भैलेंटाइन परचम्
पता नहीं था, आज भैलेंटाइन डे चल कर है आता
दिन में याद दिलाते गर तो गिफ्ट-विफ्ट ले आता
साथ बैठ मोटेल में मटर-पनीर-पुलाव खाता
उपर से मिष्टी आदतन रस-मलाई चार गटक जाता
चल- रात हुई बहुत अब और जगा नहीं जाता
भैलेंटाइन की बची-खुची कसर की पूरी कर पाता
डॉ. कवि कुमार निर्मल