धनवंतरी आयुर्वेदाचार्य
मृत्युंजीवि औषधि आजीवन बाँटे।
आज हम भौतिकता मे लिपट
24 कैरेट का खालिस सोना चाटें।।
मृत्युदेव तन की हर कोषिका-
उतक में शांत छुपा सोया है।
मन जीर्ण तन से ऊब कर देखो
नूतन भ्रूण खोज रहा है।।
लक्ष्मी अँधेरी रात्रि देख आ
दीपकों की माला सजवाती है।
गरीब के झोपड़ में चुल्हे में
लकड़ी भी नहीं जल पाती है।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल