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मुक्ता अपार्ट मेंट......

16 सितम्बर 2022

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अब दिन के दस बज चुका था और इसके साथ ही शहर की गतिविधि अधिक तेज हो गई थी। रोजी-रोटी के लिए भागता शहर, यहां हर एक मानव आगे की ओर निकलने की होड़ में लगा हुआ था। सभी अपने-अपने तरीके से रोजगार उपार्जन में लग गए थे।.....परन्तु उस युवक को तो जैसे इसकी जरूरत ही नहीं थी।
                                 घुंघराले काले बाल, मोटी-मोटी काली आँखें और आकर्षक चेहरा। उसपर उसका लंबा कद उसकी सुन्दरता में चार चाँद लगा रहा था। वह युवक अभी मुक्ता अपार्ट मेंट में अपने फ्लैट में बिस्तर पर लेटा हुआ मैगजीन पढ रहा था, नाम था सम्यक बहल। नाम के अनुरूप ही उसके चेहरे पर चिर शांति थी और उसके हाथ में पुस्तक भी "शांति की खोज" ही थी।.....परन्तु उसकी यह शांति छनिक ही तो थी, वह तो वास्तव में उद्विग्न था। उसकी नजर भले ही पुस्तक पर टिकी थी, परन्तु वह पुस्तक तो बिल्कुल भी नहीं पढ रहा था। "शायद वो किसी विचार के भंवर जाल में था और उस विचार का मनो-मंथन करके किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहता था।
                     जीवन की परिपाटी कितनी विचित्र है, जो हमें पसंद नहीं होता, यह उसे ही चलाना चाहती है और जो हम चाहते है, यह उसे होने ही नहीं देती।....परन्तु मानव ही तो है, हार मानना उसने सीखा कहां है? उसे तो अनवरत प्रयास करना पड़ता है, जीत के लिए। उस जीत के लिए, जो अवश्यंभावी नहीं है, क्योंकि ढृढता के साथ कहा नहीं जा सकता कि जीत उसकी ही होगी। फिर भी प्रयास तो उसको करना है और यह उसका स्वभाव भी है। सम्यक भी इसी प्रयास में लगा हुआ था कि वो अपने विचारों को जीत ले।....फिर तो उसने बांह फैलाया और सारा जहां उसका ही होगा।
                            जीवन बहुधा ही मानव मन के इसी ढृढता की परीक्षा लेता है। उसे सत्य की उस कसौटी पर कसता है, जिसे शायद " भट्ठी" का उपनाम दिया जाता है। जैसे सोने को जलती हुई "भट्ठी" में उच्च ताप पर तपाया जाता है और वह तप कर दमक उठता है, उसी प्रकार मानव भी है। जीवन की "कसौटी" पर कसने के बाद मानव निखर उठता है, "दमक" उठता है मानवीय गुणों से। परन्तु सम्यक इस कसौटी पर ज्यादा देर तक टिका नहीं रह सका।....उसके चेहरे से बेचैनी के भाव "परिलक्षित" होने लगे। आखिरकार उसके हृदय की ढृढता उसका साथ छोड़ती हुई सी प्रतीत होने लगी, उससे अलग होती सी लगी।
                          फिर तो वह बेड पर उठकर बैठ गया, किताब को साइड में रख दिया और फिर उसने रूम में नजर घुमाई।...रूम में सुविधा की हर एक वस्तु मौजूद थी, फिर भी कभी-कभी यह रूम उसे काट खाने को दौड़ता था। उसके पिता युनिवर्सिटी के डीन थे, जिनका वो इकलौता वारिस था, ऐसे में पैसे की कोई कमी तो थी नहीं। फिर भी न जाने क्यों उसे चैन नहीं मिलती थी। वह चाहता था कि सुकून भरी जिंदगी गुजर-बसर करें, परन्तु उसकी यह अभिलाषा "अभिशप्त" हो गई थी। जीवन के तट बंध उष्णिय हो गये थे, जो अपने तीव्र ज्वाला में उसके सुख-शांति को भस्म करने पर उतारू हो गए थे।
                        ऐसे में उसने बैठे-बैठे ही पास रखे टेबुल के डोअर को खोला और उसमें से चरस की पुड़िया एवं चिलम निकाल ली।....उसके बाद उसने बड़े प्रेम से चिलम तैयार की और सुलगा कर होंठों से लगा ली।...फिर तो उसने लंबी कश ली, जिससे ऊँची लपट उठी। इसके बाद तो रूम एक पल के लिए धुएँ के गुबार से भर गया।..... परन्तु उसने कश लगाना तब छोड़ा, जब चिलम खाली हो गई।...धुआँ अंदर गया और उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव दृष्टिगोचर होने लगे।....परन्तु कितनी देर तक? कृत्रिम संसाधनों के द्वारा प्राप्त किया गया संतुष्टि अल्पायु लिए होता है, जो कि क्षणिक होता है। तो उसकी संतुष्टि कब तक स्थाई रहती?
                      दो पल भी नहीं गुजरे होंगे कि वह फिर से बेचैन नजर आने लगा। उसको धीरे-धीर विचारों की श्रृंखला अपने आगोश में समेटने लगे।.....वह सोचने लगा कि पहले तो वो ऐसा नहीं था। हंसमुख स्वभाव का सम्यक, सभी से घुला-मिला रहता था। उसका हंसमुख स्वभाव ही था कि काँलेज में उसके दोस्तों की लिस्ट बहुत लंबी थी।....लेकिन एक दिन, उसकी मुलाकात लवण्या आर से हुई और उसकी जिंदगी बदल गई।....परन्तु न जाने उसकी खुशियों को ग्रहण लग गया हो, "गर्वित सक्सेना लवण्या आर के करीब आ चुका था"। इसके बाद तो उसने काफी कोशिश की अपने दिल को मनाने की, पर दिल माने तब न।
                      इश्क अजीब सी वस्तु है, बिना अकार- प्रकार के, बिना किसी रुप-रंग के, यह अतिशय प्रभावी है। जब यह किसी को अपने बाहु पाश में जकड़ता है, उसके अस्तित्व को रहने ही नहीं देता, जबकि अपना रुप-रंग, आकार-प्रकार ग्रहण कर लेता है। तभी तो बड़े- बड़े तपस्वी अपने तप साधना से डिग जाते है और प्रेम की शरणागति स्वीकार कर लेते है।.....फिर तो सम्यक युवा था, उसके रगो में प्रवाहित होने बाला लहू गर्म था, तो प्रेम के सामने उसकी बिसात ही क्या थी? वो तो प्रेम के मधुर अंक पाश में जकड़ कर रह गया। ऐसे में उसकी स्थिति उस मछली के समान हो गई, जिसे पानी से निकाल कर रेतीले जमीन पर रख दिया गया हो।
                                  वो लवण्या आर को दिली हद तक चाहता था, इस हद तक कि उसके लिए जान भी दे सकता था।....."फिर भी वो अपने मुहब्बत का इजहार नहीं कर सका"। बस यही उससे भूल हो गई और वो खाली हाथ मलता ही रह गया।....शायद उसने प्रेम का इजहार कर दिया होता, परन्तु उसके नसीब में तो तड़प ही लिखा था और तब से अब तक वो तड़प ही रहा था। इस कारण से ही तो वो अपने पिता से अलग इस अपार्ट मेंट में रहने के लिए चला आया था। उसकी दिली चाहत थी कि उसके "नयनों के अश्रु बिंदु" को किसी की नजर नहीं लगे।....उफ! जीवन इंसान को कैसे-कैसे नाच नचाती है कि इंसान खुद में ही उलझ जाता है।
                                    सोचते-सोचते आखिरकार उससे नहीं रहा गया और उसने फिर से चिलम भर लिया और सुलगा कर धुआँ फेफड़ों में भरने लगा। चिलम खतम करने ही उसे भूख की अनुभूति हुई। इसके बाद वह उठा और कपड़ा पहन कर बाहर निकला, अपार्ट मेंट को लाँक किया और पैदल ही सड़क किनारे चलने लगा। चलता रहा....कदम दर कदम चलता रहा। वैसे तो अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में सूर्य की किरणें इतनी तेज नहीं होती। धूप में इतनी तिखाश नहीं होती, फिर भी ए. सी. रूम में रहने बालों के लिए इतना धूप भी काफी है। ....फिर भी वो चलता रहा और आखिर राम दयाल ढाबा के पास पहुंचा और अंदर जाकर बैठ गया।
                                 ढाबे के अंदर अभी तक तो खाली -खाली था। परन्तु अब दिन के ग्यारह बज चुके थे और ऐसे में अब ग्राहकों की तादाद बढने लगी थी। लेकिन सम्यक को इन बातों से जैसे कोई मतलब नहीं हो, उसकी नजर तो बस "लवण्या आर" को ही ढूंढ रही थी। बहुत दिनों से उसको नहीं देखा था, इसलिये आँखों को सुकून की कमी खल रही थी।....भले ही वो प्रेम का इजहार नहीं कर पाया हो, परन्तु फिर भी अगर चाहत का एक दीदार मिल जाए," राहत सी मिल जाती है।....बस यही बात चाहत के लिए थी। भले ही दिल का मिलन हो, चाहे नहीं हो, परन्तु आँखों को सुकून मिलने का तो अधिकार है।
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क्रमशः-


