★☆★☆कविता लॉक डाउन☆★☆★
नित दिन तन्द्रा है "लॉक डाउन" अति भारी
उठ कर हटात् एक कविता लिखने की पारी
आज बैठेगा न कोई मुखिया न है कोई पटवारी
शांति छाई चहुँदिसी न गहमा-गहमी, मारा-मारी
ड्युटी अॉन-लाइन हीं है करनी, आजादी है
देर सबेरे तक सबको जी भर आज सोना है
आज न खोना कुछ, सिर्फ- पाना हीं पाना है
प्यार-मुहब्बत का जीवन एक साथ खाना है
तनाव - मुक्त जीवन, होना सबका उद्धार है
स्वरुचि मेनू से और्डर कर, घर पर खाना है
दोस्तों से गप्प- शप्प- औन लाइन हीं सब होगा
द्वेष-प्रतिस्पर्धा-ध्रिणा-क्रोध त्याग करना होगा
"सौहार्दपूर्ण वातावरण" सृष्ट राष्ट्र में करना है
लॉकडाउन में हर दिन सम शुभकारी होता है
कोई नहीं चिल्ल-पों, नहीं आज कोई रगड़ा है
सुखी बही जिसका बैंक बैलैंस कुछ तगड़ा है
स्नान -ध्यान कर खा कर- डाभ-काढ़ा पीओ
कोरोना बिकराल- घर में सुरक्षित जीवन जीओ
फना-फैन झाड़ो पर घर में रह मटरगस्ती करलो
अपनों से गुफ़्तगू-चुहल-प्रेम भरपूर आज करलो
आनंद समाविष्ट- यथासंभव सुकृत करना होगा
लॉक-डाउन फाइनल हो तो धूमने चलना होगा
दायित्वों को भरसक हमको आज निभाना होगा
नेता के चक्कर में पड़ बाहर कहीं जाना न होगा
अगला चुनाव ''औन लाइन'' सुनिश्चित है करना
उस दिन "डाटा फ्री" सभी मोबाइलों में है करना
कानून रेत से छान सुरक्षित हमें कर के है रखना
जीवन की गाड़ी अगले मुकाम तक है ले जाना
सात्विकता ला विश्व में- कोरोना है हमें भगाना
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🛠️🛡️🛡️ डॉ. कवि कुमार निर्मल 🛡️🛡️⚒️