ज़िंदगी के मोड़
उचंट खाता बन खोला है सदा
लकीरें उकेरने का सीख रहा हूँ कायदा
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अश्कों के संग
दर्दे दिल बह जाएगा!
सुकून फिर भी क्या?
कभी मिल पाएगा!!
मरहम छुपा उलझा रखा है-
गेसुओं में अपने,
आहें नज़र-अंदाज़ करने की
आदत बना डाली है!
इनकार बनाया जिन्दगी का
'आईन'- सवाली है!!
प्यार का दस्तूर बेहिसाब,
साथ न कभी निभाया है!!!
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इश्क वख्त का पाबन्द नहीं
खुद-ब-खुद प्यार हो जाता है।
यराना की कोई शर्त होती नहीं
सोहबत न हो- इश्क हो जाता है।।
मुमक़िन है, कई इंतिहां आ गुजरें
किश्ती मझधार में डगमगाती है।
दलदलों का सफ़र, पार कर किश्ती
साहिल से जा टकराती है।।
प्यार जलाता मगर खुद राख न होता है
सोने पर सुहागा तप के निखर पाता है
राहों का प्यार अनुम दफ़न हो जाता है
कभी दिल बाग़-बाग,
हुस्न चमक जाता है।
शीशे की बनी माला का
अंजाम यही होता है।
पत्थर भी सोहबत से
घीस चमक जाता है।।।
जिस्मानी तिश्नगी बुझाये
कभी बुझती नहीं
ख़्वाबों की दुनिया में खो
बिखर जाती है।
हकीक़त का सबब,
वो प्यार हो सही--
जन्नत का नज़ारा-ओ-सुक़ून
यहीं पाता है।।
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ज़ख्म गहरे थे बहुत- रीस गया नासूर,
वख़्त की मार से और गहरा जाता है!
मरहम मिले कारगर गरचे खोजे,
लाइलाज़ नासूर रिसता रहता है।
ज़िन्दगी अज़ीबो-ग़रीब है-
जरा रफ़्तार- लड़खड़ा गई!
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देख कर
ज़िंदगी बरबाद हुई!!
साहिल न मिलने का गम,
मिल गई एक-मुश्त सज़ा!
ज़िल्लत-ओ'-बंदिशों की आह,
अभी देख- सिमट पाई न थी!!
शिकस्त के गहरे साद से,
बेघर एक बागवान बन,
प्यार कर के बियावान
बनी ये ज़िंदगी!!
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🌹🌳🌳 मेरा मन 🌳🌳🌹
रूह तो तन को सहलाती है सदा
पीड़ा है मन का फ़ितूर, रुलाती है सदा
रूह खुदा का बेहतरीन आइना है
दिलो-दीमाग का फ़ितूर- एक कील्ह है
कील काँटे से दुरुस्त रखना
खुद की ज़िंदगी को सदा
रूह को खुदा से जोड़के
अलविदा तक रखना सदा
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राहों में टकराये थे बार-बार
फिसल जाती थे बार-बार
देखा था जब तुम्हें चौबारे में
गलियों में, नदी के किनारों में
काश नज़रें कुछ पल ठहर जातीं
दिल की सुराख़ों में सिमट जातीं!
🍁 डॉ• कवि कुमार निर्मल 🍁