रात अभी बहुत कुछ बाकी है
रात होने को आई आधी है
लिखना बाकी अभी प्रभाती है
नक्षत्र "विशाखा" ऋतु- ''शरद" शुभकारी है
कल 'पंचमी', नक्षत्र अनुराधा, कन्या साथी है
स्वर्ण आभुषण प्रिये को देता पर प्लाटिनम-कार्ड खाली है
कवि उदास, कह लेता हूँ मृदु 'दो शब्द', कहना काफी है
डॉ. कवि कुमार निर्मल