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मन बनाया है आज,
तुम्हें जैसे भी हो, मना लूँ।
दीपवाली के नावें,
सारी रात रौशन कर निकाल दूँ!
सुबह की खुमारी पुरजोर,
गुस्ताखी कोई है मुमक़िऩ
चुप रहना जरा आज भर,
ग़ुजारिस है- तोहफ़ों को बाँट दूँ!!
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नज़रों का दोष कहें कि मुकद्दर का सौदागर।
हर नज़्म लग रहीं है उनको, उम्दा बहर।।
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कफ़न दफ़न के पहले हीं गुम हुआ,
पुलिस को रपट झटपट कर दिया।
दिल का चमन बिखरता दिख रहा,
चुपचाप कहर पी कर ठहर गया।।
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🌺 डॉ. कवि कुमार निर्मल 🌺