राजनीतिक आजादी का कोई मोल है।
आर्थिक आजादी अब तक रे गोल है।।
खाली खजाना भर चलवाया जिनने,
उनकी हीं होती सुहावनी हर भोर है।
फूटपाथ से चुन खाये- जिनने तिनके,
उनकी चौलों की छतों में कई होल हैं।।
'आइ. पी. सी.' रट उतार लिया बचके,
"अथर्व वेद" की ऋचाएँ सारी गोल हैं।
अमीरों की उठ रही नित अट्टालिकायें,
साधु चले सारे गंगा सागर की ओर हैं।।
सत्तर साल की आजादी जनता देखी,
गरिबों को न दिख पाया ओर - छोर है।
राजनीतिक आजादी का कोई मोल है।
आर्थिक आजादी अब तक रे गोल है।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल