वसंत ऋतु और प्रथम कोपल
नैसर्गिक बीज एक नील गगन से-
पहला जब वसुन्धरा पर टपका
माटी की नमी से सिंचित हो वह-
ध्रुतगति से निकसा- चमका
प्रकाश की सुक्ष्म उर्जा- उष्णता
माटी से मिला पोषण संचित कर-
प्रथम अंकुरण बड़भागी वह पाया
अहोभाग्य, पहली कोपल फुटी!
लगा खोजने पादप नियंत्रक को--
पर वह नहीं कहीं मिल रे पाया--
हर पल महसूस किया सन्निकट,
भगवान् शब्द उचर कर उसको-
अपना परम अराध्य उसे बनाया
मानव अवतरित हो उसे-
हरि प्रसाद समझ कर खाया
पर अराध्य को पत्थर में--
जीवंत कर बैठा कर आह!
जल-पुष्प-अक्षत-तांबूल से
नित दिन पूजन में उसे चड़ाया
अंत काल में हरिनाम वह बिसराया
हर वर्ष वसंत ऐसे हीं आ भरमाया
डॉ. कवि कुमार निर्मल