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लवण्या आर.......

16 सितम्बर 2022

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सुबह की प्रभात किरणें फूटने को आतुर हो चली थी। चारों तरफ उजाला फैल चुका था और अंधेरे का साम्राज्य छिन्न -भिन्न हो चुका था।.....तो सहज ही था कि चिड़िये के कलरव से वातावरण गूंज उठे। "यूं तो शहर में कंकरीट का जाल इस प्रकार से फैल चुका है कि विचारी चिड़ियां को अपना आशियाना ढूंढने के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है"। परन्तु पंछी है न, बहुत जीवट होते है और विपरीत परिस्थिति में भी गुजारा कर लेते है।....तो फिर स्वाभाविक ही है कि प्रभात बेला के आगमन पर वे एक कंठ स्वर में कलरव करके गीत गाए।....परन्तु मानव तो मानव है, स्वार्थी और धूर्त, जो अपने हित साधने के लिए इनका आशियाना उजाड़ने से भी गुरेज नहीं करता। बस यही बात है, अभी मानवों का चहल-पहल बहुत कम ही था, इसलिये चिड़ियां चहक रहे थे।
                                  ऐसे ही मनोहारी वातावरण में, जब लग रहा था कि प्रकृति खिल उठी हो, सफेद रंग की इनोवा कार सड़क पर फिसलती जा रही थी। कार के ड्राइविंग शीट पर बहुत ही सुंदर कोमलांगी बैठी हुई थी और वो पूरी तन्मयता से कार ड्राइव कर रही थी। उसके रेशमी बाल, जो कि लगता था कि नागिन से फन काढे हुए हो। उसके सुर्ख रसीले अधर और लंबा सुता हुआ नाक। गुलाबी गाल और पतली कमानीदार भौंह।.....उसपर उसने ब्लू रंग की टी-शर्ट और ब्लैक जिंस पहना हुआ था, जिसमें वो " कमायनी" की प्रतिमा लग रही थी।....हां वो लवण्या आर थी, उद्योगपति जगपति आर की लाडली बेटी।
                     वैसे तो उसकी अभी पढाई चल रही थी, परन्तु उसके हाव-भाव से नहीं लगता था कि वो पढऩे में रुची रखती हो। उसके सुंदर चेहरे पर अभी थकावट के भाव थे, जिसकी चुगली उसकी आँखें कर रही थी।....हां वो शाम से ही कार को बेवजह ही दिल्ली की सड़क पर दौड़ाती रही थी और अब वह कार को कुंज बिहार की ओर लिए जा रही थी।.....वह जानती थी कि उसके पिता निंद से जग गए होंगे और अब उसको ही ढूंढ रहे होंगे। वैसे भी तो एक वही अकेली थी, जो पिता का ध्यान रख सकती थी और शायद इसलिये ही सुबह होने के साथ ही वो अपने आश्रय यानी निवास स्थान को लौट रही थी। आँखों में निराशा का भाव लिए।
                              आखिर आज की रात भी तो उसके हाथ निराशा ही लगी।....कहां तो वो घर से सोचकर निकली थी कि आज उसे जरूर ढूंढ लेगी। परन्तु शाम से रात ढली और रात से सुबह हो गई, फिर भी वह उसको नहीं ढूंढ सकी। उफ! जीवन भी कितना अजीब है कि मानव मन को भ्रमित किए रहता है।...उसे जिसकी तलाश होती है, "उसका साया भी उसे दूर-दूर तर नजर नहीं आता"। उसके साथ भी तो ऐसा ही हो रहा था, उसे जिसकी तलाश थी, गर्वित सक्सेना, वह मिल नहीं रहा था। लवण्या करीब एक वर्ष से बिना किसी दिन नागा किए उसकी तलाश में शाम को निकल जाती थी और सुबह निराश होकर लौटती थी।
                      परन्तु पता नहीं कि गर्वित को आकाश निगल गया था, या जमीन खा गई थी, उसका साया भी नजर नहीं आया था।.....लवण्या जानती थी कि उसके लिए गर्वित का मिलना कितना महत्वपूर्ण था....परन्तु वो उसे ढूंढ नहीं सकी थी।....लेकिन उसने अभी तक हार नहीं माना था और नियमित रुप से निकल जाती थी। उफ! रात की थकावट अब उसपर हावी होने लगा था, इसलिये उसने म्यूजिक प्लेयर आँन किया। कार में भगवान का सुमधुर भजन गुंजने लगा और उसने विचारों को झटक कर अपना ध्यान ड्राइविंग में पिरोया।.....परन्तु मानव का मन उसके नियंत्रण में नहीं होता, तभी तो खाली नहीं बैठता। "मन" मानव को कभी तो अच्छे विचार या तो बूरे विचार में उलझाए रहता है और लाचार मानव अपने मन के इशारे पर नाचता रहता है।
