युद्ध देव दानव का युगों से चलता आया है
"कुरुक्षेत्र" बार - बार रक्तिम होता आया है
संधर्ष यह "मन" का है, ग्रंथों में बाँचा जाता है
मृत्यु काल में मन में वही भाव समक्ष आता है
मन खोज अनुकूल देह भ्रूण में समा जाता है
संस्कार क्षय कर पूर्ण- दिव्यात्मा कहलाता है
नाशवान इह जगत् से मुक्त हो 'मोक्ष' पाता है
राम रावण युद्ध विधना का रहस्य कहलाता है
डॉ. कवि कुमार निर्मल