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प्रकृति पुरुष से है या फिर नारी से है!
पिधला हिमखंड हीं बन जाता 'वारी' है!!
पुरुष तैलिय दाहक तरल, नारी दाह्य कोमल बाती है!
शक्ति संपात कर ज्योत प्रज्वलित वह करती है!!
"अर्धनारीश्वर" की यही अमर गाथ, कहानी है!
ऋषियों-देवों की यही सास्वत अमृत वाणी है!!
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डॉ. कवि कुमार निर्मल