सुबह के सूर्य उदय होने के साथ ही सलिल आँफिस से बाहर निकला। उसे बाहर निकलता देखकर रोमील भी उसके साथ निकल पड़ा। वे दोनों प्रांगण में खड़ी स्काँरपियों में बैठे, कार श्टार्ट की और आगे की ओर बढा दी। स्काँरपियों पुलिस स्टेशन से बाहर निकली और सड़क पर आते ही रफ्तार पकड़ ली। ड्राइव कर रहे रोमील ने सलिल को कनखियों से देख रहा था। सलिल भी समझ रहा था कि रोमील आखिर क्यों उसे देख रहा है। स्वाभाविक ही था कि रात के हत्याकांड ने बहुत से सवाल खड़ा कर दिया था। उसपर घाव यह कि मीडिया बालों ने पंगा खड़ा कर दिया था।
ऐसे में रोमील के हृदय में सवाल उठना ही लाजिम था। सलिल जानता था कि अभी जो वो बाहर निकला है, उसी के बारे में रोमील सोच रहा होगा। परन्तु सलिल इस बारे में अभी कोई बात नहीं करना चाहता था। वह तो उलझा हुआ था, रात होटल में हुई हत्या के बारे में।.....आखिर किस कारण से नंदा की हत्या हुई होगी। सवाल गंभीर था और उसे इसका हल जल्द से जल्द ढूंढना था।....परन्तु वह दुविधा में इसलिये फंसा हुआ था कि श्रेयांश ने जिस प्रकार से बतलाया था, केस में अजीब सा पेंच फंस चुका था। "अगर श्रेयांश की कही हुई बातें सही है, प्रथम दृष्टया इस केस में प्रेत बाधा लग रहा था"। .....अब ऐसे में सच क्या है? कहना कठिन था और जब तक इस केस के भेद नहीं खुलते, अभी कुछ भी कहना उचित नहीं था।
वैसे भी उसने अपने पूरे सर्विस लाइफ में इस तरह के केस को नहीं देखा था।....उसकी सर्विस लाइफ वैसे तो ज्यादा नहीं थी.....परन्तु इतने ही दिनों में उसने इस प्रकार की घटना नहीं देखी थी।.....उसमें भी अभी तक इस केस में उसे ज्यादा जानकारी नहीं थी। इस कारण से ही वो होटल "सांभवी" जा रहा था कि वहां जाकर वह सुबूत ढूंढने की कोशिश करेगा।...इसके बाद ही वह इस केस के बारे में कुछ कह पाएगा। सोचते- सोचते सलिल ने कार के बाहर देखा। सड़क पर सरपट दौड़ता ट्रैफिक और अपने जगह पर टट्टार खड़ी बिल्डिंगे। शहर की यही तो खुबी है कि चारों तरफ बहुमंजिला इमारतों का जाल होता है।
सर! अभी हम लोग कहां जा रहे है? रोमील कार ड्राइव करते हुए उससे प्रश्न पुछा और फिर अपनी नजर ड्राइविंग पर जमा दी। जबकि सलिल, वह मन ही मन मुस्कराने लगा। वह जानता था कि रोमील अपने-आप पर ज्यादा देर तक नियंत्रण नहीं रख सकता था। ऐसे में उसका यूं प्रश्न करना, स्वाभाविक ही था।
कहां जा रहे है से मतलब?......तुम जानना क्या चाहते हो? सलिल ने उसके प्रश्न का उत्तर देने के बदले उससे प्रश्न ही पुछ लिया और फिर अपनी नजर रोमील के चेहरे पर टिका दी।
स...सर, मेरे कहने का मतलब बस इतना ही था कि इतनी सुबह-सुबह ही हम लोग कहां जा रहे है। सलिल के प्रश्न सुनकर रोमील बड़ी मुश्किल से इन शब्दों को बोला। जबकि सलिल ने जबाव में धीरे से बोला।
होटल सांभवी! हम लोग अभी होटल सांभवी जा रहे है। सलिल ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया और फिर उसने चुप्पी साध ली।
