मज़हबी रफ़्तार जरा थम जाए
हर आदमी घर में- सिमट जाए
फिक्र हो गर 'अहले वतन' की
तो हर किरदार बन सँवर जाए
कवि कुमार निर्मल
हर आदमी घर में- सिमट जाए
फिक्र हो गर 'अहले वतन' की
तो हर किरदार बन सँवर जाए
कवि कुमार निर्मल