाची शब्द  यहोवा ( ह्वयति ह्वयते जुहाव जुहुवतुः जुहुविथ जुहोथ ) आद संस्कृत क्

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"योग आत्म-साक्षात्कार की कुञ्जिका " यादव योगेश कुमार "रोहि"

31 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: कह कर वर्णित किया है ।परवर्ती तद्भव रूप में श्वस् धातु भी स्वर् का ही रूप है ।आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa( स्वेसा )तथाswījēn( स्वजेन) शब्द आत्म बोधक हैं । अर्थात् own, relation प्राचीनत्तम जर्मन- गोथिक में: 1-swēs (a) 2-`own'; swēs n. (b) `property' 2-

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"चौधरी, ठाकुर तथा चौहान जैसी उपाधियों के श्रोत " यादव योगेश कुमार "रोहि"

2 अप्रैल 2019
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चौधरी शब्द पुल्लिंग विशेषण-पद के रूप में हिन्दी में विद्यमान है यह शब्द जिसका सम्बन्ध संस्कृत भाषा के चक्रधारिन् ( चक्रधारी)  शब्द से तद्भूत है-👇जो मध्यकालीन कौरवी तथा बाँगड़ू बोलीयों में चौधरी शब्द के रूप में विकसित हुआ ।संस्कृत कोश -ग्रन्थों में चक्रधारि कृष्ण का विशेषण रहा है ।कालान्तरण में चक्र

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भविष्य पुराण अठारहवीं सदी की रचना है । परन्तु अन्ध भक्त रहते है यह महर्षि वेद - व्यास- की रचना है !

7 अप्रैल 2019
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भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।_______________________________________प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्

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ठाकुर उपाधि न तो वंश गत है । यह तुर्को और मुगलों की उतरन के रूप में एक । जमीदारीय खिताब था ।. प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

8 अप्रैल 2019
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_____________________________________टेकफुर शब्द का जन्म खिताबुक और प्रारम्भिक तुर्क काल में किया गया था ।जिसका प्रयोग " स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान्टिन गवर्नरों के सन्दर्भ में किया गया था ।उत्पत्ति और अर्थ की दृष्टि सेइस शीर्षक (उपा

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गोषा -गां सनोति सेवयति सन् (षण् )धातु विट् प्रत्यय । अर्थात्‌ --जो गाय की सेवा करता है । गोदातरि “गोषा इन्द्रीनृषामसि” “ शर्म्मन् दिविष्याम पार्य्ये गोषतमाः” ऋग्वेद ६ । ३३ । ५ । अत्र “घरूपेत्यादि” पा० सू० गोषा शब्दस्य तमपि परे ह्रस्वः ।

9 अप्रैल 2019
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गोषा -गां सनोति सेवयति सन् (षण् )धातु विट् प्रत्यय । अर्थात्‌ --जो गाय की सेवा करता है ।गोदातरि “गोषा इन्द्रीनृषामसि” “ शर्म्मन् दिविष्याम पार्य्ये गोषतमाः” ऋग्वेद ६ । ३३ । ५ । अत्र “घरूपेत्यादि” पा० सू० गोषा शब्दस्य तमपि परे ह्रस्वः ।गोषन् (गोष: )गां सनोति सन--विच् ।“सनोतेरनः” पा० नान्तस्य नित्यषत

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अहीरों का ऐैतिहासिक परिचय "पश्चिमीय एशिया की प्राचीन संस्कृतियों में मार्शल आर्ट के सूत्रधारकों के रूप में अहीरों का वर्णन अबीर रूप में है । विचार-विश्लषेण--- यादव योगेश कुमार "रोहि"

12 अप्रैल 2019
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अहीरों का ऐैतिहासिक परिचय "पश्चिमीय एशिया की प्राचीन संस्कृतियों में मार्शल आर्ट के सूत्रधारकों के रूप में अहीरों का वर्णन अबीर रूप में है ।और अहीर -रेजीमेण्ट इस मार्शल आर्ट प्रायोजकों के लिए एक प्रायौगिक संस्था बनकर देश की सुरक्षात्मक गतिविधियों को सुदृढ़ता प्रदान करेगी।एेसा मेरा विश्वास है ।इस लि

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घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण या पर्याय रहा है ।

12 अप्रैल 2019
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यद्यपि हम घोष हैं परन्तु घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण या पर्याय रहा है ।और यह किसी वंश का सूचक कभी नहीं था ।क्यों कि हैहय वंशी यादव राजा दमघोष से पहले भी घोष यादवों का गोपालन वृत्ति मूलक विशेषण रहा।इस विषय में वेद प्रमाण हैं; उसमे भी ऋग्वेद और उसमे भी इसके चतुर्थ और षष्ठम् मण्डल मध्यप्रदेश

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मध्यप्रदेश के घोष समाज को ठाकुर उपाधि की अपेक्षा यादव लिखना चाहिए ! क्यों कि ठाकुर उपाधि तुर्को और मुगलों की सामन्तीय उपाधि!

13 अप्रैल 2019
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''''''''''''""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""यद्यपि हम घोष हैं परन्तु लोग हम्हें अहीर अथवा गोप कहकर भी पुकारा जाता हैं । क्यों कि ये सभी विशेषण शब्द परस्पर पर्याय वाची हैं घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण व पर्याय वाची  है।परन्तु गोष: शब्द के रूप में -और यह किसी वंश की सूचक उपाधि

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वर्ण-व्यवस्था और मनु का ऐैतिहासिक विवेचन एस नवीनत्तम व्याख्या-

19 अप्रैल 2019
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वैदिक सन्दर्भों के अनुसार दास से ही कालान्तरण दस्यु शब्दः का विकास हुआ हैं।मनुस्मृति मे दास को शूद्र अथवा सेवक के रूप में उद्धृत करने के मूल में उनका वस्त्र उत्पादन अथवा सीवन करने की अभिक्रिया  कभी प्रचलन में थी।परन्तु कालान्तरण में लोग इस अर्थ को भूल गये।भ्रान्ति वश एक नये अर्थ का उदय हो गया।जिस पर

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व्यवस्थित मानव सभ्यता के प्रथम प्रकाशक के रूप में ऋग्वेद के कुछ सूक्त साक्ष्य के रूप में हैं ।

19 अप्रैल 2019
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भारतीयों में प्राचीनत्तम ऐैतिहासिक तथ्यों का एक मात्र श्रोत ऋग्वेद के 2,3,4,5,6,7, मण्डल है ।आर्य समाज के विद्वान् भले ही वेदों में इतिहास न मानते हों ।तो भीउनका यह मत पूर्व-दुराग्रहों से प्रेरित ही है। यह यथार्थ की असंगत रूप से व्याख्या करने की चेष्टा है परन्तु हमारी मान्यता इससे सर्वथा विपरीत ही ह

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चौहान ,परमार ,प्रतिहार,सोलंकी शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- प्रस्तुति-करण :–यादव योगेश कुमार "रोहि"

20 अप्रैल 2019
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भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है । भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18 वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है । _______________________________________ प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरु

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पाखण्ड शब्द का इतिहास .... ही निर्धारित करता है । पुराणों और महाभारत रामायण आदि के लेखन का काल निर्धारण ....👇

6 मई 2019
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पाखण्ड शब्द का इतिहास ....ही पोल खोलता है । ब्राह्मणों के पाखण्डी की..________________________________________जैन परम्पराओं में पाषण्ड शब्द को पासंडिय अथवा पासंडी रूप में उद्धृत किया गया है । जैसा कि निम्न प्राकृत भाषा की पक्तियाँ लिपिबद्ध हैं 👇क्रमांक ३ "समयसार" की गाथा क्रमांक ४०८, ४१० एवं ४१३ म

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अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ? यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है !

