🌹🌹🌹🌺मध्य रात्रि 🌺🌹🌹🌹
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प्रचण्ड एषणा हृदय में, मन मैंने बनाया है।
एक विराट शुभ विचार मन में समाहृत है।।
भव्य स्वर्णिम मण्डप स्वप्न में
हटात् आ दिखता है।
विशाल स्तंभ केन्द्र में-
बहुआयामिय आलोकित है।।
भिन्न-भिन्न अद्भुत आकृतियाँ यत्र-
तत्र दृष्टिगोचर हैं।।
सदाशिव महादेव-त्रिनेत्रधारी
ताण्डव नर्तन की मुद्रा में लीन हैं।
कृष्ण विराट विश्वरूप स्वेत स्तंभ पर
जीवंत भ्रमित करता हैं।।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का
"चित्रण" पाषाण टंकन संपूर्ण हैं।
दिव्यालोकित बुद्ध भगवान् ध्यान में
वृक्ष तले आसन पर लीन हैं।।
सूली पर टंगे 'ईसा' छवि दारुण,
वे अतिव्यथीत-अश्रुपूरित हैं।
कुछ हर्फ़ अपठनीय अरब-फारसी के
स्वर्णित पट्टिका पर उद्धृत हैं।।
संभवत: एक ओर पाषाण शिला पर
समुन्द्र मंथन का अद्भुत दृष्य गोचर है।
अनगित त्रिवेणियों का यह अंत कहाँ ?
न कोई ओर-छोर है।।
असंख्य मानव झूम रहे आवर्त
चक्रधूरि पर- आत्म विभोर दिखते हैं।
"वसुधैव कुटुम्बकम्" की चर्चा चहुदिशी, साधुगण सत्संग में तल्लीन हैं।।
साकार ब्रह्म निराकार स्वरूप-
''ॐकार'' ध्वनी गुंजायमान् है।
अनहद् नाद से समस्त मण्डप
प्रकंपायमान- मन हुआ विभोर है।।
सभी प्रफुल्लित-आह्लादित
"ब्रह्म भाव" से पूरित हैं।
वर्ण-भेद-भावमुक्त हो हर मानव
देवसम लगता है।।
सौहार्द्यपुर्ण निर्मल वातावरण
देदिप्तमान- ऋणभावमुक्त है।
श्नेहासिक्त सभी भक्त सामिप्य-
सानिध्य भाव से आप्लावित हैं।।
महाविश्व का शुभ ध्वज गुम्बज
शिखर पर लहराता दृष्टिगोचर है।
हर मानव धनाढ्य-प्रशन्नचित्त-
सौम्य आह्लादित सा दिखता है।।
नभ मण्डल से देव-ऋषि-गण का
पुष्प वर्षण, मानव हर्षित हैं।
मानो "बैकुण्ठ" धराधाम पर उतरा-
अमृत-कलश लाया है।।
सोमरस सम जल "गंगोत्री" पर
'त्रिदेव' का ध्वज लहराया है।।।
🙏🙏 डा. कवि कुमार निर्मल🙏🙏