रात के तीन बज चुके थे और रात्रि के इस पहर में नीरव शांति छा चुकी थी। हां, इस नीरव शांति को कभी-कभी शहर के आवारा कुत्ते, तो कभी-कभी सड़क पर गुजरती बड़ी गाड़ियों की आवाज तोड़ देता थी। इन आवाज से ऐसा प्रतीत होने लगता था कि शहर अभी भी सजीव है। ऐसे में रोहिणी जिले का विजय विहार इलाका, इसके अंतर्गत इंडस्ट्रियल एरिया भी आता था, परन्तु पाँश इलाका होने के कारण इस इलाके में ज्यादातर शांति ही रहता था।
इसी इलाके में होटल "पृथा" थी, दुल्हन की तरह सजी-धजी। इस होटल में "चौबीस" घंटे ग्राहकों को सर्विस दिया जाता था, इसलिये इस होटल में ज्यादा ही चहल-पहल रहती थी। पाँश इलाके में होने के कारण इस होटल में ज्यादातर ग्राहक अमीर ही होते थे। फिर भी कम शुल्क एवं अच्छी सर्विस के कारण यहां मध्यम वर्गीय परिवार के ग्राहकों की तादाद भी आमद होती रहती थी। तभी तो रात के इस समय "होटल के हाँल" में बलजीत बैठा हुआ शराब पी रहा था। सभी आधुनिक सुविधा से लैस इस होटल एवं इसके हाँल में इस समय ग्राहकों की संख्या कोई ज्यादा नहीं थी।
इस समय हाँल में कुल पांच ग्राहक बैठे हुए थे और भोजन के साथ ही शराब की भी चुस्की ले रहे थे। परन्तु होटल के वेटरों के चेहरे ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा था कि उन्हें किसी प्रकार की परेशानी हो। वे तो उतनी ही तन्मयता से ही ग्राहकों को "आँडर" सर्व करने में लगे हुए थे। इधर बलजीत के टेबुल पर स्काँच की दो बोतल, जिसमें से एक पी चुका था और खाने के लिए आईटम रखा हुआ था। परन्तु वो खा कम रहा था और पीने में ज्यादा लगा हुआ था।.....हाँल की जलती हुई दुधिया रोशनी में स्पष्ट देखा जा सकता था कि उसकी आँखें क्रोध के आवेश में जल रही थी।
हां, ऐसा भी बिल्कुल नहीं था कि उस पर सिर्फ क्रोध ही हावी था। उसने नशा भी बहुत कर लिया था और क्रोध एवं शराब "दोनों का मिला-जुला असर था उसपर। उसे जब से सान्या सिंघला ने तिरस्कृत किया था, वो अपमान की आग में जल रहा था। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि भला उसमें ऐसी क्या कमी थी कि सान्या ने उसके साथ ऐसा किया?.....बस इसी अपमान की ज्वाला में जलते हुए उसने सान्या का पीछा किया था। उसने देखा था कि सान्या दो घंटे पहले इसी होटल के रूम में उस युवक को लेकर गई थी।.....बस उसने खतरनाक फैसला कर लिया था और कहीं से "देशी कट्टा" उठा लाया था कि आज सान्या का काम ही तमाम कर देगा।
इसलिये ही तो वो इस होटल में ग्राहक बना बैठा था और इंतजार कर रहा था कि "सान्या" कब उस युवक के साथ बाहर निकले और कब वो उसको ठिकाने लगा दे।.....बलजीत ने देख लिया था कि सान्या की कार होटल के कंपाऊंड में ही लगी थी, इसलिये वो बड़े आराम से शराब के प्याले को होंठों से लगाकर गटक रहा था। परन्तु उसकी आँखें चौकन्नी थी और वो हाँल में देख रही थी। तभी तो अचानक ही वह चौंका, क्योंकि रात के इस समय वहां, होटल के इस हाँल में सलिल एवं रोमील ने कदम रखा।.....उनको यहां आए हुए देखकर बलजीत की भँवें तन गई। रात के इस समय पुलिस का यहां क्या काम?
