सपने
सुहावने सपनों के बाद सुहानी भोर आएगी
फिर वहीं शाम आ कर सपने नए सजाएगी
कौन जानता है (?) कल दस्तख़ दे उठाएगी
दिन में शौहरत पाँव चूम कर गले लगाएगी
कर दिया है जब खुद को- हवाले मालिक को
बिधना अपनी जादुगरी क्याकर (?)दिखाएगी
डॉ. कवि कुमार निर्मल