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शरहद की ओर तकने वालों के
संग 'खून की होली' वीर खेलते।
शरहद की ओर तकते वालों के
संग खून की होली बाँकुणे खेलते।।
कौन धृष्ट कहता "एल. ओ. सी."
की तरफ न भारतीयों तुम देखो!
शरहद पार कर हमने खदेड़ा
पुलवामा को जा जरा देखो!!
'सोने की चिड़िया' को अरे
बहुतो ने सदियों था नोचा।
संभल गये अब हम- बहुत,
इस पार आने की न सोंचो।।
पसीना बहा बहुत हमने
अपने वतन को सींचा है।
सूखी रोटी मिलती दो जून,
न कहना स्वाद फिका हैं।।
बुलंद हमारा भारत है अब
फिर आर्यावर्त बन सँवरेगा।
हर घर में लक्ष्मी कुबेर को
आह्लादित उदार देखेगा।।
ऋषियों को सत् - सत् नमन् हमारा
आज भी 'पितृ यज्ञ' है हमने किया।
आशिर्वाद है संग उन "पुरखों" का
भरपूर हमने झोऐ भर भर लिया।।
रणबांकुणे हमारे युद्धभूमि में
मर कर भी अमरत्व हैं पाते।
शरहद की ओर तकने वालों के
संग 'खून की होली' वीर खेलते।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल ©®
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