आशा
आशा है कोरोना अलविदा कह
हिया न और अब जलायेगा।
दर्पण है यह छाई "तमसा" का-
साथ अपने लिये जायेगा।।
आदि-अंत नहीं हो जिसका-
सिसकियाँ भर रह जाती हैं।
खौफ़नाक कहानी-
अंत हो नींद संग
धुल-मिल जाती है।।
शुरुआत हुई तो मुक़ाम भी बेशक-
साहिल से किश्ती टकरायेगी।
राह में काँटें हैं,
कारगर मरहम लगा नेह की-
नासूर भरके जायेगी।।
मनकायें बिखरी हैं तो
माला गुँथ एक में,
जप-तप से तमसा जाएगी।
कोरोना है पुरातन-
सन्नाटों से डर- फण कुचल पायेगी।।
मास्क और दूरी कायम कर
यह कड़ी टूट कर हीं
भारत बचा पायेगी।
हाहाकार मचा चहुँओर,
भेक्सिन सुनिश्चत की जायेगी।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल