इंस्पेक्टर सलिल वैभव!
नाम के ही अनुरूप शालीनता थी, लेकिन वह तभी तक, जब तक कि उसके मातहत उसके अनुरूप कार्य करते थे। अन्यथा तो थोड़ी सी गलती हुई नहीं कि सलिल से तूफान बनते देर नहीं लगती थी। फिर तो मत पुछो, जिससे भी गलती हुई, उसकी तो बन आती थी। फिर तो उस पूरे दिन को सलिल उसके ही पीछे हाथ धो कर पड़ जाता था।... लंबा कद, भरा हुआ चेहरा और शरीर, कड़क मूंछ और बिल्लौरी आँखें। उसपर गोरा रंग, काफी आकर्षक व्यक्तित्व था, सलिल का।
इस समय शाम के आठ बज चुके थे और रात का अंधेरा ढलने के साथ ही पूरा पुलिस स्टेशन रोशनी से नहा गया था।....दिल्ली का पाँस इलाका होने के कारण यहां के स्टाफ की जिम्मेदारी भी अधिक थी। दूसरे सलिल किसी भी कार्य को टालने बालों में से नहीं था। इस कारण से यहां के स्टाफ अपने कार्य को निपटाने में मुस्तैद रहते थे।.....यही कारण भी था कि रात के आठ बजने के बाद भी यहां फरियादियों की भीड़ लगी हुई थी। जबकि सलिल वैभव इधर-उधर घूम रहा था।...परन्तु उसकी तेज नजर वहां पर कार्य कर रहे स्टाफ पर ही टिकी थी।
उसके व्यवहार का ही खौफ था कि पुलिस बाले मुस्तैदी के साथ अपने कार्य को अंजाम दे रहे थे। वैसे भी अभी सलिल वैभव के पास कोई काम नहीं था और खाली दिमाग तो शैतान का घर होता ही है। लेकिन कब तक? आखिर कब तक वो हाँल में चक्कर लगाता। एक समय ऐसा भी आया कि उसके पांव थकने लगे और फिर वो उस तरफ बढा, जिधर खाली बेंच थी। बेंच पर बैठने के साथ ही उसने सिगरेट की पैकेट निकाली और फिर सिगरेट सुलगा कर होंठों में फंसा लिया। फिर हल्का कश लेकर सोचने लगा।
आजकल उसके इलाके में शांति का साम्राज्य है, नहीं तो क्राइम घटित होने पर उसकी परेशानी बढ जाती है। लेकिन आजकल उसके इलाके में छिटपुट अपराध को छोड़ कर कोई वारदात नहीं हो रहा। "क्या यह उसके लिए कम राहत की बात है" अन्यथा तो उसे पता ही नहीं चलता कि दिन कब हुआ और रात कब हुई। हाश! अब रोमील आ जाए, तो आज की कोई खास योजना बनाए।" वैसे भी उसको बहुत दिन हो गए, इस शहर का भ्रमण किए हुए, इसकी खुली हवा में सांस लिए हुए। अब बस रोमील के आने की देर है! वह उसके साथ निकलेगा और सब से पहले किसी फेमश वियर बार में जाएगा। वहां छक कर शराब को गटकेगा, उसके बाद किसी मल्टीप्लैक्स में जाकर सिनेमा देखेगा, नहीं तो ऐसे ही शहर की सड़कों को नापेगा।
सलिल अभी तक कुँवारा था, हां गांव में उसकी एंगेजमेंट हो चुकी थी।.....परन्तु अभी तक वो अपनी होने बाली दुल्हनियां से एक तरह से अंजान ही था। बनारस के ठेठ देहात की रहने बाली उसकी होने बाली दुल्हनियां शर्माती बहुत थी। ऐसे में सलिल का उसके करीब जाना, बस एक ख्वाब के समान ही था। परिस्थिति ऐसी थी कि रोमील ही उसे ऐसे समय में सहारा प्रतीत होता था।" रोमील उसका मातहत था और उसके साथ सलिल की अच्छी-खासी जमती थी"। या फिर यूं कहा जा सकता था कि सब इंस्पेक्टर रोमील उसके हर एक राज का राजदार था।
उफ! सहसा ही सलिल के होंठों से हल्की आह सी निकली।....कारण कि सिगरेट जलता हुआ उसके अंगुली के पास पहुंच गया था और उसे जलन महसूस हुई थी। विचारों में वो ऐसा खोया था कि उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी सिगरेट जल कर उसके अंगुली तक पहुंच गई।" होता है, कभी-कभी इंसान अपने बीते दिनों अथवा आने बाले कल को लेकर इस प्रकार उलझता है कि उसके साथ ऐसी छोटी-मोटी घटनाएं घटित हो-ही जाती है। उसको जलन महसूस होना और तभी रोमील ने हाँल में कदम रखा। उसने देख लिया, सलिल को चौंकते हुए और उसके अंगुली तक जली सिगरेट पहुंचते हुए। इसलिये उसके होंठों पर सहज ही मुस्कान थिरक उठी।
