!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!
*सनातन धर्म की दिव्यता विश्व विख्यात है | संपूर्ण विश्व ने सनातन धर्म के ग्रंथों को ही आदर्श मान कर दिया जीवन जीने की कला सीखा है | प्राचीन काल में शिक्षा का स्तर इतना अच्छा नहीं था जितना इस समय है परंतु हमारे पूर्वज अनुभव के आधार पर समाज के सारे कार्य कुशलता से संपन्न कर देते थे | पूर्व काल में परिवार एवं समाज में इतना सामंजस्य था कि लोग एक दूसरे की समस्या में बिना बुलाए ही समाधान करने लगते थे | हमारे पूर्वजों के पास पुस्तकीय ज्ञान तो नहीं था परंतु अपने संस्कार एवं संस्कृति के विषय में उनको संपूर्ण ज्ञान होता था | इस ज्ञान का स्रोत प्रत्येक गांव में सायंकाल के समय लगने वाली बुजुर्गों की चौपाल हुआ करती थी , जहां गांव के मुखिया बुजुर्गों के साथ बैठकर के धर्म-कर्म एवं समाज की चर्चा तो करते ही थे साथ ही अपने धर्म ग्रंथों में वर्णित कथाओं के रहस्य पर भी चर्चा करते थे | उन्हीं चर्चाओं से ज्ञान का विस्तार होता था एवं अनसुलझे रहस्य भी हमारे पूर्वज जाना करते थे , क्योंकि पूर्व काल में समाज के साथ-साथ अपने संस्कार एवं संस्कृति पर विशेष ध्यान दिया जाता था | गांव का युवा वर्ग बुजुर्गों का सम्मान किया करता था एवं कोई गलती होने पर अपने माता-पिता के अतिरिक्त गांव के किसी भी बुजुर्ग से डरता था क्योंकि पहले एक दूसरे के प्रति सम्मान तो था ही साथ ही यदि कोई दूसरा व्यक्ति युवा वर्ग को किसी गलती पर फटकार देता था तो घरवाले उसका बुरा ना मान करके संबंधित व्यक्ति को बधाई देते थे परंतु आज परिवेश परिवर्तित हो गया है |*
*आज मनुष्य ने बहुत प्रगति कर ली है | हिंदी से , संस्कृत एवं अंग्रेजी से अनेक उपाधियां लेने वाला मनुष्य आज आसमान में उड़ रहा है परंतु वह अपनी संस्कृति और संस्कार को भूलता चला जा रहा है | अपने सनातन के रहस्य एवं पुराणों में वर्णित कथानक के विषय में वह न तो विधिवत जानता है और ना ही जानना चाहता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" प्रायः देखता हूं कि पढ़े लिखे शिक्षित लोग अपने बच्चों को लेकर किसी मंदिर में जाते हैं परंतु यदि किसी बच्चे ने कौतूहल बस अपने अभिभावकों से प्रश्न कर दिया कि "हनुमान जी को सिंदूर क्यों लगाते हैं ? या दुर्गा जी सिंह पर क्यों सवार है ? दुर्गा जी का त्रिशूल किस राक्षस के पेट में धंसा हुआ है ? तो अभिभावक ज्ञान के अभाव में बगले झांकने लगते हैं और बच्चों को बहलाने के लिए कोई भी उल्टा सीधा जवाब दे देते हैं या फिर डांट कर चुप करा देते हैं क्योंकि उन्होंने पुस्तकीय ज्ञान तो प्राप्त कर लिया है लेकिन अपनी संस्कृति एवं संस्कार को जानने का प्रयास नहीं किया है | आज गांव में चौपाल समाप्त हो गई है क्योंकि आज मनुष्य के पास इतना समय ही नहीं है कि वह किसी के पास बैठ सके | गांव के बुजुर्गों के सम्मान की बात को छोड़ दो मनुष्य अपने घर के बुजुर्गों का सम्मान नहीं कर पा रहा है और ना तो उनके पास समय ही देना चाहता है | इस संसार में सब कुछ पुस्तक पढ़ने से ही नहीं प्राप्त हो जाता बल्कि कुछ बुजुर्गों के अनुभव भी प्राप्त करने होते हैं | आज यदि सनातन संस्कृति धुंधली हो रही है तो उसका कारण वर्तमान शिक्षा पद्धति तो है ही साथ ही आज के मनुष्य का पाश्चात्य संस्कृति की ओर झुकाव भी एक कारण है | यदि अपने बच्चों के सामने उनकी किसी प्रश्न पर लज्जित नहीं होना है तो प्रत्येक मनुष्य को अपने धर्म कर्म एवं धार्मिक रहस्यों के विषय में ज्ञानार्जन करना ही होगा और यह ज्ञानार्जन सनातन धर्म ग्रंथों पहले से ही प्राप्त होगा | आज का मनुष्य अपने धर्म ग्रंथों से दूर होता चला जा रहा है यही कारण है कि उसे समय-समय पर अपने बच्चों के कौतूहल को शांत करने में झिझक हो रही है | व्यवसाय के लिए आधुनिक शिक्षा पद्धति आवश्यक है परंतु जीवन जीने की कला सीखने के लिए धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना ही होगा |*
*हम कितनी भी शिक्षा ग्रहण कर ले परंतु अपने बुजुर्गों के अनुभव की बराबरी कभी नहीं कर सकते | इसलिए प्रत्येक मनुष्य को शिक्षा के साथ-साथ बुजुर्गों के अनुभव को भी लेते रहना चाहिए और यह तभी हो पाएगा जब आज की पीढ़ी बुजुर्गों का सम्मान करेंगी |*