अवतार
अवतार यहीं है।
अवतार यहीं है।।
मन की परतों को खोल,
छुप बैठा वहीं कहीं है।
एषणा बुरी नहीं है।
बुरी नहीं है।।
अनाधिकृत घन
संचय है अपराध,
विवेकपूर्ण वितरण
सही है।
सत्य जहाँ अढिग है,
धर्म वहीं है।।
साधना सेवा त्याग का
सुपथ सही है।।
अवतार यहीं है।
अवतार यहीं है।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल