☁️⛈️⛅🌥️ 🌈इंद्र सभा 🌈⛅⛈️☁️
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इंद्र सभा स्वर्ग की धारणा पर आधारित गल्प है।
स्वर्ग - नर्क की धारणा धर्मभीरुता- त्रुटिपूर्ण है।।
सुकृतों का पलड़ा जब भारी होता है।
कहते उस प्राणि को स्वर्ग मिलता है।।
कुकृत किये तो नर्क का भागी बनता है।
प्रश्न गूढ़! हर मानव दोनों कर्म करता है।।
"तारक ब्रह्म" भी अपराध कर सकता है।
दानव को अभयदान तक कृपालु देता है।।
भक्त उसको सहज "महालीला" कहता है।
दानव भी शिवभक्त बन अमर बनता है।
दयावान वह भी बन दानवीर बनता है।।
विदेही आत्मा मनोनुकूल तन धारण करती है।
कर्म गणना से तन पा जीवन यापन करती है।।
प्रश्न बड़ा है- पहले मरणोपरांत कहाँ जाता है?
पहले स्वर्ग वा फिर नर्क में प्रवेश पाता है!!!!
नहीं--वह मन की एषणा की गति हीं पाता है।
भयाक्रांत बादल-तणित-वर्षा से मानव
इंन्द्र को भगवात् बना- पूजन करता है
उसके दुष्कर्म की भर्तसना भी करता है
इन्द्र नहीं कोई रोमकूपहीन तनधारी सत्ता
पौराणिक कथाओं में भ्रामक वर्णन होता
स्वर्ग नहीं सत्य, सभा का उठता प्रश्न नहीं है
"इन्द्र सभा" की पुरातन धारणा सही नहीं है।
कर्मभोग होता इसी धरा पर संपुर्ण- सही है।।
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🙏🙏🙏डॉ. कवि कुमार निर्मल🙏🙏🙏