
*सनातन
धर्म को अलौकिक एवं विशाल धर्म इसलिए कहा जाता है क्योंकि सनातन धर्म में मात्र देव पूजा ही नहीं बल्कि पशु - पक्षी , वृक्षों , पर्वतों एवं नदियों की भी पूजा की गई है | सनातन धर्म ने प्रकृति पूजा को महत्वपूर्ण मानते हुए इसकी परंपरा बनाई , तो देवता एवं मनुष्य के अतिरिक्त अन्य जीवो को भी पूजनीय बनाने का कार्य सनातन धर्म ने किया है | इसी कड़ी में पशुओं में सर्वश्रेष्ठ गौ माता को मानकरके गो पूजन की व्यवस्था सनातन धर्म में बनाई गई | समुद्र मंथन करते समय समुद्र मंथन से ही कामधेनु नामक गाय प्रकट हुई उसी से गायों की प्रजाति इस पृथ्वी पर आयी | गाय में तैंतीस करोड़ देवताओं का वास माना गया है | वैज्ञानिक दृष्टि से भी गाय इस धरती पर एकमात्र ऐसी प्राणी है जो मनुष्य के लिए सबसे अधिक लाभकारी है , क्योंकि जहां सभी जीव कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करके ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं वहीं गाय ऑक्सीजन को ग्रहण करके ऑक्सीजन का ही उत्सर्जन करती है | गाय के शरीर से निकलने वाले दूध एवं गोमूत्र से मनुष्य के लिए लाभकारी अनेक औषधियों का निर्माण होता है | अयोध्या के महाराज ने नंदनी गाय की सेवा करके पुत्र रत्न की प्राप्ति की | आज "गोवत्स द्वादशी" के पावन अवसर पर सभी मनुष्यों को गाय का पूजन करना चाहिए | कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को "गोवत्स द्वादशी" के नाम से जाना जाता है | आज के दिन गाय और उसके बछड़े की पूजा की जाती है | यदि किसी के यहां गाय नहीं मिलती है तो किसी दूसरे के घर की गाय का पूजन कर सकता है , और यदि आसपास कहीं गाय न मिले तो मिट्टी से गाय और बछड़े की आकृति बनाकर उनकी पूजा की जाती है | गोवत्स द्वादशी वर्ष भर में दो बार मनाई जाती है | आज के दिन गाय और उसके बछड़े की पूजा करने से संतान सुख का लाभ मिलता है और मनुष्य सुख भागी बनता है | यह हमारी प्राचीन मान्यता रही है | प्रत्येक घर के दरवाजे पर एक गाय और दूसरे तुलसी का वृक्ष होना सनातन धर्म में अनिवार्य माना गया है |* *आज हमारी गौ माता
राजनीति के चक्कर में फंस कर के दर-दर भटकने को मजबूर दिख रही हैं | अनेक गोपालको ने अपनी - अपनी गाय को मात्र इसलिए छोड़ दिया है क्योंकि अब यह गाय की सेवा नहीं करना चाहते हैं बल्कि गाय से धनार्जन की इच्छा रखते हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बड़े दुख के साथ आज कहना चाहता हूं कि बड़े बड़े राजनीतिक एवं धार्मिक मंचों से गोरक्षा की दुहाई देने वाले आज अपनी अपनी गायों को अपने दरवाजे से खदेड़ दिए हैं | आज गाय एवं बछड़ों से पूरे
देश का किसान त्रस्त है , और लोग इसके लिए सरकार को दोषी मान रहे हैं | विचार कीजिए कि क्या सारा दोष सरकार का ही है ?? यदि हमने अपने दरवाजे से अपनी गाय माता को ना हटाया होता तो किसानों के खेतों में जाकर के फसलों को बर्बाद क्यों करती | यह वही लोग हैं जो आए दिन गौ हत्या बंद करवाने के लिए आंदोलन किया करते थे , और आज जब गौ हत्या बंद हो गई है तो अपनी अपनी गाय को लावारिस छोड़ कर के किसानों की बर्बादी के कारक बन रहे हैं | कभी दरवाजों की शोभा बनते रहे गाय से उत्पन्न बछड़े (बैल) जिनसे
समाज में व्यक्ति की हैसियत का अंदाजा लगाया जाता था | आज वही बैल वही बछड़े खेतों में जाकर के किसानों के द्वारा बल्लम एवं लाठियों के शिकार हो रहे हैं | विचार कीजिए हम कहां थे ! और कहां आ गए ? जिस गाय को हम अपनी मां मानते हैं उसकी दुर्दशा की जिम्मेदार आखिर कौन है ? आज के युग में जब मनुष्य अपनी जन्मदात्री मां को वृद्धाश्रम में छोड़ कर आ रहा है तो गाय माता का ध्यान भला कैसे दे पाएगा |* *सनातन की मान्यताएं बहुत ही दिव्य रही है परंतु कष्ट इस बात का है कि आज हम उन मान्यताओं को भूलते जा रहे हैं यही हमारे दुख का कारण बनता जा रहा है |*