                         "लवण्या आर" की स्थिति भी तो इससे जुदा न थी, क्योंकि उसके पास भी" मन" था, जो कि अनियंत्रित हो रहा था। वह चाहती थी कि अब वो विचारों के भंवर जाल से बाहर निकले और जितनी जल्दी हो सके, घर पहुंचे।.....परन्तु ऐसा कब हुआ है? जो अब होगा। वो न चाहते हुए भी फिर से विचारों की माला में गूंथ गई। उसका काँलेज का द्वितीय वर्ष था, तभी गर्वित सक्सेना उस काँलेज में आया था। "स्वभाव से मिलनसार गर्वित एवं लवण्या", दोनों ही थे। ऐसे में दोनों के बीच करीबियां बढ रही थी। मामला इतना करीब का हो चुका था कि दोनों को एक दूसरे के बिना रहा ही नहीं जाता था।...हां यह बात जरूर थी कि उनके बीच चाहत का इजहार नहीं हुआ था।....परन्तु अचानक से ही गर्वित लवण्या से दूरियाँ बनाने लगा। पहले तो लवण्या समझ ही नहीं पाई, पर जब समझी, बहुत देर हो चुका था।
                                   वह समझ भी नहीं सकी थी और गर्वित उससे दूर हो गया था। इस घटना ने लवण्या को काफी प्रभावित किया और वो टूटने सी लगी थी।...वो टूट कर बिखर ही जाती...अगर उसके पिता ने उसको संभाला नहीं होता। फिर भी एक कसक तो थी ही उसके हृदय में कि गर्वित उसे आखिर छोड़ कर क्यों गया? उसमें आखिर किस चीज की कमी थी कि गर्वित अचानक ही उससे दूर हो गया?.....बस वो गर्वित से मिलकर सिर्फ उस कारण को जानना चाहती थी, जिसके लिए वो उससे अलग हो गया था।....परन्तु यह समय का चक्र कहा जाए या उसकी बदकिस्मती, एक वर्ष हो चुके थे, परन्तु अब तक गर्वित का साया भी उसे नहीं मिला था।
                    सहसा ही लवण्या के पैर ब्रेक पर तेजी से कसे, क्योंकि उसकी कार उसके घर के आगे निकल चुकी थी। लवण्या ने कार रोकी, रिवर्स किया और फिर "आनंद बिला" के गेट से कार को अंदर ले लिया और पार्किंग में खड़ी करके बाहर निकली और बिल्डिंग की ओर बढी। आनंद बिला, काफी क्षेत्रफल में फैला हुआ और हर एक सुविधा से परिपूर्ण  एवं सुंदर। लवण्या ने गेट खोला और हाँल में कदम रखा और हाँल में कदम रखते ही उसकी नजर अपने पिता जगपति आर पर गई। जगपति आर हाँल में रखे सोफे पर बैठे लैपटाँप चला रहे थे।...जगपति आर, आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी.....परन्तु उनके चेहरे पर बुढ़ापा का असर दिखाई देने लगा था।
आ गई बेटा! जगपति आर ने बिना सिर उठाए ही कहा और फिर अपने काम को करते रहे। जबकि लवण्या ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
जी पापा! इतना बोलने के बाद वो किचन की ओर बढ गई। जबकि जगपति आर अपने काम में ही उलझे रहे। जबकि बाहर सूर्य क्षितिज पर आ चुके थे और उनकी प्रखर रोशनी चारों ओर फैल चुकी थी।
                      करीब दस मिनट बाद ही लवण्या किचन से दो कप काँफी लेकर लौटी और एक जगपति आर को थमाया और दूसरा खुद थामे उनके सामने बाले सोफे पर बैठ गई। जगपति आर, काँफी का कप हाथ में आते ही उन्होंने लैपटाँप साइड में रखा और काँफी की चुस्की लेने लगे। ऐसे, जैसे कि वे बिल्कुल शांत हो और उनको किसी प्रकार की चिन्ता नहीं हो।....परन्तु लवण्या अच्छी तरह से जानती थी कि यह सिर्फ बाहरी आवरण है। बाकी तो उसके पिता अंदर ही अंदर घुटते है।....लवण्या काँफी पीना भूलकर उनके ही चेहरे को देख रही थी और सोच रही थी कि "वह कैसी बेटी है, जो अपने पिता को खुशी देने के बदले चिन्ता के सागर में डुबाये हुए है"। परन्तु वह भी तो दिल के हाथों मजबूर थी, अन्यथा ऐसी तो वो नहीं थी।...खट! हल्की सी आवाज हुई और लवण्या संभल गई, फिर काँफी के घूंट भरने लगी।
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क्रमशः-


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रचनाएँ
रति संवाद
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कहानी के मुख्य शब्द, यानी कि रति संवाद, मानव मन की वेदना का आकलन है। जब कोई किसी के द्वारा छला जाता है, किसी के द्वारा धोखा खाता है, तो उसके हृदय में कुंठा जागृत होती है। जब वह अपने मन की कुंठा का समन नहीं कर पाता, तो फिर औरो के लिए नुकसान देय बन जाता है। जीवन जितनी सरल है, हमने अगर जीना नहीं सीखा, यह उतना ही दु:ष्कर बन जाता है। जब हम बिना बजह ही सपनों के पीछे दौङते है, वह सपना भार रुप हो जाता है। प्रारंभ:-
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रति संवाद( जीवन के अनछुए पहलू की कहानी)........

16 सितम्बर 2022
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कहानी के मुख्य शब्द, यानी कि रति संवाद, मानव मन की वेदना का आकलन है। जब कोई किसी के द्वारा छला जाता है, किसी के द्वारा धोखा खाता है, तो उसके हृदय में कुंठा जागृत होती है। जब वह अपने मन की कुंठा का समन

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रोहिणी पुलिस स्टेशन.......

16 सितम्बर 2022
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इंस्पेक्टर सलिल वैभव! नाम के ही अनुरूप शालीनता थी, लेकिन वह तभी तक, जब तक कि उसके मातहत उसके अनुरूप कार्य करते थे। अन्यथा तो थोड़ी सी गलती हुई नहीं कि सलिल से तूफान बनते देर नहीं लगती थी। फिर तो मत पुछ

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होटल सांभवी........

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रात के आठ बज चुके थे! यूं तो शहर रात के आगोश में समा चुका था, परन्तु शहर रोशनी में पूरी तरह नहा चुका था। होटल "सांभवी" को दुल्हन की तरह सजाया गया था। काफी क्षेत्रफल में फैला हुआ होटल "सांभवी", आगे विश

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सलिल का होटल पहुंचना और लाश का मुआयना करना......

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रोहिणी पुलिस स्टेशन! इंस्पेक्टर सलिल ने फोन पर बात करके अभी काँल को डिस्कनेक्ट कर दिया था।.....परन्तु अभी भी सलिल शांत नहीं हुआ था, उसकी धड़कन धौंकनी की मानिंद चल रही थी। उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव ग

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नंदा की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेजना और सलिल की मीडिया बालों से झरप.....

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श्रेयांश के पास से उठने के बाद सलिल होटल के अंदर की तरफ बढा। होटल पांच मंजिला था, इसलिये सलिल को पूरा होटल खंगालने में करीब एक घंटे का समय लग गया। परन्तु क्या मजाल कि उसके चेहरे पर हल्की सिकन भी आई हो

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सान्या सिंघला......

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रात के करीब एक बजने को थे। अमूमन तो इस समय तक दिल्ली की सड़क की रफ्तार बहुत धीमी हो जाती थी। परन्तु कमर्शियल वाहन की बाढ सी आ जाती थी। जिसमें से अधिकतर बड़ी गाड़ियां होती थी। आज भी सड़क पर बड़ी- बड़ी गाड़िया

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पुलिस स्टेशन.......

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रात के एक बजे के करीब पुलिस काफिला रोहिणी पुलिस स्टेशन पहुंची। इसके बाद वे लोग उतरे और आँफिस की ओर बढे। चलते-चलते सलिल ने रोमील को समझाया कि भल्ला एवं श्रेयांश को लाँकअप में डालो, इससे हम बाद में पूछत

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लवण्या आर.......

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सुबह की प्रभात किरणें फूटने को आतुर हो चली थी। चारों तरफ उजाला फैल चुका था और अंधेरे का साम्राज्य छिन्न -भिन्न हो चुका था।.....तो सहज ही था कि चिड़िये के कलरव से वातावरण गूंज उठे। "यूं तो शहर में कंकरी

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भाव्या बिला.....

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सुबह की किरण ने जैसे ही धरती के आँचल को छूआ, चारों ओर प्रकृति खिल सी गई। ऊँची-ऊँची इमारतें अपने बुलंदी पर इतराने लगी। शहर का कोना-कोना प्रकाश से खिलकर इतराने लगा।.....फिर तो इंडिया गेट की चमक तो विशेष

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सलिल का भागदौङ.......

