कोरोना में रक्षाबंधन का स्वरूप
कोरोनाकाल में रक्षाबंधन का स्वरूप-
चिपका होठों से हलाहल का प्याला है
लुप्त हो रहा आतंकि कोरोना समित हो,
पर जाते जाते स्वरूप बदल डाला है
एकलौता भाई- अटका उदास सात समुन्दर पार-
आंसुओं में सारा जग डूबा है
रक्षाबंधन आ हर्षाया हर बार--
भाई-बहन का मिलन होता सबसे प्यारा है
जय हो! जय हो!! भाई-बहन का प्यार अमर हो!!!
सदियों ने यही दुहराया है
बहन सतायु की मनसा रखती,
भाई ने रक्षा का दायित्व भी सदा हीं निभाया है
सहृदय बधाई हर भाई-बहन को,
पावन उत्सव हर सावन की भाँति रे आया है
इस बार दूरी दो हाथ नहीं, दस योजन भारी-
ये सोंच कवि अश्रु बहुत बहाया है
नाँव से उफनती नदी पार कर जाते थे,
अब तो घर मे रह- 'फोन' एक सहारा है
एक अकिंचन पुर्वाग्रही मित्र:
डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया (पश्चिम चंपारण) बिहार 845438