बीत गये दिन शांति पाठ के,
तुमुल युद्ध के बज उठे नगाड़े।
विश्व प्रेम से ओत - प्रोत आज
पश्चिम उत्तर से वीर दहाड़े।।
विश्व बंधुत्व महालक्ष्य हमारा,
नहीं बचे एक भी सर्वहारा।
जातिवादिता और आरक्षण हटाओ।
यह चक्रव्यूह तोड़ मानवता लाओ।।
हर घर तक अन्न पहुचाँ कर हीं,
हे मानववादियों! अन्न खाओ।।
शांति तो श्मशान में हीं होती है।
अशांत मन हीं निस्तारण खोज,
विश्व सरकार की शुभकामना करती है।
क्रांति दूतों, हुंकृति भर मशाल जलाओ।।
मयपन से विलग ब्रहत्व मानव पा जाओ।
घर - घर में मिल जुल क्रांति दीप जलाओ।।
ऋणबोधभावों का समन कर पूर्ण हो जाओ।
ऊँ शांति का प्रथम ऊँ गह अग्नि वाण चलाओ।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल