रात के आठ बज चुके थे!
यूं तो शहर रात के आगोश में समा चुका था, परन्तु शहर रोशनी में पूरी तरह नहा चुका था। होटल "सांभवी" को दुल्हन की तरह सजाया गया था। काफी क्षेत्रफल में फैला हुआ होटल "सांभवी", आगे विशाल कंपाऊंड और चारों तरफ ऊँचा बाऊँड्री बाँल। रात के आठ बजने के साथ ही यहां भीड़ बढने लगी थी। ग्राहकों का आने का सिलसिला शुरु हो चुका था।
वैसे भी होटल सांभवी अपने सर्विस के लिए कम, कपल जोड़ो को सुविधा देने के लिए ज्यादा कुख्यात था। यहां पर कानून की नजर में गलत हर वो कदम, जिसकी मनाही थी, किया जाता था। आप जो चाहते हो, चाहे नशा हो या कोई दूसरी सुविधा, यहां पैसे के बल पर सर्व की जाती थी। यही कारण भी था कि यहां पर ग्राहकों में कपल जोड़ो की अधिकता अधिक रहती थी। अभी भी यहां पर ऐसे ही ग्राहकों की तादाद ज्यादा थी, जो अपने जिस्म की भूख मिटाना चाहते थे और एकांत चाहते थे। उसमें भी ऐसे कपल ज्यादा थे, जो शादी -शुदा नहीं थे।
साथ ही यहां पर ग्राहकों को पीने के लिए शराब पूरी छूट के साथ परोसी जाती थी और इस समय भी वेटर ग्राहकों को शराब सर्व करने में जुटे हुए थे। इसके साथ ही हाँल में चरस का धुआँ फैल रहा था, स्पष्ट था कि वहां कुछ नशा के ऐसे भी शौकीन थे, जो शराब पीने के साथ ही चरस को भी फुंके जा रहे थे। जिस कारण से हाँल का माहौल कुछ अजीब था। "वहां लगे हुए नीले बल्ब के प्रकाश में उठता हुआ धुआँ, अजीब सा तिलस्मी नजारा बना रही थी"। शायद इसलिये ही यह होटल शराब-शबाब के शौकीन लोगों की पहली पसंद थी।
समय अपने रफ्तार से आगे की ओर बढता जा रहा था और उसी रफ्तार से आगे बढती जा रही थी, हाँल में फैली हुई मादकता। सभी आज की शाम को जी भरकर जी लेना चाहते थे। वहां मौजूद हर वो शख्स की तमन्ना यही थी कि आज जितना मजा लेना हो, ले- लो, "क्या पता कल हो, न हो। हाँल में मस्ती का आलम धीरे-धीरे उफान की ओर बढ रहा था, तभी होटल गेट पर एक इनोवा कार आ कर रुकी "और उसमें से कपल जोड़े उतरे। लड़की नंदा, जो कि अमीर घर की थी। नख से सीख तक कमायनी, सुंदरता की प्रति मूर्ति थी वो।...गठा हुआ शरीर सौष्ठव, ऊँचे कपाल, घने रेशमी बाल, तीखे- कजरारे नैन और मधु से रसीले ओंठ। उसकी सुंदरता ऐसी थी कि कोई भी मर्द उसकी ओर खींचा चला आता, उसे पाने के लिए ललचा उठता।
जबकि लड़का श्रेयांश,....मध्यम वर्गीय परिवार का, लेकिन आकर्षक व्यक्तित्व। लंबा कद, सुंदर नयन-नक्श और गौर वदन, उसपर घने काले बाल, जुल्फ बने हुए। दोनों की जोड़ी ही लाजवाब लग रही थी। उन दोनों की उम्र यही करीब बीस के करीब होगी। उन्होंने अभी-अभी जवानी के दहलीज पर कदम रखा था और उसका मजा लेने के लिए ही वहां आए थे। तो स्वाभाविक ही था कि उनके व्यवहार में अधीरता हो। वे दोनों कार से बाहर निकले और तेजी से होटल के अंदर प्रवेश कर गए। .....परन्तु वे हाँल में नहीं रुके, वे उस तरफ बढे, जिधर रूम था। सीढ़ियों से चलकर दोनों फर्स्ट फ्लोर पर रूम नंबर पच्चीस के गेट पर पहुंचे। तब तक वहां एक वेटर चाँबी लेकर पहुंच चुका था, उसने गेट खोला और दोनों अंदर प्रवेश कर गए।
"रूम क्या था" सुविधाओं से लैस विशाल आराम गाह कहा जाए, तो गलत नहीं होगा। वहां सुख-सुविधा की हर एक वस्तु मौजूद थी। वहां के ऐश्वर्य को देखकर श्रेयांश की आँखें चुँधिया गई। उसने अपने जीवन में इस प्रकार के सुख की कभी कामना नहीं की थी, जो उसे आज मिलने बाला था। साथ ही उसने रूम को एक बार देखने के बाद अपनी नजर नंदा के जिस्म पर टिका दी।.....भूखी नजर, मानो आँखों ही आँखों में नंदा को खा जाना चाहता हो। वैसे तो आज दोनों जिंदगी के मजे लेने के लिए ही यहां आए हुए थे....परन्तु लगता था कि श्रेयांश का धैर्य जबाव दे रहा था। वह शिकारी की तरह अपने शिकार पर टूट पड़ना चाहता था। नंदा भी तो बेताब थी, वो श्रेयांश के आँखों की भाषा समझ रही थी, इसलिये शर्मा गई और तेजी से फ्रेश होने के लिए वाथरुम में चली गई।
उसके जाते ही श्रेयांश कुदककर बेड पर बैठ गया और नंदा के आने का इंतजार करने लगा। तब तक वेटर आ कर उनका आँडर, “स्काँच की बोतल, स्नेक्स के प्लेट, आईश क्यूब एवं गिलास" सर्व कर चुका था। तब तक नंदा भी वाथरुम से निकल आई, एवं उसके बगल में बैठ गई। फिर उनके बीच पीने-पिलाने का दौर शुरु हुआ। परन्तु इस दरमियान भी श्रेयांश की भूखी नजर नंदा के जिस्म को ही ताड़ती रही। नंदा भी इस बात को बखूबी समझती थी, आखिर वह श्रेयांश को यहां पर इसलिये ही तो लेकर आई थी। ऐसे में जब दोनों को हल्का नशा चढने लगा, नंदा ने शरगोशी की।
श्रेयांश.....तुम भी न, सच-सच बतलाना कि इससे पहले जिंदगी का मजा लिए हो? नंदा ने प्रश्न पुछा और फिर उसके आँखों में देखने लगी, जबकि श्रेयांश एक पल रुका और फिर बोला।
नहीं तो, कभी नहीं! बोलने के बाद श्रेयांश एक पल के लिए रुका, फिर बोला। वैसे तुम..." मुझ से प्यार करती हो न?
हां तो, लेकिन तुमने ऐसा क्यों पुछा? नंदा सहज ही बोली।
वो इसलिये कि कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम बाद में मेरा साथ छोड़ दो। श्रेयांश ने बोला, फिर थोड़ी देर रुककर नंदा की आँखों में देखता रहा, उसके बाद बोला। नंदा..... हम ऐसा क्यों न करें कि शादी कर लें।
लेकिन क्यों?.....यह विचार क्यों आया तुम्हारे दिमाग में। नंदा चौंककर बोली, फिर वो आगे बोली। स्वीट हार्ट...... अभी हमारे खेलने-खाने के दिन है और इसलिये तुम वही करो, जो करने आए हो। बाकी के विचारों को दिमाग से निकाल दो। बोलकर नंदा मुस्करा पड़ी, उसकी कातिल मुस्कान ने जादू किया और श्रेयांश अपना होश खो बैठा, वो आहत हो कर बोला।
ओह!......यश बेबी।
बोलने के साथ ही श्रेयांश लपका और उसने नंदा को बाँहों में भर लिया। फिर तो उसके होंठ नंदा के होंठों पर चिपक गए......"वह नंदा के होंठों के पराग कण को चुसने लगा। साथ ही उसके हाथ हरकत करने लगे, उसने एक-एक कर नंदा के शरीर से सारे वस्त्रों को उतार दिए और जैसे ही अपने वस्त्र उतारने लगा। तभी अचानक ही रूम की लाइट जलने-बुझने लगी। एक पल भी नहीं बीता होगा कि जलती-बुझती रोशनी रंग-विरंगी हो गई। साथ ही तीव्र स्वर में "रति संवाद-रति संवाद" गुंजायमान होने लगा।......अचानक ही रूम में बदले परिस्थिति से नंदा और श्रेयांश के होंठ डर के मारे सूखने लगे। वे दोनों भूल ही गए कि वे यहां पर किसलिये आए थे। अब तो उनके चेहरे पर खौफ ही खौफ था। तभी ड्रेसिंग टेबुल का शीशा तेज आवाज के साथ टूटा और पूरे रूम में बिखर गया।
दोनों समझ भी पाते, उससे पहले ही एक शीशे का टुकड़ा आकर नंदा के शीने में धंस गया। "वह बेड पर ही फैल गई और दर्द से तड़पने लगी। जबकि श्रेयांश, वह तो कुछ समझ ही नहीं सका, उसका तो पूरा वजूद ही भय से कांप रहा था, चेहरा पीला पड़ चुका था। जबकि नंदा, दो मिनट तक तड़पती रही, फिर शांत होकर लाश में तबदील हो गई। शायद श्रेयांश बुत ही बना रहता, अगर वहां होटल के स्टाफ और ग्राहक नहीं आ गए होते। थोड़ी ही देर में वहां पर काफी भीड़ जमा हो चुकी थी, जबकि श्रेयांश नंदा से लिपट कर बच्चे की मानिंद रो रहा था।
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क्रमशः-