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सुबह के सूर्य उदय होने के साथ ही सलिल आँफिस से बाहर निकला। उसे बाहर निकलता देखकर रोमील भी उसके साथ निकल पड़ा। वे दोनों प्रांगण में खड़ी स्काँरपियों में बैठे, कार श्टार्ट की और आगे की ओर बढा दी। स्काँरपि

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मुक्ता अपार्ट मेंट......

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अब दिन के दस बज चुका था और इसके साथ ही शहर की गतिविधि अधिक तेज हो गई थी। रोजी-रोटी के लिए भागता शहर, यहां हर एक मानव आगे की ओर निकलने की होड़ में लगा हुआ था। सभी अपने-अपने तरीके से रोजगार उपार्जन में ल

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पुलिस की खोजबीन......

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होटल “सांभवी” से लौटने के बाद पहले तो सलिल एवं रोमील ने पेट- पुजा की।.....उसके बाद सलिल ने रोमील को निर्देशित किया कि टाँर्चर रूम में लेकर आए। दिन के ठीक बारह बजे सलिल भल्ला के साथ टाँर्चर रूम में था।

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होटल मृणालिका.......

16 सितम्बर 2022
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अपने- आप में बहुत सुंदर, नाम के ही अनुरूप "होटल" मृणालिका। ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे दुल्हन की तरह सजाया गया हो।....गेट पर खड़े दरबान आने बाले ग्राहकों का विनम्रता से स्वागत कर रहे थे। अंदर कंपाऊंड, जि

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सलिल का होटल मृणालिका पहुंचना......

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सलिल वापस तो पुलिस स्टेशन लौटा, परन्तु आँफिस के काम निपटाने के बाद बोर होने लगा। दूसरे शाम के आलम ने ढलते-ढलते रात का रुप ले लिया था।.....जी हां, अब रात के आठ बज चुके थे, इसलिये सलिल को भूख भी लग गई थ

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उन्नति वियर बार......

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रात के दस बजने के साथ ही उन्नति वियर बार का जलवा अपने चरम पर पहुंचने लगा था।....वियर बार होने के कारण यहां जमकर शराब परोसा जात था। साथ ही यहां ग्राहकों के द्वारा जमकर चरस को धुएँ में उड़ाया जाता था। उस

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सलिल का एस. पी. साहब से मिलना......

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होटल मृणालिका से लौटने के बाद जब सलिल अपने आँफिस में पहुंचा, काफी थक चुका था। उसकी आँखें लाल-लाल हो चुकी थी और सांसें चढने लगा था। ऐसे में उसने कुर्सी के पीछे दीवाल पर सिर टिकाया और कुर्सी पर निढाल हो

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पुलिस मुख्यालय......

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एस. पी. साहब रात के इस समय लैपटाँप पर डटे हुए थे। उनकी आँखों में देखकर ऐसा लगता था कि निंद उनसे कोसो दूर है।....आखिर उन्हें निंद आता भी कैसे? जब उनके इलाके में लगातार दूसरे दिन ही नवजवान लड़की की निर्म

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होटल पृथा......

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रात के तीन बज चुके थे और रात्रि के इस पहर में नीरव शांति छा चुकी थी। हां, इस नीरव शांति को कभी-कभी शहर के आवारा कुत्ते, तो कभी-कभी सड़क पर गुजरती बड़ी गाड़ियों की आवाज तोड़ देता थी। इन आवाज से ऐसा प्रतीत

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इंस्पेक्टर सलिल.......

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होटल पृथा से निकलने के बाद स्काँरपियों ने रफ्तार पकड़ लिया और सड़क पर सरपट दौड़ने लगी।....परन्तु न जाने क्यों सलिल को कुछ न कुछ अजीब लग रहा था। वो जब होटल पृथा में गया था और जबतक वहां पर रहा था। उसे इस ब

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राजीव सिंघला.......

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सूर्य की प्रथम रश्मि ने धरती के आँचल को छू लिया था। ऐसे में धरती खिलखिला उठी थी.....!....मंद-मंद मुस्करा उठी थी। तो फिर शहर की गलियां भी खिलखिला उठे,.... लाजिमी ही था। तभी तो "भाव्या बिला" की सुंदरता

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तांत्रिक भूतनाथ......

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सुबह के आठ बज चुके थे। प्रभात किरण और भी प्रखर हो चुकी थी, परन्तु तेरह अक्तुबर की सुबह, वातावरण में फूल गुलाबी ठंढी का एहसास घुला हुआ था। ऐसे में सलिल पुलिस स्टेशन लौट आया था और अब फाइलों में उलझा हुआ

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सेमीनार.......

