हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम ( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।
और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था ।
कालान्तरण में विशेषत: भारतीय मध्य काल में इनके हरम अय्याशी के के मरक़ज होते थे ।
यद्यपि पश्चिमी एशिया में उसमान खलीफा के समय ही तक्वुर उपाधि स्वायत्त और अर्द्ध स्वायत्त सामन्त अथवा माण्डलिकों की थी
यही शब्द भारतीय भाषाओं में ठक्कुर या ठाकुर हो गया
भारतीय भाषाओं तक ठाकुर शब्द की यात्रा चार चरणों में होती है ।
सर्वप्रथम उस्मानी सलतनत (१२९९ - १९२३) तक रहा ।
इसी समय तेक्वर शब्द सामन्त अथवा माण्डलिकों के लिए प्रचलित हुआ ।
स्वतंत्रता के लिये संघर्ष के बाद २९ अक्तुबर सन् १९२३ में तुर्की गणराज्य की स्थापना पर इसे समाप्त माना जाता है।
उस्मानी साम्राज्य सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में अपने चरम शक्ति पर था।
अपनी शक्ति के चरमोत्कर्ष के समय यह एशिया, यूरोप तथा उत्तरी अफ़्रीका के हिस्सों में फैला हुआ था।
यह साम्राज्य पश्चिमी तथा पूर्वी सभ्यताओं के लिए विचारों के आदान प्रदान के लिए एक सेतु की तरह था।
इसने १४५३ में क़ुस्तुन्तुनिया (आधुनिक इस्ताम्बुल) को जीतकर बीज़ान्टिन साम्राज्य का अन्त कर दिया। इस्ताम्बुल बाद में इनकी राजधानी बनी रही।
इस्ताम्बुल पर इसकी जीत ने यूरोप में पुनर्जागरण को प्रोत्साहित किया था।
बाईज़न्टाइन साम्राज्य (या 'पूर्वी रोमन साम्राज्य') मध्य युग के दौरान रोमन साम्राज्य को दिया गया नाम था।
इसकी राजधानी क़ुस्तुंतुनिया (कॉन्स्टैन्टिनोप्ल) थी, जोकि वर्तमान में तुर्की में स्थित है, और अब इसे इस्तांबुल के नाम से जाना जाता है।
पश्चिमी रोमन साम्राज्य (बाइज़ेंटाइन साम्राज्य )के विपरीत, इसके लोग यूनानी बोलते थे, नाकि लैटिन और यूनानी संस्कृति और पहचान का प्रभुत्व था।
यह साम्राज्य लगभग ३२४ ई से १४५३ ई तक (एक हजार वर्षों से अधिक) अस्तित्व में रहा।
क़ुस्तुंतुनिया या कांस्टैंटिनोपुल बोस्पोरुस जलसन्धि और मारमरा सागर के संगम पर स्थित एक ऐतिहासिक शहर है, जो रोमन, बाइज़ेंटाइन, और उस्मानी साम्राज्य की राजधानी थी।
324 ई. में प्राचीन बाइज़ेंटाइन सम्राट कोन्स्टान्टिन प्रथम द्वारा रोमन साम्राज्य की नई राजधानी के रूप में इसे पुनर्निर्मित किया गया, जिसके बाद इन्हीं के नाम पर इसे नामित किया गया।
सलजूक़ साम्राज्य या सेल्जूक साम्राज्य(तुर्की: Büyük Selçuklu Devleti; फ़ारसी: دولت سلجوقیان, दौलत-ए-सलजूक़ियान; अंग्रेज़ी: Seljuq Empire) एक मध्यकालीन तुर्की साम्राज्य था जो सन् १०३७ से ११९४ ईसवी तक चला।
यह एक बहुत बड़े क्षेत्र पर विस्तृत था जो पूर्व में हिन्दू कुश पर्वतों से पश्चिम में अनातोलिया तक और उत्तर में मध्य एशिया से दक्षिण में फ़ारस की खाड़ी तक फैला हुआ था।
सलजूक़ लोग मध्य एशिया के स्तेपी क्षेत्र के तुर्की-भाषी लोगों की ओग़ुज़ शाखा की क़िनिक़ उपशाखा से उत्पन्न हुए थे।
अरबों के बाद भारत पर तुर्कों ने आक्रमण किया।
अलप्तगीन पहला भारत में आने वाला तुर्की था ।
अलप्तगीन समनी वंश के शासक अबुल मलिक का ग़ुलाम था।
उसकी प्रतिभा और सैनिक गुणों से प्रभावित होकर अबुल मलिक ने उसे खुरासान का गवर्नर नियुक्त कर दिया था।
यह उसी के कबीले का था ।
जब अबुल मलिक की मृत्यु हो गई, तब अलप्तगीन ने अफ़ग़ानिस्तान के पास एक नया राज्य स्थापित किया और ग़ज़नी को अपनी राजधानी बनाया।
यह गजनी सामा्रज्य यामिनी वंश/गजनी वंश का संस्थापक था।
सुबुक्तगीन
सुबुक्तगीन (977-997) ग़ज़नी की गद्दी पर अलप्तगीन की मृत्यु के बाद बैठा था।
प्रारंभ में वह एक ग़ुलाम था, जिसे अलप्तगीन ने ख़रीद लिया था।
अपने ग़ुलाम की प्रतिभा से प्रभावित होकर अलप्तगीन ने उसे अपना दामाद बना लिया था और 'अमीर-उल-उमरा'
(तेक्वुर उल उमरा अमीरों का राजा) की उपाधि से उसे सम्मानित किया।
सुबुक्तगीन भारत पर आक्रमण करने वाला पहला तुर्क शासक था।
इसने 986 ई. में जयपाल(शाही वंश के राजा) पर आक्रमण किया और जयपाल को पराजित किया।
जयपाल का राज्य सरहिन्द से लमगान(जलालाबाद) और कश्मीर से मुल्तान तक था।
शाही शासकों की राजधानी क्रमशः ओंड, लाहौर और भटिण्डा थी।
महमूद गजनवी
उपाधि - सुल्तान, यामीन-उद्दौला तथा ‘अमीन-ऊल-मिल्लाह’
महमूद गजनवी का जन्म 1 नवंबर 971 ई. को हुआ।
महमूद गजनवी सुबुक्तगीन का पुत्र था।
998 ई. में सुबुक्तगीन की मृत्यु के बाद महमूद गजनवी गजनी का शासक बना।
खलीफा अल-कादिर-बिल्लाह ने महमूद को ‘सम्मान का चोगा’ दिया और यमीन उद्दौला(साम्राज्य की दक्षिण भुजा), अमीन-उल-मिल्लत(धर्म संरक्षक) की उपाधियां प्रदान की।
सुल्तान की उपाधि तुर्की शासकों ने प्रारंभ की थी। उसे यह उपाधि बगदाद के खलीफा ने प्रदान की।
सुल्तान की उपाधि लेने वाला पहला शासक महमूद गजनवी था।
गजनवी के भारतीय आक्रमण
इसने खैबर दर्रे से रास्ते से भारत पर प्रथम आक्रमण 1001 ई. में पंजाब के आस-पास के क्षेत्रों में किया। महमूद गजनवी का पहला आक्रमण हिन्दुशाही शासक जयपाल के विरूद्ध था।
महमूद गजनबी ने 1001 ई. से 1027 ई. के बीच भारत पर 17 बार आक्रमण किए।
महमूद गजनवी के कुल 17 आक्रमण
बल्लभाचार्य ने कृष्ण के श्रीविग्रह को ठाकुर सम्बोधन दिया ।
वल्लभाचार्य जन्म: संवत 1530 - मृत्यु: संवत 1588 भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधार स्तंभ एवं पुष्टिमार्ग के प्रणेता माने जाते हैं।
जिनका प्रादुर्भाव ईः सन् 1479, वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्राह्मण
श्री लक्ष्मणभट्ट जी की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से काशी के समीप हुआ।
भारतीय भाषाओं में ठाकुर एक उपाधि है ।
जो छोटी रियासतों के राजाओं एवं बड़े ज़मीदारों की दी गई थी। ठाकुर शब्द का अर्थ "स्वामी" माना जाता है,
जैसे की "ठाकुरघर" अर्थात पूजाघर।
बल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग के द्वारा मान्यता से
उत्तर भारत में यह विभिन्न राजपूत भी मुगल काल से उनके समुदायों के उपनाम या उपाधि के लिए प्रयुक्त होता रहा है।
जबकि स्थान परिवर्तन भेद से यह नाई और रसोइये के लिए भी प्रयुक्त होता है।
ठाकुर शब्द का प्रयोग बंगाली को भी होता है ।
इन्द्र ब्राह्मणों का परिवार (1690-1951)
जिसमें देवेन्द्रनाथ ठाकुर, अबनीन्द्रनाथ ठाकुर, गोपीमोहन ठाकुर, द्वारकानाथ ठाकुर, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, आदि साहित्यकारों, कवियों, चित्रकारों, दार्शनिकों आदि ने जन्म लिया एवं जिसके मूल में पंचानन कुशारी थे।
ठाकुर ब्राह्मण परिवार जिसका इतिहास तीन सौ वर्ष से भी पुराना है।
बंगाली नवजागरण के समय से ही कलकत्ता के प्रमुख परिवारों में से एक रहा है।
इस परिवार में कई ऐसे महापुरुषों का जन्म हुआ जिन्होंने कला, साहित्य, समाज सुधार आदि के कार्यों में अभूतपूर्व योगदान दिया है।
ठाकुर शब्द का प्रयोग मध्यकाल में ईश्वर, स्वामी या मन्दिर की प्रतिमा (मूर्ति) के लिए किया जाता था।
मुगलकाल में शासकवर्ग ने इसका व्यवहार अपने नाम के साथ करना प्रारम्भ कर दिया।
अक्तूबर 1720 ई० में देहली के सम्राट् मुहम्मदशाह ने चूड़ामन जाट को ठाकुर की पदवी तथा अधिकार देकर सम्मानित किया था।
शब्दसागर में ठाकुर [सं॰ टक्कुर] शब्द के अर्थ
. देवता, विशेषकर विष्णु या विष्णु के अवतारों की प्रतिमा । देवमूर्ति ।
यौगिक—ठाकुरद्वारा । ठाकुरबाड़ी ।
२. ईश्वर । परमेश्वर । भगवान् ।
३. पूज्य व्यक्ति ।
४. किसी प्रदेश का अधिपति । नायक । सरदार । अधिष्ठाता ।
उदाहरण—
सब कुँवरन फिर खैंचा हाथू ।
ठाकुर जेव तो जैंवै साथू ।
— जायसी (शब्दावली) ।
५. जमींदार । गाँव का मालिक ।
६. मुगल काल मे राजपूतों की उपाधि ।
७. मालिक । स्वामी ।
उदाहरण—(क) ठाकुर ठक भए गेल चोरें चप्परि घर लिज्झअ ।—कीर्ति॰, पृ॰ १६ ।
(ख) निडर, नीच, निर्गुन, निर्धन कहँ जग दूसरो न ठाकुर ठाँव ।—तुलसी (शब्दावली) ।
८. नाइयों की उपाधि । नापित ।
ये थे ठाकुर शब्द के अब तक के अर्थ ....
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The origin of the title is uncertain.
It has been suggested that it derives from the Byzantine imperial name Nikephoros, via Arabic Nikfor.
It is sometimes also said that it derives from the Armenian takavor, "king".
Tekfur was a title used in the late Seljuk and early Ottoman periods to refer to independent or semi-independent minor Christian rulers or local Byzantine governors in Asia Minor and Thrace.
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Origin and meaning of this word...
The origin of the title is uncertain.
It has been suggested that it derives from the Byzantine imperial name Nikephoros, via Arabic Nikfor.
It is sometimes also said that it derives from the Armenian takavor, "king".[1] 1] Savvides 2000, pp. 413–414. [
CITATIONClose
[2] Çolak 2014, p. 9.
The term and its variants (tekvur, tekur, tekir, etc.[2])
began to be used by historians writing in Persian or Turkish in the 13th century, to refer to "denote Byzantine lords or governors of towns and fortresses in Anatolia (Bithynia, Pontus) and Thrace.
It often denoted Byzantine frontier warfare leaders, commanders of akritai, but also Byzantine princes and emperors themselves", e.g. in the case of the Tekfur Sarayı , the Turkish name of the Palace of the Porphyrogenitus in Constantinople (mod. Istanbul).[1]
Thus Ibn Bibi refers to the Armenian kings of Cilicia as tekvur, while both he and the Dede Korkut epic refer to the rulers of the Empire of Trebizond as "tekvur of Djanit".
[1] In the early Ottoman period, the term was used for both the Byzantine governors of fortresses and towns, with whom the Turks fought during the Ottoman expansion in northwestern Anatolia and in Thrace,[1]
but also for the Byzantine emperors themselves, interchangeably with malik ("king")
and more rarely, fasiliyus (a rendering of the Byzantine title basileus).[3]
Hasan Çolak suggests that this use was at least in part a deliberate choice to reflect current political realities and Byzantium's decline, which between 1371–94 and again between 1424 and the Fall of Constantinople in 1453 made the rump Byzantine state a tributary vassal to the Ottomans.[4]
The 15th-century Ottoman historian Enveri somewhat uniquely uses the term tekfur also for the Frankish rulers of southern Greece and the Aegean islands.[5]
References ..
^ a b c d Savvides 2000, pp. 413–414.
^ a b Çolak 2014, p. 9.
^ Çolak 2014, pp. 13ff..
^ Çolak 2014, p. 19.
^ Çolak 2014, p. 14.
Çolak, Hasan (2014). "Tekfur, fasiliyus and kayser: Disdain, Negligence and Appropriation of Byzantine Imperial Titulature in the Ottoman World". In Hadjianastasis, Marios (ed.). Frontiers of the Ottoman Imagination: Studies in Honour of Rhoads Murphey. BRILL. pp. 5–28. ISBN 9789004280915.
Savvides, Alexios (2000). "Tekfur". The Encyclopedia of Islam, New Edition, Volume X: T–U. Leiden and New York: BRILL. pp. 413–414. ISBN 90-04-11211-1.
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