6 मई 2019
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अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ?यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है !---मैं भी असली घोषी अहीर जन समुदाय से तालुकात रखता  हूँ । मैंने भी उन रुढ़ि वादी ब्राह्मणों और राजपूत समुदाय के लोगों के द्वारा जन-जाति गत अपमान कितनी वार सहा है ? वह मुझे सब याद है

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समग्र महाभारत का एक समग्र विश्लेषण मूलक अध्ययन"

15 मई 2019
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"एक कथन शाश्वत सत्य है कि --जो  तथ्य या कथ्य अपने आप में पूर्ण होते हैं ; उन्हें क्रम-बद्ध करने की भी आवश्यकता नहीं होती है।परन्तु भारतीय संस्कृति के अभिभावक और आधार भूत वेदों और  उनके व्याख्या कर्ता या विवेचक ग्रन्थों पुराणों, रामायण तथा महाभारत आदि में परस्पर विरोधी व भिन्न-भिन्न कथाओं का वर्णन  त

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भारत में भागवत धर्म का उदय और विकास -

23 मई 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है ।यद्यपि प्रारम्भ में यह भागवत धर्म के रूप में ही गुप्त काल में  मान्य था कालान्तरण में ब्राह्मणों ने इसे वैष्णवधर्म बना कर हिन्दू धर्म में विलय कर लिया ।भागवत धर्म में वर्ण-व्यवस्था के लिए कोई स्थानान्तरण नहीं था।'भागवत धर्म' का तात्प

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जादौन चारण बंजारों का इतिहास-

27 मई 2019
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__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं ।परन्तु उनका तो पौराणिक ग्रन्थों में किसी प्रकार का इतिहास नहीं क्यों कि इनका

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कर्म की उत्पत्ति और उसका स्वरूप-

2 जून 2019
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एक सतसंग में निरंकारी मिशन के महापुरुष-जब मंच पर खुल कर विचार करने की हम्हें अनुमति देते हैं ।और प्रश्न करते हैं कि कर्म-- क्या है ? और यह किस प्रकार उत्पन्न होता है ?कई विद्वानों से यह प्रश्न किया जाता है ।मुझे भी अनुमति मिलती है ।हमने किसी शास्त्र को पढ़ा नहीं परन्तु हमने विचार करना प्रारम्भ किया

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जादौन जन-जाति के आयाम -

9 जून 2019
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__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं ।परन्तु उनका तो पौराणिक ग्रन्थों में किसी प्रकार का इतिहास नहीं क्यों कि इनका

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जादौन चारण बंजारों का ऐैतिहासिक विवरण -उद्धृत अंश भारत की बंजारा जाति और जनजाति -3" लेखक S.G.DeoGaonkar शैलजा एस. देवगांवकर पृष्ठ संख्या- (18)चैप्टर द्वितीय...

9 जून 2019
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__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं क्यों कि पुराणों या स्मृतियों ने जिन वेदों को आप

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महाभारत के लेखक गणेश देवता "भाग चतुर्थ" एक समीक्षात्मक लेख .../

9 जून 2019
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महाभारत के लेखक गणेश देवता "भाग चतुर्थ"__________________________________________महाभारत बौद्ध कालीन संस्कृतियों का प्रकाशन करने वाला अधिक है ।-जैसे चाण्यक नीति से प्रभावित निम्न श्लोक देखे:-👇सतां साप्तपदं मैत्रं स सखा मे८सि पण्डित:।सांवास्यकं करिष्यामि नास्ति ते भयमद्य वै।56।( महाभारत शान्ति पर्व

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शब्दों की अर्थावनति - राँड़ और रड़ुआ --

9 जून 2019
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रडुओं का  क्या हाल होता है भक्तो                     सुनो- क्वार कनागत कुत्ता रोवे।तिरिया रोवे तीज त्यौहार ।                 आधी रात पै रडुआ रोवे सुनके पायल  की झंकार ।।_____________________________________________भावार्थ:- अश्वनी मास अर्थात क्वार के महीने में जब कनागत आते हैं यानी सूर्य कन्या राशि

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जन्म जन्मान्तरण के अहंकारों का सञ्चित रूप ही तो नास्तिकता है जो जीवन को निराशाओं के अन्धेरों से आच्छादित कर देती है।

9 जून 2019
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जन्म जन्मान्तरण के अहंकारों का सञ्चित रूप ही तो नास्तिकता है जो जीवन को निराशाओं के अन्धेरों से आच्छादित कर देती है।समझने की आवश्यकता है कि नास्तिकता क्या है ?अपने अस्तित्व को न मानना ही नास्तिकता है ।क्यों कि लोग अहं में जीते है ।परन्तु यदि वे स्वयं में जी कर देखें तो वे परम आस्तिक हैं ।बुद्ध ने भी

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मनस् सिन्धु की विचार लहरें ! जहाँ ज्ञान के बुद्बुद ठहरें !

9 जून 2019
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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार हो

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कर्म का जन्म और सृष्टि का विस्तार- एक आध्यात्मिक विवेचना

9 जून 2019
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एक सतसंग में निरंकारी मिशन के महापुरुष-जब मंच पर खुल कर विचार करने की हम्हें अनुमति देते हैं ।और प्रश्न करते हैं कि कर्म-- क्या है ? और यह किस प्रकार उत्पन्न होता है ?कई विद्वानों से यह प्रश्न किया जाता है ।मुझे भी अनुमति मिलती है ।मुझे भी आश्चर्य होता है !कि जिस प्रश्न को हम पर कोई उत्तर नहीं है ।फ

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भागवत धर्म के प्रणयिता -

9 जून 2019
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वर्तमान में हिन्दुत्व के नाम पर अनेक व्यभिचारपूर्ण और पाखण्ड पूर्ण क्रियाऐं धर्म के रूप में व्याप्त हैं ।केवल हरिवंशपुराण को छोड़ कर सभी पुराणों में कृष्ण को चारित्रिक रूप से पतित वर्णित किया है।नियोग गामी पाखण्डी ब्राह्मणों ने  कृष्ण को एक कामी ,व्यभिचारी ,और रासलीला का नायक बनाकरयादवों की गरिमा को

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गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

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गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

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गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

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आज गायत्री जयन्ती के पावन पर्व पर श्रृद्धा प्रवण हृदय से हम सब माता गायत्री को नमन और भाव-- पूर्ण स्मरण करते हैं।

14 जून 2019
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आज गायत्री जयन्ती के पावन पर्व पर श्रृद्धा प्रवण हृदय से हम सब माता गायत्री को नमन और भाव-- पूर्ण स्मरण करते हैं।____________________________________________वेद की अधिष्ठात्री देवी गायत्री अहीर की कन्या थीं और ज्ञान के अधिष्ठाता कृष्ण भी आभीर( गोप) वसुदेव के पुत्र थे ।ऐसा महाभारत के खिल-भाग हरिवंश प

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भागवत धर्म का स्वरूप-भाग प्रथम एवं द्वितीय -प्रस्तुति करण :- यादव योगेश कुमार "रोहि"

14 जून 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । 'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों ; वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आर

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कृष्ण के मौलिक आध्यात्मिक सिद्धान्त सदैव पुरोहित वाद और वैदिक यज्ञ मूलक कर्म--काण्डों ते विरुद्ध हैं ।

15 जून 2019
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भागवत धर्म एवं उसके सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाला एक मात्र ग्रन्थ श्रीमद्भगवद् गीता थी ।--जो उपनिषद् रूप है । परन्तु पाँचवी शताब्दी के बाद से अनेक ब्राह्मण वादी रूपों को समायोजित कर चुका है --जो वस्तुत भागवत धर्म के पूर्ण रूपेण विरुद्ध व असंगत हैं ।--जो अब अधिकांशत: प्रक्षिप्त रूप में महाभारत क

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कर्म और धर्म के सिद्धान्त - यादव योगेश कुमार" रोहि"

15 जून 2019
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कर्म का स्वरूप और जीवन का प्रारूप :- विचारक यादव योगेश कुमार 'रोहि' कर्म का अपरिहार्य सिद्धान्त - श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 3 का श्लोक 5 भागवत धर्म के सार- गर्भित सिद्धान्त--जैसे कर्म सृष्टि और जीवन का मूलाधार है निम्न श्लोक देखें-_________________________________________न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्

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कर्म धर्म और जाति की सुन्दर व्याख्या - यादव योगेश कुमार "रोहि"

15 जून 2019
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गुप्त काल में -जब ब्राह्मण वाद का विखण्डन होने लगा तो परास्त ब्राह्मण वाद ने अपने प्रतिद्वन्द्वी भागवत धर्म को स्वयं में समायोजित कर लिया ।यह भागवत धर्म अहीरों का भक्ति मूलक धर्म था ।और ब्राह्मणों का धर्म था - वर्ण व्यवस्था मूलक व स्वर्ग एवं भोग प्राप्ति हेतु पशु बलि व यज्ञ परक कर्म काण्डों पर आधार

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कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर

19 जून 2019
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कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर -- यादव योगेश कुमार 'रोहि'  की गहन मीमांसाओं पर आधारित-भागवत धर्म के जन्मदाता आभीर जन-जाति के लोग थे प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व विशेषज्ञ सर राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर-जैसे विद्वानों ने ईस्वी सन् 1877 क

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अहीर ही यादव होते हैं !

20 जून 2019
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यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते हैं । दाशार्ह देशबाल -दशवार , ,सात्वत ,जो कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली क्रमशः सावत ,सावन्त , कुक्कुर कुर्रा , कुर्रू आदि रूपों परिवर्तित हो गये । ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश जहाँ

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साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।।

22 जून 2019
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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल ,गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार ह

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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिछाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।

23 जून 2019
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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर कर सकता है ।यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं ।क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिछाया है ।वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।अर्थात् ई०पू० २५०० से १५००के काल तक-- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु का साथ साथ

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वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है ।

25 जून 2019
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वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते | पिबा त्वस्य गिर्वण : ।। (ऋग्वेद ३/५ १/ १ ० ) अर्थात् :- हे ! राधापति श्रीकृष्ण ! यह सोम ओज के द्वारा निष्ठ्यूत किया ( निचोड़ा )गया है । वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं, उनके द्वारा सोमरस पान करो। यहाँ राधापति के र

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श्रीमद्भगवत् गीता का उचित स्थान महाभारत का भीष्म पर्व नहीं अपितु शान्ति पर्व होना चाहिए था ।

30 जून 2019
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कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर -- यादव योगेश कुमार 'रोहि'  की गहन मीमांसाओं पर आधारित-भागवत धर्म के जन्मदाता आभीर जन-जाति के लोग थे प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व विशेषज्ञ सर राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर-जैसे विद्वानों ने ईस्वी सन् 1877 क

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"राम विश्व संस्कृतियों में " एस संक्षिप्त परिचय- " प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

30 जून 2019
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राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का प्रासंगिक न होना ही है ________________________________________________ प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था। कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है:

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आर्य और वीर शब्दों का विकास परस्पर सम्मूलक है ।

1 जुलाई 2019
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आर्य और वीर शब्दों का विकास परस्पर सम्मूलक है ।और पश्चिमीय एशिया तथा यूरोप की  समस्त भाषाओं में ये दौनों  शब्द प्राप्त हैं ।परन्तु  आर्य शब्द वीर  शब्द का ही सम्प्रसारित रूप है ।अत: वीर शब्द ही  प्रारम्भिक है ।दौनों शब्दों की व्युपत्ति पर एक सम्यक् विश्लेषण -प्रस्तुति-करण :-यादव योगेश कुमार  'रोहि'_

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हूणों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत प्राच्य और पाश्चात्य इतिहासकारों के हवाले से...

4 जुलाई 2019
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हूणों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत- शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- महाभारत ,वाल्मीकि रामायण तथा पुराणों के सन्दर्भों से उद्धृत करते हुए चीन के इतिहास से भी कुछ प्रकाशन किया है।यद्यपि ब्राह्मणों द्वारा

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इतिहास के कुछ बिखरे हुए पन्ने ...शायद आप नहीं जानते हो

6 जुलाई 2019
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यूनानीयों तथा ट्रॉय वासी -जब एगमेम्नन और प्रियम के नैतृत्व में यौद्धिक गतिविधियों में संलग्न थे ।तब उनकी संस्कृतियों में वैदिक परम्पराओं के सादृश्य कुछ संस्कार थे ।जैसे मृतक का दाह-संस्कार आँखों पर दो स्वर्ण-सिक्का रखकर किया जाने तथा बारह दिनों तक शोक होना....यह समय ई०पू० बारहवीं सदी है होमर ई०पू० अ

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शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित ।

18 जुलाई 2019
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शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित --------------------------------------------------------- भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत् शोध "यादव योगेश कुमार 'रोहि ' के द्वारा अनुसन्धानित तथ्य विश्व सांस्कृतिक अन्वेषणों के पश्चात् एक तथ्य पूर्णतः

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हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप के अन्तर्गत वर्णमाला की व्युत्पत्ति मूलक विवेचना। रोहि हिन्दी व्याकरण (भाग पञ्चम्)

4 अगस्त 2019
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हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप ।रोहि हिन्दी व्याकरण (भाग पञ्चम्)__________________________________________________माहेश्वर सूत्र को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने वैदिक भाषा (छान्दस्) के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से माहेश्वर सूत्रों का न

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राम और सीता पश्चिमीय संस्कृतियों में....

15 अगस्त 2019
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राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का प्रासंगिक न होना ही है __________________________________________ प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था। कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है: ‘वैदे

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राम और सीता ऋग्वेद में तो हैं ही ; ये प्राचीनत्तम पात्र सुमेरियन तथा मिश्र की संस्कृतियों में भी

17 अगस्त 2019
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आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर जोकि (सत्रहवीं सदी ईस्वी) के संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार और भाष्य कार भी हैं ।जो सम्पूर्ण महाभारत की टीका के लिए विशेष प्रख्यात हैं।आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में राम और सीता के होने का वर्णन किया है।☣⬇देखें--

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राम सीता लक्ष्मण और भरत सुमेरियन और मिश्र की संस्कृतियों में...

18 अगस्त 2019
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आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर जोकि (सत्रहवीं सदी ईस्वी) के संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार और भाष्य कार भी हैं ।जो सम्पूर्ण महाभारत की टीका के लिए विशेष प्रख्यात हैं।आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में राम और सीता के होने का वर्णन किया है।☣⬇देखें--

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मित्रों ब्राह्मणों का कृषि और गौपालन से क्या वास्ता ? मन्दिर तक है इन पुरोहितों का रास्ता !

20 अगस्त 2019
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ब्राह्मण समाज केवल कर्म-काण्ड मूलक पृथाओं का सदीयों से संवाहक रहे है ।और धार्मिक क्रियाऐं करने वाला यौद्धिक गतिविधियों से परे ही कहता है ।वैसे ब्राह्मण शब्द सभी महान संस्कृतियों में विद्यमान है ।जिसका अर्थ होता है केवल और केवल " मन्त्र -पाठ करने वाला पुजारी "पण्डित , ब्राह्मण और पुरोहित यूरोपीय

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अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-

25 अगस्त 2019
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अंग्रेजी व्याकरण में इट और देयर का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-Use of It and There and question Words___________________________________________Use of It and There When a sentence has no subject, then 'It and There' are used as an Introductory Word. e.g. (exempli gratia)( for exam

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अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-

25 अगस्त 2019
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अंग्रेजी व्याकरण में इट और देयर का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-Use of It and There and question Words___________________________________________Use of It and There When a sentence has no subject, then 'It and There' are used as an Introductory Word. e.g. (exempli gratia)( for exam

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कृष्ण जीवन को कलंकित करने वाले षड्यन्त्र कारक पक्ष- जिनका सृजन कृष्ण को चरित्र हीन बनाकर देवसंस्कृति के अनुयायी पुरोहितों ने किया !

25 अगस्त 2019
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कृष्ण जीवन को कलंकित करने वाले षड्यन्त्र कारक पक्ष- जिनका सृजन कृष्ण को चरित्र हीन बनाकर देवसंस्कृति के अनुयायी पुरोहितों ने किया !परिचय :-- यादव योगेश कुमार'रोहि'_______________________________________________ कामी वासनामयी मलिन हृदय ब्राह्मणी संस्कृति ने हि

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ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में वासुदेव कृष्ण का वर्णन:-

1 सितम्बर 2019
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ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में वासुदेव कृष्ण का वर्णन:-_________________________________________ऋग्वेद के प्रथम मण्डल अध्याय दश सूक्त चौबन 1/54/ 6-7-8-9- वी ऋचाओं तक यदु और तुर्वशु का वर्णन है ।और इसी सूक्त में राधा तथा वासुदेव कृष्ण आदि का वर्णन है ।परन्तु यहाँ भी परम्परागत रूप से  देव संस्कृतियों के पु

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ऋग्वेद में कृष्ण का वर्णन है परन्तु आर्य्य समाजी मानसिकता के लोग वैदिक ऋचाओं की यौगिग शब्द मूलक अर्थ व्यञ्जन करते हैं और ये भी मानवीय वेद को अपौरुषेय बनाते हैं ।

5 सितम्बर 2019
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महानुभाव ! षड्यन्त्र प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक क्रिया है ।जिसे जन साधारण निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहता है । यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दिया गया ।श्रृँगार वैराग्य का सनातन प्रतिद्वन्द्वी भाव है. इसी

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अहीर विश्व संस्कृतियों में प्रतिभासित रूप --

9 सितम्बर 2019
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आज के समय से लगभग ई०पू० द्वित्तीय सदी में संस्कृत के विद्वानों ने चरावाहों के एक समुदाय की वीरता और भयंकरताप्रवृत्ति को दृष्टि गत करके उन्हें अभीरु अथवा अभीर कहा । क्योंकि यहाँं के पुरोहितों को इनके मूल नाम "एवीर" / अबीरमें अभीर की ध्वनि सुनायी दी ।अहीर हिब्रू-भाषाओं में बीर/ बर से विकसित है ।जो अबी

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कृष्ण के चरित्र को पतित करने का एक षड्यन्त्र ...

10 सितम्बर 2019
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महानुभाव ! षड्यन्त्र प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक क्रिया है ।जिसे जन साधारण  निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहता है ।यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दिया गया ।श्रृँगार  वैराग्य का सनातन प्रतिद्वन्द्वी भाव है. इसी

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तुमको हम इतना समझा दें कि धर्म वास्तव में क्या है ? धर्म साधना है मन की , इन्द्रिय-नियमन की क्रिया है|

15 सितम्बर 2019
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जिस घर में रोहि संस्कार नहीं, और शिक्षा का प्रसार नहीं ||*********************उन्मुक्त Sex का ताण्डव है , वहाँ चरित्र सलामत कब है||***********************इस काम की उच्छ्रंखलता से दुनियाँ में जो कुकर्म है ,पाप पतन कारी कितना .? आदमी अब बेशर्म है ||*********************इन सभी विकृतियों की

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कुछ प्रथाऐं जो अब समाज के लिए अनावश्यक और अर्थ हीन हैं !

16 सितम्बर 2019
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एक परम्परागत पण्डित जी कहते हैं ; कि ये त्रयोदशी- भोग राज परिवारों की प्रथा है।तो हमारा उनसे कहना कि फिर जनता इसका अनुकरण क्यों करती है ?क्या राजा के समान सुविधाऐं जनता के पास हैं ?नहीं !और आज राज तन्त्र है क्या ?नहीं !तो इस मूर्खता पूर्ण पृथा को राजपरिवारों के साथ समाप्त कर दो !गरीब जनता क्यों

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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।।

19 सितम्बर 2019
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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार हो

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आभीरों का भागवत धर्म ( आत्मा की खोज और जीवन का रहस्य )

27 सितम्बर 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: कह कर वर्णित किया है । परवर्ती तद्भव रूप में श्वस् धातु भी स्वर् धातु का ही रूप है । आद्य-जर्मनिक भाषाओं में यह रूप :- swḗsa( स्वेसा ) तथा swījēn( स्विजेन) शब्द के रूप में आत्मा का बोधक हैं । अर्थात् own, relation ।प्राचीनत्तम जर्मन- गोथिक भाषा में: 1-sw

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ; इसीलिए योग और स्वास्थ्य इन दौनों का पारस्परिक सातत्य समन्वय अथवा एकता अपेक्षित  है । तृतीय चरण की प्रस्तुति ... _______________________________________________

1 अक्टूबर 2019
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_______________________________________________योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ; इसीलिए योग और स्वास्थ्य इन दौनों का पारस्परिक सातत्य समन्वय अथवा एकता अपेक्षित  है ।तृतीय चरण की प्रस्तुति ..._______________________________________________योग’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा की  ‘युजँ समाधौ’ संयमने

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भारोपाय भाषाओं में गुरू शब्द की व्युत्पत्ति और गुरुशिष्य परम्परा के आयाम -

4 अक्टूबर 2019
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भारोपाय भाषाओं में गुरू शब्द की व्युत्पत्ति और गुरुशिष्य परम्परा के आयाम -__________________________________________संसार में ज्ञान और कर्म का सापेक्षिक अनुपात ही जीवन की सार्थकता का कारण है ।गुरू इसी सार्थकता का ही निमित्त कारण है ।अन्यथा व्यक्ति एक अभाव में या तो अन्धा है या तो लंगड़ा ।  गुरू ! की

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चारण और भाटों का साहित्यिक परिचय...

5 अक्टूबर 2019
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पिंगल और डिंगल -राजस्थान की पूर्वीय और पश्चिमीय बोलीयों का सीमांकन करती हैं ।'डिंगल' पश्चिमीय राजपूताने की वह राजस्थानी भाषा गत शैली है; जिसमें चारण लोग आज तक काव्य और वंशावली आदि लिखते चले आ रहे  हैं । विशेषत: चारण लोग डिंगल भाषा में काव्य रचनाऐं करते रहे हैं।'यह' भाषाशैली कृत्रिम होते हुए भी कलात

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यादवों का इतिहास "द्वितीय भाग" ( नवीन संस्करण)

2 नवम्बर 2019
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यादवों का इतिहास "द्वितीय भाग" ( नवीन संस्करण)____________________________________________वैदिक साहित्य में असुरों के विशाल तथा दृढ़ दुर्गों एव प्रासादों ( भवनों)के वर्णन मिलते हैं ।संभवतः लवण-पिता मधु या उनके किसी पूर्वज ने यमुना के तटवर्ती प्रदेश पर अधिकार कर लिया हो ; यह अधिकार लवण के समय से समाप

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"हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप " संशोधित संस्करण (भाग एक)

6 नवम्बर 2019
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।उसने  अपने विचार ,भावनाओं एवं अनुभुतियों को अभिव्यक्त करने के लिए जिन माध्यमों को चुना वही  भाषा है ।मनुष्य कभी शब्दों से तो कभी संकेतों द्वारा  संप्रेषणीयता (Communication) का कार्य सदीयों से करता रहा है।अर्थात् अपने मन्तव्य को दूसरों तक पहुँचाता रहा है ।किन्तु भाषा उसे

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ये हुश़्न भी "कोई " ख़ूबसूरत ब़ला है !

6 नवम्बर 2019
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ये हुश़्न भी "कोई " ख़ूबसूरत ब़ला है ! _______________________________ बड़े बड़े आलिमों को , इसने छला है !!इसके आगे ज़ोर किसी चलता नहीं भाई! ना इससे पहले किसी का चला है !!ये आँधी है , तूफान है ये हर ब़ला है!परछाँयियों का खेल ये सदीयों का सिलस़िला है !आश़िकों को जलाने के लिए इसकी

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मेरी अनुभूतियों के पल और बीते हुए कल...

31 दिसम्बर 2019
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हर कर्म की प्रेरक मेरी ये हालात है !सहायक प्रवृत्ति या परिवेश ये संस्कार दूसरी बात है ।मुझे हर तरफ मोड़ा उन हालातों ने मेरे रुहानी जज्बातों ने या विरोधीयों की बातों ने ।मेरा व्यक्तित्व बस परिस्थियों की सौगात है ।ये मेरा प्रारब्ध है किसी गैर की कहाँ औख़ात है ये परिस्थियाँ हैं मेरे ग़म से नातों क

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अनुभतियों के पल मेरे बीते हुए पल ...

2 जनवरी 2020
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गलतीयाँ सामाजिक विसंगतियाँ ।और भूल मनुष्यगत भौतिक विस्मृतियाँ ।दौनों की ही अलग-अलग हैं गतियाँ।।हमने बहुत समझा औरों को दिल में बहुत कुछ और था ।हमको अपना समझा गैरों ने जिन पर हमारा नहीं गौर था हर कर्म की प्रेरक मेरी ये हालात है ! सहायक प्रवृत्ति या परिवेश ये संस्कार दूसरी बात है । मुझे हर तरफ मोड़ा

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मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।

4 जनवरी 2020
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मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।फिर क्यों ये मेरा मन, उदास है ।मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।मेरे प्रभु तेरी खुशबू , बड़ी अद्भुत और ख़ास है- मैं एक पापी तू सर्वव्यापी मेरा विश्वास है- ।है तेरा शमा तू 'न जन्मा न तेरा नाश है ।मुझे एहसास है प्रभु मेरे पास है ।××××××××××××××××××××××××××××××सत्कर्

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मेरे कान्हा तेरी महिमा, अपरम्पार है। तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार है ।

6 जनवरी 2020
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मेरे कान्हा तेरी महिमा, अपरम्पार है।तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार है ।तू मेरा सरकार है ,तू मेरा सरकार... है ।___________________________तेरी बातें ये सौगातें ,जीवन का एक सार हैं ।तू मेरा सरकार है ,तू मेरा सरकार है ।तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार... है ।मेरे प्रभू तेरा बजूह , मन में जो भी संजोता ।

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उसूल सदियों सदियों पुराने हैं

6 फरवरी 2020
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धर्म की आड़ में उसूल कुछ सदियों सदियों पुराने हैं।प्रसाद वितरण करने वालों में भी अब ज़हर खुराने हैं ।।धर्म की चादर ओढ़कर मन्दिर में ,आसन लगाऐ बैठे व्यभिचारी ।अब मन्दिर ही मक्कारों के ठिकाने हैं ।शराफत को अब कमजोरी समझते हैं लोग "रोहि"निघोरेपन में अब कुछ और फरेबी पहचाने हैं।ईमानदारी जहालत के मायनेहा

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"सत्य विकल्प रहित और सर्वथा एक रूप होता है जबकि असत्य बहुरूपिया और बहुत से विकल्पों में उद्भासित होता है "

16 फरवरी 2020
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किसी की महानता और प्रसिद्धि कुछ अहंवादी व्यक्तियों को सहन नहीं हुई तो उन्होंने अपने अहं को तुष्ट करने के लिए उनके इतिहास और वंश-व्युत्पत्ति को इस प्रकार से सम्पादित किया कि उन्हें सर्वथा हीन और हेय रूप में समाज की दृष्टि में सिद्ध किया जा सके !ये महान और वीरतापूर्ण प्रवृत्तियों से सम्पन्न जनजातिय

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छलावा ...

