आज का हाल
आमरण हड़ताल, मांगों की बौछार
निर्जला व्रतों का गगनचुंबी पहाड़
वृद्धों का अनादर एवम् तिरस्कार
उदारता से नहीं है तनिक सरोकार
बंद कमरे से चलती रही आज की सरकार
ईर्श्या-द्वेष-ध्रिणा मात्र- नहीं तनिक रे प्यार
रिस्तों का झूठला कर, गैरों से पनपा प्यार
परिवार यत्र-तत्र टूट बिखर रहे हैं
ममतामयी माँ के कण्ठ रूँध रहे हैं
वृद्धाश्रम नित नूतन चमक रहे हैं
विपण माँ-बाप मृत्यु खोज रहे हैं
चंदन लेप ललाट पर और माला का व्यापार
"राधाभाव" के बन सकते हैं ये नहीं आधार
"त्रिकुटी" पर है तीर्थ, भ्रांत भक्त भटक रहे हैं
होली खेले भरपूर पर रोली-मौली भूल रहे हैं
कवि-मन भावुक, दोष बिधना पर थोप रहे हैं