★☆तुम मिलना मुझे☆★
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आँखों में जब भी डूबना चाहा
झट पलकें झुका ली आपने
छूना लबों को जब भी चाहा
हाथ आगे कर दिया आपने
सरगोशी कर रुझाना चाहा
अनसुना कर दिया आपने
गुफ़्तगू की ख़्वाहिश जगी पुरजोर
तन्हा छोड़ मूझे खिसक लिए
ख़्वाबों में मिलना चाहा
नींद चुरा अँधेरे में गुम हुए
इस कदर साया छुपा हटाया
जिंदगी से मुकम्मल हम हार गए
चाहतों का आशियाना बनाया
उजाड़ उसे, अलविदा कह गुम हुए
सबक दिया--मुहब्बत करना छोड़ दो
किताबों से इश्क का नाम हीं हटा दो
हुस्न का दरिया अचानक यूँ न सूखाओ
अब तुम और हिया मेरा मत जलाओ
समन्दर सामने है, नदी बन मिल जाओ
तुम मिलना मुझे, खोया अहबाब पा जाओ
डॉ. कवि कुमार निर्मल