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रचनाएँ
रति संवाद
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कहानी के मुख्य शब्द, यानी कि रति संवाद, मानव मन की वेदना का आकलन है। जब कोई किसी के द्वारा छला जाता है, किसी के द्वारा धोखा खाता है, तो उसके हृदय में कुंठा जागृत होती है। जब वह अपने मन की कुंठा का समन नहीं कर पाता, तो फिर औरो के लिए नुकसान देय बन जाता है। जीवन जितनी सरल है, हमने अगर जीना नहीं सीखा, यह उतना ही दु:ष्कर बन जाता है। जब हम बिना बजह ही सपनों के पीछे दौङते है, वह सपना भार रुप हो जाता है। प्रारंभ:-
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रति संवाद( जीवन के अनछुए पहलू की कहानी)........

16 सितम्बर 2022
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कहानी के मुख्य शब्द, यानी कि रति संवाद, मानव मन की वेदना का आकलन है। जब कोई किसी के द्वारा छला जाता है, किसी के द्वारा धोखा खाता है, तो उसके हृदय में कुंठा जागृत होती है। जब वह अपने मन की कुंठा का समन

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रोहिणी पुलिस स्टेशन.......

16 सितम्बर 2022
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इंस्पेक्टर सलिल वैभव! नाम के ही अनुरूप शालीनता थी, लेकिन वह तभी तक, जब तक कि उसके मातहत उसके अनुरूप कार्य करते थे। अन्यथा तो थोड़ी सी गलती हुई नहीं कि सलिल से तूफान बनते देर नहीं लगती थी। फिर तो मत पुछ

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होटल सांभवी........

16 सितम्बर 2022
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रात के आठ बज चुके थे! यूं तो शहर रात के आगोश में समा चुका था, परन्तु शहर रोशनी में पूरी तरह नहा चुका था। होटल "सांभवी" को दुल्हन की तरह सजाया गया था। काफी क्षेत्रफल में फैला हुआ होटल "सांभवी", आगे विश

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सलिल का होटल पहुंचना और लाश का मुआयना करना......

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रोहिणी पुलिस स्टेशन! इंस्पेक्टर सलिल ने फोन पर बात करके अभी काँल को डिस्कनेक्ट कर दिया था।.....परन्तु अभी भी सलिल शांत नहीं हुआ था, उसकी धड़कन धौंकनी की मानिंद चल रही थी। उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव ग

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नंदा की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेजना और सलिल की मीडिया बालों से झरप.....

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श्रेयांश के पास से उठने के बाद सलिल होटल के अंदर की तरफ बढा। होटल पांच मंजिला था, इसलिये सलिल को पूरा होटल खंगालने में करीब एक घंटे का समय लग गया। परन्तु क्या मजाल कि उसके चेहरे पर हल्की सिकन भी आई हो

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सान्या सिंघला......

16 सितम्बर 2022
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रात के करीब एक बजने को थे। अमूमन तो इस समय तक दिल्ली की सड़क की रफ्तार बहुत धीमी हो जाती थी। परन्तु कमर्शियल वाहन की बाढ सी आ जाती थी। जिसमें से अधिकतर बड़ी गाड़ियां होती थी। आज भी सड़क पर बड़ी- बड़ी गाड़िया

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पुलिस स्टेशन.......

16 सितम्बर 2022
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रात के एक बजे के करीब पुलिस काफिला रोहिणी पुलिस स्टेशन पहुंची। इसके बाद वे लोग उतरे और आँफिस की ओर बढे। चलते-चलते सलिल ने रोमील को समझाया कि भल्ला एवं श्रेयांश को लाँकअप में डालो, इससे हम बाद में पूछत

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लवण्या आर.......

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सुबह की प्रभात किरणें फूटने को आतुर हो चली थी। चारों तरफ उजाला फैल चुका था और अंधेरे का साम्राज्य छिन्न -भिन्न हो चुका था।.....तो सहज ही था कि चिड़िये के कलरव से वातावरण गूंज उठे। "यूं तो शहर में कंकरी

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भाव्या बिला.....

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सुबह की किरण ने जैसे ही धरती के आँचल को छूआ, चारों ओर प्रकृति खिल सी गई। ऊँची-ऊँची इमारतें अपने बुलंदी पर इतराने लगी। शहर का कोना-कोना प्रकाश से खिलकर इतराने लगा।.....फिर तो इंडिया गेट की चमक तो विशेष

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सलिल का भागदौङ.......

