भ्रुण और नवजात शिशु को
हँसना किसने सिखलाया।
चोट, पीड़ा नहीं पर स्वत:
रोना उसको सिखलाया।।
हाथ पकड़ कर पशु को
किसी ने नहीं चलना सिखलाया।
अन्न नहीं था जब धरा पर,
वनस्पतियों से काम चलाया।।
पापाचार गह, सदाचार से
मुँह मोड़ हे मानव अधोगति पाया!
हृदयांचल में बैठा प्रभु,
उनकी सुन नहीं पाया!!
डॉ. कवि कुमार निर्मल