💐💐 "एतवार पर एतबार" 💐💐
समेट पलकों को रखूँ कहाँ?
पलकों को कैद तुमने जो कर रखा है।
खुला है सदा- दरवाज़ा दिल का,
दिल में एक कोना महफूज़ तेरा रखा है।।
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काश हमें बाजू से--
हर गुज़रने वालों की--
अनसुनी धड़कनों का--
जरा भी अहसास होता।
दुजों के लबों पे--
आए मुस्कान बस--
ये हमारा मुक़ाम होता॥
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"एतवार" का है आज दिन।
कैसे रहूँ ? बता - तुम बिन।।
रहा हूँ काट लम्हें, ये दिन बीत जाए।
बीत जाए खोटी रात, भोर हो जाए।।
बंद पिंजड़े का पँक्षि उड़ न जाए।
प्यार के करीब जा गीत गुनगुनाए।।
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नाहक गलतफ़हमी पाल रखी है ये जिंदगी।
नेह में भर जाए बस "नेकी" खातीर बंदगी।।
प्यार को बना दिया बंदों ने महज़ दिलग्गी।
मज़ार में नफ़रत धुस करने चली खुदखुशी।।
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न जाने क्यूँ, मुहब्बत को हादसों से अक्सर जोड़ते हैं?
अश्कों की जुवॉ में, एकहीं सुर में सब क्यूँ बोलते हैं??
मुक़ाम सामने हो, राह छोड़ वियावान में सर फोड़ते हैं!
बागवान समझते खुद कोे, चिलमन की ओर धूरते हैं!!
अफ़रात हुश्न है पास मगर, फकीरी का चोला पहने डोलते हैं!
इश्क का तजुर्बा लिए, श्याही भरी दवात में कलम बोरते हैं!!
आशिक़ आजके जालिम, अफ़साने में बस दर्द हीं धोलते हैं!!!
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माना कई राह से भटक, अँधेरों में अटक गुम होते हैं।
माना 'बेवफ़ा' बन कई मुहब्बत की किताब बेचते हैं।।
हुश्न में छुपी हुई ज़न्नत को महज़ सामान लोग समझते हैं।
सिद्दतों का असर, इल्तिज़ाओं का इनाम नहीं समझते हैं।।
"मर मिट जाएँगे" कहते मगर, बाजू से चपचाप गुजर जाते हैं।
एक दुजे में मालिक का अक्स न देख, तलाक़ कबूल करते हैं।।
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आधी रात हुई पार, सबेरा भी आएगा!
चकोर उड़ान भर, छत पर उतर आगोश में में पायेगा!!
💐💐💐💐💐डॉ• के• के• निर्मल💐💐💐💐💐