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सुबह के सूर्य उदय होने के साथ ही सलिल आँफिस से बाहर निकला। उसे बाहर निकलता देखकर रोमील भी उसके साथ निकल पड़ा। वे दोनों प्रांगण में खड़ी स्काँरपियों में बैठे, कार श्टार्ट की और आगे की ओर बढा दी। स्काँरपि

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मुक्ता अपार्ट मेंट......

16 सितम्बर 2022
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अब दिन के दस बज चुका था और इसके साथ ही शहर की गतिविधि अधिक तेज हो गई थी। रोजी-रोटी के लिए भागता शहर, यहां हर एक मानव आगे की ओर निकलने की होड़ में लगा हुआ था। सभी अपने-अपने तरीके से रोजगार उपार्जन में ल

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पुलिस की खोजबीन......

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होटल “सांभवी” से लौटने के बाद पहले तो सलिल एवं रोमील ने पेट- पुजा की।.....उसके बाद सलिल ने रोमील को निर्देशित किया कि टाँर्चर रूम में लेकर आए। दिन के ठीक बारह बजे सलिल भल्ला के साथ टाँर्चर रूम में था।

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होटल मृणालिका.......

16 सितम्बर 2022
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अपने- आप में बहुत सुंदर, नाम के ही अनुरूप "होटल" मृणालिका। ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे दुल्हन की तरह सजाया गया हो।....गेट पर खड़े दरबान आने बाले ग्राहकों का विनम्रता से स्वागत कर रहे थे। अंदर कंपाऊंड, जि

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सलिल का होटल मृणालिका पहुंचना......

16 सितम्बर 2022
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सलिल वापस तो पुलिस स्टेशन लौटा, परन्तु आँफिस के काम निपटाने के बाद बोर होने लगा। दूसरे शाम के आलम ने ढलते-ढलते रात का रुप ले लिया था।.....जी हां, अब रात के आठ बज चुके थे, इसलिये सलिल को भूख भी लग गई थ

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उन्नति वियर बार......

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रात के दस बजने के साथ ही उन्नति वियर बार का जलवा अपने चरम पर पहुंचने लगा था।....वियर बार होने के कारण यहां जमकर शराब परोसा जात था। साथ ही यहां ग्राहकों के द्वारा जमकर चरस को धुएँ में उड़ाया जाता था। उस

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सलिल का एस. पी. साहब से मिलना......

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होटल मृणालिका से लौटने के बाद जब सलिल अपने आँफिस में पहुंचा, काफी थक चुका था। उसकी आँखें लाल-लाल हो चुकी थी और सांसें चढने लगा था। ऐसे में उसने कुर्सी के पीछे दीवाल पर सिर टिकाया और कुर्सी पर निढाल हो

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पुलिस मुख्यालय......

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एस. पी. साहब रात के इस समय लैपटाँप पर डटे हुए थे। उनकी आँखों में देखकर ऐसा लगता था कि निंद उनसे कोसो दूर है।....आखिर उन्हें निंद आता भी कैसे? जब उनके इलाके में लगातार दूसरे दिन ही नवजवान लड़की की निर्म

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होटल पृथा......

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रात के तीन बज चुके थे और रात्रि के इस पहर में नीरव शांति छा चुकी थी। हां, इस नीरव शांति को कभी-कभी शहर के आवारा कुत्ते, तो कभी-कभी सड़क पर गुजरती बड़ी गाड़ियों की आवाज तोड़ देता थी। इन आवाज से ऐसा प्रतीत

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इंस्पेक्टर सलिल.......

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होटल पृथा से निकलने के बाद स्काँरपियों ने रफ्तार पकड़ लिया और सड़क पर सरपट दौड़ने लगी।....परन्तु न जाने क्यों सलिल को कुछ न कुछ अजीब लग रहा था। वो जब होटल पृथा में गया था और जबतक वहां पर रहा था। उसे इस ब

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राजीव सिंघला.......

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सूर्य की प्रथम रश्मि ने धरती के आँचल को छू लिया था। ऐसे में धरती खिलखिला उठी थी.....!....मंद-मंद मुस्करा उठी थी। तो फिर शहर की गलियां भी खिलखिला उठे,.... लाजिमी ही था। तभी तो "भाव्या बिला" की सुंदरता

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तांत्रिक भूतनाथ......

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सुबह के आठ बज चुके थे। प्रभात किरण और भी प्रखर हो चुकी थी, परन्तु तेरह अक्तुबर की सुबह, वातावरण में फूल गुलाबी ठंढी का एहसास घुला हुआ था। ऐसे में सलिल पुलिस स्टेशन लौट आया था और अब फाइलों में उलझा हुआ

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सेमीनार.......

16 सितम्बर 2022
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दिल्ली का वह “इंजीनियरिंग एण्ड डेवलपमेंट फाँर यूथ” का विशाल हाँल। गोलाकार शेप में बना हुआ हाँल काफी भव्यता लिए हुए था। उसमें भी बड़ी बात कि यहां “यंग लाइफ” सेमिनार आयोजित होना था,….इसलिये अभी यहां काँल

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होटल सांभवी में तंत्र साधना.....

16 सितम्बर 2022
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दिन के तीन बजने के साथ ही " होटल सांभवी" के आस- पास चहल-पहल बढ गई थी। वैसे तो इस होटल में अपराध घटित हुआ था, यह पुलिस के द्वारा शील कर दिया गया था और इसके रक्षा की जिम्मेदारी सब- इंस्पेक्टर राम माधवन

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न्यूज डिबेट.....

16 सितम्बर 2022
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शाम के छ बजते ही सलिल अपने अपार्ट मेंट पर पहुंच गया था। वैसे ही वो बहुत ही थका हुआ था और दूसरी ये बात थी कि उसे पता नहीं था कि कितनी रातें जागकर बितानी पड़े।.....इसलिये उसने रोमील को पहले ही सोने के लि

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चंद्रिका वन फार्म हाउस......

16 सितम्बर 2022
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शाम के छ बज चुके थे और ढलती हुई सूर्य लालिमा के बीच चंद्रिका वन फार्म हाउस की छटा और भी निखर उठी थी। साथ ही निखरने लगा था बिल्डिंग का रंगत। उस बिल्डिंग के अंदर बेडरूम में सोया हुआ वही सुन्दर युवक, नित

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लवण्या एवं सम्यक का मिलन.......

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लवण्या कार को यूं ही भगाये जा रही थी, बेतहाशा, बिना किसी मकसद के। उसका तो रोज का ही काम था, दिल्ली की सड़क को छानना। बस वह एक झलक पाना चाहती थी और अचानक ही उसकी कार एक्सीडेंट होते-होते बची। उसे तो लगा

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तीसरी हत्या होटल सन्याल में.......

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रात के नौ बज चुके थे, इसलिये आस-पास के इलाके में अब धीरे-धीरे शांति पसरने लगी थी। उसी शांति के आभास में तो सभी जीते है,.....परन्तु हाँल में अभी शांति नहीं थी, क्योंकि टीवी मध्यम आवाज में अभी भी चल रही

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वियर बार में सम्यक एवं लवण्या......

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रात के ग्यारह बज चुके थे। अब तो वियर बार में भीड़ छंटने लगी थी और संभवतः घंटे भर बाद बंद भी होने बाला था। ऐसे में सम्यक ने लवण्या के आँखों में देखा, फिर गंभीर स्वर में बोला। लवण्या.....मेरे विचार से र

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सम्यक की खुशी और ईश्वर आराधना.......

18 सितम्बर 2022
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रात के बारह बजने को ही था, तभी सम्यक की कार अपार्ट मेंट के अहाते में आकर लगी। फिर वो तेजी से बाहर निकला और अपने फ्लैट की ओर बढा, लाँक खोली और अंदर प्रवेश कर गया। अंदर धूप्प अंधेरा था, ऐसे में हाथ को ह

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सलिल का तांत्रिक भूत नाथ से मिलना और भूत नाथ की तांत्रिक क्रिया.......

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एस. पी. साहब के जाने के बाद सलिल गहरी निंद में सोया था और इसके कारण ही उसको राहत की अनुभूति हो रही थी। उसने देखा कि रोमील के चेहरे पर भी ताजगी थी और उस ताजगी को देखकर समझ गया था कि उसके सोने के बाद वह

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पुलिस को कोर्ट की नोटिश........

18 सितम्बर 2022
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अपने आँफिस में लौटते-लौटते सलिल को दस बज गए। करीब दस बजे वह अपने आँफिस में पहुंचा और पहुंचते ही चौंक गया। उसने जैसे ही आँफिस में कदम रखा, अपने टेबुल पर रखे हुए लिफाफे को देखकर उसे चार सौ चालीस बोल्ट क

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कोर्ट रुम........

18 सितम्बर 2022
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दिन के बारह बजे। रोहिणी कोर्ट का प्रांगण, हलचल होता हुआ, वहां हर एक को जल्दी थी। किसी को अग्रिम जमानत चाहिए था, इस कारण से वकीलों से उलझा हुआ था। तो किसी के केस तारीख की पेशी थी। ऐसे में कोर्ट रूम के

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