बस बात खतम हो गई, इसके बाद रोमील की हिम्मत ही नहीं हुई कि आगे किसी प्रश्न को पुछ सके। इसके बाद तो स्काँरपियों अपने रफ्तार से सड़क पर भागती रही.....परन्तु उन दोनों के बीच चुप्पी छाई रही। परन्तु यह चुप्पी भी तो असह्य था, क्योंकि दोनों के हृदय में विचार चलने लगे थे। जहां सलिल इस केस के बारे में उलझा हुआ था, वही रोमील अपने साहब के बारे में ही सोच रहा था।....सलिल सोच रहा था कि "अपराध को घटित हुए बारह घंटे हो चुके थे" परन्तु अभी तक वो इस केस पर थोड़ा भी काम नहीं कर सका था।...वो इस केस में छानबीन की शुरुआत करता भी कैसे? मीडिया बालों ने इस कदर हंगामा वड़पाया था कि उसकी बुद्धि कुंद होकर रह गई थी।....साथ ही उसके लिये चेतावनी समान भी था कि आगे से उसे मीडिया बालों से बचकर भी रहना होगा "अन्यथा मीडिया बाले उसके वर्दी पर कीचड़ उछालने में तनिक भी नहीं हिचकेंगे"।
स्काँरपियों होटल सांभवी के प्रांगण में रुकी और दोनों के विचार की श्रृंखला टूट सी गई। इसके बाद दोनों कार से बाहर निकले और होटल बिल्डिंग के अंदर की तरफ बढ गये। फिर तो उन्होंने पूरे होटल को छान मारा,....परन्तु उनके हाथ काम की चीज नहीं लगी। जिस रूम में अपराध हुई थी, "कितनी ही बार उस रूम को सर्च किया, फिर भी उनके हाथ निराशा ही हाथ लगी। तभी अचानक ही रोमील ने सलिल को सुझाया कि इस होटल में सी. सी. टीवी कैमरा जरूर लगा होगा, "तो हमें सी. सी. टीवी आँपरेटर रूम की तलाशी लेनी चाहिए"। अचानक से रोमील द्वारा दिए गए सुझाव पर सलिल के होंठों पर मुस्कान आ गई, साथ ही उसने रोमील के बुद्धि पर गर्व महसूस किया।
इसके बाद वे दोनों सी. सी. टीवी आँपरेटर रूम में पहुंचे, तभी वहां पर सब- इंस्पेक्टर राम माधवन वहां पहुंच गया और उसने सलिल को सैल्यूट दिया।....सलिल ने उसके सैल्यूट का जबाव दिया और वहां रखे कंप्यूटर सिस्टम से छेड़छाड़ करने लगा। राम माधवन, लंबा तगड़ा शरीर और श्यामला रंग, उसपर चेहरे पर मोटी मूँछें, पूरे पुलिस स्टेशन में गब्बर सिंह के नाम से विख्यात था वो। अभी वो ध्यान पूर्वक सलिल को कार्य करते हुए देख रहा था। परन्तु कितने भी प्रयास करने के बावजूद भी सलिल को अपने काम में सफलता नहीं मिली। तब राम माधवन ने अनुमति ली और कंप्यूटर सिस्टम को खोलने की कोशिश करने लगा और अपने प्रयास में वो सफल भी रहा।
सलिल को अपने मातहत पर गर्व होने लगा। परन्तु अभी उसे काम करना था, इसलिये वो फटाफट होटल में लगे कैमरे को चेक करने लगा और जल्द ही सफल भी हुआ। " होटल के जिस रूम में वारदात हुई थी" उस कैमरे को उसने जल्द ही ढूंढ लिया और वीडियो रिप्ले करने पर जो उसने जो देखा, उसने उसके होश फाख्ता कर दिए। उसने देखा कि रूम में श्रेयांश नंदा के कपड़े को उतार चुका था, तभी रूम की लाइट जलने बुझने लगी और मिनट भी नहीं गुजरे होंगे कि लाइट की रोशनी रंग- बेरंगी हो गई।....इसके बाद उस रूम में रहस्य में डूबा स्वर "रति संवाद-रति संवाद गूंजने लगा।
उस वीडियो को तीनों ध्यान पूर्वक देख रहे थे और समझने की कोशिश कर रहे थे।....तभी उन तीनों की नजर स्क्रीन पर चिपक कर रह गई, क्योंकि ड्रेसिंग टेबुल का शीशा तेज आवाज के साथ टूटा और उसकी काँच पूरे रूम में बिखर गई। इसके बाद तो नंदा तड़पती हुई दिखी....उसके पेट में काँच आकर धंस चुका था।.....फिर तो दो मिनट बाद ही नंदा तड़प कर शांत हो गई।....ऐसा किस प्रकार से हो सकता है कि एक काँच का टुकड़ा किसी की जान ले-ले। सोचते हुए सलिल ने इसके बाद दो-तीन बार वीडियो को प्ले करके देखा....परन्तु उसके समझ में कुछ भी नहीं आया। ऐसे में उसने इस वीडियो को अपने मोबाइल में एसेस कर लिया...फिर तीनों होटल से बाहर निकले। सलिल ने राम माधवन को वही छोड़ा और रोमील के साथ पुलिस स्टेशन के लिए लौट गया।
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क्रमशः-