*आदिकाल से ही भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता संपूर्ण विश्व को दिशा निर्देश देती रही है | हमारे मनीषियों ने माता -;पिता एवं जन्मभूमि की महत्ता को बताते हुए लिखा है :- "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" अर्थात :- अपनी माता और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी महान है | हमारे सनातन
धर्म के धर्मग्रंथों एवं वेदों में आदिकाल से ही जननी एवं जन्मभूमि की महिमा का बखान किया जाता रहा है | ऐसा कहने का एकमात्र कारण यह है कि संसार में अनेक रिश्ते - नातों के बीच मनुष्य अपना जीवन व्यतीत कर देता है परंतु मां के जैसा स्नेह अन्यत्र नहीं मिल सकता , क्योंकि जीवन में तनिक भी संकट आने पर जहां अन्य संबंधी साथ छोड़ देते हैं वही माता अनेक प्राकृतिक / सामाजिक विपदाओं को झेलते हुए भी अपने पुत्र का लालन पालन करती है | ठीक उसी प्रकार जन्मभूमि वह स्थान है जहां पैदा होने के बाद , जिसकी मिट्टी में खेलकर हम चलना सीखते हैं | इसलिए जिस प्रकार हमारी माता हमारे लिए सम्मानीय हैं उसी प्रकार हमारी जन्मभूमि हमारे लिए वंदनीय ही होती है | उसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है जन्मभूमि की रक्षा करते हुए अनेकों बलिदानियों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों की बलि दे दी है | उनके इस बलिदान से संपूर्ण
देश गौरवान्वित हुआ है | जन्मभूमि के प्रति उनका प्रेम आज भी युवाओं को प्रेरित करता है | जो व्यक्ति अपनी माता और अपनी मातृभूमि से प्रेम नहीं करता है उसे जीवित रहने का और मनुष्य कहे जाने का कोई अधिकार नहीं है |* *आज हम आधुनिक युग में जीवन जी रहे जहां पर बहुतायत मात्रा में ऐसे लोग भी मिल जाते हैं जो अपनी माता और मातृभूमि दोनों का भी अपमान करने से नहीं चूकते | यदि माता का सम्मान होता तो देश में वृद्धाश्रम नहीं होते , बूढ़ी मातायें रास्तों में भिक्षा मांगते भी नहीं घूमती |
समाज में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो रहते तो हैं इसी देश में हैं परंतु स्थान - स्थान पर देश का विरोध भी करते रहते हैं | आज हमारे देश
भारत की भी यही समस्या है कि यहां के कुछ लोग अपनी मातृभूमि की विचारधारा से अलग हटकर विचार व्यक्त करते रहते हैं | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि ऐसे लोग चाहे जितने बाहुबली हों समाज को उनका तिरस्कार कर देना चाहिए , क्योंकि ऐसे लोग कभी किसी का भला नहीं कर सकते हैं | विचार कीजिए जो अपनी माता का नहीं हो सकता जिसके अतुलनीय बलिदान से उसका जीवन जीने लायक हुआ , जो अपनी मातृभूमि का नहीं हो सकता है जिसकी मिट्टी में उसने चलना सीखा तो भला और किसी का क्या हो सकता है ? इसलिए ऐसे लोगों से सावधान एवं दूरी बनाकर रहना चाहिए | ऐसे लोग अपने साथ साथ अपने साथ में रहने वालों का भी दुर्भाग्य ही होते हैं | संगति के असर को अनदेखा नहीं किया जा सकता है | मानव जीवन पर संगति का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है , जो जैसी संगति में होता है उसके क्रियाकलाप भी उसी प्रकार हो जाते हैं | अतः ऐसे लोगों को हेयदृष्टि से देखते हुए उनको बहिष्कृत ही कर देना चाहिए |* *मानव मात्र के लिए जननी और जन्मभूमि दोनों की बंदनीय हैं , दोनों ही अपना वात्सल्य अपने - अपने रूप में अपने पुत्र पर निछावर करती हैं | मनुष्य मनुष्य तभी हो सकता है जब वह अपनी माता और मातृभूमि को सम्मान दे सके अन्यथा वह मनुष्य कहे जाने के योग्य भी नहीं कहा जा सकता |*