आरोहण- अवरोहण अति दूभर,
जल-थल-नभ है ओत-प्रोत,
समय की यह विहंगम,
दहकती ज्वाला है
अंध- कूप से
खींच
निकालो
हे प्रभु शीध्र,
अकिंचन मित्र आया है!
कृष्ण! तेरा बालसखा आया है
धटा-टोप अंधेरा, सन्नाटा छाया है
अन्धकार चहुदिस, मन में तम् छाया है
गोधुली बेला की रुन- झुन रुन- झुन,
मनोहर रंगोली, दीपों की माला है
दीर्ध रात्रि का यह मास विकट,
बहुत देर बाद सबेरा आना है
स्वप्नों का यह जादुई जग,
भूत-पिशाचों का डेरा है
वरण हमको तुझे है करना,
सामिप्य की प्रबल एषणा है
अहेतुकी कृपा करो हे मेरे कृष्ण
वृद्ध सुदामा तेरे द्वार आया है
चका-चौंध से,
नगर-मार्ग चक्रव्यू सम,
प्रतिबंधित मार्ग- प्रहरी आया है
अनुशासन का टंगा वृहत पटल
अवरोध- व्यवधान हर ओर लगाया है
अन्तः प्रकोष्ठ से तुम बाहर आओ
दीन-हीन नगरिया में तेरा,
तेरा एक प्रिय सखा आया है
अश्रुपूरित नयन, फटी-मैली चादर
धूल लगी थकित काया है
विचित्र दृष्टि सबकी मुझपर,
द्रवित हुई मेरी निर्झर काया है
आशा-नैराश्य के मध्य,
झूल रहा मन, विह्वल है
बाल्यकाल का वह मनोहर,
मेरा कान्हा छुपे हुए कहाँ है
मोह- माया संसार की तोड़ा,
सत् ने मुझे तुम तक पहुचाया है
विलम्ब न करो और प्रभु,
व्यथा की भीषण छाया है
तुम्हारे एक सुखद स्पर्श की,
प्रचण्ड एषणा,
मिलन का मन बनाया है
चमत्कार की नहीं चाह
सदेह देखने की
विनती दुहराया है
डा. कवि कुमार निर्मल
विनती दुहराया है
डा. कवि कुमार निर्मल