*इस धरा धाम पर गो वंश का इतिहास मनुष्य एवं सृष्टि के प्रारंभ से शुरू होता है | मनुष्य के संरक्षण ,
कृषि और अन्य कई उत्पादन में गोवंश का अटूट सहयोग प्राचीन काल से मिलता रहा है | यही कारण है कि हमारे विभिन्न धर्मशास्त्र गोमहिमा से भरे पड़े हैं | जहां गाय हमारे लिए एक उचित साधन है वहीं उसके द्वारा उत्सर्जित गोबर एवं गोमूत्र पर्यावरण के रक्षक के रूप में माना जाता था | किसी भी धार्मिक कृत्य में गोदान करना एक विशेष कार्य था , क्योंकि सभी दानों में सर्वश्रेष्ठ गोदान कहा गया है | इस सृष्टि में भगवान शिव को कल्याण कारक देवता कहा जाता है और भगवान शिव का वाहन यह गोवंश अर्थात बैल ही है | प्राचीन काल में गाय के साथ साथ बैल हमारे
भारत की कृषि एवं ग्रामीण परिवहन के उपयुक्त साधन के रूप में मानव का सहयोग करता रहा है | हमारे वेदों में गाय को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था | प्राचीन काल में मानव सभ्यता , समृद्धि , आजीविका और जैविक पारिवारिक पर्यावरण के अनुकूल टिकाऊ , कम लागत और गुणवत्ता के कृषि उपज स्थाई ऊर्जा के स्रोत के रूप में गोवंश सदैव मानव मात्र का सहयोग करता रहा है | पूजा अनुष्ठानों में बिना पंचगव्य का पान किये मनुष्य को पूजा का अधिकारी नहीं माना गया है | पंचगव्य जिसमें गाय का दूध , दही , घी , मूत्र और गोबर का मिश्रण करके तैयार किया जाता था इसको पान करने से मनुष्य में शुद्धता तो आती ही थी साथ ही गोबर एवं गोमूत्र के पान से मनुष्य अपने शरीर में बीमारियों के विरुद्ध प्रतिरोध की अद्भुत क्षमता एवं शक्ति प्रकट करता था |* *आज यह भारत का दुर्भाग्य है कि जहां विदेशों में भारतीय प्रजाति की गायों की मांग बढ़ी है वही हम विदेशी प्रजाति की गायों की ओर आकर्षित हुए हैं , जिसका परिणाम यह हुआ कि आज भारतीय देशी गोवंश उपेक्षा का शिकार होते जा रहे हैं | भारतीय प्रजाति की गायों की अपेक्षा विदेशी प्रजातियों की गाय दूध तो अधिक देती है परंतु उसका दूरगामी परिणाम सकारात्मक नहीं निकल रहा है | अधिक दूध पाने की लालच में आज भारतीयों के द्वारा अपनी सभ्यता एवं संस्कृति का त्याग करके विदेशी प्रजाति की गायों का संवर्धन किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि भारतीय गायों की रीढ़ से सूर्य केतु नामक एक विशेष नाड़ी होती है, जब इस पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तब यह नाड़ी सूर्य किरणों के तालमेल से सूक्ष्म स्वर्ण कणों का निर्माण करती है | यही कारण है कि देशी गायों का दूध पीलापन लिए होता है | इस दूध में विशेष गुण होता है | इतना समय व्यतीत हो जाने के बाद भी आज जब भी कोई धार्मिक अनुष्ठान होता है तो भगवती गौरी का निर्माण गाय के गोबर से ही किया जाता है | और वह भी आचार्य गण देसी गाय के गोबर को प्राथमिकता देते हैं | गाय हमारे लिए सदैव से उपयोगी रही है परंतु आज वही गाय घुट घुट कर मरने को विवश है | आज का मनुष्य सिर्फ क्षणिक लाभ देखता है उसका दूरगामी परिणाम क्या होगा इस पर विचार नहीं करना चाहता , और इसी कारण आज अनेकों प्रकार के रोग मनुष्य को अपनी चपेट में ले रहे हैं |* *हम भारतीय गोवंश को अपनाकर उन्हें गोशाला में संरक्षित, संवर्द्धित कर सकते हैं, जिसका सर्वाधिक लाभ भी हमें ही मिलेगा | देशी गौवंश को हमारी गोशालाओं से हटाने की साजिश भी सफल हो रही है, जिस पर समय रहते ध्यान देना जरूरी है |*