18 फरवरी 2020
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धर्म बनाया ढ़कोसला ! तिलक ,छाप ठगने की कला ।इनका ईश्वर पैसे भी लेता ।आज हमको ये पता चला।।और देव दासीयाँ को 'रोहि' ।पुजारियों ने हरपल छला ।।सुन्दरता नाम नहीं 'रोहि' किसी के गोरे होने का ।और पवित्रता नाम नहीं ,केवल शरीर के धोने का ।।काला हो या हो श्यामल और लम्पट, चंचल ना हो कभी ।।गोरा भी कुरूप हो जात

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अर्जुन को नारायणी सेना के वीरों ने परास्त कर दिया ..

21 फरवरी 2020
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कारण एक सुभद्रा का हरण ।।वह भी चुपके से न किया रण।। नारायणी सेना के यौद्धा शान्त कारण था कृष्ण का संरक्षण ।जब कृष्ण भी अर्जुन के साथ नहीं।।तब अर्जुन की औकात नहीं ।।सब असहाय बाल और स्त्रियाँ हैंयादव स्त्रियों के नाथ नहीं ।ले जा रहा सैकड़ों अबला जन को ,ये निर्लज्ज बेहया दीठा है ।जो लोभी लालची और कामी

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अहीर जाट और गूजरों की समान खापें ...

21 फरवरी 2020
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।आज इसी तथ्य का विश्लेषण करते हैं ।अब कुछ जाट तो जो स्वयं को भरत पुर के राजा सूरजमल से जोड़ते हैं ।जिसका समय सत्रहवीं सदी है ।अपने को सिनसिनीवार जाट कहते हैं ।राजस्थानी क्षेत्र में भरत पुर में एक सूरजमल की प्रतिमा के

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"घर घर की घटना अजब अजब बनी हालात "

22 फरवरी 2020
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घर घर की घटना अजब ।अजब बनी हालात ।एक बार कोई महानुभाव ।कोलेब में रहते गात ।स्टार मेकर पर करते । महिलाओं संग मुलाकात ।सुना रहे थे पत्नी को अपने स्वरों की सौगात ।पत्नी जरि कौयला भई ,सुन पर तिरियन की बात ।कोलर पकड़ रगड़ पति को धरि दीनी दो लात ।और पूछती इतनी देर तककहाँ बिताते रात ।कई दिनों से दूर दूर तु

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गोप ,गोपाल, गौधुक ,आभीर यादव गुप्त गौश्चर पल्लव घोष आदि....

24 फरवरी 2020
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यादव शब्द एक वंशमूलक विशेषण है ।जब कि गोप गोपालन वृत्ति( व्यवसाय) मूलक विशेषण और आभीर( अभीर शब्द से अण् तद्धित प्रत्यय करने पर निर्मित हुआ आभीर एक प्रवृत्ति मूलक विशेषण है ) जिसका अर्थ है वीर अथवा निर्भीक यौद्धा परन्तु षड्यन्त्र पूर्वक पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मणों ने यादवों को वंश के आधा

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देश आज फिर घायल है । झूँठे अपवाह विवादों में ।।

29 फरवरी 2020
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देश आज फिर घायल है । झूँठे अपवाह विवादों में ।। ऊँच नीच और छुआछूत । है अहंकार संवादों में । हिन्दू हो या मुसलमान , अब नेकी नहीं इरादों में । सब एक वृक्ष के पौधे थे । था एक सूत्र परदादों में ।।विचार ,उम्र और , समान सम्पदा ।ये सम्बन्ध सफल है सर्वदा ।। समय ,परिस्थिति और देश में

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बोला शब्द की अवधारणा का श्रोत ...

3 मार्च 2020
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होलि शब्द की अवधारणा का श्रोत मूलत: संस्कृत भाषा के स्वृ= तापे उपतापे च धातु से निष्पन्न है । य: स्वरयति तापयति सर्वान् लोकान् इति सूर्य: कथ्यते "अर्थात् जो सम्पूर्ण लोगों को तपाता है वह सूर्य है " होली एक वसन्त सम्पातीय ऋतु-सम्बन्धी अग्नि का स्वागत उत्सव है ---जो ग्रीष्म ऋतु के आगमन रूप फाल्गुनी

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हरे कृष्णा हरे रामा रामा हरे हरे...गीत

5 मार्च 2020
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हरे कृष्णा हरे रामा ~~ रामा रामा हरे - हरे कृष्णा हरे !हरे रामा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे ..🎼🎼हरे रामाँ~~ हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे रामा हरे ।(दीर्घ )-हरे कृष्णाँ आँ हरे रामाँ आँआँ .... हरे कृष्णा हरे हरे हरे रामा हरे ---हरे रामाँ हरे कृष्णा कृष्णा- कृष्णा हरे हरे कृष्णा हरे ~~_______

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"कृष्ण का धर्म भागवत और उनका व्यक्तित्व " एक संक्षिप्त परिचय

6 मार्च 2020
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महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ही मुख्य भूमिका में हैं ।कृष्ण ने स्वयं तो पाण्डवों का साथ दिया ,जबकि अपनी अहीरों अथवा गोपों की नारायणी सेना को दुर्योधन का साथ देने का आदेश दिया। उनकी इस कूट राजनीति में एक श्रेष्ठ व्यक्तित्व का संयोजन है । कृष्ण ही एक एेसा महामानव इस भारतीय धरा पर उत्पन्न हुआ जिसन

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कृष्ण का व्यक्तित्व और उनका भागवत धर्म "एक प्रस्तावना " प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार 'रोहि'

8 मार्च 2020
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महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ही मुख्य भूमिका में हैं ।कृष्ण ने स्वयं तो पाण्डवों का साथ दिया  ,जबकि अपनी अहीरों अथवा गोपों की नारायणी सेना को दुर्योधन का साथ देने का आदेश किया। उनकी इस कूट राजनैतिक गतिविधि में  एक श्रेष्ठ सामाजिक व्यक्तित्व का संयोजन है । कृष्ण  ही एक एेसा महामानव इस भारतीय धरा प

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भागवत पुराण के प्रक्षेप ...(भाग प्रथम )

14 मार्च 2020
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सत्य और यथार्थ यद्यपि समानार्थक प्रतीत होने वाले नाम हैं ।'परन्तु सत्य हमारी कल्याण मूलक अवधारणाओं पर अवलम्बित है ।समय , परिस्थिति और देश के अनुकूलता पर जो उचित है- वही सत्य है ।सत्य मे यद्यपि कल्याण का भाव विद्यमान है।यथार्थ में नहीं...यथार्थ को पुराण कार व्यक्त न कर सके ।इसी लिए तत्कालीन पुरोहि

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भागवत पुराण और श्रीमद्भगवदगीता का काल निर्धारण ...

17 मार्च 2020
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श्रीमद्भगवदगीता में पञ्चम सदी में मिलाबट की गयी जिसमें वर्ण व्यवस्था और याज्ञिक 'कर्म' काण्डों को समायोजित कर दिया गया । वर्ण- व्यवस्था कृष्ण का प्रतिपाद्य विषय नहीं था ,अपितु इसके खण्डन करने के लिए ही उन्होंने नया मार्ग भागवत धर्म के नाम से प्रसारित किया ।जिसके उपदेश श्रीमद्भगवदगीता उपनिषत् को रूप

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लोक-तन्त्र हुआ डम्प ...

19 मार्च 2020
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अभिवञ्चन अधिकारों का हो ! क्या कर्तव्य भावना के मायने ?तस्वीर बदलती है रोहि ,अक्श नहीं बदलते आयने । लोकतंत्र नहीं षड्यंत्र है केवल शोषण का सब मंत्र है जूस डाला आम-जन को अवशेष केवल अन्त्र हैं !नेताओं की लूट भी संवैधानिक है यहांँ गरीबों का विद्रोह जुल्म के मानिक यहांँ परोक्ष राजतंत्र जहां सब परम्परा

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नन्द और वसुदेव दौनों सगे सजातीय गोप बन्धु थे ।

29 मार्च 2020
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यादवों का गुप्त तथा गोप अथवा गोपाल नामक विशेषण उनकी गो पालन व रक्षण प्रवृत्ति के कारण हुए ...______________________________________________(हरिवंशपुराण एक समीक्षात्मक अवलोकन ...)हरिवंशपुराण के हरिवंश पर्व में दशम अध्याय का 36वाँ वह श्लोक देखें -रेवत के प्रसंंग में यह श्लोक विचारणीय है 👇__________

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इतिहास के कुछ बिखरे हुए पन्ने .... हैहयवंश और शक यवन हूण पारद किरात पह्लव आदि की विलय गाथा ... भाग प्रथम

31 मार्च 2020
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यादवों का गुप्त और गोप नामक विशेषण उनकी गो पालन व रक्षण प्रवृत्तियों के कारण हुआशक यवन हूण पारद और पह्लवों से हैहयवंश के यादवों का सामंजस्य व विलय ... भाग प्रथम______________________________________________(हरिवंशपुराण के एक समीक्षात्मक अवलोकन सन्दर्भ में हमने पाया कि भारतीय पौराणिक कथाऐं पश्चिमीय

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अवर जन जाति का इतिहास ....

1 अप्रैल 2020
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the avars were a confederation ofheterogeneous (diverse or varied) people consisting of Rouran, Hephthalites, and Turkic-Oghuric races who migrated to the region of the Pontic Grass Steppe (an area corresponding to modern-day Ukraine, Russia, Kazakhstan) from Central Asia after the fall of the Asiat

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इतिहास लेखन के पूर्वाग्रह...

11 अप्रैल 2020
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प्रत्येक काल में इतिहास पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर लिखा जाता रहा है ; आधुनिक इतिहास हो या फिर प्राचीन इतिहास या पौराणिक आख्यानकों में वर्णित कल्पना रञ्जित कथाऐं !सभी में लेखकों के पूर्वाग्रह समाहित रहे हैं ।अहीरों की निर्भीकता और पक्षपात विरोधी प्रवृत्ति के कारण या 'कहें' उनका बागी प्रवृत्ति के का

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जीवन की अनन्त यात्रा ...

13 अप्रैल 2020
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जीवन की अनन्त यात्रा ...__________________________________अभिशाप है अकेलापन 'रोहि' इस जहान का !अनन्त के द्वार से लौट आया।- दीदार किया भगवान का ।।एकान्त जो शान्त है । इस संसार का वरदान है कोई ।नये जोश और जज्बात को । विश्राम लेता थका बटोही ।।ये एकान्त और अकेलापन दौनों एक स्थिति के ,प्रवाह है

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दास और दस्यु के सन्दर्भ ...

14 अप्रैल 2020
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दास और दस्यु यद्यपि अपने प्रारम्भिक रूप में समानार्थक है ।वैदिक कालीन सन्दर्भ सूची में दास का अर्थ देव संस्कृति के विरोधी असुरों के लिए बहुतायत से हुआ है ।और जो दक्षता की पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठित होकर अपने अधिकारों के लिए बागी या द्रोही हो गये वे दस्यु कहलाऐ और जिन्होंने उत्तर वैदिक काल में आते -आत

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दास और दस्यु के वैदिक कालीन सन्दर्भ ...

14 अप्रैल 2020
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दास और दस्यु यद्यपि अपने प्रारम्भिक रूप में समानार्थक शब्द रहे हैं । वैदिक कालीन सन्दर्भ सूची में दास का अर्थ देव संस्कृति के विरोधी असुरों के लिए बहुतायत से हुआ है । और जो दक्षता की पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठित होकर अपने अधिकारों के लिए बागी या द्रोही हो गये वे दस्यु कहलाऐ और जिन्होंने उत्तर वैदिक काल

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आज का ये हाल है ...

16 अप्रैल 2020
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अजब चाल है अजब हाल है । क्या बताऊँ सब बेमिसाल है ।विवाह से पूर्व सम्बन्ध बनाना ! लड़के लड़कियों की मजाल है ।ये गैंग-रेप किडनैप के तरीके । अन्धा हो जाना फिर दारू पीके ।आज वस्त्रों में अब सब तन दीखे। और क्रिया कलाप भी बे सलीके ।नैतिकता अब बि

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अहीर ,गूर्जर ,जाट और राजपूतों का इतिहास में विवरण विभिन्न सन्दर्भों में ...

18 अप्रैल 2020
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____________________________________ इतिहास अपने आप को पुनः दोहराता है।____________________________________ महान होने वाले ही सभी ख़य्याम नहीं होते ।उनकी महानता के 'रोहि' इनाम नहीं होते । फर्क नहीं पढ़ता उनकी शख्सियत में कुछ भी ,ग़मों में सम्हल जाते हैं जो कभी नाकाम नहीं होते।।बड़ी सिद्दत से संजोया

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मिथक और यथार्थ के समकक्ष ...

25 अप्रैल 2020
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प्रश्न (1)कुछ लोग जो आज भी पूर्व दुराग्रह से ग्रस्त रूढ़िवादी सड़ी-गली मानसिकता से समन्वित होकर जी रहे हैं ।ले सत्य के प्रकाश ले बचकर असत्य के अँधेरे में ही जी रहे हैं ।उन्हें प्रकाश से भय या चौंद भी लगती हैं ।उन्हें 'हम क्या 'कहें' उनका इस प्रवृत्ति के कारण उल्लू या चमकादर या एकाक्ष कौआ वे लोग अक्

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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।

2 मई 2020
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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है । अर्थात् ई०पू० २५०० से १५००के काल तक-- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु क

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प्रभु की शरण में आके ,सिर चरणों में झुकाके ।

5 मई 2020
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प्रभु की शरण में आके ,सिर चरणों में झुकाके ।मन को तसल्ली मिलती है , प्रभु का भजन गाके ।समय के पथ पर जिन्दगी जा रही है यों ही ।फिर कुछ हासिल नहीं होगा रोहि पछिताके।________________________________________कौन है बनाने वाला इस संसार का -२कौन है खिवैया मेरी मझधार का -2धड़कनों की तालों में श्वाँसों की ल

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गुर्जर ,जाट और अहीरों का समन्वय...

10 मई 2020
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ब्राह्मणस्य द्विजस्य वा भार्या शूद्रा धर्म्मार्थे न भवेत् क्वचित्।रत्यर्थ नैव सा यस्य रागान्धस्य प्रकीर्तिता ।। (विष्णु- स्मृति)___________________________________________अर्थात्‌ ब्राह्मण के लिए शूद्रा स्त्री धर्म कार्य के लिए नही अपितु वासना तृप्ति के लिए होनी चाहिए अत:

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भागवत धर्म की प्रस्तावना...

14 मई 2020
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जब जैन-धर्म तथा बौद्ध-धर्म ह्रास के मार्ग पर बढ़ रहे थे तब दूसरी ओर इन्हीं के समानान्तरण भागवत धर्म भी वैदिक-धर्म की प्रतिक्रिया स्वरूप उदय हो रहा था ।वैदिक-धर्म भी अपने पुनरुत्थान में लगा था। उसने गुप्त काल के प्रारम्भ में भागवत धर्म को अपना में आत्मसात् करने का प्रयास किया।ब्राह्मण-चिंतकों ने खर्च

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गूजरों से राजपूत संघ तक .... गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज....

19 मई 2020
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गूजरों से राजपूत संघ तक .... गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज....________________________________________________यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है। चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं । अठारह वीं सदी तक सम्पादित भविष्य पुराण के प

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चौहानों का गूजरों और जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...)

