सामयिक साहित्य____🖊
महामारी / पैंडेमिक से बचने के लिये हमारे शास्त्रों में कतिपय (करणीय) निर्देशन उपलब्ध हैं:---
मेरे सद् गुरु नियम दिए "सोड्ष विधि", जिसके अंतरगत् 'व्यापक सौच'★ और 'सौच मंजुषा'★★सर्वोपरी हैं।
【1】
लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च।
लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत्।।
धर्मसिन्धू ३पू. आह्निक
लवण, धृत्, तैल, अन्नादि खाद्य हेतु परोसने के लिए हाथों का प्रयोग वर्जित है, चम्मच वा कलछुल का व्यवहार करें।
【2】
अनातुरः स्वानि खानि न स्पृशेदनिमित्ततः।।
मनुस्मृति ४/१४४
अनावश्यक अपनी इंद्रियों का स्पर्श न करें।
【3】
अपमृज्यान्न च स्न्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभिः।।
मार्कण्डेय पुराण ३४/५२
पहने वस्र सें स्नानोपरांत देह पोंछ कर न सुखाएं, स्वतः सूखने दें। हाथ धो कर भी यही करना है, अलग रखें जब तक लगा जल हवा से स्वतः सूख न जाए।
【4】
हस्तपादे मुखे चैव पञ्चाद्रे भोजनं चरेत्।।
पद्म०सृष्टि.५१/८८
नाप्रक्षालितपाणिपादो भुञ्जीत।।
सुश्रुतसंहिता चिकित्सा २४/९८
भोजन के पूर्व व्यापक सौच अपरिहार्य है।
【5】
स्न्नानाचारविहीनस्य सर्वाः स्युः निष्फलाः क्रियाः।।
वाघलस्मृति ६९
बगैर स्नान और शुद्धि किए कर्म निष्फल हो जाते हैं।
【6】
न धारयेत् परस्यैवं स्न्नानवस्त्रं कदाचन।।
पद्म० सृष्टि.५१/८६
अन्य द्वारा व्यवहृत रुमाल, गमछा, तौलिया या वस्त्र स्नानोपरांत भींगे देह को सुखाने के लिए वर्जित है।
(कंधी, स्लीपर आदि भी अपना हो)
【7】
अन्यदेव भवद्वासः शयनीये नरोत्तम।
अन्यद् रथ्यासु देवानाम् अर्चायाम् अन्यदेव हि।।
महाभारत अनु १०४/८६
बिछा्वन पर बिछाने या ओढ़ने, यात्रा में, पूजा, पठन-पाठन व कार्यालय आदि में अपने अलग वस्त्र हीं व्यवहार में लावें।
【8】
तथा न अन्यधृतं (वस्त्रं) धार्यम्।।
महाभारत अनु १०४/८६
दुसरे के पहने वस्त्र न पहनें और फिटिंग के लिये मॉल में पैक बस्रादि हीं चेक कर खरीदें, खुले वस्त्र बदन पर लगा कर न देखें साइज परिक्षण हेतु। नए वस्त्र धो कर हीं व्यवहार में लाएं, कोरा कभी नहीं।
【9】
न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयाद्।।
विष्णुस्मृति ६४
एक बार पहने वस्त्र दुबारा न पहनें।
【10】
न आद्रं परिदधीत।।
गोभिसगृह्यसूत्र ३/५/२४
भींगे वस्त्र न पहनें या ओढें।
【11】
चिताधूमसेवने सर्वे वर्णाः स्न्नानम् आचरेयुः।
वमने श्मश्रुकर्मणि कृते च।।
विष्णुस्मृति २२
श्मशान से लौट कर स्नान कर हीं घर में प्रवेश करें या कुछ छुएं। हजामत (नाई या पार्लर) के बाद स्नान करें यथाशिध्र।
यह आदिकाल से गुरुकुल में सिखाया जाता है। ज्ञातव्य हो कि उस युग में माइक्रोस्कोप नहीं थे।
आज जब कोरोना ताण्डव से हाहाकार मचा तो वैज्ञानिक उपरोक्त वैदिक नियमों को मान कर चलने का (सामयिक वाध्यता) सुझाव दे रहे हैं।
अपने बच्चों और वृद्धजनों (बुजुर्गों ) का विषेश ख्याल रखें।
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★स्वच्छ जल से (आर्म पिट तक) हाथ, गर्दन और सर तथा पैर ऊपर तक धोना।
★★मुत्र त्याग के समय साथ स्वच्छ जल रखें और शेषांश के पूर्व जल धार शिश्न मुण्ड♂ / वाह्य प्रजनांग♀) पर अच्छी तरह से डाले। हाईजिन के अलावा ऐसा करने से मूत्राशय में अवशेष लगभग शुन्य मुत्र रह जाता है और यह इंफेक्शन (यथेष्ट उत्सर्जन) वा पथरी (संकुचन व ट्रांजिएंट शैथिल्यताजनीत क्रायो-विखंडन) का इलाज भी है।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
एम. बी. बी. एस. (1978)