कृष्ण के चरित्र को दूषित करने के षड्यन्त्र रचने वाले अगर पूछा जाय तो कोई और नहीं थे !
देव संस्कृति के उपासक इन्द्र के आराधक वर्ण व्यवस्था वादी कर्म काण्ड को धर्म कहने वाले व्यभिचार मूलक नियोग को ईश्वरीय विधान बताने वाले इसी प्रकार के दूषित प्रवृत्ति के लोग थे ।
श्रीमदभगवद् गीता पञ्चम सदी में महाभारत के भीष्म पर्व में संपृक्त की गयी यद्यपि उसका संयोजन शान्ति पर्व में होना चाहिए था ।
और वर्ण व्यवस्था मूलक श्लोकों का समावेश भागवत धर्म की प्रतिनिधित्व करने वाले ग्रन्थ भागवत गीता में उन्हीं वर्ण व्यवस्था के अनुयायी पुरोहितों 'ने किया यद्यपि पुराणों में भी मिलाबट का क्रम जोड़- तोड़ चलता रहा
'परन्तु जब भागवत धर्म से परास्त होकर रूढ़िवादीयों'ने उसे आत्मसात किया बौद्धों और जैनों के विरोध में तो भागवतपुराण में दशम स्कन्द में षड्यन्त्र रूर्वक यादवों का इतिहास दूषित करने के लिए कृष्ण के रास लीला का अधिनायक बनाकर कृष्ण के चरित्र को वासना और काम की कींचड़ से सान दिया ।
और गोप और यादव और अहीरों को अलग दर्शान् के लिए अनेक काल्पनिक विरोधाभासी श्लोकों का समावेश कर दिया ।
'परन्तु नाम दिया भागवत पुराण यदि भागवत पुराण और भगवत् गीता का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो
दौनों' में पूर्ण रूप से विपरीतता पायी जा जाएगी ।
मोरारी बाबू जो राम की कथा कहते हैं वह केवल आयु वृद्ध
व्यक्ति कृष्ण के चरित्र को क्या जानते है ?
ये केवल आयु वृद्ध हैं ज्ञान वृद्ध नहीं ...
ये कितने विद्वान हैं इनकी वाणी के भाष्य से ज्ञात हो गया है
...
🔥
यादवों ! आप खुद को क्षत्रिय समझे या कृष्ण का वंशज या यह रटते रहें कि "यदोर्वंशः नरः श्रुत्वा,सर्व पापयै प्रमुच्यते"(यदुवंश का इतिहास सुनने स मनुष्ये सारे पापों का विनाश हो जाता है)
लेकिन आपकी मान्यता तुलसी दास के राम-चरित मानस के मुताबिक "आभीर,यवन,किरात,खल,स्वपचादि अति अध रूपजे"(अहीर....अत्यंत अधम/नीच है।),
व्यास स्मृति के मुताबिक "वर्द्धिको, नापितो, गोपः, आशापः,कुम्भकारकः,.....ऐते अंत्यणाः समारण्याता ए चान्ये च गवासनाः।
नाई ,कुम्भकारक गोप( यादव) ग्वाला,चमार,कुम्भकार,बनिया,चिड़ीमार,कायस्थ,माली,कुर्मी,भंगी, कोल और चांडाल,ये सभी अपवित्र हैं।
इनमें से एक पर भी दृष्टि पड़ जाय तो सूर्य दर्शन करने चाहिए तब द्विजाति का व्यक्ति पवित्र होता है।)
यादवो !आप चाहे जितनी तरक्की कर जांय पर जाति आपका पीछा नही छोड़ेगी तभी तो कथित त्रेता में राम ने समुद्र के यह कहने पर कि "हे राम! हमारे बगल में स्थित पवित्र राज्य द्रुमकुल्य निवासी पापी व नीच अहीरों के स्पर्श से हमे बड़ी पीड़ा होती है,आप अपने अमोघ व अशनि वाण को उन्ही पर छोड़ दीजिए",राम ने अपना वाण उन पर छोड़कर के अहिरो को मार डाला था।
(देखें- बाल्मीकि रामायण-युद्ध कांड के 22 वें अध्याय का राम-समुद्र संवाद देखें।)
यादवो ! आप चाहें कथित त्रेता के अहीर कृष्ण को भगवान कहें,वैज्ञानिक कहें,गणतंत्र के महान रचयिता कहें लेकिन देव संस्कृति के उपासक पुरोहितों के ऋग्वेद उन्हें असुर,दानव अदेव कहता है और उनका वध इंद्र के हाथों उनकी गर्भिणी पत्नियों सहित करवा देता है।(ऋग्वेद मण्डन-1के सूक्त 101का पहला मन्त्र,मण्डन-1,सूक्त-130 का आठवां मन्त्र,मण्डन -8,सूक्त-96 के मंत्र -13,14,15,17 को देखें।)
यादवों !कथित कलियुग में आप मुलायम,लालू,शरद,अखिलेश,तेजश्वी या और भी अन्यान्य क्षेत्रो के महारथी यादवो का नाम लेकर खुद को गौरवान्वित महसूस करते रहे पर पढ़ी-लिखी,शोधार्थी,वैज्ञानिक,आईएएस ब्राह्मण महिला डॉ मेधा विनायक खोले की नजर में आप नीच,शूद्र, अधम और तिरस्कार योग्य ही हैं।
दक्षिण भारत मे ब्राह्मणवाद के मजबूत किले के रूप में विद्यमान पुणे की मौसम वैज्ञानिक डॉ मेधा विनायक खोले को खाना बनाने हेतु ब्राह्मण महिला कुक चाहिए थी।
निर्मला नाम की एक विधवा ने इस वैज्ञानिक ब्राह्मणी के वहां खाना बनाने हेतु सारी तहकीकात के बाद नौकरी कर लिया।एक वर्ष बाद जब इस ब्राह्मण वैज्ञानिक को पता चला कि उसकी रसोइया निर्मला ब्राह्मण न होकर यादव है तो इस आधुनिक भारत के वैज्ञानिक मेधा की मेधा ने मनुवाद के समक्ष घुटने टेक दिया और इस वैज्ञानिक महिला ने उस विधवा निर्मला यादव के बिरुद्ध धार्मिक भावना भड़काने सहित 419,352,504 आईपीसी के तहत सिंहगढ़ रोड पुलिस स्टेशन पुणे में मुकदमा लिखवा दिया है।
मामला बड़ा पेचीदा है।देश का कानून अस्पृश्यता को अपराध मानता है लेकिन अहीर(यादव) अस्पृश्य नही है इसलिए अस्पृश्यता निवारण कानून अहीर से अस्पृश्यता करने पर प्रभावी नही होगा।
अहीर स्वयंभू क्षत्रिय है लेकिन कोई उसे क्षत्रिय मानता नही।बड़ी पेशोपेश में स्थिति है क्योंकि अहीर न शूद्र/अस्पृश्य है और न क्षत्रिय,अहीर खुद को चाहे जो समझे पर उसे इस आधुनिक और तरक्की कर रहे भारत मे डॉ मेधा विनायक खोले ने खोल करके रख दिया है और इसमें थाना ने विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर एक नए विमर्श का दरवाजा खोल दिया है।
निश्चित तौर पर हम सवाल कर सकते हैं कि इस आधुनिक भारत मे हम किस तरह का समाज बनाने जा रहे हैं?पढ़ने-लिखने के बावजूद हमारा दकियानूस स्वभाव क्यो हमे जातीय दम्भ से निकलने नही दे रहा है?इस वैज्ञानिक महिला को आप किस नजरिये से देखेंगे?
यादवों ! सुनिए,गुने,धुनिये और आगे का निष्कर्ष निकालते रहिए कि आप हैं क्या-85% वाले शोषित या 15% वाले शोषक?लड़ाई श्रमजीवी और परजीवी के बीच है पर यह परजीवी है बहुत चालाक जिसे हमारे विभाजन का लाभ मिल रहा है।
साभार ---