शाम के छ बज चुके थे और ढलती हुई सूर्य लालिमा के बीच चंद्रिका वन फार्म हाउस की छटा और भी निखर उठी थी। साथ ही निखरने लगा था बिल्डिंग का रंगत। उस बिल्डिंग के अंदर बेडरूम में सोया हुआ वही सुन्दर युवक, नितांत घोड़े बेच कर सो रहा था। लेकिन म्यूजिक सिस्टम चालू था और उसपर मुहम्मद रफी के नगमें गुंज रहे थे। बीतते समय के साथ ही सूर्य की किरणें क्षीण होती जा रही थी और लग रहा था कि कभी भी सूर्य देव विश्राम करने को अस्ताचल में चले जाएंगे।
उस युवक का चेहरा निंद्रा अवस्था में और भी मासूम लग रहा था, इतना मासूम कि किसी की भी नजर लग सकती थी।....परन्तु वो ज्यादा देर तक नहीं सोया रह सका, क्योंकि अलार्म की आवाज ने अचानक ही उसके निंद में खलल डालने को उद्धत हो गया.....और उसकी आँख खुल गई। उसने आँख खुलते ही सबसे पहले कलाईं घड़ी को देखा, शाम के छ बजकर दस मिनट हो चुके थे।....उफ! वो तो बहुत देर तक सोया ही रह गया, इस प्रकार के विचार सहज ही उसके मन में उभड़े और वो फुर्ती के साथ बेड पर उठकर बैठ गया,....साथ ही उसने अपनी नजर रूम में चारों ओर फैलाई। कहीं किसी प्रकार का बदलाव नहीं था, मतलब कि सामान्य ही था। ऐसे में अब उसे बाहर निकलना चाहिए।
सोचते ही वह उठा और चलता हुआ हाँल में आ गया और जैसे ही उसने हाँल में कदम रखा, उसकी नजर टेबुल पर रखी भरी हुई शराब की बोतल पर गई। ओह!.....फेनी, मजा आ जाएगा। सहसा ही उसके मुख से निकला, क्योंकि टेबुल पर "फेनी" की ही बोतल थी और यह उसके लिए सब से उम्दा शराब की क्वालिटी थी।.....इसलिये फिर तो वो अपने-आप को रोक नहीं सका और दो ही कदमों में टेबुल के पास पहुंच गया "और दूसरे ही पल शराब की बोतल उसके हाथ में थी"। फिर देर किस बात की, क्योंकि वह तो उतावला हो चुका था पीने के लिए, इसलिये उसने दांतों से काँक को खोला और गट- गट पीने लगा।
मानव मन बहुत ही अजीब है, जिसको आज तक न तो कोई समझ सका है और न ही कोई इसपर लगाम ही लगा सका है। इस "मन" ने सृष्टि के शुरु से लेकर अब तक, इसके जी में आया है, वही किया है। भले ही उसके परिणाम फिर दुख-दाई ही क्यों नहीं हो। बस यही हाल उस नौजवान की थी जो अभी सोकर उठा ही था और शराब को शर्बत की भांति पीए जा रहा था। यहां तक कि उसकी सांसें फूलने लगी थी,.....परन्तु उसने पीना नहीं छोड़ा और बोतल को तभी अपने मुंह से हटाया, जब वह पूरी तरह से खाली हो गई। हां, बोतल खाली होते ही उसके आँखों में संतुष्टि के भाव दृष्टिगोचर हुए। फिर तो उसने खाली बोतल को टेबुल पर रखा और वही रखे सोफे पर बैठ गया। इसके बाद सहसा ही उसे जैसे कुछ याद आया हो, उसने दीवाल पर लगी टीवी को आँन किया और "न्यूज तक “चैनल को लगा दिया।
परन्तु जैसे ही उसकी नजर टीवी पर होते डिबेट पर गई, उसके चेहरे पर मुस्कान उभड़ आई। ओह!....यह न्यूज बाले भी न, बिना मतलब के ही कोई कार्यक्रम तड़का लगाकर जनता के सामने प्रस्तुत कर देते है और जनता देखकर पागल होती रहती है। इन बातों को सोचकर फिर उसके होंठों पर मुस्कान आई,....साथ ही उसे तलब भी लगी। इसलिये उसने जेब से चरस की पुड़िया निकाल ली और बनाकर चिलम भरने लगा। लेकिन उसकी नजर अनवरत ही टीवी स्क्रीन पर टिकी रही, मानो वो न्यूज समझने की कोशिश कर रहा हो। परन्तु उसके चेहरे के हाव-भाव से ऐसा नहीं लगता था कि उसके पल्ले कुछ पड़ रहा हो।.....हां, यह अलग बात थी कि उसका चिलम तैयार हो चुका था, इसलिये उसने सुलगा ली और कश खींचने लगा।
गाढे धुएँ की मोटी परत हाँल में फैल गई, लेकिन उससे-उसको क्या? उसे तो बस तसल्ली चाहिए थी और इसलिये वो तबतक कश खिंचता रहा, जब तक कि "चिलम में रखी वस्तु" राख में नहीं बदल गई। इसके बाद आँखों में संतुष्टि का भाव लिये उसने लैपटाँप उठाया और उसके की-बोर्ड से छेड़छाड़ करने लगा। इसके साथ ही उसके चेहरे पर गंभीरता छा गई। लगा कि जैसे कोई बहुत ही महत्वपूर्ण बिजनेस डील हो, जिसे वो लैपटाँप के द्वारा निपटा रहा हो। उसके चेहरे पर नितांत शांति पसरा हुआ था, चिर परिचित शांति का साम्राज्य। लेकिन आँखें, उसकी आँखें बिल्कुल भी शांत नहीं थी और लैपटाँप के स्क्रीन पर दौड़ रही थी।
समय बीतता जा रहा था और वो अपने काम की गति को बढाए जा रहा था। तभी अचानक ही उसके मोबाइल ने वीप दी और इसके साथ ही हाँल की लाइट जलने-बुझने लगी। इसके साथ ही वह रहस्यमयी शब्द "रति संवाद-रति संवाद" हाँल में गुंजने लगा। इसके साथ ही उस नौजवान के चेहरे के भाव भी परिवर्तित हो गए। ऐसा लगा कि.....उसके मासूम चेहरे पर पलक झपकते ही "खौफ" ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया हो। उसके आँखों के चारों ओर स्याह परत सी फैल गई और पल भर में ही वो पसीने से नहा उठा। फिर तो वो एक पल भी बैठा नहीं रह सका। उसने तेजी से सोफे को छोड़ा और उठ खड़ा हुआ, एवं तेजी से मोबाइल की ओर लपका एवं काँल रीसिव किया।
इसके साथ ही रूम की स्थिति सामान्य हो गई। फिर तो वो फोन पर बात करने में उलझ गया और जब काँल कट हुई, उसके चेहरे पर निश्चिंतता के भाव थे। इसके बाद तो उसने तेजी से अपने कपड़े बदले और तेजी से बाहर निकला। बाहर बिल्डिंग के अहाते में उसकी फिएट कार खड़ी थी, जिसमें बैठने के साथ ही उसने कार श्टार्ट करके आगे बढा दी। कार जैसे ही फार्म हाउस के गेट से निकली, सड़क पर आते ही रफ्तार पकड़ लिया। फिर तो पांच मिनट भी नहीं बीते होंगे कि कार जंगल से निकल कर दिल्ली की मुख्य सड़क पर दौड़ने लगी। तब उस नौजवान ने कार के शीशे से बाहर देखा, बाहर अंधेरा ढल चुका था और इसके साथ ही शहर रोशनी से जगमग करने लगी थी।
परन्तु उस नौजवान को जैसे इन बातों से कोई मतलब न हो। हां, उसे बिल्कुल भी मतलब नहीं था, क्योंकि उसे भूख लगी हुई थी और अपनी क्षुधा शांत करने के लिए वो किसी ढाबे की तलाश में था। वो ऐसे ढाबे की तलाश में था,....जहां स्वादिष्ट भोजन की सुगंध आती हो और वो जी भर कर भोजन कर सके। बस इसी तलाश में वो "कार" को फूल रफ्तार में भगाये जा रहा था। परन्तु.....उसके मन में एक बात बार-बार घूमर कर आ रही थी कि आखिर न्यूज बाले को क्या-क्या सूझता रहता है। बात-बे बात के भी "डिबेट" आयोजित कर देते है और "तुक्का" लगाने की कोशिश करते है। लेकिन जब सारे काम यही कर लेंगे, तो फिर पुलिस बाले की जरूरत ही क्या है?
घर्रर्रर्र......घर्र!
सहसा ही टायरों के घिसटने की आवाज से इलाका गुंज उठा। क्योंकि अचानक ही उसको तेजी से ब्रेक दबाने पड़े थे, जिसके कारण उसकी कार "कुछ दूर" तक सड़क पर घिसटती चली गई थी और ऐसा इसलिये हुआ था कि अचानक ही उसके सामने दूसरी कार आ गई थी और उसने ब्रेक न लगाए होते,....भयावह टक्कर हो जाती। लेकिन जैसे ही उसने सामने बाली कार में ड्राइविंग शीट पर बैठी हुई लड़की को देखा,...उसके हौसले पस्त हो गए। फिर तो उसने तेजी से कार पीछे ली और बगल से बड़ी सफाई से कार आगे निकाल ली। जब कार आगे निकली, उसके चेहरे पर राहत के भाव दृष्टिगोचर हुए। फिर तो उसने कार की रफ्तार बढा दी और अपनी उखड़ी हुई सांसों को नियंत्रित करने लगा। साथ ही सोचने लगा कि आज वो बाल-बाल बचा।
उस नौजवान को शांत होने में करीब पांच मिनट लग गए। उसके बाद वो सोचने लगा। उफ!.....आज तो वो बाल-बाल बचा, नहीं तो उससे सामना हो जाती। फिर तो वह उसके बेतुके सवालों के जबाव किस प्रकार से देता? ओह गाँड!.....भला वो उस लड़की के चेहरे को किस प्रकार से भूल सकता है, उसका चेहरा तो लाखों में पहचान लिया जाए,...."ऐसी है"। परन्तु गनीमत है कि आज वो बच गया। इतनी बातें सोचने के बाद उस नौजवान ने राहत की सांस ली और फिर कार को उस सड़क से दूसरी सड़क की तरफ दौड़ा दिया, तभी थोड़ी दूर पर ही उसकी नजर "ढोला दी ढाबा" पर गई और उसने कार रोक दिया।
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क्रमश:-