प्रश्न स्वाभाविक ही था, जो कि बलजीत के मन में उठा था। परन्तु सलिल एवं रोमील को उनके प्रश्न से किसी प्रकार का मतलब नहीं था। वे तो अपना समय निकालने और रुटिन चेकिंग के लिए ही इस होटल में आए थे। वैसे भी "दो दिन और हुई दो हत्याओं " ने उनके दिमाग को घुमाकर रख दिया था। इसलिये वे आराम करने की बजाय पेट्रोलिंग पर निकले थे और निंद लग रही थी, इसलिये इस होटल में काँफी पीने आ गए थे। इसलिये वे दोनों आगे बढे और खाली टेबुल पर बैठ गए, साथ ही वेटर को दो गरमागरम काँफी लाने के लिए आदेश दिया। फिर वे दोनों काँफी सर्व होने का इंतजार करने लगे। जबकि बलजीत, उसे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करें।
उसके आवेशित आँखों में अब निराशा के बादल मंडराने लगे थे। कहां तो उसने सोचा था कि वह सान्या सिंघला से बदला ले-लेगा और कहां पुलिस बाले अचानक ही टपक पड़े थे। उफ! इसे ही तो कहते है कि " सिर मूंडाते ही ओले पड़े", यह मुहावरा उसके ऊपर चरितार्थ होती हुई सी प्रतीत हो रही थी।.....परन्तु बलजीत दिल्ली का रहवासी था, अतः उसके अंदर हौसला कूट-कूट कर भरा हुआ था। इसलिये उसने मन ही मन फैसला कर लिया कि चाहे जो हो जाए,.....आज वो अपना बदला लेकर ही रहेगा। फिर तो इतनी बातें सोचने के बाद बलजीत अपने लिए पैग तैयार करने लगा, जबकि उसकी तिरछी नजर सलिल एवं रोमील पर ही टिकी रही।
उधर सलिल एवं रोमील के आगे काँफी सर्व हो चुका था। इसलिये दोनों काँफी के चुस्की लेने लगे थे,....परन्तु इस बात से अनभिज्ञ कि कोई उनको चोर नजरों से देख रहा है। समय अपनी रफ्तार से आगे की ओर बढता जा रहा था और बीतते समय के साथ ही बलजीत के चेहरे पर बेचैनी परिलक्षित होने लगी थी। लेकिन उसे अब ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा, क्योंकि उसकी आँखों ने देखा कि सान्या सिंघला सीढ़ियों से उतर रही है और उसके पीछे-पीछे वो नौजवान भी उतर रहा है। फिर क्या था,.....बलजीत भी अपनी जगह से उठा और कैश काउंटर की ओर बढा। लेकिन उसकी नजरें सान्या सिंघला पर ही टिकी रही। बलजीत ने मन ही मन फैसला कर लिया था कि चाहे जो हो जाए, "वो आज अपने शिकार को बचकर नहीं जाने देगा"।
बलजीत ने जबतक बील के पैसे चुकाये, सान्या सिंघला उस युवक के साथ होटल गेट से बाहर निकल चुकी थी। अतः उसने भी पैसे चुकाने के बाद बाहर की ओर कदम बढा दिए।....परन्तु वो कहां जानता था कि आज उसके नियति में निराशा ही हाथ लगना लिखा है।.....जब वो होटल गेट से बाहर निकला, उसने सान्या को कार की ओर बढते देखा और फिर बस। उसने अंधेरे की ओट ली और हथियार निकालना ही चाहता था। तभी उसकी नजर बाहर की ओर आ रहे सलिल एवं रोमील पर गई।....उसके हौसले ही पस्त हो गए, उसने जो हिम्मत संजोया था, टूट-टूट कर बिखर गये। अब इस परिस्थिति में शिकार पर वार करना, "मतलब कि खुद ही शिकार हो जाने के बराबर था" और वो कदापि नहीं चाहता था कि ऐसे किसी झमेले में फंसे।
इसलिये उसने फिलहाल अपने इरादे को बदल दिया और नजर उधर ही टिका दी, जिधर सान्या सिंघला गई थी। बलजीत की सजग नजर देख रही थी कि सलिल एवं रोमील भी उधर ही बढा था, क्योंकि उनकी स्काँरपियों उधर ही पार्क थी। सलिल एवं रोमील कार में बैठे, श्टार्ट की और बाहर की ओर बढा दी। बलजीत की आँखें देख रही थी कि पुलिस की कार होटल के गेट से निकली और सड़क पर फिसलती चली गई। हाश!....... अब वो अपनी योजना को अंजाम दे सकता है। सोचकर बलजीत ने जैसे ही "देशी कट्टे" को बाहर निकाला, तभी अफसोस, सान्या सिंघला की कार भी गेट से बाहर निकल गई और मिनट भी नहीं लगा,...आँखों से ओझल हो गई। अब तो बलजीत और भी निराश हो गया।
उफ!......जिंदगी कितनी हैरान करती है। एक तो वो शांत स्वभाव का था,....परन्तु जीवन में पहली बार उसने कुछ सोचा था और उसकी भावना पर तुषारापात हो गए थे।....कभी-कभी मानव के जीवन में ऐसी घटनाएँ भी घटित हो जाती है, जिसका बेवजह का दंश उसे सालता रहता है।....तभी तो वह शांत चित रहने बाला, अचानक ही क्यों सान्या सिंघला से मिला और उस काली नागिन ने उसके पौरुष को ललकार दिया? आखिर वह भी तो पुख्त वय पुरुष है,...."अपने साथ हुए इस अपमान को कैसे सह सकता है?....इतनी बातें सोचने के बाद बलजीत ने मन ही मन फैसला किया कि आज तो नाकामी मिली, परन्तु सान्या का हिसाब वो कल करेगा। इतनी बातें सोचकर वो अपनी कार की तरफ बढा।
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क्रमशः-