21 मई 2020
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चौहानों का गूजरों ,जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...)________________________________________________यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है। चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं । अठारहवीं सदी तक स

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वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।( तेरी राहों खड़े हैं दिल थाम के )

4 जून 2020
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ओ३म्' ओ .....वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।तू ही मेरा हुजूर , मुझसे क्यों है दूर ।तेरा ही है ये नूर , फिर कैसी ये गुरूर ।।वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।आज देश

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हरि का भजन कर , मत चल तनकर । हरि का भजन कर , मत चल तनकर । जीवन का है लम्बा सफर ... ( दिल दे दिया है )

4 जून 2020
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हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ...हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ... 'हरि बोल 'हरि बोल .....ओ--- रे मुसाफिर तेरा बड़ी दूर घर ..हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ..._

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कृष्ण के चरित्र को दूषित करने वाले....

4 जून 2020
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कृष्ण के चरित्र को दूषित करने के षड्यन्त्र रचने वाले अगर पूछा जाय तो कोई और नहीं थे !देव संस्कृति के उपासक इन्द्र के आराधक वर्ण व्यवस्था वादी कर्म काण्ड को धर्म कहने वाले व्यभिचार मूलक नियोग को ईश्वरीय विधान बताने वाले इसी प्रकार के दूषित प्रवृत्ति के लोग थे । श्रीमदभगवद् गीता पञ्चम सदी में महाभार

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यादव इतिहास के बिखरे हुए पन्ने....

5 जून 2020
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कृष्ण के चरित्र को दूषित करने के षड्यन्त्र को रचने वाले अगर पूछा जाय तो कोई और नहीं थे ! देव संस्कृति के उपासक इन्द्र के आराधक वर्ण व्यवस्था वादी कर्म काण्ड को धर्म कहने वाले व्यभिचार मूलक नियोग को ईश्वरीय विधान बताने वाले कुछ इसी प्रकार की दूषित प्रवृत्ति के लोग थे ।यह घटना है पुष्यमित्र सुंग कालीन

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भारतीय भाषाओं में ठाकुर शब्द का प्रयोग तेरहवीं सदी से अब तक ...

8 जून 2020
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हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम ( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था । कालान्तरण में  विशेषत: भारतीय मध्य काल में इनके हरम अय्याशी क

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भारतीय भाषाओं में ठाकुर शब्द का प्रयोग तेरहवीं सदी से अब तक...

8 जून 2020
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हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम ( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था । कालान्तरण में  विशेषत: भारतीय मध्य काल में इनके हरम अय्याशी क

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यदु , जरासन्ध और दमघोष आभीर जन-जाति....

16 जून 2020
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यह सत्य है कि यादवों का इतिहास कि़स प्रकार विकृत हुआ यद्यपि जरासन्ध और दमघोष हैहयवंश के यादव ही थे 'परन्तु उन्हें यादव कहकर कितनी बार सम्बोधित किया गया ?सायद नहीं के बरावर ...इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है हरिवंशपुराण से यह विश्लेषण ...और किस प्रकार परवर्ती पुराण कारों 'ने यदु को ही सूर्य वंश में घ

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यदु , जरासन्ध और दमघोष आभीर जन-जाति....

16 जून 2020
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यह सत्य है कि यादवों का इतिहास कि़स प्रकार विकृत हुआ यद्यपि जरासन्ध और दमघोष हैहयवंश के यादव ही थे 'परन्तु उन्हें यादव कहकर कितनी बार सम्बोधित किया गया ?सायद नहीं के बरावर ...इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है हरिवंशपुराण से यह विश्लेषण ...और किस प्रकार परवर्ती पुराण कारों 'ने यदु को ही सूर्य वंश में घ

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भागवत धर्म की रूप रेखा ...

17 जून 2020
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भागवत धर्म और ब्राह्मण धर्म का पारस्परिक विरोध निरूपण-संशोधित संस्करण -___________________________________________भागवत धर्म के अधिष्ठात्री देवता के रूप में बलदाऊ का वर्णन हरिवंशपुराण में है ।एक प्रसंग के अनुसार जब एक यादव भक्त यमुना जी के इस कुण्ड के जल में प्रवेश करके दिव्य भागवत मन्त्रों द्वारा

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सोमवंशी ययाति पुत्र यदु बनाम सूर्य वंशी हर्यश्व पुत्र यदु ...

5 जुलाई 2020
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महाभारत का सम्पादन बृहद् रूप पुष्यमित्र सुंग के शासन काल में हुआ ।भारत की प्राचीनत्तम ऐैतिहासिक राजधानी मगध थी ।जो आधुनिक विहार है ।मगध से विहार बनने के सन्दर्भ में ये तथ्य विदित हैं कि महात्मा बुद्ध के नवीनत्तम सम्प्रदाय पाषण्ड में जो नव दीक्षित श्रमण थे उनके आश्रमों को विहार कहा गया था ।पाषण्ड श

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पुराणों में दो यदु हुए ययाति पुत्र और हर्यश्व पुत्र .. अहीर ययाति पुत्र यदु के वंशज हैं ।

6 जुलाई 2020
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महाभारत की कथाऐं जन- किंवदंतियों पर आधारित आख्यानकों का बृहद् संकलन हैं।जिसे महर्षि व्यास के नाम पर सम्पादित किया गया और इसे जय संहिता का नाम दिया गया ।कोई भा मानवीय ग्रन्थ पूर्व दुराग्रह से रहित नहीं होता है ।दुराग्रह कहीं न कहीं मोह और हठों से समन्वित रूप से प्रेरित होते हैं ।और हठों और मोह दौनों'

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दो यदु ,दो ययाति, दो नहुष जिसमें एक सूर्य के और एक सोम वंश के सूर्यवंश के अम्बरीष पुत्र नहुष , ययाति और हर्यश्व पुत्र यदु का अस्तित्व ही कल्पना प्रसूत है ।...

7 जुलाई 2020
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यदु जब दो हैं । तो फिर अहीर कौन से यदु के वंशज यादव हैं ?ययाति और देवयानि के पुत्र यदु जो तुर्वशु के भाई हैं ।या इक्ष्वाकु वंशी राजा हर्यश्व और उनका पत्नी मधुमती के गर्भ से उत्पन्न यदु के वंशज यादव हैं !हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 37 श्लोक 41-45 पर वर्णन है कि⬇पुत्र की इच्छा रखने वाले

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गोप कृष्ण की लीला .... हरिवशं पुराण

9 जुलाई 2020
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गोपों अथवा अहीरों के साथ भारतीय ग्रन्थों में दोगले विधान कहीं उन्हें क्षत्रिय तो कहीं वैश्य तो कहीं शूद्र कहा गया यह शसब क्रमोत्तर रूप से हुआ ....____________________________________________इसी सन्दर्भ में हरिवशं पुराण में एक आख्यानक है ⬇एक बार जब कृष्ण हिमालय पर्वत के कैलास शिखर पर तप करने तथा भूत

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यदु के लिए गोप और उनके वंशज गोप अहीर आदि नामों से जाने गये ...

10 जुलाई 2020
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यादवों ने कभी वर्ण -व्यवस्था को नहीं माना ।कारण वह राजतंत्र की व्यवस्था का अंग थी और ये किसी के द्वारा परास्त नहीं हुए ।क्योंकि इनकी गोपों'की नारायणी सेना अजेय थी ।इसी नवीन भागवत धर्म की अवधारणा का भी जन्म हुआ था ।इसलिए ब्राह्मणों ने द्वेष वश अहीरों या यादवों को शूद्र वर्ण में निर्धारित करने की असफल

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🌸– •यादव –यादव– यादव– यादव– यादव •–🌸

13 जुलाई 2020
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यादव" भारत में ही नहीं अपितु पश्चिमी एशिया, मध्य अफ्रीका , तथा यूरोप का प्रवेश द्वार समझे जाने वाले यूनान तक अपनी धाक दर्ज कराने वाली आभीर जन-जाति का प्रतिनिधि समुदाय है। पारम्परिक रूप से इन्हें इनके वृत्ति (व्यवसाय) मूलक विशेषण के तौर पर गोप , गोपाल कहा जाता है ।यद्यपि वंशमूलक रूप से भारतीय पुराणों

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कायस्थः कासाइट कार्थेज काशी और कशमीर तक ...

16 जुलाई 2020
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भारतीय समाज ही नहीं अपितु विश्व के सम्पूर्ण मानव समाजों में संस्कृतियों की भित्तियाँ ( दीवारें) धर्म की आधार-शिलाओं पर प्रतिष्ठित हुईं । भाषा जो परम्परागत रूप से अर्जित सम्पदा है वह भी मानव समाजों के सांस्कृतिक , धार्मिक और व्यावहारिक जीवन के संवादों की संवाहिका रही है । संस्कृतियों 'ने समय के अन्तर

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यादवों का इतिहास ...

