*पूर्वकाल में यदि मनुष्य सर्वश्रेष्ठ बना तो उसमें मनुष्य के संस्कारों की महत्वपूर्ण भूमिका थी | संस्कार ही मनुष्य को पूर्ण करते हुए पात्रता प्रदान करते हैं और संस्कृति समाज को पूर्ण करती है | संस्कारों से मनुष्य के आचरण कार्य करते हैं | किसी भी मनुष्य के चरित्र निर्माण में
धर्म , संस्कार और संस्कृति ही महत्वपूर्ण होते हैं | संस्कारवान मनुष्य भौतिक सुखों से ऊपर उठकर विश्वास और आस्था के द्वारा अलौकिक आनंद की अनुभूति करते हैं | संस्कार ही मनुष्य को अच्छे और बुरे की पहचान कराते हैं वहीं मानवीय मूल्यों से उपजे संस्कार मनुष्य को आदर्शवादी और चरित्रवान बनाते हैं | यदि संस्कारवान मनुष्य है तो उसके मस्तिष्क में लोक कल्याण की भावना उत्पन्न होती रहेगी | इन्हीं संस्कारों का महत्व समझते हुए सनातन धर्म में मानव के जन्म के पहले से ही संस्कारों का विधान हमारे महापुरुषों ने रखा था जीव के गर्भ में आते हैं उसके संस्कार प्रारंभ हो जाते थे | इन संस्कारों से जीव इस पृथ्वी पर आने के योग्य होता है | जीवन पर्यंत इन संस्कारों का पालन करते हुए मनुष्य समाज में एक आदर्श प्रस्तुत करता हुआ जीवन यापन करता है | कहने का तात्पर्य है कि इस संसार में मनुष्य उत्तम संस्कारों के माध्यम से अपनी संस्कृति के स्वरूप बनाए रखने के लिए एवं जीवन में आने वाले कष्टों , तनाव और दुखों से मुक्ति प्राप्त कर सकने में सक्षम हो सकता है | उसके संस्कार ही सत्य मार्ग की ओर जाने के लिए प्रेरित करते हैं |* *आज मनुष्य ने बहुत प्रगति कर ली है परंतु यह भी सत्य है कि जहां एक ओर मनुष्य ने इस संसार में सब कुछ प्राप्त करने का प्रयास किया है और प्राप्त भी कर लिया है वही उसने जो खोया है वह उसके संस्कार हैं | आज संस्कारों की कमी के कारण परिवार , समाज एवं राष्ट्र समस्याओं , कुटिलताओं , विद्रूपताओं के कई कई मोहपाश के शिकंजे में करते जा रहे हैं | आज यदि मनुष्य उत्साह , ओज , संवेदना और
स्वास्थ्य को पीछे छोड़ कर भोगविलासी बन गया है तो उसका एक ही कारण है मनुष्य की संस्कारहीनता | आज मनुष्य संस्कारों का निर्वाह नहीं कर पा रहा है इसी लिए समाज में संस्कार हीनता का तांडव मचा हुआ है | जहां प्राचीन काल में संस्कार ही महत्वपूर्ण थे वही आज संस्कारों का लोप हो रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी देख रहा हूं कि आज माता पिता अपने बच्चों को आधुनिक सुविधाएं तो प्रदान कर रहे हैं परंतु जो उनके जीवन के लिए आवश्यक है वह संस्कार नहीं दे पा रहे हैं | जबकि हमारे मनीषियों का कहना है की संतान को सुविधाएं तभी प्रदान करनी चाहिए जब उसमें संस्कार हो , क्योंकि संस्कारहीन व्यक्ति जब सुविधाएं पा जाता है तो उसका अनर्गल उपयोग करता हुआ समाज को दूषित करता रहता है | आज अगर यह कहा जाय कि यदि युवा पीढ़ी संस्कारहीन होती जा रही है तो उसका कारण कहीं ना कहीं से हम ही हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | इसलिए आवश्यकता है आने वाली पीढ़ी को कोई सुविधा देने के पहले संस्कार देने का प्रयास किया जाय |* *आज समाज में जिस प्रकार लूट मची हुई है उसका कारण मात्र संस्कारहीनता ही कहा जाएगा , इसके अतिरिक्त कोई दूसरा कारण नहीं हो सकता |*