जबकि उसे मुस्कराता देखकर सलिल थोड़ा सा आवेशित हुआ। एक तो उसके एक छोटी सी भूल ने उसके अंगुली को तपिश दे-दी है। उसपर रोमील मुस्करा रहा है” तो उसे लगा कि उसके जले पर नमक छिड़क रहा हो।.....परन्तु कोई बात नहीं, उल्लू के पट्ठे को समय आने पर सबक जरूर सिखाएगा “ऐसा सबक सिखाएगा कि फिर कभी रोमील ऐसी हिमाकत नहीं करेगा। सोचता हुआ सलिल उठा और अपने आँफिस की ओर बढा। ...रोमील तो बस उसकी परछाईं मात्र था, तो उसका अनुसरण करने लगा। दोनों जैसे ही आँफिस में पहुंचे, सलिल ने आँफिस को अंदर से लाँक किया और रेफ्रीजरेटर की ओर बढा। जबकि रोमील पेंट्री की ओर बढा।
करीब पांच मिनट बाद ही दोनों आँफिस चेयर पर बैठे थे, जबकि उनके सामने टेबुल पर रम की बोतल, स्नेक्स और दो गिलास के साथ पानी की जग रखी हुई थी। यह तो उनका प्रतिदिन का नियम था कि आँफिस से निकलने से पहले दो-दो पैग हलक में उतार ले। वैसे भी दोनों एक ही बंगले में रहते थे।" फिर तो आज सलिल ने वैसे ही आज जमकर पीने का मुड बना लिया था"। तो स्वाभाविक ही था कि दोनों वहां से गला तर कर के ही निकलते। अब शराब सामने रखी थी, तो रोमील जानता था कि उसे क्या करना है। अतः वह जाम तैयार करने लगा, जबकि सलिल उसके चेहरे को देखने लगा। अभी उसके नजर में गंभीरता थी, परन्तु उसके हावभाव में कोई तबदीली नहीं थी। उसके हावभाव से पता नहीं चल सकता था कि वह रोमील के चेहरे को देख भी रहा है, वह भी तिरछी नजरों से।
रोमील! सहसा ही सलील धीमे स्वर में बोला।
यश सर! रोमील ने भी पुरी तत्परता के साथ जबाव दिया। जबकि उसकी तत्परता देखकर सलिल के होंठों पर सहज ही मुस्कान आ गई, फिर वह बोला।
रोमील! आजकल शहर में शांति-शांति है, है न।
मैं आपके बोलने का तात्पर्य नहीं समझ सका। रोमील चौंक कर बोला, जबकि सलिल अपनी ही रौ में बोला।
मेरे कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि आजकल अपने इलाके में वारदात का ग्राफ घटा है। छोटे-मोटे अपराध को छोड़ दे, तो कोई बड़ी घटना नहीं हुई है। सलिल बोलकर चुप हुआ ही था कि रोमील ने तैयार हो चुके जाम की ओर इशारा किया। फिर दोनों ने गिलास उठाया और एक स्वर में बोले।
चियर्स!
इसके बाद दोनों ने हलक में जाम को उड़ेल लिया। कड़वा सा मुंह बना दोनों का, लेकिन कोई फर्क नहीं। उन्होंने तत्काल ही दूसरा जाम भी बनाया और पी गए। हलांकि रोमील कहना ही चाहता था कि सर, आप चाहते हो कि यह शांति नहीं रहे?" आपका इरादा तो नहीं कि अपने इलाके में वारदात का सिलसिला शुरु हो? लेकिन उसने अपना इरादा बदल लिया। जबकि सलिल ने घड़ी देखी" रात के दस बजने बाले थे"। समय देखते ही सलिल अपनी शीट से उठा, तभी उसके मोबाइल ने वीप दी। “इस वक्त कौन हो सकता है? “सोचकर उसने काँल रीसिव किया और उधर से जो कहा गया" उसे लगा कि उसके कान के पास किसी ने बम फोड़ा हो और जोरदार धमाका हुआ हो। एक पल में ही सलिल के सभी मसामों ने पसीना छोड़ दिया, वो पसीने से पूरी तरह भीग गया।
************
क्रमशः-