🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳जय हिन्द🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
🌏 🌎 🌍 ।।धरा विचलित है।। 🌎 🌏 🌏
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धरती माता की पीड़ा- अकथनीय- अतिरेक
आर्यावर्त भू - खण्ड संकुचन! भारतीय चेत
पच्चहत्तरवें वर्ष में प्रवेश, विश्व-गुरु बन देख
वंदे मातरम् अंगिभूत कर दासता भाव फेंक
दिवनिशि धरती माँ रे! अश्रुपूरित- व्यथित है।
मानव मन क्लांत, म्लान- अतिशय छुब्द है।।
मन भयाक्रांत- कोरोना फण ताने- फुफकार रहा है।
दंश पीड़ा असह्य- "तमसा्" से मन-तन बिषाक्त है।।
"नूतन पृथ्वी" की एषणा प्रचण्ड, आशान्वित हम है।
शंख-प्रत्यंचा सुषुप्त- वीर मौन- रणभूमि रिक्त है!
तरुण-युवागण- प्रौढ़- वृद्व स्वप्नलोक में व्यस्त हैं!!
कलियुग यह चहुँदिसी, प्रगाढ़ निंद्रा में सभी लिप्त है।
चरैवेति!चरैवेति!! शंखनाद् हो- पार्थ-सारथी संग है।।
हर नारी में दुर्गा अवसान, मौन- शोणित पर विनम्र है।
कौन (?) वीर करेगा आकर धर्मरक्षा की भरपाई,
जन-साधारण दग्ध, त्रस्त- हुआ निस्क्रिय है।।
अवतरण अवश्यंभावी पुनः शिव-कृष्ण का
आहत् सति आत्मदाह को आज प्रस्तुत है।
ध्रिणा-द्वेष-प्रतिशोध-लोभ-काम-अनुरक्ति की,
ज्वाला अतिउग्र, भावी महाविनाश प्रचण्ड है।।
आर्तनाद् गुँजायमान- धराधाम पर व्याप्त तमसा है।
धरा-जल-नभ प्राणवायु हीन (!) तम् परिलक्षित है।।
पथ अतिदुस्तर - कंटकाजीर्ण भयावह- विकट है।
थम जायेगी लखयुगों से चलायमान् धरा धुरी पर,
रवि रथ-चक्र ओजहीन तमस से व्यथित- बाधित है।।
मौन व्योम सौर्य मण्डल-नक्षत्र-सप्त ऋषि तारिकायें,
शुभ लक्षण ब्राह्म मूहर्त का अरुणिमा हुई प्रकट है।।
शंखनाद् गुँजायमान, मत कह बँधु! धरा विचलित है।
नभ्य मानवतावादी सैन्यदल कुरुक्षेत्र में आहुत है।।
💥💥💥 💥 डॉ. कवि कुमार निर्मल 💥 💥💥💥