*प्राचीन काल में हमारे महापुरुषों ने अनेक सिद्धियां प्राप्त करके लोक कल्याण का कार्य किया है | यम - नियम का पालन करते हुए कठिन तपश्चर्या करके उन्होंने यह सिद्धियां प्राप्त की थीं | किसी भी सिद्धि के विषय में आम जनमानस में रहस्य सा बना रहता है कि आखिर सिद्धि क्या है ? और कैसे प्राप्त की जा सकती है ? अब तक जो पढ़ने को मिला है उसके अनुसार सिद्धि शब्द का सामान्य अर्थ है सफलता | सिद्धि अर्थात किसी कार्य विशेष में पारंगत होना | समान्यतया सिद्धि शब्द का अर्थ चमत्कार या रहस्य समझा जाता है, लेकिन योगानुसार सिद्धि का अर्थ इंद्रियों की पुष्टता और व्यापकता होती है , अर्थात, देखने, सुनने और समझने की क्षमता का विकास | हमारे धर्मशास्त्रों में अनेक प्रकार की सिद्धियों का वर्णन है | कहीं चालीस तो कहीं सोलह प्रकार की सिद्धियां कही गयी हैं , सबसे प्रचलित हैं अष्टसिद्धियां | जिनके विषय में बताया गया है कि :-- "अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा | प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः ||" अर्थात :- अणिमा , महिमा , लघिमा , गरिमा , प्राकाम्य , प्राप्ति , ईशित्व एवं वशित्व आदि आठ प्रकार की सिद्धियां प्रमुख हैं | यदि आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाय तो सिद्धियां दो प्रकार की होती हैं, एक परा और दूसरी अपरा | विषय संबंधी सब प्रकार की उत्तम, मध्यम और अधम सिद्धियां 'अपरा सिद्धि' कहलाती है | यह मुमुक्षुओं के लिए है | इसके अलावा जो स्व-स्वरूप के अनुभव की उपयोगी सिद्धियां हैं वे योगियों के लिए उपादेय 'परा सिद्धियां' हैं | यह सिद्धियां कोई चमत्कार या रहस्य नहीं बल्कि इसी धराधाम पर प्राप्त होने वाली शक्तियां हैं जिन्हें हमारे पूर्वज महापुरुषों ने प्राप्त भी किया है |* *आज के भागदौड़ भरे जीवन में मनुष्य इन सिद्धियों के विषय में सुनकर के आश्चर्यचकित हो जाता है एवं कभी-कभी उसके हृदय में इन सिद्धियों को प्राप्त करने की उत्कंठा भी होती है | इन सिद्धियों को कोई भी मनुष्य यम - नियम का पालन करके प्राप्त कर सकता है परंतु मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि इन सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम भगवान श्री कृष्ण के द्वारा बताई गई सोलह सिद्धियों में से प्रथम तीन सिद्धियों को प्राप्त करना आवश्यक है , जिसमें प्रथम आत्मबल सिद्धि ,:द्वितीय ज्ञानसिद्धि एवं तृतीय वाक् सिद्धि को प्रमुख माना गया है , क्योंकि जिसमें आत्मबल नहीं है जिसने अपने आत्मबल को नहीं सिद्ध किया , प्रबल नहीं किया वह कोई भी सिद्धि नहीं प्राप्त कर सकता है | किसी भी सिद्धि को प्राप्त करने के लिए
ज्ञान की आवश्यकता होती है इसलिए सर्वप्रथम मनुष्य को ज्ञानसिद्ध करना चाहिए उसके बाद मनुष्य को अपनी वाणी अर्थात वाक् सिद्धि पर ध्यान देना चाहिए | इन तीनों सिद्धियों को प्राप्त करने के बाद ही मनुष्य कोई अन्य सिद्धियां प्राप्त कर सकता है | असंभव कुछ भी नहीं है परंतु आज के मनुष्य की मानसिकता , व्यस्तता को देखते हुए सब कुछ असंभव ही लगता है |
धर्म ग्रंथों में या सज्जनों के मुख से सत्संग आदि में इन सिद्धियों के विषय में जानकारी प्राप्त करके प्रत्येक मनुष्य इन सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए उत्साही तो बनता है परंतु कुछ ही दिन में उसका सारा उत्साह कापूर की तरह उड़ जाता है , क्योंकि वह यम नियम का पालन करने में स्वयं को सक्षम नहीं पा रहा है | यदि मनुष्य के अंदर आत्मबल
ज्ञान एवं मधुर वाणी का अस्त्र है तो समझ लो कि उसको समस्त सिद्धियां स्वयं प्राप्त हो चुकी है |* *सिद्धियां प्राप्त करना कोई रहस्य नहीं है न हीं असंभव है परंतु इन अद्भुत सिद्धियों के नियम पालन कर पाना शायद आज के मनुष्य के बस में नहीं है |*