🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵
कभी पतझड़ के थपेड़ों से,
मुरझा, झुक तुम जाते हो!
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
कभी वसंत की हवाओं से,
मिल-जुल के मुस्कुराते हो!!
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀
🌞🌝🌞🌝🌞🌝🌝🌞
सूरज की तपिश सह कर भी,
फल-फूल डाल के लहराते हो!
🌸🌷🌹🌻🌺🌻🌹🌸
सावन-भादो की बौछारों से,
झूम-झूम तुम इतराते हो!!
⛅⚡☁☔☁⚡⛅
सर्दियों के दस्तक के पहले हीं,
सिकुड़-जम बौने बन जाते हो!
🌊🌊🌊🌊🌊🌊🌊🌊
वाह रे दरख्त, तुम कुदरत का-
हर आइन क्या खूब निभाते हो!!
🌲🌳🌲🌳🌲🌳🌲🌳
🙏डॉ. कवि कुमार निर्मल🙏