💕💕 *इश्क* 💕💕
इश्क कोई अज़ूबा 'रिश्ता' नहीं
इश्क कोई गहरी साज़िश नहीं
इश्क कोई बेहिसाब सज़ा नहीं
इश्क क़ुदरत का एक फ़रमान है
क़ायानात से उतरा हुआ,
आशिकों की आन जान है
इश्क क़ायदा है हुश्न फ़रमाने का
इश्क उल्फ़त का आइना है
इश्क "चाहत" है
इश्क नेह की डगर है
इश्क "ज़न्नत" का पैगाम है
इश्क हदों के पार दोस्तना है
इश्क की हवा के इर्द-गिर्द
चलती ज़र्रे-ज़र्रे की जान है
इश्क पैदाइशी नायाब हुनर है
इश्क बचपन की ऊछल-कूद है
इश्क जवानी का जोश, ताक़त है
इश्क बुडापे का सहारा- लाठी है
इश्क जनाज़े की मिट्टी है
इश्क मज़ार की चादर है
इश्क इंसान इन्सान है करता
इश्क परिंदों से भी है बनता
बादल इश्क कर बरस सराबोर कर जाते हैं
बिजली इश्क के खातीर- कड़क चौंकाती है
इश्क की बदौलत, आफ़ताब चाँद को चमकता है
इश्क ज्वार बन चाँद के बोसे खातिर तड़प जाता है
इश्क के आइन हीं बर्फ पिघल समंदर में मिल जाती है
इश्क चुम्बुक की तरह खिंचा दिल तक- उतर जाता है
इश्क का बुलंद हौसला इन्सान को फ़रिश्ता बना देता है
बिन इश्क आदमी बन जाता हैवान है
इश्क की सजा कज़ा बन- तपाती है
इश्क की तपिश 'महक' बन
मजबूत ज़ंजीर बन जाती है
इश्क के बिना दिल रहता सूना-सूना
इश्क बगैर वतन भी दोज़ख है बन जाता
इश्क ज़िंदगी का है इक नुरानी फ़लसफ़ा
इश्क है ख़ुदा का बेहतरीन तोहफ़ा, कमाल है
इश्क से महरुम रहता जो भी इंसान
पाता नहीं वो बदनसीब हीरे की खान
जुदाई से इश्क की अहमियत समझ आती है
सोहबत में इश्क बागवान बन निखर जाता है
इश्क बिन, आदमी बहशी-दरिंदा बन जाता है
इश्क की राह, लबों से दिल में- उतर जाती है
इश्क "सोहबत" पा- 'जिंदगी' निखर जाता है
इश्क का वज़ूद है इश्क में छिपा हुआ
इश्क आशिक़ की- जान ओ' शान है
इश्क मैं कहता हूँ खुदा- "भगवान" है
डॉ. कवि कुमार निर्मल