22 जुलाई 2020
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प्राय: कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा भ्रान्त -मति राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने के लिए महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह श्लोक उद्धृत करते हैं । ____________________________________ ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७। अर्था

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शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति पर  एक प्रासंगिक विश्लेषण-   --------------------------------------------------------------

23 जुलाई 2020
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  शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति पर  एक प्रासंगिक विश्लेषण-  --------------------------------------------------------------भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत शोध " यादव योगेश कुमार 'रोहि ' के द्वारा अनुसन्धानित.भारत में वर्ण व्यवस्था के नियामक शूद्रजातीया शब्द और इस नाम से सूचित जनज

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ब्राह्मण बकरे के सजातीय वैश्य गाय के सजातीय क्षत्रिय भेड़े (मेढ़ा)के और शूद्र घोड़े के सजातीय है । अब बताओ सबसे श्रेष्ठ पशु कौन है ?

26 जुलाई 2020
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कृष्ण यजुर्वेद तैत्तिरीय संहिता ७/१/४/९ में सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन है कि ______________________________________________प्रश्न किया श्रोता ने " यत्पुरुषं व्यदधु: कतिधा व्यकल्पयन् ?मुखं किमस्य कौ बाहू कावूरू पादा उच्येते ? 10/90/11जिस पुरुष का विधान क्या गया ?उसका कितने प्रकार कल्पना की गयी अर्थात

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शूद्र ऐर आर्य शब्दों की अवधारणा इतिहास में ----

29 जुलाई 2020
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  शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय--13 फरवरी 2018 | Yadav Yogesh kumar -Rohi- (324 बार पढ़ा जा चुका है) लेख शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय-- शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________🎠शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ --------------------------------

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भरद्वाज के पिता

30 जुलाई 2020
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भरत से पहले देशका नाम क्या हो सकता है?क्यों कि कुछ बातें तर्क की कषौटी पर खरी नहीं उतरती हैं ।भागवत पुराण और विष्णु पुराण में भरत ने ममता के पुत्र दीर्घतमा को अपना पुरोहित बनाकर अनेक अश्वमेध यज्ञ किये ।भागवत पुराण के नवे स्कन्ध के बीसवें अध्याय के श्लोकों तीस में में वर्णन है कि भरत ने दिग्विजय के

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कृष्ण असुर क्यों ? कृष्ण का समय

20 सितम्बर 2020
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पुरातत्तवेत्ता (अरनेष्ट मैके ) के प्रमाणों के अनुसार कृष्ण का समय ई०पू० 900 कुछ वर्ष पूर्व सिद्ध होता है ।कृष्ण को क्यों साढ़े पाँच हजार वर्ष प्राचीन घसीटा जाता हैसिन्धु घाटी की सभ्यता के उत्खनन के सन्दर्भ कृष्ण की यमलार्जुन वृक्षों में समन्वित उलूखल दामोदर मूर्ति की प्राप्त हुयी है जिसकी कार्बन

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कृष्ण असुर क्यों ? कृष्ण का समय

20 सितम्बर 2020
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पुरातत्तवेत्ता (अरनेष्ट मैके ) के प्रमाणों के अनुसार कृष्ण का समय ई०पू० 900 कुछ वर्ष पूर्व सिद्ध होता है ।कृष्ण को क्यों साढ़े पाँच हजार वर्ष प्राचीन घसीटा जाता हैसिन्धु घाटी की सभ्यता के उत्खनन के सन्दर्भ कृष्ण की यमलार्जुन वृक्षों में समन्वित उलूखल दामोदर मूर्ति की प्राप्त हुयी है जिसकी कार्बन

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नवी सदी में तुर्कों और पठानों का ख़िताब था ”ठाकुर” ‘ताक्वुर’ (Tekvur) और भारत में राजपूतो साथ ठाकुर शब्द का सम्बन्ध ...

8 अक्टूबर 2020
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नवी सदी में तुर्कों और पठानों का ख़िताब था ”ठाकुर” ‘ताक्वुर’ (Tekvur)_______________________________________तुर्कों और पठानों का खिताब था तक्वुर हिन्दुस्तानी भाषाओं मे विशेषत: व्रज भाषा में आने पर यह ठक्कुर हो गया यद्यपि संस्कृत पुट देने के लिए इसे ठक्कुर रूप में प्रतिष्ठित किया गया  ठाकुर  शब्द नवी

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सनातन धर्म और सम्प्रदायों की रूप रेखा ...

12 अक्टूबर 2020
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(प्रथम अध्याय)in 1550 Senturies, "goal, end, final point," from Latin terminus (plural termini) "an end, a limit, boundary line," from PIE *ter-men- "peg, post," from root *ter-, base of words meaning "peg, post; boundary, marker, goal" (source also of Sanskrit tarati "passes over, crosses over," ta

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सनातन धर्म और सम्प्रदायों की रूप रेखा ...

12 अक्टूबर 2020
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(प्रथम अध्याय)in 1550 Senturies, "goal, end, final point," from Latin terminus (plural termini) "an end, a limit, boundary line," from PIE *ter-men- "peg, post," from root *ter-, base of words meaning "peg, post; boundary, marker, goal" (source also of Sanskrit tarati "passes over, crosses over," ta

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दुर्गा भारतीय और अशीरियन मिथकों में ...

20 अक्टूबर 2020
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भारतीय पुराणों में दुर्गा को यदु वंश में उत्पन्न नन्द आभीर की पुत्री कहा गया है ये देवी यशोदा के उदर से जन्म धारण करती हैं हम आपको मार्कण्डेय पुराण से सन्दर्भ देते हैं देखें निम्न श्लोक ...वैवस्वते८न्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे शम्भो निशुम्भचैवान्युवत् स्येते महासुरौ |३७|______________________

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देव संस्कृति और कृष्ण ...

28 अक्टूबर 2020
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महानुभावों ! षड्यन्त्र सदीयों से प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक उपक्रियाओं के रूप में अपना विस्तार करते रहे हैं । जिसे जन साधारण भी सदा ही निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहा है ।यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दि

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ऋग्वेद में असुर का अर्थ प्रज्ञावान और बलवान भी है ऋग्वेद में ही वरुण को महद् असुर कहा इन्द्र को भी असुर कहा है इन्द्र सूर्य और अग्नि भी असुर है और कृष्ण ो भी असुर कहा गया है

5 नवम्बर 2020
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ऋग्वेद में असुर का अर्थ प्रज्ञावान और बलवान भी है ऋग्वेद में ही वरुण को महद् असुर कहा इन्द्र को भी असुर कहा है मह् पूजायाम् धातु से महत् शब्द विकसित हुआ वह जो पूजा के योग्य है फारसी जो वैदिक भाषा की सहोदरा है वहाँ महत् का रूप मज्दा हो गया है सूर्य को उसके प्रकाश और ऊर्जा के लिए वेदों में असुर कहा

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गोप यादव और आभीर सदैव से एक वंश के विशेषण थे ...

19 दिसम्बर 2020
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यादवों को गो पालक होनो से ही गोप कहा गया है |भागवत पुराण के दशम स्कन्ध के अध्याय प्रथम के श्लोक संख्या बासठ ( 10/1/62) पर वर्णित है|______नन्दाद्या ये व्रजे गोपा याश्चामीषां च योषितः । वृष्णयो वसुदेवाद्या देवक्याद्या यदुस्त्रियः ॥ ६२ ॥●☆• नन्द आदि यदुवंशीयों की वृष्णि की शाखा के व्रज में रहने वाले ग

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यादवों के आदि पूर्वज...

22 दिसम्बर 2020
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यादवों के इतिहास के सबसे बड़े विश्लेषक और अध्येता परम श्रृद्धेय गुरुवर सुमन्त कुमार यादव के श्री चरणों मे श्रृद्धानवत होते हुए यह यादवों के पूर्वज व यादव संस्कृति के प्रवर्तक  यदु का पौराणिक विवरण जिज्ञासुओं में प्रेषित है प्रस्तुति करण :-यादव योगेश कुमार रोहिसम्पर्क सूत्र 8077160219..._____________

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पुङ्गव और उससे विकसित पौंगा शब्द का जीवन चरित-

27 अक्टूबर 2022
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पुङ्गव और उससे विकसित पौंगा शब्द का जीवन चरित-आज कल टीवी चैनल वाले चाहे जिस पौंगा पण्डित को पकड़ लाते हैं और उसका परिचय धर्मगुरू अथवा शंकराचार्य कहकर सारी दुनियाँ से कराते हैं। उनकी ब

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