16 सितम्बर 2022
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दिल्ली का वह “इंजीनियरिंग एण्ड डेवलपमेंट फाँर यूथ” का विशाल हाँल। गोलाकार शेप में बना हुआ हाँल काफी भव्यता लिए हुए था। उसमें भी बड़ी बात कि यहां “यंग लाइफ” सेमिनार आयोजित होना था,….इसलिये अभी यहां काँल

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होटल सांभवी में तंत्र साधना.....

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दिन के तीन बजने के साथ ही " होटल सांभवी" के आस- पास चहल-पहल बढ गई थी। वैसे तो इस होटल में अपराध घटित हुआ था, यह पुलिस के द्वारा शील कर दिया गया था और इसके रक्षा की जिम्मेदारी सब- इंस्पेक्टर राम माधवन

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न्यूज डिबेट.....

16 सितम्बर 2022
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शाम के छ बजते ही सलिल अपने अपार्ट मेंट पर पहुंच गया था। वैसे ही वो बहुत ही थका हुआ था और दूसरी ये बात थी कि उसे पता नहीं था कि कितनी रातें जागकर बितानी पड़े।.....इसलिये उसने रोमील को पहले ही सोने के लि

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चंद्रिका वन फार्म हाउस......

16 सितम्बर 2022
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शाम के छ बज चुके थे और ढलती हुई सूर्य लालिमा के बीच चंद्रिका वन फार्म हाउस की छटा और भी निखर उठी थी। साथ ही निखरने लगा था बिल्डिंग का रंगत। उस बिल्डिंग के अंदर बेडरूम में सोया हुआ वही सुन्दर युवक, नित

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लवण्या एवं सम्यक का मिलन.......

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लवण्या कार को यूं ही भगाये जा रही थी, बेतहाशा, बिना किसी मकसद के। उसका तो रोज का ही काम था, दिल्ली की सड़क को छानना। बस वह एक झलक पाना चाहती थी और अचानक ही उसकी कार एक्सीडेंट होते-होते बची। उसे तो लगा

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तीसरी हत्या होटल सन्याल में.......

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रात के नौ बज चुके थे, इसलिये आस-पास के इलाके में अब धीरे-धीरे शांति पसरने लगी थी। उसी शांति के आभास में तो सभी जीते है,.....परन्तु हाँल में अभी शांति नहीं थी, क्योंकि टीवी मध्यम आवाज में अभी भी चल रही

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वियर बार में सम्यक एवं लवण्या......

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रात के ग्यारह बज चुके थे। अब तो वियर बार में भीड़ छंटने लगी थी और संभवतः घंटे भर बाद बंद भी होने बाला था। ऐसे में सम्यक ने लवण्या के आँखों में देखा, फिर गंभीर स्वर में बोला। लवण्या.....मेरे विचार से र

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सम्यक की खुशी और ईश्वर आराधना.......

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रात के बारह बजने को ही था, तभी सम्यक की कार अपार्ट मेंट के अहाते में आकर लगी। फिर वो तेजी से बाहर निकला और अपने फ्लैट की ओर बढा, लाँक खोली और अंदर प्रवेश कर गया। अंदर धूप्प अंधेरा था, ऐसे में हाथ को ह

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सलिल का तांत्रिक भूत नाथ से मिलना और भूत नाथ की तांत्रिक क्रिया.......

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एस. पी. साहब के जाने के बाद सलिल गहरी निंद में सोया था और इसके कारण ही उसको राहत की अनुभूति हो रही थी। उसने देखा कि रोमील के चेहरे पर भी ताजगी थी और उस ताजगी को देखकर समझ गया था कि उसके सोने के बाद वह

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पुलिस को कोर्ट की नोटिश........

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अपने आँफिस में लौटते-लौटते सलिल को दस बज गए। करीब दस बजे वह अपने आँफिस में पहुंचा और पहुंचते ही चौंक गया। उसने जैसे ही आँफिस में कदम रखा, अपने टेबुल पर रखे हुए लिफाफे को देखकर उसे चार सौ चालीस बोल्ट क

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कोर्ट रुम........

18 सितम्बर 2022
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दिन के बारह बजे। रोहिणी कोर्ट का प्रांगण, हलचल होता हुआ, वहां हर एक को जल्दी थी। किसी को अग्रिम जमानत चाहिए था, इस कारण से वकीलों से उलझा हुआ था। तो किसी के केस तारीख की पेशी थी। ऐसे में कोर्ट रूम के

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